Author Topic: Hindi Film 'Daayen Ya Baayen By' Bela Negi on UK subject - "दायें या बाएँ" फिल्म  (Read 34046 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Re: Most Awaiting Uttarakhandi HIndi Film Daye ya Bye ---- by Bela Negi
« Reply #20 on: July 19, 2009, 05:46:17 PM »

Ranjeesh JI,

Thanks a lot for sharing these exclusives photos with the members. In fact, we have received a lot queries from people about the release of this movie.

I few days i got an opportunity to talk with Bela Ji and he has told that the film may be released in Sept of Oct 2009.




FILM MAKER BELA NEGI WITH DEEPAK DOBRIAL

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

It is indeed great pleasure to see all our Uttarakhandi Celebraties dancing in Pahadi song together.

All the best to Bela JI for the upcoming movie.

Bela Negi , Deepak Dobrial, Mir Ranjan Negi, Sudhanshu Pandey, Himani shivpuri, Sudhir Pandey in a Party



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Hi...

HOPE TO WATCH THIS MOVIE.... is it already shot and produced ??? when is it due to release ?

Sir JI.

The Movie will be probably released in Mar 2010..

Sunil Pandey

  • Newbie
  • *
  • Posts: 26
  • Karma: +1/-0
Best of luck bela ji ………

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
श्रोत : nirmal-anand.blogspot.com

इस लेख को पढने के बाद आपको बेला नेगी जी की इस फिल्म की कहानी के विषय में कुछ आइडिया मिल जायेगा, लेखक इस फिल्म का ट्रायल शो देख चुके हैं.

दायें या बायें

यह उस फ़िल्म का नाम है जो मेरी समझ में हिन्दी फ़िल्म की एकाश्मी परम्परा से बहुत आगे, और बहुत ऊपर की संरचना में बुनी हुई है। जीवन का इतना गाढ़ा स्वाद और इतने महीन विवरण उपन्यासों में भी तो फिर भी मिलते हैं, मगर फ़िल्मों में विरलता से दिखते हैं। हिन्दी उपन्यास और हिन्दी फ़िल्म के संसार में मैंने कभी नहीं देखे। बावजूद जीवन की गाढ़ी जटिलता के ‘बायें या दायें’ एक बेहद हलकी-फुलकी और गुदगुदाने वाली फ़िल्म बनी रहती हैं, यह एक दुर्लभ गुण है। यह बड़ी उपलब्धि है और मुझे लगता है कि एफ़ टी आई आई, पुणे की स्नातक बेला नेगी की यह पहली फ़िल्म निश्चित ही मील का पत्थर साबित होगी।

फ़िल्म एक ऐसे नौजवान की कहानी है जो पहाड़ के अपने छोटे से क़स्बे या मझोले गाँव से जाकर शहर में अपना गुज़ारा करता है। शहर में अपनी प्रतिभा का कोई इस्तेमाल न पा कर और वहाँ के जीवन से पक कर वह एक रोज़ गाँव वापस चला आता है। गाँव में उसकी बीवी है, आठ-नौ बरस का बच्चा है, साली है, पड़ोसी हैं, और गाँववाले हैं, स्कूल के अध्यापक हैं; सभी उस के मुरीद हैं क्योंकि वो शहर से आया है। लेकिन सब चौंकते हैं जब वो कहता है कि वह लौटेगा नहीं बल्कि गाँव के स्कूल में बच्चो को पढ़ाएगा और गाँव के विकास के लिए वहाँ कला केन्द्र खोलेगा। लोग उसकी आदर्शवादी बातों पर हँसते हैं; गाँव की पथरीली सच्चाई दीपक के सपनों पर रगड़ने लगती है। लेकिन यह सब कुछ बहुत हलके-फुलके अन्दाज़ में चलता रहता है।

