Author Topic: Your Dream State Uttarakhand - आपके सपनो का राज्य उत्तराखंड  (Read 35146 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Hem ji,

Kya josh tha logo ko Uttarakhand state ke liye. Bahut gaane likhe gaye. Kavio ne, gayako ne bhi apne kala ka madhyam se logo ko rajya ke nimaan ke liye ikatha kiya tha.

Rajya Mila.   par 8 saal mae bhi vikas nahi..



उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के दौरान लिखे गये, समाज के हर तबके के सपने को दर्शाने वाले नरेन्द्र सिंह नेगी जी के इस गाने पर हमारे नीति-नियंताओं की नजर शायद अब तक नहीं गयी है...

बोला भै-बन्धू तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्
हे उत्तराखण्ड्यूँ तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्
जात न पाँत हो, राग न रीस हो
छोटू न बडू हो, भूख न तीस हो
मनख्यूंमा हो मनख्यात, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ्

बोला बेटि-ब्वारयूँ तुमथैं  कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्
बोला माँ-बैण्यूं तुमथैं  कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्
घास-लखडा हों बोण अपड़ा हों
परदेस क्वी ना जौउ सब्बि दगड़ा हों
जिकुड़ी ना हो उदास, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ्

बोला बोड़ाजी तुमथैं  कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्
बोला ककाजी तुमथैं  कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्
कूलूमा पाणि हो खेतू हैरयाली हो
बाग-बग्वान-फल फूलूकी डाली हो
मेहनति हों सब्बि लोग, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ्

बोला भुलुऔं तुमथैं  कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्
बोला नौल्याळू तुमथैं  कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्
शिक्षा हो दिक्षा हो जख रोजगार हो
क्वै भैजी भुला न बैठ्यूं बेकार हो
खाना कमाणा हो लोग यनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्

बोला परमुख जी तुमथैं  कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्
बोला परधान जी तुमथैं  कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्
छोटा छोटा उद्योग जख घर-घरूँमा हों
घूस न रिश्वत जख दफ्तरूंमा हो
गौ-गौंकू होऊ विकास यनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्!!


KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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तुम मागते हो उत्तराखंड कहा से लाऊ?
सूखने लगी गंगा, पीघलने लगा हीमालय!
उत्तरकाशी है जख्मी, पीथोरागढ़ है घायल!
बागेश्वर को है बेचेनी, पौडी मे है बगावत!
कीतना है DIL मे दर्द, कीस-कीस को मैं दीखाऊ!
तुम माग रहे हो उत्तराखंड कहा से लाऊ????

मडुवा, झंगोरे की फसले भूल!
खेतो मे जीरेनीयम के फूल!
गांव की धार मे रीसोर्ट बने!
गांव के बीच मे sweeming पूल!
कैसा वीकास? क्यों घमंड?
तुम मागते हो उत्तराखण्ड??

खद्दंजो से वीकास की बातें,
प्यासे दीन अँधेरी रातें,
जातीवाद का जहर यहाँ,
ठेकेदारी का कहर यहाँ,
घुटन सी होती है आखीर कहा जाऊ?
तुम मागते हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ???

वन कानूनों ने छीनी छाह,
वन आवाद और बंजर गांव,
खेतो की मेडे टूट गयी,
बारानाजा संस्कृती छुट गयी,
क्या गडवाल? क्या कुमाऊ?
तुम माग रहे हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ??

लुप्त हुए स्वालंबी गांव,
कहा गयी आफर की छाव?
हथोडे की ठक-ठक का साज,
धोकनी की गरमी का राज,
रीगाल के डाले और सूप,
सैम्यो से बनती थी धुप,
कहा गया gramy उध्योग?
क्यों लगा पलायन का रोग?
यही था क्या " म्योर उत्तराखण्ड" भाऊ?
तुम मागते हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ??

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Wah kailash Bhai,

Kaya dard chhupa hai is kavita mai.

Yes we have got the Uttarakhand but not the development. We are still in need of a development, prosperous Uttarakhand.

Who will bring this Uttarakhand ?

When will we get this Uttarakhand ?

I like these lines most.

