Author Topic: Lets Recall Our Childhood Memories - आइये अपना बचपन याद करें  (Read 51258 times)

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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बचपन के दिन
(mera bachpam)

बचपन के वो दिन
हम माटि के घर बनाया करते थे।
लडते थे झगडते थे
शोर मचाया करते थे।
पल भर मे रूठ जाते थे
फिर मनाया करते थे।
माँ बुलाया करती थी
हम कहा सुनी कर देते थे।
फिर दीदी पीटाई करती थी
आँखों मे आंसु आते थे।
रोते थे बिलखते थे
जीद पर आ जाया करते थे।
बस पापा से ही डरते थे
वो डराते थे धमकाते थे।
पर मारा कभी ना करते थे
आँखें फाड डराते थे।
स्यामत कभी जब आती थी
माँ के पिछे छुप जाते थे।
आखीर वो माँ की ममता थी
फिर हमे समझाया करती थी।
बचपन कहाँ समझता था
अठखेलीयों में ही पलता था।
पापा जुदा हमसे हुवे
माँ का सिंदूर लेते हुवे।
अपनी यादें देते हुवे
कह गये जाते हुवे।
गेहुं मनाई कर लेना
जो छुट गये कटे हुवे।

सुनदर एस नेगी
दिनांक 09-10-2007

हेम पन्त

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नेगी जी बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है आपने.. ऐसा लग रहा है जैसे आपने अपने जीवन की सच्चाई को ही कविता की पंक्तियों का रूप दे दिया हो...

Devbhoomi,Uttarakhand

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WAHA RAI BACHAPN

लिख रहा हूँ मैं बचपन की यादें संजोकर,
ये सोचा है कल ये, फंसाने बनेंगे।
जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे, गुनगुनाया करेंगे।
सुखों के समंदर में, दुःख के ये मोती,
हमारी खुशी को, बढ़ाया करेंगे।
ये थोड़े से दुःख हैं, है लम्बा ये जीवन,
जीवन में शायद, ये थोड़े पड़ेंगे।
जब कभी सुख से दिल ऊब जाया करेगा,
ये दर्दों के नगमे, सुनाया करेंगे।
जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे, गुनगुनाया करेंगे।
जीवन की उन तंग राहों में हमको,
ये तन्हा से आलम ही भाया करेंगे।
ये छोटा सा बचपन, ये तन्हा सा जीवन,
कल हमें याद आकर, रूलाया करेंगे।
जब कभी मौत का खौफ, दिल को डसेगा,
ये जीवन से हमको, डराया करेंगे।
जब कभी याद बचपन की आया करेगी,
याद करके इन्हे, गुनगुनाया करेंगे।
वक्त के गर्भ में, हम समा जायेंगे जब,
ये गोदी में हमको खिलाया करेंगे।

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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                   बचपन की यादें



सवेरा होते ही आँगन मे, रोने की आवाज होती थी।
शायद इसी बहाने कुछ मिल जाये, एक उमीद होती थी।

चाहे कोई कुछ भी कहे, बस नजर मम्मी पर रहती थी।
माँ की ममता निराली होती है, गोद मे बिठा कर दूध पिलाती।

अपने नरम हाथो से सहला- सहला कर, गालो से आंसु पोछती।
किसने मारा किसने डाँटा, बेटे को मेरे, बडे लोगो को डाँट लगाती।

एक वो बचपन था मेरा भोला भाला, हर चीज अन्जानी लगती थी।
खेल ही था तब, घर, स्कूल मेरा,  बाकी हर चीज वेगानी लगती थी।

सुन्दर सिंह नेगी 09 09 09

सुधीर चतुर्वेदी

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आज कुछ लिखने को दिल कर रहा है सोचा चलो बचपन की यादे ही याद कर लेते है वो दोड़ भाग, सम्पोलिया , लुक्को, चोर सिपाही खेलना आदि. बांजे गडो मे क्रिकेट खेलना कयोंकि फिल्ड मे बडे लोग खेलते थे बचपन मे फूटबाल होती नहीं थी तो प्लास्टिक की बाल से ही खेल लेते थे बारिश हो या धुप कोई फर्क नहीं कितनी चोटे लग जाये कोई गम नहीं आज तो चोट लगती है तो दर्द भी होता है उस समय बिलकुल भी नहीं हा रात को पड़ते समय दर्द याद आ जाता . रविवार के दिन सुबह - सुबह रंगोली देखना फिर ९ बजे से (रामायण/महाभारत/चंद्रकांता ) हा मुंगेरी लाल के हसीं सपने, नीम का पेड , मोगली आदि. दिन मे फिर मजबूरी मे किताब पड़ना की शाम को ४ बजे से पिक्चर देखना अगर कभी कभी कोई खेल आता था तो पिक्चर नहीं आती थी तो मायूस . टेलीविजन पर क्रिकेट देखना पसंद नहीं बचपन मे अब तो बहार खेल नहीं सकते तो टेलीविजन पर देखना दूर - दूर तक टेलीविजन नहीं होते थे जिसके घर मे टेलीविजन वहा पिक्चर हॉल जैशी भीड़. बचपन मे खूब भांगे की चटनी खाना आज तो देखने  को नहीं मिलती जब कभी अगर कुछ याद आता है तो वो बचपन और न जाने क्या वो बचपन के दोस्त आज कोई कही कोई कही मिलना मुश्किल बस यादो मे रह जाते है बचपन मे न कोई टेंशन न कोई चिंता बस खेल - कूद. जब कभी मोहल्ले मे किसी की शादी होती थी तो हफ्ते भर पहले से हमे बैचैनी बारात दूर जाती थी तो घर से नहीं भेजते फिर क्या दिल उदाश बस अगले दिन जाओ लोर मे भात - दाल खाओ और फिर वाही काम स्कूल मे नई कॉपी के पन्ने फाड़के नाव बनाना, जहाज बनाना और बहुत साडी चीजे.................................

