आज अचानक एक पुराना किस्सा याद आ गया... और हँसते हँसते मैं लोट पोट हो गया .. बात है जब मैं आठवीं कक्षा मैं हुआ करता था... मैं और मेरे दोस्त... हरकेश और अंकुर ... हिंदी की कक्षा मैं बैठे हुए थे.. हमारे हिंदी के अध्यापक... श्री पूरनचंद जी हमें स्त्रीलिंग पुलिंग समझा रहे थे... हम लोग हमेशा की तरह किसी बात पे हंस रहे थे.... और हमेशा की तरह पूरनचंद जी ने हमें पकड़ लिया शरारत करते हुए...
उन्होंने हमारा ध्यान पता लगाने के लिए मुझे खड़ा किया और पूछा की मयंक बताओ... मच्छर का स्त्रीलिंग क्या होता है... मैंने कहा सर... मच्छरनी ... इतना कहना ही था की पूरनचंद सर ने एक थप्पड़ रसीद कर दिया मुझे ... और गुस्से मैं बोले.... "मच्छर का स्त्रीलिंग होता है मादा मच्छर.... आगे से याद रखना..." मैं भन्नाया हुआ वापस बेंच पर बैठा ही था की हरकेश ने मुझ से पूछा... "लगी क्या"... मैंने गुस्से मैं हरकेश को घूरा ... हरकेश ने मेरा मूड ठीक करने के लिए पूछा..... अच्छा बताओ... पूरनचंद का स्त्रीलिंग क्या होता है.... मैं कुछ सोच भी पाता इस से पहले हरकेश ने अपनी शैतानी हंसी के साथ बहोत जोर से बोला... मादा पूरनचंद...

इतना सुनते ही मैं और मेरे साथी बहोत जोर जोर से हसने लगे और पूरनचंद सर को फिर मौका मिल गया हमें पीटने का...
बहोत याद आते हैं वो दिन....
साभार- मयंक नौनी, फेसबुक से