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Do you Feel Uttarakhandi Lack of Unity- क्या आप मानते है उत्तराखंडियो एकता नहीं

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

दोस्तों,

वैसे जम्मू से कन्या कवारी तक और कल्कोता के गुजरात तक हिंदुस्तान एक है! हिंदुस्तान के हर राज्य की अलग की करीब -२ अलग भाषा एव अलग संस्कर्ती है फिर पूरा भारत एक है ! लेकिन कई बार देखा गया है कि किसी भी संस्कर्ती को बढावा देने ले लिए और अपने -२ राज्यों के विकास के लिए लोग आगे आते है !

लेकिन उत्तराखंड में यह कई बार देखा गया है कि लोग अपने लोगो एव संस्कर्ती के लिए एक जुट कम हो पाते है !

लेकिन अल्प समय में ही हम लोग नए -२ ग्रुप बना लेते है!  दिल्ली में ही देख लीजिय सेक्टर में उत्तराखंड के अलग-२ संगठन है! क्यों लोग एक संगठन में रह कर काम नहीं कर पाते !

Generally seen there are many social group form but they do not run long. This somewhere shows lack of unity.


मेरा मानना है किसी भी सामाजिक ग्रुप यहाँ तक राजनीतिक पार्टियों में जब तक विचार धरा एव उद्देश स्पस्ट ना हो, एक न एक दिन लोग उस पार्टी या संगठन से लोग अलग हो जायेंग !

मैंने उत्तराखंड के कई ग्रुप में देखा है जो ग्रुप में मुखिया एव मुख्य कार्यकर्ता होते है वो अपने को उत्तराखंड राज्य के मुख्य मंत्री के भाति समझते है और समाज सेवा की भावना उनमे एक दम ख़तम हो जाती है! में यहाँ पर दिल्ली एव मुंबई के कुछ हमारे उत्तराखंड के संगठनो की लिस्ट इस लिंक में दे रहा हूँ जो की सराहनीय काम कर रहे है, लेकिन मुझे कही ना कही लगता है हमारे सारी ताकत बिखरी हुयी है ! एक ही सेक्टर में कई प्रकार के ग्रुप देखता हूँ और लोगो की आपसी कलस भी !

            -     क्या उत्तराखंड ग्रुप में उलझ गया है ?
            -     क्या लोग अपने नाम के लिए ही ग्रुप चलते है ?
            -     नेकी कर दरिया में डाल भावना क्यों गायब है ?
            -     उत्तराखंड को लोग कुमाओं एव गडवाल में विभाजित करने की कोशिश में क्यों लगे रहते है ?

See the links of Uttarahandi social groups :

http://www.merapahad.com/forum/functions-by-uttarakhandi-organizations/name-of-uttarakhandi-social-groups/

इस प्रकार के तमाम प्रशन है, आएये खुल कर इस विषय में बात करे और हमारे बीच जिस प्रकार के खामिया है उनको दूर करके उत्तराखंड की नव निर्माण की सोच पैदा करे..  


रेगार्ड्स,

एम् एस मेहता

Lalit Mohan Pandey:
मेहता जी ये बात बिलकुल सही कही है आपने, यदयपि हर कम्युनिटी वालू के बीच आपस मै मतभेद होते है, लेकिन बाहर वालू के बीच फिर भी वो अपने लोगु को महत्त्व देते है. जो सामाजिक रूप से उनके उत्थान का एक बहुत बड़ा कारन है. इसी लिए उनके समाज मै एकता है. अब अगर हमारे बीच क्यों नहीं इतनी एकता है, इनके पीछे क्या वजह है इसमें डिटेल मै जाया जे तो मुझे कुछ बिंदु नजर आते है जो निम्न लिखित है...
१) अगर हम इतिहास मै नज़र डाले, तो समाज उन्ही लोगु से बनता है, या फिर समाज के हिस्सेदार वही लोग बनते है, जिनकी समाज मै कुछ न कुछ dependency  होती है. हम एक ग्रुप तभी बनाते है जब हमें लगता है की हम अकेले मै सर्व समर्थ नहीं है. हम समाज से, ग्रुप से कुछ न कुछ in return expect करते है. इस मामले मै हमारा समाज (uttarakhandies) बहुत पीछे है, न तो हम अपने लोगु को सुप्पोर्ट करते है, न ही हम उन्हें आगे बड़ने मै कोई मदद करते है, जबकि Panjabies या फिर south indians  अपने लोगु का बहुत favor करते है.
२) और communities के कुछ socal gathering की परंपरा है, जबकि हममे कोए भी बड़े लेवल की gathering नहीं है. जैसे की gujratiyu mai garva, bangaliyu mai durga pooja etc etc... जहा पे पूरा समाज इक्कठा होता है. जबकि हमारी ramleelaye ab band hi ho chuki hai, holi bhi sirf jan pahchan walu se milne tak सीमित रह गयी है.
३) ज्यादातर communities के अपने स्कूल है जहा पे ज्यादा नहीं भी तो उनके बच्चू को कुछ favor जरुर मिलता है. इससे एक बड़ा फायदा ये भी होता है की बच्चे इन स्कूल्स मै पड़कर अपनी परम्पराऊ, culture, अदि के बारे मै जानते है. जो की अपने लोगु को जोड़ने / से जुड़ने के लिए बहुत जरुरी है.

