Author Topic: Organizations - उत्तराखंड के सभी संगठनों को आत्म मूल्यांकन की जरूरत !  (Read 10507 times)

Dinesh Bijalwan

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mera sirf itna kahna hain  ki  jis cheej ki appreciation hua hai wo bhi  usee karyakarm ka hissa the  aur aise he  use karyakarm me  aneek acchi baaten hue thee.   rahi   baat kukreti ji ke  unhone jo likha tha mei usse sahmat nahi huin aur meri prtikirya bhi us thread mei hai.   Lekin jo saab kisi saathi ji ne kukreti ji ke liye  istemaal kiye  unse bhi sahmat nahi  huin-   forum ki garima banaye rakhna forum ke administrators ka  kaam hota hai.  aur  gaarima banayen rakhne  ke  mandaand sabhi cheejo par ek jaise chalne chaaiyen.     aapko  agar   kukreti ji ko de gai gaaliyan  jaayaj lagti hain to theek hai  -  aap  ko apna forum mubarik.

Rawat_72

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   Lekin jo saab kisi saathi ji ne kukreti ji ke liye  istemaal kiye  unse bhi sahmat nahi  huin-   forum ki garima banaye rakhna forum ke administrators ka  kaam hota hai.  aur  gaarima banayen rakhne  ke  mandaand sabhi cheejo par ek jaise chalne chaaiyen.

   This is serious issue.

First of all Bijalwanji you should have raised your voice earlier when inappropriate and vulgar language was being used for Kukreti ji and his family.

It can be understood that some of the people here might have missed those posts, but why Mr.Pankaj Singh Mahar, the important Member of Mera Pahad, who himself has edited the last post in that thread, overlooked and allowed those highly objectionable posts. 

If you really wish to maintain the sanctity of the forum then please delete the last 3 posts, by Ravindrasingh in Rami Baurani thread…

kandpalsubhash

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महर जी मैं अपने आप को बहुत रोक रहा था कि मैं अब इस बहस में हिस्सा न लूं ,   लेकिन आपके शब्दों को पढ़कर मुझे मजबूरन दुबारा इस टोपिक पर लिखना पढ़ रहा   है. आप अभी भी सारा दोष हमारे ही ऊपर दे रहे हो, अपनी गलती मानने को तैयार   नहीं हो. आप कह रहे है कि हम लोगों ने इस टोपिक की सारगर्भिता को चोट   पहुचाई है पर मुझे तो कही भी इस टोपिक में सारगर्भिता नजर नहीं आ रही है.   पहले तो मैं ब्याक्तिगत टिपण्णी करने से बच रहा था लेकिन मैं अब खुलकर   ब्याकिगत टिपण्णी करना चाहूँगा. जहा तक बात प्रोग्राम की समीक्षा का है,   हमें दुःख इस बात का नहीं है कि तहलका ने प्रोग्राम के बारे में क्या छापा   है, हमें तो दुःख इस बात का है कि हमारे ही बीच के लोगों ने हमारे ही दिल   पर तीर छोड़ा है. जहा तक आप लोग कह रहे है कि ये टोपिक किसी विशेष संगठन को   केन्द्रित बनाकर नहीं शुरू किया गया लेकिन टोपिक की पहली ही पोस्ट मैं   "गोरव सोलंकी ने एक ऐसे ही आयोजन का बहुत सार्थक मूल्यांकन किया है  " से   पता चल जाता है और स्पष्ट रूप से कन्फर्म तब हो जाता है जब आप इस बहस में   तहलका की रिपोर्ट को फोरम पर अपलोड कर देते है. क्या इससे से टोपिक की   सारगर्भिता को चोट नहीं पहुचती है? क्या इसमें कोइ निष्पक्षता नजर आती है?

  सबसे पहले  तो शैलेश जी ने जो बहस शुरू की है वो केवल एक सुनी सुनाई बात पर   की है. शैलेश जी ने केवल एक रिपोर्ट को आधार बनाकर अपने विचार ब्यक्त किये   है जबकि वे खुद उस प्रोग्राम का हिस्सा नहीं थे. अगर प्रोग्राम की समीक्षा   मोहन बिष्ट जी करते, दयाल पांडे जी करते या अन्य कोइ भी सदस्य जिसने   प्रोग्राम देखा वो करता तो शायद वो तर्कपूर्ण लगता. ये कैसा आत्म मूल्यांकन   है जिसमे मोहन जी के गाने पर आप लोग उनको बधाई देते है, वाह वाही करते है   और उसी प्रोग्राम में किसी दूसरे कलाकार की परफोर्मेंस को आप लोग नजर अंदाज   करते है. और उसी कार्यकर्म की निंदा करते है.

