Author Topic: जल विधुत परियोजनाओ और उत्तराखंड का भविष्य पर विचार गोष्टी  (Read 6730 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

आप अवगत ही हैं कि उत्तराखण्ड में बड़ी-बड़ी जल विद्युत परियोजनायें बन रही हैं, जिन्हें सरकारों द्वारा विकास के आयाम के रुप में प्रचारित किया जा रहा है। इस गोष्ठी में हम विमर्श करना चाहेंगे कि आखिर इन जल विद्युत परियोजनाओं के साथ उत्तराखण्ड का भविष्य क्या होगा। इस गोष्ठी में देश और दुनिया के बांधों को समझने वाले लोग, दिल्ली में उत्तराखण्ड के साहित्यिक, सामाजिक और पत्रकार जगत के लोग भी शामिल होंगे। मेरा अनुरोध है कि निम्न कार्यक्रमानुसार आप भी इसमें अपनी सहभागिता कर अपने विचार रखने का कष्ट करें।
 
 कार्यक्रम स्थल- गांधी पीस फाउण्डेशन, दीन दयाल उपाध्याय मार्ग, आई०टी०ओ०, नई दिल्ली।
 दिनांक- 21 जुलाई, 2012, शनिवार।
 समय - सायं 05:00 बजे से  08:00तक ।
 
 संयोजक - चारु तिवारी, क्रियेटिव उत्तराखण्ड-म्यर पहाड़,
 
 सहयोग- समयान्तर मासिक पत्रिका,म्यर उत्तराखण्ड, ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल विचार मंच, सार्थक प्रयास, चेतना आन्दोलन, उत्तराखण्ड चिन्तन, अखिल भारतीय उत्तराखण्ड महासभा, बुरांश साहित्यिक संस्था।
 
 सम्पर्क- चारु तिवारी -09717368053
              कृष्णा सिंह- 09810741144
              प्रकाश चौधरी- 09717833550
              उमेश पन्त- 09899221158

