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विस्थापित पहाड़ी क्या उत्तराखंड वापस लौटना चाहिगे ? Wud U like to Return UK ?

Yes
52 (91.2%)
No
3 (5.3%)
never
2 (3.5%)

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Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: Would You Return To UK - विस्थापित पहाड़ी क्या उत्तराखंड वापस लौटना चाहिगे?  (Read 30992 times)

hem

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मेरा मत है कि यदि सम्भव हो तो अवश्य विस्थापित पहाडियों को वापस पहाड़ लौटना चाहिए | विशेषत: वे लोग जो अभी कैरीयर के प्रारम्भिक  दौर में हैं, अवसर मिलने पर ऐसा कर सकते हैं | लेकिन यदि वे अपने कैरीयर को दाँव पर लगाने को तैयार नहीं हैं तो उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता | आज ग्लोबलाइजेशन के दौर में लोग गाँव और  क्षेत्र ही नहीं देश भी खुशी खुशी छोड़ रहे हैं | हालांकि यह विषय एक अलग चर्चा का विषय है |
वैसे यह मुद्दा कुछ कुछ देश के सभी क्षेत्रों के गावों  से शहरों को  पलायन जैसा ही है | सैद्धान्तिक  रूप से शहरों से गावों को लौटना चाहिए, किंतु वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता |
जहां तक मेरा व्यक्तिगत सन्दर्भ है मेरे लिए यह सम्भव नहीं है |  मन में पहाड़ की नराई रखते हुए भी मैं पहाड़ लौटने का निर्णय नहीं ले सकता | इसका मुख्य कारण आवागमन की असुविधा और त्वरित चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है|
वैसे एक बार की  पहाड़ यात्रा  के दौरान पहाड़ को लेकर एक कटु अनुभव  भी हुआ है जिसे कभी बाद में लिखूंगा |

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Dhanyavaad Sir aapke anubhav ke liye waise hum aapke aur sansmarano ki prateeksha main hain.

मेरा मत है कि यदि सम्भव हो तो अवश्य विस्थापित पहाडियों को वापस पहाड़ लौटना चाहिए | विशेषत: वे लोग जो अभी कैरीयर के प्रारम्भिक  दौर में हैं, अवसर मिलने पर ऐसा कर सकते हैं | लेकिन यदि वे अपने कैरीयर को दाँव पर लगाने को तैयार नहीं हैं तो उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता | आज ग्लोबलाइजेशन के दौर में लोग गाँव और  क्षेत्र ही नहीं देश भी खुशी खुशी छोड़ रहे हैं | हालांकि यह विषय एक अलग चर्चा का विषय है |
वैसे यह मुद्दा कुछ कुछ देश के सभी क्षेत्रों के गावों  से शहरों को  पलायन जैसा ही है | सैद्धान्तिक  रूप से शहरों से गावों को लौटना चाहिए, किंतु वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता |
जहां तक मेरा व्यक्तिगत सन्दर्भ है मेरे लिए यह सम्भव नहीं है |  मन में पहाड़ की नराई रखते हुए भी मैं पहाड़ लौटने का निर्णय नहीं ले सकता | इसका मुख्य कारण आवागमन की असुविधा और त्वरित चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है|
वैसे एक बार की  पहाड़ यात्रा  के दौरान पहाड़ को लेकर एक कटु अनुभव  भी हुआ है जिसे कभी बाद में लिखूंगा |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sir,

Your suggestion is quite valid. There is fresh air / fresh water and a very pleasant environment but employment point of views pahad has given almost nil resources. Otherwise, no pahadi roam in search of job town to town / state to state. If Govt and other organization do something in this regards to generate employment opportunities there, people would surely like to go back. Atleast we would somewhat pollution free from suffocation environment in cities.

But I would one thing for pahad “ HUM US PRADESH KE WAASI HAI JAI SE GANGA NIKLANTI HAI “.


