Author Topic: Lets Recall Our Childhood Memories - आइये अपना बचपन याद करें  (Read 51776 times)

हेम पन्त

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हम बचपन में कुछ अजीब से "गैम" खेलते थे, पता नहीं आजकल के बच्चे इन सीधे-साधे "गेम्स" के बारे में जानते होंगे या नहीं?

1. एक खेल होता था "स्टेच्यू", अगर दो दोस्तों ने स्टेच्यू लगाई है तो एक के स्टेच्यू (Statue) बोलते ही दूसरा Statue (मूर्ति) की तरह जैसे का तैसा रूक जायेगा. ’ओवर’ कहने तक उसे वैसा ही खड़ा (या बैठा जैसा भी हो) रहना पड़ता था. हिलने पर कुछ मुक्के या फिर जैसा भी पहले से निर्धारित हो, वो सजा मिलती थी.

2. एक खेल "सुरती" कहलाता था. सुरती कहने पर आपको मुंह खोलकर अपनी जीभ में कुछ न कुछ दिखाना पड़ता था. मतलब अगर आपने किसी के साथ "सुरती" लगाई है तो आपके मुंह में हमेशा कुछ न कुछ होना चाहिये, वरना मुक्के खाओ.

3. ऐसे ही एक खेल था - "जोली". जोली कहने पर आपको अपनी हथेली में पेन या किसी अन्य वस्तु से बना कोई निशान दिखाना पड़ता था.

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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ये डुण मसाण किसे कहते है भाई

हेम पन्त

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डुंण मतलब लंगड़ा मसान...
ऐसा मसान जो लंगड़ा कर चले...

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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लेकिन वो है तो मसाण ही ना भाई

डुंण मतलब लंगड़ा मसान...
ऐसा मसान जो लंगड़ा कर चले...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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स्कूल में बचपन में झगडा होना आम बात थी!

आज कल बर्फ बारी हो रही है, मुझे याद है हम किस तरह बर्फ के गोले एक दुसरे पर मारते थे !

येसा किस-किस ने किया अपने हाइस्कूल- इन्टर के दिनों में?



Courtesy - Mr. Trilok Singh

पंकज सिंह महर

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आज अचानक एक पुराना किस्सा याद आ गया...  और हँसते हँसते मैं लोट पोट हो गया .. बात है जब मैं आठवीं कक्षा मैं हुआ करता था... मैं और मेरे दोस्त... हरकेश और अंकुर ... हिंदी की कक्षा मैं बैठे हुए थे.. हमारे हिंदी के अध्यापक... श्री पूरनचंद जी हमें स्त्रीलिंग पुलिंग समझा रहे थे... हम लोग हमेशा की तरह किसी बात पे हंस रहे थे.... और हमेशा की तरह पूरनचंद जी ने हमें पकड़ लिया शरारत करते हुए...

 

उन्होंने हमारा ध्यान पता लगाने के लिए मुझे खड़ा किया और पूछा की मयंक बताओ... मच्छर का स्त्रीलिंग क्या होता है... मैंने कहा सर... मच्छरनी ... इतना कहना ही था की पूरनचंद सर ने एक थप्पड़ रसीद कर  दिया मुझे ... और गुस्से मैं बोले.... "मच्छर का स्त्रीलिंग होता है मादा मच्छर.... आगे से याद रखना..."  मैं भन्नाया हुआ वापस बेंच पर बैठा ही था  की हरकेश ने मुझ से पूछा... "लगी क्या"... मैंने गुस्से मैं हरकेश को घूरा ... हरकेश ने मेरा मूड ठीक करने के लिए पूछा..... अच्छा बताओ... पूरनचंद का स्त्रीलिंग क्या होता है.... मैं कुछ सोच भी पाता इस से पहले हरकेश ने अपनी शैतानी हंसी के साथ बहोत जोर से बोला... मादा पूरनचंद... :D :))

इतना सुनते ही मैं और मेरे साथी बहोत जोर जोर से हसने लगे और पूरनचंद सर को फिर मौका मिल गया हमें पीटने का... :(

 

बहोत याद आते हैं वो दिन....


साभार- मयंक नौनी, फेसबुक से

C.S.Mehta

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नाती बिश्वकप भोवे बे सुरु छु....
बचपन में हमें क्रिकेट खेलते देख कर एक बेफालतू टाइम बर्बाद करना समझकर हमें न खेलने देने वाले हमारे आमा बुबू लोगुं को देखो आज हम लोगुं से ज्यादा क्रिकेट में  जानकारी रख रहे है और बिश्व कप को देखने की पूरी तयारी में है all the best india

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बचपन हर गम से बेगाना होता है

हम लोग भी  बहुत शरारत किया करते थे..... ही ही वो.. गुण और बानर को पत्थर मारना.....


Source - facebook

C.S.Mehta

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मुझे आज अचानक  बुरांस के फूलों को देख कर अपने बचपन के दिन याद आ गए
जब हम लोग गांव घरों के आस-पास बुरांस के पेड़ो में चड़कर बुरांस के फूलों से निकलता हुआ मीठा मीठा रस पिया करते थे जिसे हम मोव के नाम से जाना करते थे बड़े खुसी के दिन हुवा करते थे वो

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अति सुंदर .. फोटो पन्त जी

मुझे याद है हम भी बचपन में इसी तरह क्रिकेट खेली है

पटांगन में क्रिकेट


फोटो - दीपांकर कार्की..

 

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