Author Topic: Virasat Magazine & Poster Launch Progm by Merapahad in Uttarayani Fair Bageshwar  (Read 15591 times)

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Great daju logo, I'll also try to join this event.


राजेश जोशी/rajesh.joshee

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मेहता जी,
मेरी तरफ़ से आपको घुगुगिया त्यार की बहुत बहुत शुभकामनाऎं और इस आयोजन के लिए धन्यवाद और आपकी टीम को मेरी हार्दिक शुभकामनाऎं।
राजेश जोशी

bahut sundar mehta jyu.. keep it up and ready to go bageshwer...

jo jo log intersted hai jane ke liye o apni confirmation jarur  hame de dai..


VK Joshi

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विरासत पत्रिका का मुखपृष्ठ देखा-आनंद आ गया. कुछ क्षण को लगा की बागेश्वर का बगड़ मेरे घर में हे आगया हो! मेहता जी इतना सुंदर पोर्टल बनाने के लिए बहुत बहुत बधाई. मैं जल्दी ही आपके पोर्टल के लिए लिखूंगा. जैसा मैने बताया हिंदी टंकण में थोडा दिक्कत है. मैं एक फोनेटिक प्रोग्राम का प्रयोग करता हूँ जो आपके पेज पर नहीं चलेगा.  इसलिए गूगल की मदद से ही काम चलेगा.
ही हैआप सबको और समस्त पाठकों को घुगुती की बधाई. इस बार आपकी पर्वतीय धारा की आवरण कथा भी घुगुती ही है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जोशी जी,

महराज उत्साह वर्धन क लीजी बहुत -२ धन्यवाद,.. बस लागी रियो हम सब नानतिन. आपु लोगो का आशीर्वाद चे! हमार सौभाग्य होल महराज अगर तुमार लेखनी यो पोर्टल में, हम सबो के पदन लीजी मिल जाल तो..

जय हो..



विरासत पत्रिका का मुखपृष्ठ देखा-आनंद आ गया. कुछ क्षण को लगा की बागेश्वर का बगड़ मेरे घर में हे आगया हो! मेहता जी इतना सुंदर पोर्टल बनाने के लिए बहुत बहुत बधाई. मैं जल्दी ही आपके पोर्टल के लिए लिखूंगा. जैसा मैने बताया हिंदी टंकण में थोडा दिक्कत है. मैं एक फोनेटिक प्रोग्राम का प्रयोग करता हूँ जो आपके पेज पर नहीं चलेगा.  इसलिए गूगल की मदद से ही काम चलेगा.
ही हैआप सबको और समस्त पाठकों को घुगुती की बधाई. इस बार आपकी पर्वतीय धारा की आवरण कथा भी घुगुती ही है.

Devbhoomi,Uttarakhand

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उत्तरायणी मेले के अवसर मैं भाग लेने वाले मेरा पहाड़ के सभी संदस्यों को बधाई

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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आदरणीय जोशी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यबाद और घुघुतिये की शुभ कामनाये

