छुमा बौऊ
छुमा एक नाम ही नही , एक पहिचान भी है ,हमारी , हमारी पहाडी संस्कृतिकी की , हमारे साहित्य की ! वो हमारी गीतों कि नायका भी है ! छुम्मा बौ पहाडी की संस्कृति कि एक आई कान भी है ! वो किसी खाबो कि रुपहली परी से कम नही ! वो भावों और विचारों में विचाने वाली किसी एक विचार का नाम भी है ! वो अपने लाब्ब्न्य रूप रंग श्रृंगार व अदाओ के लिए मेरे पहाड़ के प्रतेक व्यक्ति हॄदय में कल भी थी , आज भी है और आने वाले कल में भी विराजमान रहेगी !
यू तो पहाड़ में कई खुबसूरत , कई चर्चित नायाकवो ने ने जन्म लिया जिन्होंने अपने अपने समय में अपनी अदाओं से , अपने रूप से पहाड़ के लोग गीतों में व वहा के आदमियों के मन में अपना एकछत्र राज किया जिनमे गैणी, सुरमा ,गयेली दौन्था आयद की चर्चा बड़े फकर के साथ किया जाता है लेकिन इन सबसे उप्पर , सबसे अलग एक नायका ,जो अलग से देखाई देती है वो है छुम्मा ...