क्या बात है अपने बचपन की याद दिलादी है वो बचपन क्या होता है न तो कुछ काम करना पड़ता है और न ही किसी की बातें सुनानी पड़ती हैं और न कोई टेंसन और न ही कोई नौकरी का टेंसन और न ही किसी का दर बस खाओ और मौज करो बस टाइम पर खाना मिलना चाहिए
वाह री बचपन की यादें,
वो रो-रो कर अपनी बातें मनवाना,
और अब उसी जिद पर अपने बच्चों को डराना,
वाह री बचपन की यादें,
वो रुठकर किसी कमरे में छिप जाना,
और अब अपने बेटे को आदर्श दिखाना,
वाह री बचपन की यादें,
वो स्कूल ना जाने का बहाना बनाना,
और अब बच्चों को उसी बहाने पर चांटा दिखाना,
वाह री बचपन की यादें,
वो काम ना करने के डर से पापा के पीछे छिप जाना,
और अब बेटी को उसी डर के लिये ससुराल याद कराना,
वाह री बचपन की यादें,
वो मीठा खाने को आधी रात को मचल जाना,
और अब बच्चों को दांतों के कीटाणु दिखाना,
वाह री बचपन की यादें,
वो खेत में जाकर पेड पर चढ जाना,
और अब बच्चों को पलस्तर का डर दिखाना,
वाह री बचपन की यादें,
वो पढने का मन ना होने पर मुंह बनाना,
और अब बच्चों को उनसे साथी के आगे निकल जाने से,
उनके हारने की मन में हर वक्त तस्वीर बनाना,
वाह री बचपन की यादें,
काश आज भी हम दे पाते अपने बच्चों को ,
वो प्यारा-न्यारा हमारा सा बचपन,
पर ये “जिद करो दुनिया बदलो” का नारा,
जिसमें खो गया है बच्चों का बचपन प्यारा,
चलो क्या करें, जैसी बीमारी होती वैसी दवा,
नये जमाने की है बस ऐसी ही बस हवा,
वाह री बचपन की यादें,
वाह री बचपन की यादें,