सुधीर चतुर्वेदी

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हेम भाई इस यादगार टोपिक के लिये आपको एक करमा

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bachpan me hum Cheed Ke Pe da Phal (Thida) par rassi baad kar use ghumate the..

Shayad jisne pahad mai bachpan bitayaa hai usne jarur yah kiya hoga.

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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मैं कुछ यही ४ या ५ साल का रहा हूंगा, एक दिन मैंने जिद करदी की मैं भी काफल खाने जंगल जाऊंगा और रो रो कर इजा  बाबु को मना ही लिया और चल दिया बड़े भाई और उनके २ दोस्तुन के संथ काफल खाने, काफल का पेड़ अधितर घने जंगल मैं ही होता है, यह मेरा पहिला दिन था जब जंगल को गया था मैं बहुत खुस भी था हमने बहुत से काफल खाए भी और घर के लिए भी जोले मैं तोडे , भाई और उनके दोस्त थोडा बड़े थे और बड़े पडून  पर चढ़ जाते थे मैं छोटे छोटे पेड़ पर ही चढ़ पता था, जाते जाते  जंगल मैं हमें एक जगह गौल मिला तो हम उससे डर कर बिपरीत दिशा मैं चले गए और रस्ते से भटक गए अब हम घने जंगल मैं पहुच गए एक जगह हमें काफल से लादे हुए २ पेड़ मिल गए वाह क्या काले काले काफल लगे थे,भाई लोग बड़े पेड़ पर चढ़ गए छोटे पेड़ पर मैं चढ़ गया हमने खूब काफल तोडे, अब भाई लोग मुझसे पाहिले पेड़ से उतर गए मुझे जल्दी उतरने के लिए कहने लगे अब जैसे ही मैं उतरने लगा मेरे पेड़ की जड़ के कुछ ही दुरी पर एक बाघिन बैठी थी, मैंने भाई से कहा भाई देखो बिल्ली बैठी है, भाई और उनके दोस्त बोले ये बिल्ली नहीं बाघ है भागो......और वो लोग भाग गए मेरी तो पव के निचे से जमीं खिसक गयी मैंने अपनी दादी से सुना था की बाघ गला पकड़ देता है आंखें खा देता है जो एख्सर दादी मुझे डराने के लिए कहती थी अब हडबडाहट मैं मैंने पेड़ से कूद मार दी मेरे कूदने से बाघ तो भाग गया होगा लेकिन मैं दर से पशीना पशीना  हो गया और भाग खडा हुआ लगभग १ मील भागने के बाद तब कहीं जा के एक रास्ता मिला मेरे आंख मैं अंशु थे हाथ -पाँव कांप रहे थे वहां पर कुछ लोग थे उन्हने मेरी कहानी सुनी और मुझे घर तक पंहुचा दिया मेरे सारे संथी पाहिले ही घर आ कर रो रहे थे मुझे जिन्दा देखकर सब लोग बहुत खुश हुए आज भ बाघ के पहली बार दर्शन मुझे अच्छी तरह से याद है,
                                    

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Hamara Vachpan Bhi Kush yesa hi thaa.


Lalit Mohan Pandey

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बचपन मै मुझे चिडिया का घोसला देखने का बहुत शैक था, हम दिन भर चिडियाउ का घोसला ढूडने के चक्कर मै खेतु मै घूमते रहते थे. और अगर हमें कही घोसला मिल जाये तो बस फिर तो दिन भर उस के आस पास ही चक्कर लगते रहते थे, इस चक्कर मै बहुत बार चिडिया भी अपने घोसले मै नहीं जा पाती थी, तो कई बार कवुवा  (क्रो) या बिल्ली भी घोसला देख लेते थे और चिडिया के बच्चू को खा जाते थे. फिर हमें बहुत दुःख होता था. सोचते थे की अगली बार से ऐसा नहीं करेंगे लेकिन फिर कोए नया घोसला मिलता तो फिर से बार बार देखने का मन करने लगता था.

 

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