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कुली बेगार आन्दोलन - ABOUT KULI BEGAR
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उत्तर भारत के सुरम्य प्रदेशों में उत्तराखण्ड का अपना विशिष्ट महत्व है। आधुनिक कुमायूं के इतिहास का सबसे पहला ऐतिहासिक विवरण हमें एटकिन्सन के गजेटियर जो १८८४-८६ में लिखा गया में मिलता है। भारत के इस कठिन भौगोलिक भूखण्ड में यातायात सदा से दुष्कर रहा है। यदि हम इतिहास के आइने में झांके कि सबसे पहले चन्द शासकों (१२५०-१७९० ई.) ने राज्य में घोडों से सम्बन्धित एक कर ’घोडालों‘ निरूपति किया था सम्भवतः कुली बेगार प्रथा का यह एक प्रारंभिक रूप था। आगे चल गोरखाओं के शासन में इस प्रथा ने व्यापक रूप ले लिया लेकिन व अंग्रेजों ने अपने प्रारम्भिक काल में ही इसे समाप्त कर दिया। पर धीरे-धीरे अंग्रेजों ने न केवल इस व्यवस्था को पुनः लागू किया परंतु इसे इसके दमकारी रूप तक पहुंचाया। १८७३ ई. के एक सरकारी दस्तावेज से ज्ञात होता है कि वास्तव में यह कर तब आम जनता पर नहीं वरन् उन मालगुजारों पर आरोपित किया गया था जो भू-स्वामियों या जमीदारों से कर वसूला करते थे। अतः देखा जाये तो यह प्रथा उन काश्तकारों को ही प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करती थी जो जमीन का मालिकाना हक रखते थे। पर वास्तविकता के धरातल पर सच यह था इन सम्पन्न भू-स्वामी व जमीदारों ने अपने हिस्सों का कुली बेगार, भूमि विहीन कृषकों, मजदूरों व समाज के कमजोर तबकों पर लाद दिया जिन्होंने इसे सशर्त पारिश्रमिक के रूप में स्वीकार लिया। इस प्रकार यह प्रथा यदा कदा विरोध के बावजूद चलती रही। १८५७ में विद्रोह की चिंगारी कुमाऊं में भी फैली। हल्द्वानी कुमांऊ क्षेत्र का प्रवेश द्वार था। वहां से उठे विद्रोह के स्वर को उसकी प्रारंभिक अवस्था में ही अंग्रेज कुचलने में समर्थ हुए। लेकिन उस समय के दमन का क्षोभ छिटपुट रूप से समय समय पर विभिन्न प्रतिरोध के रूपों में फूटता रहा। इसमें अंग्रेजों द्वारा कुमांऊ के जंगलों की कटान और उनके दोहन से उपजा हुआ असंतोष भी था। यह असंतोष घनीभूत होते होते एकबारगी फिर बीसवी सदी के पूर्वार्द्व में ’कुली विद्रोह‘ के रूप में फूट पडा। १८५७ के अल्पकालिक विद्रोह के बाद यह कुमांऊ में जनता के प्रतिरोध की पहली विजय थी। १९१३ ई. में जब कुली बेगार अल्मोडे के निवासियों पर लागू किया गया तो उन्होंने इसका प्रचण्ड विरोध किया। ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि कुमांऊ क्षेत्रा विशेषकर अल्मोडा जनपद हमेशा से एक जागरूक जीवंत शहर रहा है व यहां के निवासियों ने सामाजिक सरोकार के प्रश्नों पर सदा से ही एक मत रखा है। इन लोगों का कुमांयू के समाज, साहित्य, लोक कलाओं आदि पर सदैव मजबूत पकड रही अतः यह स्वाभाविक था कि एसे जीवंत शहर के बाशिंदों द्वारा इस व्यवस्था का मजबूत प्रतिरोध होता। बद्रीदत्त पांडे इस आंदोलन के अगुआ नायक के रूप में उभरे। प्रसिद्ध अखबार ’’द लीडर‘‘ में सहायक सम्पादक के रूप में उभरने के बाद से उन्होंने १९१३ ई. में ’’अल्मोडा अखबार‘‘ की बागडोर संभाली। बद्रीदत्त पांडे जो कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे, उन्होंने इसको अंग्रेजों सत्ता के विरूद्ध हथियार बना लिया। ब्रिटिश शासन ने कुली बेगार के माध्यम से स्थानीय समाज के परम्परागत ढांचे को प्रभावित