  दयाल पांडे जी मेरा पहाड़ फोरम के एक वरिष्ट सदस्य है और खुद में एक बहुत   अच्छे कलाकार है, ऐसा मैंने सुना है, इसी टोपिक पर कहते है कि मैं भी   इतेफाक से उस कार्यक्रम में मोजूद था. मैं दयाल जी से पूछना चाहूँगा कि   बड़े भाई जी ये कैसा इतेफाक था कि आप अचानक प्रोग्राम में सम्मलित हो गए.   आपके द्वारा प्रोयोग किये गए ऐसे शब्दों की तो हमें बिलकुल भी अपेक्षा नहीं   थी.
 

  इसी टोपिक पर कोइ महाशय कहते है कि मुझे तो उस प्रोग्राम को देखकर ऐसा लग   रहा था कि वहा पर संस्कृति का विकास नहीं संस्कृति का विनाश हो रहा है., तो   क्या प्रोग्राम को आयोजित करने का हमारा मकसद संस्कृति को विनाश करने का   था. क्या आप लोगों की ऐसी भावनाएं भी हो सकती है, विश्वास नहीं हो रहा है.   भावना शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहा हूँ कि किसी भी सदस्य  ने इस बात पर   अपना विरोध नहीं जताया.
 

  इसी फोरम पर कोइ महाशय कहता है कि आज हमको अपनी ख्याति, फोटो खिचवाने की एक   भूख हो गयी है, अपरोक्ष रूप से ये कमेन्ट जिस पर भी किया गया हो वो सब हम   जानते है. चलो एक बार मैं आपकी बात मान भी लूं कि हमारा उधेश्य केवल फोटो   खिचवाने और ब्याक्तिगत ख्याति प्राप्त करने का था, लेकिन जब मेरा पहाड़   वालों ने अपनी नयी वेबसाइट हिसालू को लौंच किया था तो उस समय वो किस नेता   के पास गए थे वेबसाइट को लौंच करने के लिए. किसके साथ उन्होंने फोटो   खिचवाई, सारी जानकारी इसी फोरम पर है. क्यों आप लोगों ने अपने ही क्षेत्र   के किसी वरिष्ठ या सम्मानीय ग्रामीण ब्यक्ति को इस आयोजन के काबिल नहीं   समझा. क्यों आप लोगों को एक नेता की जरूरत पढ़ी? फोटो खिचवाने और ब्याक्तिगत   ख्याति प्राप्त करने की भूख किसको है? जैसे मैंने पहले ही कहा था कि मैं   पहले ब्याकिगत टिप्पणी करने से बच रहा था लेकिन मैं अब जरूर करना चाहूँगा,   इसीलिए जरूर आप लोगों को बुरा लग रहा होगा, लेकिन में भी ये सब लिखने के   लिए मजबूर हूँ.
 

  मोहन बिष्ट जी एक वरिष्ठ सदस्य और एक ठेट पहाड़ी कहे जाने वाले ब्यक्ति जो   कि खुद उस कार्यक्रम का एक अहम् हिस्सा थे, ने शैलेश जी की पोस्ट पर अपने   कुछ भी विचार ब्यक्त नहीं किये और न ही प्रोग्राम के बारे में. बल्कि   उन्होंने तो इतना जरूर समझा कि तहलका की रिपोर्ट को अपने ऑरकुट प्रोफाइल   में लगाया जाय ताकि दुनिया वाले जाने के प्रोग्राम कैसा था, चाहे उस   रिपोर्ट में लिखा कुछ भी गया हो. ये सब देख कर तो ब्याक्तिगत रूप से ही मैं   बहुत आहात हुआ तो अन्य सदस्य क्यों नहीं होते?
 

  जहा तक बात आत्म मूल्यांकन की है तो इससे पहले न जाने हजारों उत्तराखंडी   सांस्कृतिक प्रोग्राम हो चुके होंगे और शायद मेरा पहाड़ ग्रुप ने भी ऐसे कई   प्रोग्राम आयोजित किये हैं, लेकिन इससे पहले किसी को आत्म मूल्यांकन की   चेतना नहीं आई, क्या वो सब प्रोग्राम अप टू मार्क थे? क्या उनमे कुछ कमिय   नही थी? क्या जो प्रोग्राम मेरा पहाड़ ग्रुप ने आयोजित किये थे उनमे कोइ   कमियां नहीं थी? क्या इस प्रोग्राम को देखने के बाद ही आत्म मूल्यांकन की   चेतना आप लोगों के चित में जागी?
 