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पंकज सिंह महर

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राजधानी दिल्ली स्थित गांधी षांति प्रतिश्ठान में पिछले दिनों उत्तराखंड में प्रस्तावित जलविद्युत परियोजनाओं और उनके प्रभाव पर एक संगोश्ठी का आयोजन किया गया। करीब आधा दर्जन प्रवासी संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में हुयी इस संगोश्ठी में उत्तराखंड के अलावा बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। इस आयोजन का उद्देष्य पहाड़ में बन रही जल विद्युत परियोजनाअेों के बारे में सरकार और नीति-नियंताओं ने जिस तरह की सूचनायें लोगों तक पहुंचाई हैं उनकी हकीकत को रखना था। बांधों के खिलाफ लंबे समय से संघर्श कर रहे आंदोलनकारियों ने मध्य हिमालय में बन रही इन परियोजनाओं के तमाम खतरों को रखते हुये उर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों को तलाषने की जरूरत पर जोर दिया। इस बात को जोरदार तरीके से उठाया गया कि सरकार जिस तरह से इन परियोजनाओं के पक्ष में माहौल बनाने की कोषिष कर रही है यदि उसे समय रहते नहीं समझा गया तो यह हिमालय और देष के लिये भारी खतरा साबित होंगे। संगोश्ठी की अध्यक्षता वरिश्ठ साहित्यकार पंकज बिश्ट और संचालन प्रकाष चैधरी ने किया।
संगोश्ठी में जारी आधार प़त्र में कहा गया कि उत्तराखण्ड में बन रही बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं पर इन दिनों बहस छिड़ी है। आजादी के बाद पहाड़ में विकास का जो माॅडल पेष किया गया उसमें यहां के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की सोच प्रमुख रही। विकास के इस दैत्याकार माॅडल ने जब अपने पैर पसारने षुरू किये तो उसने यहां की जीवनदायिनी नदियों को निषाना बनाया। सत्तर के दषक में नीति-नियंताओं ने इसे अमली जामा पहनाना षुरू किया। इसकी षुरूआत टिहरी बांध के साथ हुयी। इस बांध के बारे में बहुत सारी बातें प्रचारित की गयी। बताया गया कि यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बांध होगा। यह एषिया का सबसें बड़ा बांध होगा। यह भी बताया गया कि यह देष और राज्य की बउ़ी उर्जा जरूरत को पूरा करेगा। इसके तहत भागीरथी और भिलंगना के संगम पर एक विषालकाय बांध की नींव पड़ी जिसकी क्षमता 2400 मेगावाट थी। इस बांध को बनाने के लिये टिहरी जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक षहर को जल समाधि दे दी गयी। इतना ही नहीं 125 गांव भी इस बांध की बलि चढ़ गये। पर्यावरणीय, भूगर्भीय और अन्य तरह के खतरे अलग से थे। स्थानीय लोगों के विरोध और लंबे आंदोलन के बावजूद सरकार ने इस बांध परियोजना पर पुनर्विचार नहीं किया। इसी का परिणाम है कि आज एक बड़ी आबादी इस बांध के नुकसान को झेलने के लिये मजबूर है।
टिहरी बांध के विरोध और असफलता के बाद नीति-नियंताओं ने एक नया नारा दिया। उसमें कहा गया कि अब पहाड़ में टिहरी जैसे बड़े बांध नहीं बनाये जायेंगे। साथ में यह घोशणा भी कर दी कि उत्तराखंड की तमाम नदियों से 40 हजार मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता है। सरकारें इस बात को जानती थी कि यदि अब उत्तराखंड में बाांधों की बात की तो जनता इसका विरोध करेगी इसलिये उन्होंने छोटे बांधों के नाम पर नये तरह से नदियों के दोहन का रास्ता निकाला। चालीस हजार मेगावाट बिजली के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकारों ने जो योजना बनायी वह बहुत डरावनी है। उत्तराखंड में सत्रह छोटी-बड़ी नदियां हैं। अगर इन सरकारों की चली तो इनमें 558 बांध बनाये जा सकते हैं। भागीरथी, भिलंगना, अलकनन्दा और पिडर जैसी नदियां इस समय मुनाफाखोर व्यवस्था के चंगुूल में है। इस समय इन नदियों पर 76 बांध बन रहे हैं और एक सौ से अधिक बांध प्रस्तावित हैं। ये सभी परियोजनायें सुरंग आधारित हैं। मौजूदा बांधों से निकलने वाली सुरंगों की लंबाई सात सौ किलोमीटर है। इन बांधों के खतरों से स्थानीय जनता सहमी है। यदि इसी गति से इन बांध परियोजनाओं का निर्माण होता रहा तो आने वाले दिनों में उत्तराखंड की आधे से ज्यादा आबादी सुरंगों के उपर होगी। अलकनन्दा जो गंगा की सबसे बड़ी जलधारा है उसके 135 किलोमीटर गंगा बनने तक के रास्ते में 68 बांध प्रस्तावित हैं। चमोली जनपद में बांधों की सुरंगों से अभी तक छह गांव नस्तनाबूत हो चुके हैं और 38 गांव मौत के मुहाने पर खड़े हैं। बांधों से अभी 244 गांवों को तुरन्त विस्थापन की जरूरत है। उत्तरकाषी से टिहरी तक भागीरथी और भिलंगना में सैकड़ों बांध प्रस्तावित हैं। गंगा की पांचों बड़ी सहायक नदियां बिश्णुगंगा, नंदाकिनी पिंडर, मंदाकिनी इन बांध परियोजनाओं के निषाने पर हैं। गोमती, धौलीगंगा, रामगंगा, टौंस, काली में भी इस तरह के बांध या तो प्रस्तावित हैं या बनायें जा रहे हैं। इन बांधों को विकास का प्रतीक बताया जा रहा है।
यह एक मोटा आंकड़ा है उत्तराखंड में बन रही जलविद्युत परियोजनाओं का। सत्तर के दषक से यहां की जनता बांधों के खिलाफ खड़ी है। हमारी सबसे बड़ी चिन्ता इन परियोजनाओं को सरकारों द्वारा गलत तरीके से पेष किये जाने को लेकर है। इससे बड़ी बात यह है कि अब सरकार, बांध कंपनिया,और नौकरषाही केे गठजोड़ ने जनता को जनता के सामने खड़ा करने की साजिष कर दी है। बताया जा रहा है कि उत्तराखंड में जितने भी बांध बन रहे हैं वे छोटे हैं। इन बांधों को रन आफॅ दि रीवर बताया जा रहा है। इन बांधों से उत्पादित होने वाली बिजली से उत्तराखंड के अलावा देष की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। जल विद्युत परियोजनायें बनने से लोगों को रोजगार मिलेगा। लेकिन यह सच नहीं है। उत्तराखंड में जितने भी बांध बनाये जा रहे हैं वे सभी बड़े बांध हैं। एक भी बांध रन आॅफ दि रीवर नहीं है, बल्कि सब बाध सुरंग आधारित हैं। जहां तक बिजली उत्पादन का सवाल है टिहरी की क्षमता 2400 मेगावाट बताई गयी है लेकिन उससे केवल 400 से 650 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है। टिहरी के विस्थापन का मामला अभी तक सुलझा नहीं है। जहां तक रोजगार का सवाल है बांधों से कभी रोजगार नहीं मिलता है। टिहरी बांध से दो प्रतिषत लोगों को भी रोजगार नहीं मिला है। दुनिया के किसी भी बांध से रोजगार पैदा नहीं होता। इस संगोश्ठी के माध्यम से हम एक ऐसा रास्ता तैयार करना चाहते हैं जो जनता के पक्ष का हो। पिछले दिनों जिस तरह से बांध समर्थकों की एक लाबी खड़ी हुयी है यह खतरनाक संकेत हैं। सरकार की षह और बड़ी कंपनियों के पैसे पर जिस तरह की भ्रामक बातें फैलाई जा रही हैं उसका प्रतिकार जरूरी है।
पिछले दिनों श्रीनगर परियोजना को लेकर जिस तरह का माहौल बनाया गया वह सबके लिये चिन्ता का विशय है। बांध के समर्थन या विरोध में तर्क हो सकते हैं लेकिन जिस तरह का रवैया बांध कंपनी के साथ मिलकर कुछ लोगों का रहा है वह अलोकतांत्रिक है। बांधों का विराध कर रहे लोगों को जिस तरह से अपमानित किया गया और कालिक पोतने वालों को सम्मानित किया गया उससे यह समझा जा सकता है कि अब इन परियोजनाओं को बनाने के लिये आमादा ये लोग कितने हिंसक हो गये हैं। एक मंत्री की अगुआई में दिल्ली में श्रीनगर बांध परियोजना के समर्थन हुये कथित धरने से साफ हो गया है कि अब ये लोगों का जमीर भी खरीद लेना चाहते हैं। गंगा पर बन रही जलविद्युत परियोजनाओं को साधु-संतों की लड़ाई प्रचारित कर भ्रमित किया जा रहा है। पर्यावरण के सवाल को भी गलत तरह से पेष किया जा रहा है। हमारा मानना है कि गंगा को बचाने का सवाल सिर्फ आसथा के साथ नहीं जुड़ा है। पहले यह वहां के गांवों को बचाने की लड़ाई है। गंगा बचेगी तो तभी आस्था भी है। जहां तक प्र्यावरण का सवाल है पर्यावरण को बचाने की पहली षर्त है कि वहां का जीवन बचा रहे। जब जीवन ही नहीं है तो पर्यावरण हो ही नहीं सकता। बांध परियोजनाओं का विरोध हिमालय को बचाने का है। हिमालय बचेगा तो देष बचेगा। गंगा गोमुख से गंगा सागर तक 2500 किलोमीटर का सफर तय करती है। इस बीच उसके अलग-अलग तरह के महत्व हैं। इसे समझते हुये गंगा को अब इन विनाषकारी विकास योजनाओं से बाहर निकालने की मुहिम चलनी चाहिये।