किया था। शासकों के प्रतिनिधियों के रूप में कार्य कर चुके स्थापित भू-स्वामियों को इसने सबसे अधिक प्रभावित किया। इन प्रभावशाली स्थानीय व्यक्तियों को इन नई व्यवस्था में अन्य साधारण स्थानीय व्यक्तियों के समकक्ष समझा गया क्योंकि अंग्रेजों ने मौटे तौर पर समाज को केवल दो वर्गों-शासक व शासित में बांटा। इस नयी व्यवस्था से समाज के संपन्न और प्रभावशाली वर्ग में गहरा असंतोष था। ब्रिटिश सरकार ने इस असंतोष से निपटने का एक विलक्षण उपाय ढूंढा व इसे स्थानीय प्रथा कह स्वयं को इससे अलग करने का प्रयास किया। ऐसी स्थिति में स्थानीय जनता ने बद्रीदत्त पाडे के नेतृत्व में इसे बन्द कराने का संकल्प लिया व मकर संक्रांति के दिन बांगेश्वर में सभी गांवों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने गांवों के रजिस्टर ले जाकर उन्हें सरयू में प्रवाहित कर इस प्रथा के अंत की घोषणा की। ब्रिटिश सत्ता के लाख विरोध के बावजूद यह पूर्णत सफल प्रयास सा जिसमें लगभग ४०,००० गांवों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने रजिस्टर सरयू में प्रभावित किये। जनसंकल्प व दृढ निश्चय के इस अनूठे प्रयास ने महात्मा गांधी तक को रोमान्चित किया। स्वयं गांधी जी के शब्दों में ’’इसका प्रभाव सम्पूर्ण था। एक रक्तहीन क्रांति‘‘। यद्यपि इसे दबाने का प्रयत्न किया गया पर यह सफल रहा। इसी आन्दोलन ने बद्रीदत्त पाण्डे को कुमांयू केसरी की उपाधि दिलायी। गौरीदत्त पाण्डे उर्फ गौर्दा ने भी जो लोकप्रिय कवि थे इसका भरपूर समर्थन किया। लोक गीतों में भी इसका वर्णन मिलता है। बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में कुली बेगार प्रथा के अंत की घोषणा का स्थानीय लोक गीत विधा झौडा में कुछ इस प्रकार उल्लेख मिलता है- ’’ओ झकूनी ऊंनी यों हृदय का तारा, याद ऊं छ जब कुल्ली बेगारा।खै गया ख्वै गया बडी बेर सिरा, निमस्यारी डाली गया चौरासी फेराड्ड सुनरे पधाना यो सब पुजी गो, धान ल्या, चौथाई ध्यू को। ह्यून चौमास जेठ असाठा, नाड भुखै बाट लागा अलमोडी हाटाड्ड बोजिया बाटा लगा यो छिल काने धारा, पाछि पडी रै यो कोडों की मारा।यो दीन दशा देखी दया को, कूर्माचल केसरी बदरीदत्त नामा। यो विक्तर मोहना हरगोविन्द नामा, ऐ पूजा तीन वीरा।सन् इक्कीस उतरैणी मेला, यो, ऐ पूजा तीन वीरा गंगा ज्यू का तीरा।सरजू बगडा बजायो लो डकां, अबनी रौली यो कुल्ली बेगारा। क्रुक सन सैप यो चाऐ रैगो, कुमैया वीर को जब विजय है गो।सरयू गोमती जय बागनाया, सांति लै सकीगे कुल्ली प्रथा।यह एक जनांदोलन था। जिसने क्षेत्र को बद्रीदत्त पांडे, मोहन सिंह मेहता, हरि कृष्ण पांडे, केदार दत्त पंत , शिव दत्त जोशी, देवी लाल वर्मा, मोहन जोशी, धर्मानन्द भट्ट जैसे व्यक्तित्व दिये जिन्होंने आगे चल स्वतंत्राता आंदोलन मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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खीमसिंह रावत

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स्वाभिमान और अभियान दोनों को  नमस्कार |
बागनाथ जी के दरवार में हमारी सेवा पहुंचे | 

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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जरुर खिमदा, आप भी  सांथ चलो तो बहुत अच्छा होगा , सांथ मैं दर्शन हो जायंगे 

 

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