मेरा मत है कि यदि सम्भव हो तो अवश्य विस्थापित पहाडियों को वापस पहाड़ लौटना चाहिए | विशेषत: वे लोग जो अभी कैरीयर के प्रारम्भिक  दौर में हैं, अवसर मिलने पर ऐसा कर सकते हैं | लेकिन यदि वे अपने कैरीयर को दाँव पर लगाने को तैयार नहीं हैं तो उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता | आज ग्लोबलाइजेशन के दौर में लोग गाँव और  क्षेत्र ही नहीं देश भी खुशी खुशी छोड़ रहे हैं | हालांकि यह विषय एक अलग चर्चा का विषय है |
वैसे यह मुद्दा कुछ कुछ देश के सभी क्षेत्रों के गावों  से शहरों को  पलायन जैसा ही है | सैद्धान्तिक  रूप से शहरों से गावों को लौटना चाहिए, किंतु वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता |
जहां तक मेरा व्यक्तिगत सन्दर्भ है मेरे लिए यह सम्भव नहीं है |  मन में पहाड़ की नराई रखते हुए भी मैं पहाड़ लौटने का निर्णय नहीं ले सकता | इसका मुख्य कारण आवागमन की असुविधा और त्वरित चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है|
वैसे एक बार की  पहाड़ यात्रा  के दौरान पहाड़ को लेकर एक कटु अनुभव  भी हुआ है जिसे कभी बाद में लिखूंगा |

पंकज सिंह महर

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जहां तक मेरा व्यक्तिगत सन्दर्भ है मेरे लिए यह सम्भव नहीं है |  मन में पहाड़ की नराई रखते हुए भी मैं पहाड़ लौटने का निर्णय नहीं ले सकता | इसका मुख्य कारण आवागमन की असुविधा और त्वरित चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है|


दाज्यू, जिन दो असुविधाओं का जिक्र आपने किया है, वह इतने साल शहरी परिवेश में रहने के कारण आपको लग रहा है। क्योंकि अब हम सुविधाओं के गुलाम हो गये हैं, अब हम पेट में गैस होने पर गोमूत्र या तुलसी के पत्ते नहीं ले सकते हमें अब रेनिटिडीन ही चहिये। लेकिन पहाड़ी परिवेश और वहां के आम जन-जीवन में यह आम बात है।
      यह सही है कि पहाड़ों में आज भी आवागमन, शिक्षा और चिकित्सा की hi-fi शहरी सुविधायें उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन वहां का आदमी इन अभावों का आदी होकर भी जी रहा है और जीता रहेगा। हमें शहरी सुविधाओं ली लत लग गई है और हम दोष देते हैं, वहां की असुविधाओं को। मेरा स्वयं का अनुभव है कि हमारी इष्ट देवी के मंदिर में मेरे पिताजी ५८ साल की उम्र में आज भी पैदल जाते हैं ( जो पैदल १२ कि०मी० है) और मैं ६० कि०मी० गाड़ी से ही जाता हूं, बहाना----अब पैदल चलने की आदत नहीं है।  जब कि वहां के लोगों के लिये यह यात्रा दुर्गम या कष्ट दायक नहीं है।

hem

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जहां तक मेरा व्यक्तिगत सन्दर्भ है मेरे लिए यह सम्भव नहीं है |  मन में पहाड़ की नराई रखते हुए भी मैं पहाड़ लौटने का निर्णय नहीं ले सकता | इसका मुख्य कारण आवागमन की असुविधा और त्वरित चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है|