  महर की एक सम्मानीय अरु विद्वान सदस्यन बार बार कह रहे है कि हमने यहाँ पर   महाभारत की लडाई शुरू कर दी. हाँ मैं जरूर कहूँगा कि हम इस महाभारत के   युद्ध में कूदे हैं लेकिन मैं महर जी से पूछना चाहता हूँ कि जो ये लडाई   छिड़ी है इसकी आगा किसने लगायी है, आग लगाने वाले कोन हैं? महर जी आप बार   बार ये ऐसा क्यों कह रहे है कि हम लोग समझाने की कोशिश नहीं कर रहे है या   हम लोगों ने बहस का रुख मोड़ दिया है. क्या आप लोग हमें मूर्ख समझ रहे हो ?   हाँ ये जरूर हो सकता है कि आप लोगों जैसे विद्वान और समझ वाले न हो लेकिन अ   आ और क ख ग हमने भी पढ़े है. हिंदी थोडा बहुत समझ आ जाती है, थोडा बहुत   शब्दों के अर्थ भी समझ लेते है. अगर ये टोपिक किसी ब्याकिगत संगठन को   केन्द्रित बनाकर नहीं शुरू किया गया तो मैं महर जी आप से एक बार फिर निवेदन   करूँगा कि शैलेश जी की पोस्ट का अवलोकन एक बार फिर करें और हमें एक एक   शब्द का अर्थ समझाएं क्योंकि हो सकता है कि हमें शब्दों का ज्ञान न हो और   हमने कुछ और समझ लिया हो. इसीलिए आपसे करवध विनती है कि आप शैलेश जी कि   पोस्ट की ब्याख्या जरूर करें.
 

  जो बात मुझे नहीं नहीं कहनी चाहिए थी लेकिन मैं आज जरूर कहना चाहूँगा कि हम   लोग हमेशा जोड़ने की बात करते है लेकिन आज इस बहस को देख कर लग रहा है कि   हम जुड़ने नहीं बल्कि टूटने की ओर अग्रसर हो रहे है. कही न कही हमारे दिल   में कुछ न कुछ भेद जरूर है. आज जब वो समय आया है कि हम सब लोग बड़े गर्व से   कहते है कि हम पहाड़ी है, मुझे तो फिर ऐसा अनुभव हो रहा है कि ये सब बहुत   जल्दी फिर उसी मानसकिता की ओर गतिशील है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो समय   दूर नहीं कि जब मैं कहूँगा कि मैं काण्डपाल  हूँ मैं अपना एक ग्रुप अलग बना   रहा हूँ, कोइ कहेगा कि मैं रावत हूँ मैं अपना एक अलग ग्रुप बना रहा हूँ ,   इसी तरह कोइ कहेगा कि मैं नेगी हूँ , मैं पंवार हूँ, मैं मेहता हूँ, मैं ये   हूँ और मैं वो हूँ....और ऐसे ही असंख्य ग्रुप बनते जायेंगे. एक उत्तराखंड   का पूरब, पश्चिम, उत्तर दक्षिण बहुत सारे खंड बन जायेंगे. दिन दूर नहीं है.
 

  आप लोग मेरी इस पोस्ट को भी पढने के बाद डिलीट कर देना, क्योंकि इसमें भी   कुछ सारगर्भिता आप लोगों को नजर ना आये. सारगर्भिता तो केवल शैलेश जी और   मेरा पहाड़ के अन्य सदस्यों की ही पोस्ट में देखने को मिल सकती है .
 

  मैं इतना आहित हुआ हूँ कि मेरे दिल में कहने के लिए बहुत कुछ है लेकिन अभी   समय की कमी हैं, मेरा ये सब लिखने का मकसद किसी ब्यक्ति विशेष को आहात   पहुचाने के नहीं है बल्कि केवल महर जी के शब्दों को उत्तर देना है जो बार   बार सारा दोष हमारे ऊपर लगा रहे है. महर जी और अन्य सदस्यों से क्षमा   चाहूँगा अगर किसी को मेरे शब्दों से कुछ दुःख पंहुचा हो.
 

  धन्याबाद
 
  सुभाष काण्डपाल

 

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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बहुत बोझ है मेरे मन पर,
कौन उतारे, कोंन विसारे।

सबने ही कमियां देखी हैं मुझ मे,
किसने देखे मेरे परेशानियों के कारण।
मेरे चारो तरफ लगा दि प्रश्नों की झड़ियाँ
जब उत्तर न दे पाया तो बता दिए उत्तर साधारण !