मै एक बात यहाँ पे highlight करना चाहता हु, जब तक की as a समाज हम लोगु को कुछ मद्दत नहीं दे सकते, तो हम लोगु से ये भी expect नहीं कर सकते है वो हमसे जुड़ते जाये. हर उम्र, हर वर्ग, हर व्यक्ति की अपनी जरूरते होती है और समाज को उन सब की जरुरातु मै उनकी मदद को आगे आना होगा. अगर हम ये करने मै सफल रहे तो take my words ham bhi apne logu ko sath lane mai safal ho payenge.
ये १-२ साल पहले की बात है, हमारे कुछ group mail बनी है yahoo group मै, उनके किसी job consultency firm से daily ki 4-5 jobs se related mails ati thi.  Jiska ki jyadatar mambers ne virodh kiya tha or kaha tha ki in mails ko ban kiya jay. मैंने तब भी ग्रुप मै बहुत mails likhi thi logu ko ye batane ke liye ki hame apne young generation ki jaruratu ko samajhna chahiye.. jo log job search kar rahe hai unke liye ye mails bahut important hai. लेकिन लोगु का कहना था की ये group इस purpose से नहीं बना है. ये सिर्फ culture को बढावा देने के लिए बनी है आज ap sabhi log jante hai ki wo kitna culture ko badawa de rahe hai.
मै मेरापहाड़ को धन्यबाद देना चाहता हु की आपने लोगु की जरुरतु को समझते हुए, इन विषयु मै consultency शुरू कियी है. लेकिन जैसे की मै पहले भी लिख चुका हु की हर उम्र / हर वर्ग की अपनी अलग अलग जरूरते होती है और हमारे फोरम मै हर उम्र/ हर वर्ग के लोग जुडे हुए है इसलिए kindly future मै Health related consultency, property related consultency, investement related consultency etc etc bhi suru keeziye jaha pe ki jankar log bina kisi स्वार्थ ke logu ko sahi sahi राय de sake.

Dhanybad...
Lalit
09811656723   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


Pandey ji,

Thanks a lot for detailed views on this issue.

Actually, I have been observing this since long. I have made detailed of various social organizations of Uttarakhand who are no doubt doing great job. But the only question that every second a new group is formed. This is not understood.

However, I guess some people declare themselves as Chairman, Director etc of the group. This somewhere gives egoistic attitude to the Chairperson which later lead for separate of people from the group and forming new groups. It is seen that we people cannot work in any group and some people want to promote themselves.

I will give my details later on this subject.

Your other suggestion are very useful. We will defiantly invite people who want to social service by giving free consultancies.   

खीमसिंह रावत:
‘‘उत्तरैणी हमारी पहचानश्

व्यक्ति और समाज एक दूसरे के पूरक हैं समाज में ही रह कर वह उन्नति की नई उच्चाईयों को छू सकता है जीवन के हर क्षेत्र में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से समाज की भागीदारी होती है किन्तु एक के बिना दूसरे की कल्पना तक नही की जा सकती हैं। आज की बदली हुई स्थितियों नेें हम सभी को अपने अपनों से तो दूर किया ही है साथ ही साथ रीति-रिवाजों, परिवारिक संस्कारों, संस्कृति व सांस्कृतिक त्यौहारों से भी अलग थलग किया है। अस्तु।