इस संगोश्ठी का ओयोजन क्रियेटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़, समयांतर मासिक पत्रिका, म्यर उत्तराखंड, सार्थक प्रयास, उत्तराखंड चिन्तन, बुराषं साहित्यिक संस्था ने संयुक्त रूप से किया था। संगोश्ठी को उत्तराखंड लोकवाहिनी के अध्यक्ष डा. षमषेर सिंह बिश्ट, पूर्व मं़त्री और बांध विरोधी आंदोलनकारी मोहन सिह गांववासी, सीपीआई माल के नेता एवे कुमाउं विष्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष गिरिजा पाठक, बांध विरोधी आंदालने के नेता और सामाजिक कार्यकर्ता त्रेपन सिंह चैहान, आदि न संबोधित किया। अपने संबोधन में तमाम वक्ताओं ने बांधों के खतरे और हिमालय के लिये अलग विकास नीति की वकालत की। संगोश्ठी में इस बात पर भी जोर दिया कि इस लड़ाई को आगे ले जाने के लिये तमाम हिमालयी राज्यों में चल रहे बांध विरोधी आंदालनों को भी षामिल किया जाना चाहिय। पिछले दिनों बोधों के समर्थन के नाम पर जिस तरह से अराजकता का माहोल है उसके खिलाफ भी वक्ताओं ने अपना रोश प्रकट किया। उत्तराखंड में विकास के विनाषकारी माॅडल के खिलाफ अब इस अभियान को आगे बढाया गया है। इसके तहत 27-28 जुलाई को जोषीमठ, 15 अगस्त को टिहरी, 30 अगस्त को द्वाराहाट और 2 अक्टूबर को तमाम आंदोलनकारी संगठनों ने एकजुट होकर आगे बढ़ने का फैसला लिया है।

-कृश्णा सिंह


पंकज सिंह महर

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संगोष्ठी को संबोधित करते क्रियेटिव उत्तराखण्ड-मेरा पहाड़ के मार्गदर्शक सदस्य श्री चारु तिवारी








 

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