लुप्त हुए स्वालंबी गांव,
कहा गयी आफर की छाव?
हथोडे की ठक-ठक का साज,
धोकनी की गरमी का राज,
रीगाल के डाले और सूप,
सैम्यो से बनती थी धुप,
कहा गया gramy उध्योग?
क्यों लगा पलायन का रोग?
यही था क्या " म्योर उत्तराखण्ड" भाऊ?
तुम मागते हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ?? [/b]



तुम मागते हो उत्तराखंड कहा से लाऊ?
सूखने लगी गंगा, पीघलने लगा हीमालय!
उत्तरकाशी है जख्मी, पीथोरागढ़ है घायल!
बागेश्वर को है बेचेनी, पौडी मे है बगावत!
कीतना है DIL मे दर्द, कीस-कीस को मैं दीखाऊ!
तुम माग रहे हो उत्तराखंड कहा से लाऊ????

मडुवा, झंगोरे की फसले भूल!
खेतो मे जीरेनीयम के फूल!
गांव की धार मे रीसोर्ट बने!
गांव के बीच मे sweeming पूल!
कैसा वीकास? क्यों घमंड?
तुम मागते हो उत्तराखण्ड??

खद्दंजो से वीकास की बातें,
प्यासे दीन अँधेरी रातें,
जातीवाद का जहर यहाँ,
ठेकेदारी का कहर यहाँ,
घुटन सी होती है आखीर कहा जाऊ?
तुम मागते हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ???

वन कानूनों ने छीनी छाह,
वन आवाद और बंजर गांव,
खेतो की मेडे टूट गयी,
बारानाजा संस्कृती छुट गयी,
क्या गडवाल? क्या कुमाऊ?
तुम माग रहे हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ??

लुप्त हुए स्वालंबी गांव,
कहा गयी आफर की छाव?
हथोडे की ठक-ठक का साज,
धोकनी की गरमी का राज,
रीगाल के डाले और सूप,
सैम्यो से बनती थी धुप,
कहा गया gramy उध्योग?
क्यों लगा पलायन का रोग?
यही था क्या " म्योर उत्तराखण्ड" भाऊ?
तुम मागते हो उत्तराखण्ड कहा से लाऊ??


Devbhoomi,Uttarakhand

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क्या यही है हमारे सपनों का उत्तराखंड, उत्तराँचल ?