डूब रहा हूँ मैं, यह देख रहा हूँ मै,
कहाँ पर है सहारे, किस तरफ है किनारे।

मै इस तरहै करता हु,
अपना आत्म मुल्यांकन।

स्वरचित
सुन्दर सिंह नेगी

पंकज सिंह महर

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महर जी मैं अपने आप को बहुत रोक रहा था कि मैं अब इस बहस में हिस्सा न लूं ,   लेकिन आपके शब्दों को पढ़कर मुझे मजबूरन दुबारा इस टोपिक पर लिखना पढ़ रहा   है. आप अभी भी सारा दोष हमारे ही ऊपर दे रहे हो, अपनी गलती मानने को तैयार   नहीं हो.

प्रिय सुभाष जी,

पहली बात तो आप यह बताइये कि विगत दिनों जब आप इस बोर्ड पर आये और आपने चर्चा की लेकिन फिर अपनी सारी पोस्ट डिलीट क्यों कर गये और फिर जब उन्हें रि-स्टोर कर लिया गया तो २० मई को आप अपनी सारी पो्स्ट माडीफाई करके bahut bahut dhanyabad लिखकर क्यों चले गये।

हम अपने आप को न तो विद्वान मानते हैं और न ही बहुत समझदार, लेकिन इतने जरुर हैं कि जो हो रहा है उसे समझ न सकें। जो हो रहा है, हमने उसे समझा हमने कभी "आप" और "हम" की बात नहीं की। मेरा पहाड़ के सदस्य होने के बाद भी आपकी पोस्ट में लिखा जाता है, आपने यह किया, हमने यह किया। आप और हम की खाई आप पैदा कर रहे हैं, जब कि मेरा पहाड़, ने यह मंच पहाड़ी (उत्तराखण्डी) के लिये तैयार किया है, आप और हम जैसे क्षुद्र शब्दों का यहां पर कोई महत्व नहीं है। मैं अपने पहले के कथनानुसार आपका जबाब नहीं देना चाह रहा था । लेकिन आप बार-बार अपनी विद्वता साबित करने आ रहे हैं, इसलिये  रोक नहीं पा रहा हूं।

हमने सारे उत्तराखण्डी संगठनों के आलोक में बात की और आगे भी करेंगे। जो स्मझदार होगा वह कोलाहल नहीं आत्मावलोकन करेगा। आप से भी गुजारिश है कि अपनी शक्ति और ऊर्जा का प्रयोग रचनात्मक कार्यों में करें, छद्म युद्ध के योद्धा बनने में नहीं।

आशा है बद्रीनाथ जी आपको सदबुद्धि देंगे और आप बात को समझेंगे।

एक बात और साफ कर दूं कि किसी भी संगठन से "मेरा पहाड़" की कोई भी प्रतिस्पर्धा नहीं है, न होगी।

kandpalsubhash

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महर जी मैं आपको धन्यबाद देना चाहूँगा कि आपने भगवान् बद्रीविशाल से मेरी सदबुधि की कामना की है.
           

chandramohanjyoti

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Shaileshji/Maharji,
Bahut achhi baat hai ki aap log is forum k madyam se koi jatil visay par sarthak bahas karwana chahte hain parantu 'uttarakhand k sabhi sangathanon ko aatm moolyankan ki jarurat' visay par mai kuch sawal/abhimat post karna chahta hun.
 
Sarvpratham Young Uttarkhand k cine award karyakram ki tahlka patrika ki report ka is visay se koi lena dena nahi hona chaiye. Us report main aisa kuch bhi nahi hai jisse aap logon ko ye bahas shuru karne par mazboor hona pade (ye sach hai ki is mahanagar main jaroorat se jyada sangathan uttarakhandi pravasiyon k hain). Manch sanchal sambandhi kamiyan sabhi bade karyakramon main bhi pai jaati hain. Aur jahan tak manti, netaon k saath photo khinchwane ka sawal hai toh main young uttarakhand sangathan ki tarif karna chahta hun ki DEEP PRAJWALAN bhi unhone manch par na karke swagat dwar par kiya, jise auditorium me baithe kisi bhi darshak ne nahi dekha; phir is tarah ka aarop bhi uchit nahi hai. Sanjay Shilodi hindi me nahi angreji me darshakon ka shukriya ada karte hain, lekin saath hi uske baad unhone uttarakhandi me bhi do shabd kahe, ye tahalka ne nahi likha.
 