एक रोज़ जब वह अपनी कोई कविता यूँ ही बुदबुदा रहा होता है तो उसके फ़ैन उसे लिखकर एक कॉन्टेस्ट में भेज देते हैं और भाई जीत जाते हैं, ईनाम में मिलती हैं एक लाल रंग की ऐसी लुभावनी कार जैसी गाँव तो क्या आस-पास के ज़िले में भी नहीं है। यह कार दीपक का रुत्बे में क्रांतिकारी परिवर्तन लाती है और उसके जीवन दृष्टि में भी, अचानक वह एक अलग ही आदमी के रूप में पनपने लगता है। अपने रुत्बे को बनाए रखने के लिए लोग उसे आसानी से कर्ज़ा देते भी हैं और वो लेता भी है। लेकिन नई हैसियत को बनाए रखने के लिए उसे कार को तमाम तरह के कामों के लिए किराए पर देना शुरु करना पड़ता है, जैसे शादी में ले जाना और जैसे दूध वितरण।

यह जो मैं बयान कर रहा हूँ यह एक बहुत मोटा घटनाक्रम है। अच्छी से अच्छी फ़िल्मों को भी बहुत ही मरियल कथाक्रम के गिर्द गुज़ारा करते पाया जाता हैं। लेकिन दायें या बायें के कथ्य इतना सघन है कि उस को कागज़ पर लिखना लगभग नामुमकिन है। उसमें हर चरित्र की एक गहरी समझ, एक गहरी चोट एक स्वतंत्र अध्याय की तलब रखती है। हर घटना हमारे सामाजिक जीवन की एक अदेखी खिड़की खोलती है।

छोटी-बड़ी तमाम घटनाओं के बाद दीपक के सामने कई दुविधाएं आती हैं, जीवन में कई संकट आते हैं, मगर सबसे बड़ी कचोट उस की ये होती है कि उसने अपने बेटे के आँखों में इज़्ज़त खो दी है। तो कार चोरी हो जाने, और साली के गाँव के लफ़ंगे के साथ भाग जाने के बाद, वह बरस्ते अपने बेटे की नज़रों में खोया सम्मान हासिल करने के, वापस अपने आप को हासिल करने में कामयाब सा होता है।

दायें या बायें नैनीताल के नज़दीक एक गाँव में ४८ दिनों में शूट की गई। इस फ़िल्म की तमाम दूसरी उपलब्धियों के बीच एक यह भी है सिवाय तीन अभिनेताओं के शेष सभी स्थानीय लोगों ने कहानी के किरदार निभाए। फ़िल्म का निर्माण संयोजन और ध्वनि संयोजन बहुत रचनात्मक है, और कैमरा दिलकश।

मेरी उम्मीद है और कामना है कि बेला नेगी और उनकी यह फ़िल्म उनकी यात्रा का, उनकी धैर्यशीलता का इम्तिहान लेता सा, पहला क़दम होगा और इसके आगे वो तमाम सारी फ़िल्में जो भी बनायेंगी वो अपने कलात्मक आयामों में ‘दायें या बायें’ के और पार होंगी।


लेखक, सम्पादक, निर्देशक: बेला नेगी
निर्माता: सुनील दोशी
कैमरा: अम्लान दत्ता
ध्वनि: जिसी माइकेल
मुख्य कलाकार:
दीपक डोबरियाल,
मानव कौल,
बद्रुल इस्लाम,
भारती भट्ट

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
"दायें या बायें" फिल्म से सम्बम्धित एक लेख यहाँ भी है, जरूर पढें-

http://cilema.blogspot.com/2010/03/blog-post_18.html

dramanainital

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 171
  • Karma: +2/-0
hi rajneesh,I know bela right from the chilhood days.Didnt see her since a long time.The artistes from nainital are all known to me as they are all theatre artistes.We all are waiting for the film to release and we are waiting really impatiently.All the best for the movie.

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,865
  • Karma: +27/-0
All the best for the move. Rajneesh bhai kuch iski release date ke baare main batao.

Meena Rawat

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 849
  • Karma: +13/-0

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

This is the most awaited film... ... Bela ji told that entire Uttarakhand culture has been covered in ths film.

Let us see when the film is released.

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22