धाद की पहल पर एक समाचार-धाद का ‘हिन्दी सृजन एकांश’
हिमालयी साहित्य, संस्कृति,कला और जन-सरोकारों को लेकर काम कर रही ‘धाद’ संस्था ने अब अपने अभियान को सम्पूर्ण हिन्दी पट्टी तक ले जाने के प्रयोजन से ‘हिन्दी सृजन एकांश’ का गठन किया है।
इस अवसर पर रेसकोर्स स्थित आफीसर्स ट्रांजिट हॉस्टल में एक वृहद कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने की, कार्यक्रम के दूसरे सत्र में ‘धाद’ के हिन्दी सृजन एकांश के गठन के उद्देश्यों को बताते हुए लोकेश नवानी ने कहा कि आंचलिक स्तर पर धाद के प्रयासों को तमाम रचनाधर्मियों तक पहुंचाने के लिए एक ऐसे मंच की आवश्यकता लम्बे समय से महसूस की जा रही थी।
उन्होंने कहा कि ‘हिन्दी सृजन एकांश’ धाद का एक ऐसा मंच होगा जिसमें वे सभी रचनाधर्मी शर्मिल हो सकेंगें जिनका सीधा सम्बन्ध पर्वतीय प्रदेश से बेशक न हो परन्तु उनकी चिन्ताओं में हिमालय और यहंा का समाज शामिल रहा हो। ‘धाद’ के तन्मय ममगाई ने ‘हिन्दी सृजन एकांश’ की भावी योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए बताया कि उत्तराखण्ड के पर्वतीय समाज, संस्कृति, समस्याओं और बिडम्बनाओं को आधार विषय बनाकर अगले छः माह में ‘धाद’ हिन्दी कहानी का एक वृहद वार्षिकांश प्रस्तुत करने जा रहा है। अगले वर्ष का अंक कविता पर केन्द्रित होगा।
इस प्रकार प्रति वर्ष ‘धाद’ का हिन्दी सृजन एकांश किसी एक विधा में प्रस्तुत करेगा जो हिमालय के इस अंचल के विश्वास, सुख,दुःख और समग्र परिवेश को उद्घाटित करती है। इस अवसर पर ‘धाद’ ने हिन्दी के कथाकारों का आह्वान किया है कि वे अपनी कहानियां प्रकाशनार्थ प्रेषित कर इस आयोजन में अपनी सहीभागिता सुनिश्चित करें। कहानियां पर्वतीय सरोकारों से सम्बद्व होनी चाहिए। दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए ओ0एन0जी0सी0 के प्रबन्धक राजभाषा श्री दिनेश थपलियाल ने कहा कि लोक साहित्य और लोक भाषा के क्षेत्र में ‘धाद’ वर्षो से बेहतर काम करती रही है।अब हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में संस्था का पदार्पण नई उम्मीदें जगाने वाला है।
कवि पद्मश्री लीलाधार जगूड़ी ने कहा कि ‘धाद’ को उन लेखको को भी ढूंढना चाहिए जो उत्तराखण्ड के हिमालयी क्षेत्र में भले न रहे हों लेकिन यहां के बेहद संवेदनशील रहे है। साथ ही उन रचनाधर्मियों को भी संस्था को तलाशना चाहिए जो कम लिख रहे है लेकिन अच्छा लिख रहे है। युवा साहित्यकार मुकेश नौटियाल ने ‘धाद’ के रचनात्मक प्रयासों की प्रसंशा करते हुए कहा कि दस वर्ष के इस प्रदेश में अभी तक एक ऐसी सृजनशील संस्था की अनिवार्यता बनी हुई है जो यहां की तमाम ऊर्जावान प्रतिभाओं को मंच प्रदान कर सके। धाद इस काम को करती है तो इससे संवेदनाओं से भरा यह पर्वतीय अंचल समृद ही होगा.
गोष्ठी में रमेश धिलड़ियाल,कमला पंत,संतोष डिमरी,पुष्पा विष्ट,शंन्ति प्रकाश,तोता राम ढोढ़ियाल,अमरदत्त बहुगुणा,के0एस0नेगी आदि उपस्थित है। कार्यक्रम का संचालन कवियित्री बीना बेंजवाल ने किया इस अवसर पर निम्न कवियों ने कविता पाठ किया।
1.लीलाधर जगूड़ी
जो ढोकर खाते है वे प्रवाह पा जाते है
2.सविता मोहन
पत्ती तनिक रूठ गई क्या पता था पेड़, तलाक देगा
3. चारूचंद्र चंदोला
सही में नही है कही भी हरियाली,
4. विपित विहारी सुमन
आजकल व्यवहार की नदियों में पानी है कहंा रेत से तट पट गए, पंछी बड़ी मुश्किल में है।
5.दिनेश थपलियाल
अब तलक खेलते आए थे होली रंग से खून से कोई खेल होली तो क्या कीजिए
6.लोकेश नवानी
मैं तब कई बार आसफल हो जाता हूँ जब मुझे सौ फीसदी सफलता का विश्वास रहता है
7. भास्कर उप्रेती
पानी नही रहेगा तो सिर उठाने लगेगा पानी में डूबा घंटाघर
8. रमेश क्षेत्री
केवल फूलो की सुंदरता नही है जीवन फूल और काँटो से ही संवरता है उपवन
9.निर्मल रतूड़ी
दूध के भूखे बच्चो पर गर्व करते है और देश्ज्ञ का झण्डा ऊँचा करते है।
10.बीना बेजवाल
आग जो एक ही चूले में जलकर बँटती थी गांव के घर घर में/चूल्हो को ठंडा छोड़े/सुलगने लगी थी
साभार-
www.hillwani.com