दायें या बांये fफल्म की पिछले दिनों काफी चर्चा सुनी। मेरा पहाड़ ने ऐसा प्रचारित किया कि जैसे fफल्म के प्रचार-प्रचार का ठेका उन्हीे ने लिया हो। नैनीताल में कोई फल्म फैस्टबल हुआ था उसमें भी fफल्म दिखाई गयी करके सुना। उत्तराखंड से निकलने वाली एक छोटी सी पत्रिाका में काम करते हुये मेरी भी इच्छा हुयी कि जैसे-तैसे इस फल्म की कहानी पढ़ ली जाये। अब नैनीताल का पिफल्म पफैस्टेबल तो हुआ पिफल्म के जानकारों का, इसलिये वहां पिफल्म की चर्चा हुयी होगी तो अच्छी ही हुयी होगी। उनके पास विचार है, पिफल्म की समझ है, दूर-दराज या निकट के कुछ संबंध्ी भी इस पिफल्म में काम कर रहे होंगे। खैर, हम जैसे लोग हुये उत्तराखंड के डरेबर, सेना में सिपाही, शराबी और ताश खेलने वाले। हमसे बढ़िया पिफल्म के पात्रा पहाड़ की दशा-दिशा पर और कौन हो सकता है। बेला नेगी की पिफल्म की कहानी सिपर्फ इतनी ही है। नाकाबिल पहाड़ के लोगों की कहानी जो पिफल्म पैफस्टेबलों में सराही जा सकती है। हम लोगों को तो इतने में ही संतोष कर लेना चाहिये कि कम से कम किसी ने तो हिम्मत की पहाड़ की पृष्ठभूमि पर हिन्दी पिफल्म बनाने की। अगर यह पिफल्म नहीं बनती तो पहाड़ को लोग कैसे जानते। उस पहाड़ को जो अपने यहां कुछ भी अच्छा नहीं होना देना चाहता है। मुंबई से कोई समझदार आदमी आता भी है तो उसे काम नहीं करने देना है। असल में पहाड़ में ही रहकर अच्छा काम नहीं हो सकता। उसके लिये एक बार मुबई जाना जरूरी है। पिफर वहां से सीखी अकल यहां के लोगों को बतानी है। शराबी, जुआरी और ताश खेलने वाले उस भदz पुरुष की योग्यता को कैसे समझ सकते हैं। कार जीतनी है तो टीवी चैनल के कार्यकzम में जाना पड़ेगा। तुम गांव वालों की क्या औकात। पहाड़ के लोगों का अपने का समझने के लिये यह पिफल्म जरूर देखनी चाहिये और बेला नेगी को इसके लिये ध्न्यवाद देना चाहिये कि उन्होंने तुम्हें अपनी औकात बताई।