Is programe ke charcha baaki media mai bhi hai jise bhi aap logon ko dekhna chahiye. Yah kaha ja raha hai ki award show toh bahut huye magar pahli baar uttarakhandi films aur sangeet k liye itne aala darje ka koi aur protsahan karyakram pahle kabhi nahi hua. Mai pichle 18 varshon se rangmanch aur uttarakhand ke cultural activities se juda hun; samay-2 par natakon aur filmon ki samiksha likhta raha hun. Is nate hamko aur aapko is tarah k karyakramon jo uttarakhand ki sanskriti samridhi k vikarsh mai sarthan bhumika nibha rahe hain-- ki tahe dil se prasansa karni chaiye.
 
Doston! batein to bahut si hain; muje lagta hai me maine hi vilamb se is forum ko join kiya. O 17 page hatane ka kya mamla hai?
 
Akhir mai aap logon ko yahi kahna chahunga ki bina kisi k samman ko koi theis pahunchaye ham jo kaam karte hain usi ko sahi maynon me appriciation milta hai.
 
'VASUDHEIV KUTUMBAKAM'

पंकज सिंह महर

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Sarvpratham Young Uttarkhand k cine award karyakram ki tahlka patrika ki report ka is visay se koi lena dena nahi hona chaiye. Us report main aisa kuch bhi nahi hai jisse aap logon ko ye bahas shuru karne par mazboor hona pade (ye sach hai ki is mahanagar main jaroorat se jyada sangathan uttarakhandi pravasiyon k hain). Manch sanchal sambandhi kamiyan sabhi bade karyakramon main bhi pai jaati hain. Aur jahan tak manti, netaon k saath photo khinchwane ka sawal hai toh main young uttarakhand sangathan ki tarif karna chahta hun ki DEEP PRAJWALAN bhi unhone manch par na karke swagat dwar par kiya, jise auditorium me baithe kisi bhi darshak ne nahi dekha; phir is tarah ka aarop bhi uchit nahi hai. Sanjay Shilodi hindi me nahi angreji me darshakon ka shukriya ada karte hain, lekin saath hi uske baad unhone uttarakhandi me bhi do shabd kahe, ye tahalka ne nahi likha.
 

आदरणीय चन्द्र मोहन जी,
इस टापिक पर उत्तराखण्ड के सभी संगठनों के आलोक में चर्चा की जा रही थी, परन्तु कुछ विद्वान साथियों की अति विद्वता ने इसे दूसरा मोड़ दे दिया। जिससे आपको भी लग रहा है कि हमारे द्वारा किसी संगठन विशेष के कार्यक्रम पर यह मूल्यांकन किया जा रहा है। ऐसा नहीं है, YU ने जो कार्यक्रम किया, जो पहल की, उसको हम एप्रीसियेट करते हैं।
 
यह भी सत्य है कि आज उत्तराखण्ड के सभी सामाजिक संगठनों को आत्मावलोकन की महती आवश्यकता है, जिस पर ज्यादा विचार किया जाना चाहिये, न कि संगठन विशेष के किसी कार्यक्रम पर।
 
आशा है आप मेरा आशय समझेंगे।

chandramohanjyoti

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Priya Maharji,
Abhivadan...
Mai aapka aashay samaj raha hun. Magar jis tarah ki shuruaat is mudde par hui aur us par aarop-ratyarop maine pade, isliye mai bhi majboor hua ki is subject par post likhun...

Ab aaiye mukhya mudde par-- yahi to hum pravasi uttarakhandiyon ka durbhagya hai ki hum log bahut se sangathan bana lete hain par use sahi disha nahi de pate... har koi ek naya sangathan banana chahta hai, aur us sangathan ka swayambhu cammander bhi. Koi kisi k saath kaam na kar ek naya rasta nikalna chahta hai... Jab uttarakhand prithak andolan chal raha tha toh delhi jantar-mantar par kul 158 sangathan register hue, hamara saubhagya tha ki iske bawjood bhi ham saphal huye aur uttarakhand alag rajya bana. Kuch mahatwapurn sujhaw is sambandh mai baad mai likhunga...

UTTARAKHAND SNEHI- C.JYOTI

हेम पन्त

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चन्द्र मोहन जी आप इस बहस को शुरु करने का हमारा औचित्य समझ गये हैं. आपकी पोस्ट पढ कर उम्मीद जगी है कि अब इस मुद्दे पर कुछ सार्थक बहस होगी. आपसे निवेदन है कि एक नया टापिक शुरु करें और उसे अपनी मर्जी से कुछ सही सा शीर्षक दें....

 

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