हमारे कई बरसों के त्याग और बलिदान देने के बाद हमने 9 नवम्बर 2000 मैं हमने अपना पिर्थक राज्य पाया है 1 जनवरी २००७ को हमने !स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान मैं रखे हुए,
 उत्तराखंड का नाम उलट पलट कर उत्तराँचल रख दिया !आज जबकि उत्तराखंड एक अलग राज्य बन गया है जिसका हमे बरसों से सपना देखा था,आज उत्तराँचल को अलग राज्य बने हुए नौ साल होने जा रहे हैं लेकिन विकास के नाम पर तो अभी भी उत्तंचल एक राज्य नहीं लगता है !
 अलग राज्य का सपना हमने देखा था की पहाडों का और पहाडों मैं राणे वाले लोगों का विकास हो लेकिन अभी तक इन नौ सालों मैं विकास के नाम पर विनास ही ज्यादा नजर आ रहा है,
पहाडों मैं रहने वाले लोग आज भी विकास के लिए तरस रहे हैं और विकास नामक उस लालटेन के उजाले का इन्तजार कर रहे हैं जिसको पाने के लिए हमने एक सुन्दर सा प्यारा सा सपने देखा था की हमारा भी एक घर हो
इन पहाडों मैं रहने वाले बच्चे आज उन रास्तों के किनारे बैठ कर सपने देखते हैं कि:-कब आएगा ओ दिन जिस दिन हम इन्नी रास्तोंकि जगह पर सड़कें देखेंगे और कब हम उन सडको पर पैदल चले कि वजाय बसों मैं स्कूल जायेंगे ,
 क्या ये इन बच्चों का सपना सपना ही रहेगा या ये बचे भी एक दिन इन पहाडी रास्तों पर पैदल चलने कि वजाय स्कूल कि बसों मैं सफ़र करेंगे!उत्तरांचल राज्य गठन होने के बाद सहरों कस्बों और कुछ हद याक गावों के स्कूल और शिछा के माद्यम मैं कुछ हद तक विकास हुवा है,
 पर्वतीय भागों मैं आजकल अछे स्कूल खुल गए हैं लेकिन आज भी उन पहाडों मैं जीवन ब्यतीत करने वाला एक गरीब आदमी अपने बच्चों को उन पब्लिक स्कूलों मैं नहीं पड़ा सकता है,उत्तराँचल के पहाड़ी छेत्रों के विद्यार्थी अपने घरों से ४- ५ किलोमीटर राज पैदल जाते हैं और ये उनका रोज का आना जाना होता है !
 क्योंकि गरीब पहाड़ी परिआरों के पास और कोई चारा भी नहीं है वे अपने बचों को पब्लिक स्कूलों मैं पढ़ा सकें , यही कारण है कि पहाडों मैं रहने वाले बचों को हमेशा ४-या ५-किलोमीटर दूर जाना पड़ता है पड़ने के लिए ,प्रदेश कि राज्य सरकार का अर्थ एवं संख्या विभाग का आंकड़ों के अनुसार उत्तराँचल मैं आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन ब्यतीत करने वाले परिवारों कि संख्या लगभग ७ लाख तक पहुच गयी है!
 आपको सायद याद होगाजब उत्तराँचल राज्य का गठन हुवा था तो उस समय उत्तराँचल मैं ३ लाख ७५ हजार गर्रेब परिवार थे जो कि अब बड़कर दुगुनी हो गयी है ,
 अब तो लगत है कि ये उत्तराँचल अलग राज्य का सपना,देखना ही उन गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को ह भारी पड़ा है, आज भी देवभूमि मैं कुछ ऐसे गाँव हैं जहाँ के लोगों को एक लोटा पानी भी अन्सीब नहीं होता और बिजली तो दूर कि बात है इन गांवों मैं जीवन ब्यापन करने वाले लोंगों आज भी कोसों दूर जाना पड़ता है सिर्फ एक बंठा पाणी के लिए और उजाले के नाम पर तो भगवान् ही मालिक है!
 और उत्तरांचली कि सरकार के आंकडे बताते हैं कि उनहोंने तो बहुत ही भंयंकर विकास किया है उत्तराँचल मैं लेकिन ये सब कागजी बातें है जो कि अगर कागज़ नामक चश्में को पहनकर पडा जाय तो ही अछि लगती हैं , आज भी मुझे याद जब मैं १२ वीं कच्छा मैं पड़ता था तो,
 उस समय मुझे एक कागज़ कि जरूरत थी उस कागज़ का नाम थ (मूल निवास प्रमाण पत्र) लेकिन इसको बनाने के लिए मैंने कितने धक्के खाए थे वो मैं ही जानता हूँ और वो प्रधान जी जानते होगें जिन्होंने मुझे प्रधान कि मोहर लगाने के लिए, आज कल आजकल करके खूब घुमाया उनका मतलब था कि वही रिस्पत खाना !
 आज भी अगर आपको, किसी प्रमाण पत्र पर जिलाधिकारी कि मोहर लगवानी हो तो , आपको उसके बाबू को रिस्पत देनी पड़ेगी और वो है एक अंग्रेजी दारु कि बोतल और ५००० रूपये नगद देने पड़ते हैं

Devbhoomi,Uttarakhand

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देवभूमि के उन पहाडों मैं जीवन ब्यतीत करने वाले हम गरीब परवारों के उन सपनो को इन रिस्पत खोर अधिकारियों ने चकना चूर कर दिया है जो सपना हमने ९ साल पहले देखा था, हमारी देव भूमि मैं जो भी परिवार रहेगा वो सुखी और संपन्न जीवन ब्यतीत करेगा लेकिन हमें क्या मालुम था की ये सपना बिलकुल उल्टा हो जायेगा !
आजकल पटवारी जी भी अपने हतकड़ी भी नहीं निकालते, जबतक पटवारी जी को दारु की बोतल न सुन्गाई जाय और महात्मा गांधी जी की फोटो वाले लाल लाल नोट न दिखाए जाय, और आजकल तो गाँव के प्रधान जी भी कुछ ऐसे ही हत्कंडे अपना रहे हैं जैसे की जिलाधिकारी ही और पटवारी जी अपनाते हैं
मधवाल भाई जी ये बिलकुल सछ बात है यही होता है हमारे देवभूमि के गांवों मैं और गलियों मैं हर उस गरीब परिवार के उस जवान बेटे के साथ, जिस परिवार का सहारा वो उसका जवान बेटा है

