किशोर अवस्था में आकर क्रिकेट हमारा प्रिय खेल था| हालाकि प्लेन ग्राउंड न होने के कारण हम इसे अपने गाज्यो के मांग में खेलते थे| और जब से खेला तब से इसपर आजतक गाज्यो नही उगा| 10-12 सीडीनुमा लंबे खेत का ग्राउंड था हमारा| हम बीच वाले खेत में पिच बनाते थे| ऊपर के कोई रन नही थे| नीचे के ५-६ खेतो पर रन होते थे| उसके बाद गाड़ आ जाती थी, जिसके पार चौका और छक्का था| सबसे परेशानी ये थी की बाल हरा(खो) जाती थी| कभी कभी तो बाल गाड़ में बह भी जाती थी| हमारा खेलने से ज्यादा टाइम बाल दुदःदने में ही निकल जाता था|
आहा क्या बचपन याद दिला दिया ठेरा आप लोगो ने ..............बचपन में हम भी हिसालू खाने जाया करते थे हिसालू के काटे हाथ पैर में चुभते फ़िर भी हिसालू के स्वाद के आगे हम सब सह जाते थे. बचपन में हमारा सबसे पसंदीदा खेल था छुपन छुपी. हमें अपने गाव जाने का हमेशा इंतजार रहता था! अम्मा के साथ मन्दिर में भजन गाते थे! अम्मा रसोई की एक सीमा रेखा से अन्दर किसी को नही आने देती थी ! और अगर गलती से कोई रसोई में चला जाता तो उस दिन वो खाना ही नही खाती थी ! जब गावं में जागर लगता तो पहले पहले तो आवाजे सुनकर डर लगता था पर बाद में जगारियो के साहसिक करतब अच्छे लगते थे ! जागर के दिन तो मेला सा लगता था गाव में! मेरे गावं के रस्ते में एक गधेरा पड़ता था उसको हम पापा (बाज्यू) या चाचा के कंधे में चदकर पार करते थे. पेडो पर घंटो तक झुला झूलते और नोलो में जाकर पानी से खेल करते!अब कब आएंगे वो गाव वाले दिन ?
पन्द्रह अगस्त से जुङी हुई बचपन की कई यादें हैं.स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिये तैयारियां हफ़्तों पहले से शुरु हो जाती थीं. स्वतंत्रता दिवस के दिन सुबह-२ प्रभातफेरी का बङा उत्साह रहता था. प्रभात फेरी के दौरान लगाये जाने वाला एक नारा अब भी याद आ रहा है.अन्न जहां का - हमने खाया, वस्त्र जहां के - हमने पहनेवह है प्यारा -देश हमाराउसकी रक्षा कौन करेगा?- हम करेंगे, हम करेंगे, हम करेंगे...प्रभात फेरी के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम, जिसे देखने आस-पास के गांव से भी लोग आते थे. उसके बाद मिष्ठान्न वितरण और फिर छुट्टी....