पंकज दा, बचपन में मैं भी भोत उछियात करता था|
मेरे छोटे भाई जो डाल में होते थे उन्हें रौन से जगी लाकोड़(क्वेल) लेकर डराता था और कहता था "झी झी"|
बिराव जो हाथ में आया मेरे तो उसे तो में झकोर लफाता था|
द्याप्तान थान के घंटी, सांख, पंचपात्र, कुनी सब छाज के बाहर|
कोई देखता नही था तो छाज से फटक मार देता था|