Devbhoomi,Uttarakhand

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सपनों का उत्तराखंड तो वो था जब उन सहिदों ने सपना देखा था की हमारा एक दुनिया की उस उन्न्चाई तक पहुंचे जहाँ आज दिनया के देश हैं लेकिन उन सहिदों क्या मालुम था की आज के जनता और सरकार सहिदों की कुर्बानियों का गलत फायदा उठाएगी , उन बेचारों ने अपनी पठाई लिखाई लक्फी को जलाकर उजाला किया था और सपना देखा था की कभी हमरे घरों मैं एक बिजली का बल्व जलेगा, लेकिन उनने क्या मालूम था की वो बल्व जलने से पहले ही फ्यूज हो जाएगा !
पानी के नल लगाने की जगह, अब जो गांवों मैं प्रकिरती से जो पानी मिलता था अब पापियों ने उसे भो दूषित कर दिया है वो भी धीरे धीरे गायब होते जा रहा है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is our Dream State Progress
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हिमाचल से हर क्षेत्र में पिछड़ा उत्तराखंडSep 06, 02:34 amबताएं
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देहरादून। समान भौगोलिक परिस्थितियों वाले दो पड़ोसी राज्यों में हिमाचल प्रदेश विकास के हर सोपान में आगे निकल गया है। दोनों राज्यों के विकास संबंधी आंकड़े इसकी पुष्टि कर रहे हैं।

उत्तराखंड के नियोजन विभाग ने योजना आयोग के पास जाने से पहले पर्वतीय पड़ोसी राज्य हिमाचल के आंकड़े एकत्र कर इस उत्तराखंड से तुलनात्मक चार्ट बनाए थे। केंद्र के सामने इन्हीं आंकड़ों को रखकर उत्तराखंड के विकास में सहयोग मांगा। इन आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में प्रति हेक्टेयर उत्पादन 17.80 कुंतल है तो हिमाचल में 19.50 कुंतल है। उत्तराखंड में वनों के तहत रिपोर्टेट एरिया 61.10 तो हिमाचल में यह 24.10 प्रतिशत है। उत्तराखंड में प्रति हजार वर्ग किमी. पर 428.9 किमी. सड़कें हैं। हिमाचल में यह 429.58 किमी है। उत्तराखंड में एक लाख आबादी पर 4185 फोन हैं तो हिमाचल में 7610। यहां आने वाले कुल पर्यटकों में से विदेशियों की संख्या 0.5 प्रतिशत है, तो हिमाचल में आंकड़ा 2.95 फीसदी है। उत्तराखंड में एक लाख आबादी पर दस कामर्शियल बैंक शाखाएं हैं तो हिमाचल में 13। यहां साक्षरता दर 71.6 तो हिमाचल में 77.13 फीसदी। प्राइमरी स्तर पर उत्तराखंड में 48.2 बच्चों पर एक शिक्षक है, हिमाचल प्रदेश में 21.78 बच्चों पर एक शिक्षक है। हायर सेकेंड्री स्कूलों की बात करें तो इस प्रदेश में में 28 बच्चों पर एक शिक्षक है तो पड़ोसी राज्य में 14.98 बच्चों पर। यहां एक लाख आबादी पर जूनियर बेसिक स्कूलों की संख्या 168 है तो हिमाचल में 174 है। एक लाख आबादी पर उत्तराखंड में 19 हायर सेकेंड्री स्कूल हैं तो हिमाचल 35। एक लाख आबादी पर उत्तराखंड में 0.94 डिग्री कालेज हैं, जबकि हिमाचल में 1.13। एक लाख आबादी पर यहां 226 हेल्थ सेंटर हैं तो पड़ोसी राज्य में 438 हैं। उत्तराखंड में प्रति हजार आबादी पर जन्म दर 20.4 व हिमाचल में 17.4 फीसदी है। उत्तराखंड में 88 व हिमाचल में 99.4 फीसदी गांव विद्युतीकृत हैं। जाहिर है कि हिमाचल इस राज्य से हर क्षेत्र में आगे है।

From : Dainik Jagran

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Now see. this one

ऐसे तो हो गया जिले का विकासSep 14, 10:12 pmबताएं
 

रुद्रप्रयाग। जिले के विकास के लिए शासन से मिल रहे अरबों रुपए के धन पर कई विभाग कुंडली मारकर बैठे हैं। चालू वित्तीय वर्ष की बात तो रही दूर पिछले वर्ष का अवशेष भी कतिपय विभाग अभी तक खर्च नहीं कर पाए हैं।

