Author Topic: महिला आरक्षण बिल, उत्तराखण्ड के सन्दर्भ में :Women Reservation Bill,Uttarakhand  (Read 7285 times)

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
वर्तमान कांग्रेसनीत सरकार ने संसद व विधायिकाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करने वाले बिल को राज्यसभा में पास करा कर इस बिल के प्रति अपनी गंभीरता प्रदर्शित कर दी है. भाजपा और अन्य कुछ विपक्षी दलों के समर्थन से लगता है कि सरकार इस मुद्दे पर कुछ और कदम आगे बढ सकती है. लेकिन लालू यादव, मुलायम और शरद यादव जैसे कुछ दिग्गज इस मसले को उलझाने में लगे हुए हैं.

आप इस बिल के विषय में क्या विचार रखते हैं?

उत्तराखण्ड में पंचायत स्तर पर (ग्राम, विकास खण्ड व नगर पालिका तक) पहले ही महिलाओं के लिये 50% आरक्षण लागू किया जा चुका है. और इसके कुछ अच्छॆ परिणाम भी सामने आये हैं. पिछले पंचायत चुनावों में महिलाएं उन सीटों पर भी भारी संख्या में जीत कर आईं जो Open Seat थी, अर्थात महिलाओं ने पुरुषों को हराकर भी सीटें जीती थीं.

लेकिन उत्तराखण्ड के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखा जाए तो गिनी-चुनी 2-4 महिलाएं ही अपने दम पर राज्य स्तर तक अपना दबदबा कायम कर पायी है. यह भी एक कटु सत्य है कि पंचायतों में चुनी गई अधिकांश महिलाओं के बदले हकीकत में उनके पति, पुत्र या अन्य परिजन ही सब काम संभालते हैं और इस तरह "प्रधान पति" या "ब्लाक प्रमुख पति" जैसे कई नये Designation प्रयोग में आने लगे हैं

तो महिला आरक्षण बिल को उत्तराखण्ड राज्य की राजनीति के सन्दर्भ में आप किस तरह देखते हैं? कृपया अपने विचार यहाँ जरूर व्यक्त करें....

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
पिछले पंचायत चुनावों में चुनकर आई कुछ महिला जनप्रतिनिधियों की प्रतिक्रियाएं

Source : Dainik Jagran (http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5016612.html)

आजादी तो ठीक, मगर पति की सलाह जरूरी

नैनीताल: पंचायत के कार्यो में पतियों का दखल रोकने को सरकार भले ही कसरत में जुटी हो लेकिन महिला जिला पंचायत सदस्य पति की सलाह को जरूरी मानती हैं। महिला प्रतिनिधियों के अनुसार निर्णय लेने में आजादी अवश्य मिलनी चाहिए। महिलाओं ने बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि पंचायतों में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण मिलने से समस्याओं का समाधान बेहतर तरीके से हो सकेगा। राज्य सरकार के इस निर्णय पर अधिकांश महिलाएं बेहद खुश नजर आई। अल्मोड़ा जिले की इड़ा सीट से जिला पंचायत सदस्य रीता नेगी व भगवती आर्या ने कहा कि पति का नैतिक समर्थन लोगों की सेवा करने में टानिक का काम करता है। उनका कहना था कि जब महिला-पुरुष साथ चलेंगे तभी विकास की हर बाधा पार होगी। अल्मोड़ा की ही विमला रावत की भी कमोवेश राय यही थी। पिथौरागढ़ जिले की बेरीनाग से रेनूका धानिक व डीडीहाट से मंजू डसीला का कहना था कि पहाड़ में महिलाओं को विकास का लाभ अब तक नहीं मिला है, अब वह बैठकों के अलावा अधिकारियों के साथ मिलकर समस्याओं का समाधान करा सकती हैं। उत्तरकाशी जिले की चिन्याली सीट से सदस्य मालती राणा के अनुसार उनकी पहली प्राथमिकता पिछड़े क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ना है। श्रीमती राणा ने कहा कि महिलाओं के आगे आने से समस्याओं के निस्तारण में तेजी आएगी और भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा।
 

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
उत्तराखण्ड में पिछले चुनाव में कई महिलाएं पहली बार चुनाव जीतकर जनप्रतिनिधि बनीं थीं. आशा की जा सकती है कि इनमें से कुछ महिलाएं आने वाले समय में महिला आरक्षण लागू होने पर, अपनी योग्यता के बल पर संसद व विधानसभा में भी प्रवेश करेंगी.

