हाँ, यह एक कटु सत्य है कि उत्तराखण्डी लोगों में एकता की कमी है, जिसका प्रमुख कारण पारस्परिक अविश्वास, संगठनों का उपयोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये करना, संगठनों के जरिये समाज में रुतबा कायम करने का प्रयास और सबसे बड़ा कारण राजनीति है। इसलिये आज जगह-जगह कुकुरमुत्तों की तरह अनेकों दिशाहीन और aimless संगठन खड़े हो रहे हैं, जिनके पास न तो कोई मिशन है और ना ही कोई विजन।
संगठनों का मुख्य कार्य होता है समाज को नई दिशा और दशा देना, सामाजिक कार्यों को बिना किसी लाभ-हानि के विचार के लिये करना। ऐसा नहीं है कि कोई भी संगठन काम नहीं कर रहा। उफरैंखाल में सच्चिदानन्द भारती जी के संगठन ने सूख चुके स्रोतों को बचाने के लिये ६-७ साल की मेहनत कर पहले पूरे पहाड़ में छोटे-छोटे गढ्ढे खुदवाये, फिर वहां पर बांज और पय्यां, उतीस जैसे पेड़ लगाये, आज वहां पर पानी की कोई कमी नहीं है, जब कि उस गांव में पानी के कमी के कारण लोगों ने पलायन करना शुरु कर दिया था, उस गांव में कोई व्यक्ति अपनी लड़की को ब्याहता भी नहीं था। यह उदाहरण इसलिये दिया क्योंकि आज भी उत्तराखण्ड में कई संगठन ऐसे हैं, जो किसी लाभ हानि, किसी पब्लिसिटी की चाह के बिना अनवरत समाज के लिये काम कर रहे हैं।
आज उत्तराखण्ड में लगभग ४५,००० एन०जी०ओ० काम कर रहे हैं, लेकिन इनका रिजल्ट क्या है? सरकारी धन का ये लोग दुरुपयोग करते हैं, इनकी किसी भी योजना का कोई लाभ नहीं मिल पाता है। मेरे गांव में एक संस्था द्वारा ग्रामीणों को जिरेनियम की खेती के लिये और जैविक खाद बनाने के लिये उकसाया, लोगों ने बिना सोचे-समझे अपनी जमीन में जिरेनियम बो डाली, संस्था ने ग्रामीणों को इसका प्रशिक्षण भी दिया गया, लेकिन बोये गये जिरेनियम का क्या करना है, उसका तेल निकाल कर बेचने से ही इस योजना का लाभ काश्तकारों को मिलना था, लेकिन वह नहीं किया गया। जिस खेत में जिरेनियम बोया था, वह आज खेती के लायक नहीं बचे।संस्था ने इन लहलहाते खेतों के फोटो खींचकर लाखों के वारे-न्यारे कर डाले। यह स्थिति है संगठनों की। यह उद्धरण मैने इसलिये दिया कि आज संगठन के नाम पर व्यापार करने की होड़ मची है, छोटी-मोटी संस्थायें भी एक-दो कैम्प आदि लगाकर सरकार से एड ऐंठने के लिये ज्यादा लालायित रहते हैं। इससे उनकी रोजी-रोटी चलती है, संगठनों को पेशा बना दिया गया है। ऐसे व्यक्ति संगठनों की आड़ में आय कमाने लगे हैं, एकता में कमी का कारण भी यही है कि हर आदमी नया संगठन बनाकर पैसा ऐंठने की कोशिश ही करता है।
यह सब ऐसा न कर सकें, उसके लिये जरुरत है, बिना किसी लाभ-हानि की परवाह किये, बिना नाम कमाने के लिये (उत्तराखण्डियों की सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि हर कोई सिर्फ अपना नाम चाहता है और बिना किसी काम के) बिना किसी स्वार्थ और राजनीति के, सिर्फ उत्तराखण्ड के हितों के संवर्धन और संरक्षण के लिये कार्य करें।
आज मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूं, जो उत्तराखण्ड के हितों के संरक्षण के लिये बिना किसी स्वार्थ के पैसा भी लगा रहे हैं और अपने आपको सामने भी नहीं लाना चाहते। ऐसे ही संगठनों की जरुरत आज है, क्योंकि हमने एकजुटता का परिचय देकर उत्तराखण्ड राज्य तो छीन लिया, लेकिन अपने छोटे-छोटे स्वार्थों की पूर्ति के लिये ऐसी भेड़चाल में चलकर हम इसे बसा और बचा नहीं पायेंगे।