एक ओर जहां शासन स्तर से प्रतिवर्ष विकास के नाम पर अरबों रुपए अवमुक्त हो रहे हैं, वहीं जिले के कई विभाग इस धन को खर्च करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। स्थिति इस कदर बनी है कि मौजूदा समय में अरबों रुपए विभागीय खातों में पड़ा हुआ है और विभाग केवल खर्च करने की बात तक ही सिमट कर रह गए हैं। जिला व राज्य सेक्टर के साथ अन्य योजनाओं के तहत प्रतिवर्ष जिले को शासन से अरबों रुपए मिल रहा है, लेकिन इसके सापेक्ष विभाग पचास फीसदी धन भी खर्च नहीं कर पा रहे हैं। मौजूदा वित्तीय वर्ष की बात करें तो जिले को जिला व राज्य सेक्टर के साथ ही केंद्र पोषित व वाह्य सहायतित में अब तक कुल अनुमोदित परिव्यय 12999.30 के सापेक्ष 4441.23 लाख रुपए की धनराशि अवमुक्त हुई, लेकिन इसके सापेक्ष अभी तक केवल 2118.17 लाख रुपए ही मुश्किल से खर्च हो पाए हैं। पिछले वर्ष 1716.81 लाख रुपए अब तक शेष है। जिलाधिकारी रविनाथ रामन का कहना है कि विभागों को तय सीमा के अंतर्गत धन खर्च करने के निर्देश दिए गए हैं।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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We did not have such kind of Dream
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युवा बेरोजगार संगठन ने धिक्कार दिवस मनाया

Sep 20, 09:43 pmबताएं
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अल्मोड़ा: उत्तराखण्ड युवा बेरोजगार संगठन ने रविवार को धिक्कार दिवस मनाया। संगठन ने निजी बीएड कालेजों की मनमानी के विरोध में राज्य सरकार का पुतला फूंका। वक्ताओं ने कहा कि यदि निजी बीएड कालेजों की मनमानी पर रोक नहीं लगाई गई तो संगठन उग्र आंदोलन को बाध्य होगी।

बेरोजगार संगठन के पदाधिकारी व सदस्य अपराह्न में माल रोड स्थित चौघानपाटा पहुंचे और उन्होंने नारेबाजी के बीच प्रदेश सरकार का पुतला फूंका। सभा में युवा बेरोजगार संगठन के केन्द्रीय सदस्य प्रयाग जोशी ने शिक्षा का बाजारीकरण बंद करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यदि निजी बीएड कालेजों की मनमानी पर शीघ्र रोक नहीं लगाई गई तो संगठन उग्र आंदोलन को बाध्य होगा।

छात्र संघर्ष समिति के संयोजक संदीप जंगपांगी ने निजी बीएड कालेजों में मानक के अनुरूप ही शुल्क लिए जाने पर जोर दिया।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5805220.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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We had not expected development like this :


चार साल से नहीं बन पाई स्कूल की छत
 
डुण्डा (उत्तरकाशी)। शिक्षा विभाग की लापरवाही कहें या यहां पढ़ने वाले छात्रों का नसीब कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर स्कूलों में छात्र खुले आसमान के नीचे पठन पाठन को मजबूर हैं।

ब्लाक डुण्डा से मात्र दस किमी दूर स्थित 38 छात्र संख्या वाले जूनियर हाईस्कूल पिपली धनारी के तीन कक्षों वाले विद्यालय भवन की छत तूफान से चार वर्ष पूर्व उड़ गई थी। तब से लेकर आज तक यहां के छात्र खुली छत में ही शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर है। विद्यालय की प्रधानाध्यापिकाकमल देई बिष्ट ने बताया कि तेज तूफान से क्षतिग्रस्त हुये इस भवन की छत के लिये कई बार विभागीय अधिकारी एवं उप जिलाधिकारी डुण्डा को अवगत भी कराया गया और जांच रिपोर्ट को भेजी लेकिन आज तक भी स्थिति जस की तस है। उन्होंने बताया कि सर्व शिक्षा अभियान द्वारा लघु मरम्मत के लिये जो पैसा आया वह पर्याप्त मात्रा में नही था। इस संबंध में अपर जिला शिक्षाअधिकारी बेसिक लीलाधर व्यास का कहना है कि सभी आपदा ग्रस्त स्कूलों की सूची तैयार कर ली गई है और सर्व शिक्षा अभियान द्वारा क्षतिग्रस्त विद्यालयों के प्राक्कलन बनाये जा रहे हैं।

 

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