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HAS UTTARAKHANDI CINEMA DONE PROGRESS DURING THESE 25 YRS ?

Very good
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Good
9 (29%)
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12 (38.7%)
Poor
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Author Topic: 25 Years Of Uttarakhand Cinema - उत्तराखंड सिनेमा के २५ साल पूरे  (Read 23188 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Completion of 25 yrs of UK Cinema.


 

Parashar Gaur

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उत्तराखंडी सिनेमा को नहीं मिल पाई रफ्तार

Posted: 13 Apr 2009 06:19 AM PDT

राज कपूर, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, शाहरूख खान, मधुबाला तथा काजोल आदि कई हिंदी फिल्म कलाकारों के नाम हमारी जुंबा पर हर समय आते रहते हैं, लेकिन जब बात क्षेत्रीय सिनेमा की होती है तो नामों को गिनना तो दूर याद आना भी मुश्किल हो जाता है, लेकिन इसे किसी त्रासदी से कम नहीं माना जा सकता कि उ8ाराखंड मेंं क्षेत्रीय फिल्मों (गढ़वाली-कुमाऊंनी) के निर्माण एवं इससे जुड़े कलाकारों के लिए सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं दी जा रही है।एक तरफ देश में प्रतिवर्ष ढाई सौ से तीन सौ फिल्मों का निर्माण करोड़ की लागत से हो रहा है। वहीं उ8ाराखंड सिनेमा अपनी रजत जयंती मनाने के बाद भी अभी तक र3तार नहीं पकड़ पाया है। अपने २५ सालों के सफर में कुछ गिनी-चुनी फिल्में हैं जो लोगों के दिलोंं पर अपनी छाप छोड़ पाई हैं। गढ़वाली-कुमाऊंनी सिनेमा के २५ सालों के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो सारी कहानी अपने आप ही सब कुछ बंया कर देती है। ४ मई, १९८३ को पराशर गौड़ ने गढ़वाली फिल्म जग्वाल से क्षेत्रीय सिनेमा को पहचान दिलाने का जो काम शुरू किया था, लेकिन इस दिशा में कोई उत्साह जनक परिणाम नहीं आ पाए। 1या कहते है क्षेत्रीय सिनेमा से जुड़े लोगतेरी सौ, हत्यां, गढ़वाली शोले का निर्माण करने वाले स्वपन फिल्म बैनर से जुडे मदन डुकलान ने बताया कि प्रदेश सरकार से कई बार क्षेत्रीय सिनेमा के बारे में अवगत कराया गया, लेकिन सरकार की ओर से कोई पहल नहंी की जा रही है। श्री डुकलान कहतेे हैं कि यदि सरकार प्रयास करती है तो क्षेत्रीय सिनेमा के माध्यम से जहां प्रतिभाओं को मंच मिलेगा वहीं कई लोगों को रोजगार भी प्राप्त होगा। राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय फिल्मोंंं एवं धारावाहिकों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके रामेंद्र कोटनाला के अनुसार क्षेत्रीय सिनेमा में धन की कमी, संस्कृति संवद्र्धन की स्पष्ट नीति का न होना तथा सिनेमा हालों की कमी (दूरस्थ क्षेत्रोंं में ) सरकार की ओर से कोई सहायता का न मिलना ही प्रमुख कारण है।
pahar1.blogspot.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is really very true that UK's Films never got a pace.

We have made a list of Uttarakhandi features film made so far. Since 1983 of first film of yours, hardy above 30 films have been made so far which can be considered to be very low.


उत्तराखंडी सिनेमा को नहीं मिल पाई रफ्तार

Posted: 13 Apr 2009 06:19 AM PDT

राज कपूर, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, शाहरूख खान, मधुबाला तथा काजोल आदि कई हिंदी फिल्म कलाकारों के नाम हमारी जुंबा पर हर समय आते रहते हैं, लेकिन जब बात क्षेत्रीय सिनेमा की होती है तो नामों को गिनना तो दूर याद आना भी मुश्किल हो जाता है, लेकिन इसे किसी त्रासदी से कम नहीं माना जा सकता कि उ8ाराखंड मेंं क्षेत्रीय फिल्मों (गढ़वाली-कुमाऊंनी) के निर्माण एवं इससे जुड़े कलाकारों के लिए सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं दी जा रही है।एक तरफ देश में प्रतिवर्ष ढाई सौ से तीन सौ फिल्मों का निर्माण करोड़ की लागत से हो रहा है। वहीं उ8ाराखंड सिनेमा अपनी रजत जयंती मनाने के बाद भी अभी तक र3तार नहीं पकड़ पाया है। अपने २५ सालों के सफर में कुछ गिनी-चुनी फिल्में हैं जो लोगों के दिलोंं पर अपनी छाप छोड़ पाई हैं। गढ़वाली-कुमाऊंनी सिनेमा के २५ सालों के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो सारी कहानी अपने आप ही सब कुछ बंया कर देती है। ४ मई, १९८३ को पराशर गौड़ ने गढ़वाली फिल्म जग्वाल से क्षेत्रीय सिनेमा को पहचान दिलाने का जो काम शुरू किया था, लेकिन इस दिशा में कोई उत्साह जनक परिणाम नहीं आ पाए। 1या कहते है क्षेत्रीय सिनेमा से जुड़े लोगतेरी सौ, हत्यां, गढ़वाली शोले का निर्माण करने वाले स्वपन फिल्म बैनर से जुडे मदन डुकलान ने बताया कि प्रदेश सरकार से कई बार क्षेत्रीय सिनेमा के बारे में अवगत कराया गया, लेकिन सरकार की ओर से कोई पहल नहंी की जा रही है। श्री डुकलान कहतेे हैं कि यदि सरकार प्रयास करती है तो क्षेत्रीय सिनेमा के माध्यम से जहां प्रतिभाओं को मंच मिलेगा वहीं कई लोगों को रोजगार भी प्राप्त होगा। राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय फिल्मोंंं एवं धारावाहिकों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके रामेंद्र कोटनाला के अनुसार क्षेत्रीय सिनेमा में धन की कमी, संस्कृति संवद्र्धन की स्पष्ट नीति का न होना तथा सिनेमा हालों की कमी (दूरस्थ क्षेत्रोंं में ) सरकार की ओर से कोई सहायता का न मिलना ही प्रमुख कारण है।
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Though UK's films have completed more than 25 yrs. However, Uttarakhandi residing in various metro cities, still not remember name of Uttarakhandi movies.

There are many film makers who had tried their best for UK's film industry but they never got any support from Govt  in this regard which has resulted in poor publicity / interest towards the film from migrated Uttarakhandi.

Mahi Mehta

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मुझे तो कोई खास प्रगति नहीं दिखी उत्तराखंडी सिनेमा की! राज्य सरकार की और से एक स्थाई फिल्म इंडस्ट्री के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया!

 

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