पाष्चात्य संस्कृति ने भारतीय जीवन षैली केा तार तार करने में कोई कसर नही छोडी है जहाॅ भी देखो हर तरफ एक ही चीज दिखाई पडती है हर तरह से प्रभावित कर रही है और निरन्तर अपनी ओर ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोडती जा रही है। इसका असर हम सभी पर साफ झलकता है। किन्तु हमारे पर्वतीय लोगों का अपनी संस्कृति के प्रति गहरा लगाव रहा हैं दिल्ली व अन्य महानगरों में पहाड की अनेक सामाजिक संस्थाओं द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमं इसका पुख्ता प्रमाण हैं। नगरों,महानगरों व विदेषों में बसा उत्तराखण्डी व्यक्ति और परिवार आज से 15, 20 साल पहले की अपनी स्थिति से बेहतर स्थिति मे है, हर क्षेत्र में हम पहले से ज्यादा संम्पन हो गये हैं सब तरह से परिपूर्ण होने के बावजूद हमारे समाज ने ऐसी कोई पहचान नही बनाई जिससे हम सीधे तौर पर जाने जाय, जैसे छट पूजा पर बिहार, बैषाखी पर पंजाब, ओणम पर दक्षिण भारत, गणेष उत्सव पर महाराष्टन्न्, दुर्गापूजा पर बंगाल।

कम्पनी बाग फिर लालकिला के पास होली रंग के दिन 3 बजे से लगने वाला होई कौत्तिक (होली मेला) का ह्नश्र क्या हुआ। अगर जरा सा हमने ध्यान दिया होता तो आज हम अपनी सांस्कृतिक पहचान बना लेते। इसके लिए व्यक्तिगत स्वार्थो से ऊपर उठकर समाज के प्रति सर्मपित होने का जनून चाहिए। कुमाऊँ सांस्कृतिक कला मंच ने इस ओर दिल्ली के सन्तनगर बुराडी क्षेत्र में एक छोटा सा फिर से प्रयास किया है यह जानते हुए भी कि कई सालों में हम सफल नही हो सकते हेैं सफल होने के लिएं एक नही कई दषक लग सकते है। अगर समाज का सहयोग निरन्तर मिलेता रहे और इस मषाल को जलाये रखने का जज्वा बना रहा तो हो सकता है कई दषकों बाद हम अपनी पहचान को बनाने में कामयाब हो जायें। ‘‘उत्तरैणी हमारी पहचानश् को बनाने लिए कुमाऊँ सांस्कृतिक कला मंच हर वड्र्ढ जनवरी माह में उत्तरैणी (मकर संक्रान्ति) के अवसर पर उत्तरैणी कौत्तिक का आयोजन करती है तथा उत्तरांचल गीत माला के द्वारा लोगों का ध्यान इस ओर आकृड्र्ढित करने की कोषिष करती हैं। वर्तमान समय में ‘‘उत्तरैणी हमारी पहचानश् को बनाने लिए श्री देवेन्द्र जोषी जी, श्री नन्दनसिंह लटवाल जी, श्री किषनसिंह नेगी जी, दिवानसिंह नेगी जी, धर्मपालसिंह कुमई जी, दिनेष भट्ट जी, हरीष नेगी जी, व राजेन्दर प्रसाद तिवारी जी का सहयोग उल्लेखनीय रहा है। लेखनी के धनी सुश्री मुमताज जी ने समाचार पत्रों के माध्यम से अपना सर्मथन व सहयोग दिया है। सफलता की ओर बढे तो इन महानुभावों के परिश्रम के पसीने (वित्तीय व सकारात्मक सोच) का समाज आभारी रहेगा।

समाज के सभी वर्गो से अपील की जाती है कि ‘‘उत्तरैणी हमारी पहचानश् एक सामुहिक प्रयास है जितना भी हो सके अपना सार्थक योगदान अवष्य दें।

नव वड्र्ढ की षुभ कामनाओं सहित।

खीमंिसह रावत

Anubhav / अनुभव उपाध्याय:
Dhanyavad Lalit ji aapke vicharon ke liye. Hum log aapke dwara sujhae gaye vishayon ko Mera Pahad main add karne ka jarur prayaas karenge.