राजेश जोशी/rajesh.joshee

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 406
  • Karma: +10/-0
संसद से बिल पास होने से आम महिलाओं को कोई लाभ होने वाला नही है, यह केवल उन राजनेताओ को अपनी राजनीति चमकाने में मदद करेगा जो पहले से राजनीति को सेवा की बजाय एक पुश्तैनी धन्धे की तरह कर रहे हैं।  इससे उनके परिवारों का राजनीति में प्रभुत्व और बढ़ जायेगा तथा महिला आरक्षित सीटों पर ऐसी ही महिलाऎं आगे बढ़ेगी जिनके परिवार के लोग पहले से ही राजनीति की दुकाम चला रहे हैं।  अगर राजनैतिक पार्टियों में महिलाओं को आगे लाने का साहस होता तो सीटों के आरक्षण की आवश्यकता ही नही है।  क्यों नही हर पार्टी अपनी पार्टी से ३३ से ५०% महिलाओं को टिकट देती हैं, अगर वह योग्य होंगी तो अपने आप चुन ली जायेंगी।  इसमें आरक्षण का मुद्दा कहा से आ गया, एक तरफ़ तो महिलाऎं अपने आप को पुरुषों के समकक्ष मानती हैं तो फ़िर चुनाव मैदान में आरक्षण की बैशाखी क्यों दी जा रही है?  पंचायतों में जहां महिलाओं को ५०% आरक्षण दिया गया है वहां अधिकतर महिलाओं की हालत यह है कि सारा काम उनके पति ही करते है, यह जनता के साथ मजाक से ज्यादा क्या है?  मुस्लिम महिलाओं के मामले में तो हालत यह है कि अखबारों में नाम महिला का और फ़ोटो उसके पति का दिया रहता है। यह कैसा महिला सशक्तिकरण और कैसा लोकतन्त्र है मेरी समझ से बाहर की बात है।  आंकड़ेबाजी के लिए जरुर विश्व की दूसरी महिला प्रधानमंत्री हमारे देश से हैं और इस समय हमारे देश की राष्ट्रपति भी महिला हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

What i have personally seen in Uttarakhand is that women are elected village ahead, block pramukh etc but they don't get chance to work independently. Always their husbands are looking after the work.

So what is the benefits of such reservations?

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
उत्तराखण्ड जैसे नव विकासशील राज्य के संदर्भ में यदि कहा जाय तो विधायिका में ३३% आरक्षण किया जाना एक जल्दबाज कदम ही साबित होगा। उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाय तो मातृ शक्ति की भूमिका का अदम्य उदाहरण कहीं नहीं देखा जा सकता है। हर आन्दोलन में महिला शक्ति ने जो सम्बल आन्दोलन को प्रदान किया वह काबिले गौर है। लेकिन जहां त नेतृत्व की बात है तो महिलाओं में अशिक्षा का अभाव सबसे बड़ा कारक होगा, जो इस मामले में उन्हें कमजोर कर देगा। पहले महिला समाज शिक्षित हो जाय, क्योंकि अभी त उत्तराखण्ड में ग्रामीण इलाकों की लड़कियां औसतन कक्षा ५ और कस्बों में हाईस्कूल तक की ही शिक्षा ग्रहण कर पातीं है।
महिला आरक्षण का जो मौजूदा स्वरुप है, उसके अनुसार उत्तराखण्ड में कुल २३ सीटें आरक्षित होंगी और प्रत्येक तीसरी विधान सभा सीट महिलाओं के लिये आरक्षित होगी। जिस तरह से पंचायतों में ५० % आरक्षण का प्रतिफल हमने देखा उसके आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि अभी ये सब करना जल्दबाजी ही होगी।

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
पंकज दा की उपर्युक्त बात से मैं कुछ हद तक सहमत हूँ. हमारे प्रदेश में पंचायतों में 50% महिला आरक्षण होने के बावजूद महिला प्रतिनिधि अपने पति या अन्य पुरुष परिजनों के ऊपर पूरी तरह निर्भर होकर ही काम करती हैं. इस तरह महिला आरक्षण का सीधा फायदा महिलाओं को या समाज को पूरी तरह नहीं मिल पा रहा है.

कांग्रेस सरकार द्वारा पारित कराये जा रहे इस बिल के पीछे सरकार की एक अच्छी सोच है, लेकिन सरकार को चाहिये कि वह इसे लागू करने से पहले समाज के हर तबके और देश के सभी इलाकों की सामाजिक और आर्थिक संरचना को पूरी तरह ध्यान में रखे, तभी इस बिल को पारित कराने का उद्देश्य सफल हो पायेगा.


फोरम के अन्य सदस्यों से भी अनुरोध है कि इस मसले पर वह अपने विचार रखें.


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22