दाज्यू, जिन दो असुविधाओं का जिक्र आपने किया है, वह इतने साल शहरी परिवेश में रहने के कारण आपको लग रहा है। क्योंकि अब हम सुविधाओं के गुलाम हो गये हैं, अब हम पेट में गैस होने पर गोमूत्र या तुलसी के पत्ते नहीं ले सकते हमें अब रेनिटिडीन ही चहिये। लेकिन पहाड़ी परिवेश और वहां के आम जन-जीवन में यह आम बात है।
      यह सही है कि पहाड़ों में आज भी आवागमन, शिक्षा और चिकित्सा की hi-fi शहरी सुविधायें उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन वहां का आदमी इन अभावों का आदी होकर भी जी रहा है और जीता रहेगा। हमें शहरी सुविधाओं ली लत लग गई है और हम दोष देते हैं, वहां की असुविधाओं को। मेरा स्वयं का अनुभव है कि हमारी इष्ट देवी के मंदिर में मेरे पिताजी ५८ साल की उम्र में आज भी पैदल जाते हैं ( जो पैदल १२ कि०मी० है) और मैं ६० कि०मी० गाड़ी से ही जाता हूं, बहाना----अब पैदल चलने की आदत नहीं है।  जब कि वहां के लोगों के लिये यह यात्रा दुर्गम या कष्ट दायक नहीं है।

पंकजजी आज से पचास साल पहले भी लोग असुविधाएं होते हुए भी पहाड़ में रहने के आदी थे और आज सुविधायें अधिक हो जाने पर भी आदी हैं | आदी तो मजबूरी में होना ही पङता है | लेकिन असुविधाओं के आदी होने  की अपेक्षा उनका हल निकालना जरूरी है| आवागमन और परिवहन की असुविधा के चलते ही पहाड़ में उद्योग और व्यापार पनप नहीं पा रहा है | गैरसैण को राजधानी बनाने में भी असुविधाओं के डर से अड़ंगे लगे| विस्थापितों का वापस लौटना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना महत्वपूर्ण भविष्य  में पलायन रोकना है |इसके लिए मेरे  द्वारा उल्लेखित असुविधाओं सहित अन्य असुविधाओं को दूर करना होगा |

हेम पन्त

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मेरे लिये तो यह बहस का विषय ही नहीं है कि मैं पहाङ वापस लौटना चाहूंगा या नहीं? क्योंकि मैदानों में काम करना, मैं एक मजबूरी समझता हूं. वापस जाना ही है इसमें कोई दुविधा नहीं है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मेरे लिये तो यह बहस का विषय ही नहीं है कि मैं पहाङ वापस लौटना चाहूंगा या नहीं? क्योंकि मैदानों में काम करना, मैं एक मजबूरी समझता हूं. वापस जाना ही है इसमें कोई दुविधा नहीं है.

Hem da,

Welcome back…

Actually, thi s is not the issue of going back.  The issue is that if you get a job in pahad, would u like to go back there or would prefer to serve here only.

Secondly,  the same condition for those who born and brought here, in case they get a job in Uttarakhand, would they like to go there or not.

We solicit views of people on this. May be some people would not like to go there after having getting the job due to geographical / developmental and other issues.

प्रहलाद तडियाल

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जहा तक मेरा सवाल है मुझे जेसे ही मोका मेलगा में पहाड़ जरुर जाना चाहोगा.........मुझे पता है वहा पर डेल्ही जेसी सुबिधाये नहीं है.............पर डेल्ही से अची हवा तो है..........में मानता  हु के वहा पर यहाँ जेसी मोंटी कमाई नहीं है पर पेट पलने क लिये मन्हुय की रोटी तो मील ही जायगी........में पहाड़ लोटने के लिये त्यार हु........ 

हेम पन्त

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I hope most of the people would like to share their views here!! (specially new members).....

अरुण/Sajwan

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Hem  Da
Mera janam hi devbhoomi UK me hua hai... aur mujhe hamesha se apne gaon aur apne pahad se bahut lagaw hai
aaj jab dekhta hun ki mera gaon aadhe se jyada khali ho gya hai to bahut dukh hota hai.. muhe pahad me job mile na mile mujhe vhi rahna hai.... Mera bahut pahle se sapna hai ki main apne kheton me Ziranium jaise aushadhiy plants ki kheti kar pahad me apna business karun... bas jarurat hai sahi advice.. sahi time aur ..jankari ki.......

 

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