--- Quote from: Lalit Mohan Pandey on October 03, 2009, 12:39:09 PM ---मेहता जी ये बात बिलकुल सही कही है आपने, यदयपि हर कम्युनिटी वालू के बीच आपस मै मतभेद होते है, लेकिन बाहर वालू के बीच फिर भी वो अपने लोगु को महत्त्व देते है. जो सामाजिक रूप से उनके उत्थान का एक बहुत बड़ा कारन है. इसी लिए उनके समाज मै एकता है. अब अगर हमारे बीच क्यों नहीं इतनी एकता है, इनके पीछे क्या वजह है इसमें डिटेल मै जाया जे तो मुझे कुछ बिंदु नजर आते है जो निम्न लिखित है...
१) अगर हम इतिहास मै नज़र डाले, तो समाज उन्ही लोगु से बनता है, या फिर समाज के हिस्सेदार वही लोग बनते है, जिनकी समाज मै कुछ न कुछ dependency  होती है. हम एक ग्रुप तभी बनाते है जब हमें लगता है की हम अकेले मै सर्व समर्थ नहीं है. हम समाज से, ग्रुप से कुछ न कुछ in return expect करते है. इस मामले मै हमारा समाज (uttarakhandies) बहुत पीछे है, न तो हम अपने लोगु को सुप्पोर्ट करते है, न ही हम उन्हें आगे बड़ने मै कोई मदद करते है, जबकि Panjabies या फिर south indians  अपने लोगु का बहुत favor करते है.
२) और communities के कुछ socal gathering की परंपरा है, जबकि हममे कोए भी बड़े लेवल की gathering नहीं है. जैसे की gujratiyu mai garva, bangaliyu mai durga pooja etc etc... जहा पे पूरा समाज इक्कठा होता है. जबकि हमारी ramleelaye ab band hi ho chuki hai, holi bhi sirf jan pahchan walu se milne tak सीमित रह गयी है.
३) ज्यादातर communities के अपने स्कूल है जहा पे ज्यादा नहीं भी तो उनके बच्चू को कुछ favor जरुर मिलता है. इससे एक बड़ा फायदा ये भी होता है की बच्चे इन स्कूल्स मै पड़कर अपनी परम्पराऊ, culture, अदि के बारे मै जानते है. जो की अपने लोगु को जोड़ने / से जुड़ने के लिए बहुत जरुरी है.

मै एक बात यहाँ पे highlight करना चाहता हु, जब तक की as a समाज हम लोगु को कुछ मद्दत नहीं दे सकते, तो हम लोगु से ये भी expect नहीं कर सकते है वो हमसे जुड़ते जाये. हर उम्र, हर वर्ग, हर व्यक्ति की अपनी जरूरते होती है और समाज को उन सब की जरुरातु मै उनकी मदद को आगे आना होगा. अगर हम ये करने मै सफल रहे तो take my words ham bhi apne logu ko sath lane mai safal ho payenge.
ये १-२ साल पहले की बात है, हमारे कुछ group mail बनी है yahoo group मै, उनके किसी job consultency firm से daily ki 4-5 jobs se related mails ati thi.  Jiska ki jyadatar mambers ne virodh kiya tha or kaha tha ki in mails ko ban kiya jay. मैंने तब भी ग्रुप मै बहुत mails likhi thi logu ko ye batane ke liye ki hame apne young generation ki jaruratu ko samajhna chahiye.. jo log job search kar rahe hai unke liye ye mails bahut important hai. लेकिन लोगु का कहना था की ये group इस purpose से नहीं बना है. ये सिर्फ culture को बढावा देने के लिए बनी है आज ap sabhi log jante hai ki wo kitna culture ko badawa de rahe hai.
मै मेरापहाड़ को धन्यबाद देना चाहता हु की आपने लोगु की जरुरतु को समझते हुए, इन विषयु मै consultency शुरू कियी है. लेकिन जैसे की मै पहले भी लिख चुका हु की हर उम्र / हर वर्ग की अपनी अलग अलग जरूरते होती है और हमारे फोरम मै हर उम्र/ हर वर्ग के लोग जुडे हुए है इसलिए kindly future मै Health related consultency, property related consultency, investement related consultency etc etc bhi suru keeziye jaha pe ki jankar log bina kisi स्वार्थ ke logu ko sahi sahi राय de sake.

Dhanybad...
Lalit
09811656723   


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