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Bhishma Kukreti:
हिन्दू मंदिर और भवन जु अब मुस्लिम इमारतें ब्वले जांदिन-भाग-2
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संकलन- सरोज शर्मा ( मूल शोधार्थी )
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12- बादलगढ़ कु राजपूति किला अब-अकबर कु किला
यू एक प्राचीन राजपूति किला च जु बादलगढ़ क किला क नाम से जंणै जांद, अब वामपंथी इतिहासकार झूठ मूठ बादलगढ किला थैं नष्ट हुयूं बतंदीन और ऐ कु पुनर्निर्माण कु श्रेय औरत खोर अकबर क्रूर अकबर थैं दिंदिन,
13- फतेहपुर सीकरी क राजपूति राजप्रासाद- अब अकबर कु महल, यू सीकर राजपूतो क महल च यी पूरी तरह हिन्दू मंदिर च और जैन मंदिर शैली मा बणयू साफ लगद, क्रूर जननाखोर अकबर न अपण बुबा जन हिन्दू मंदिरो थैं तुड़वै,
14- हिन्दूओ क इलाहाबाद क किला-अब अकबर क किला
अकबर से शताब्दियो पूर्व इलाहाबाद क किला विधमान छा, किला का भितर अशोक स्तम्भ पातालेशवर मंदिर और अक्षय
अक्षय वट कु अस्तित्व भि प्रमाणित करद कि यू किला अत्यंत प्राचीन च, सम्राट हर्ष वर्धन संगम तट पर दान करण कु लोग आंदा छा, वि यै किला मा ही ठैरदा छाई, संगम तट मा नहेण कु विस्तृत घाट बणयू छाई, जैथै अकबर न तुडै दयाई, किलै कि यख साल भर धर्म प्रेमियो क जमघट लगयू रैंद छा जु क्रूर गंवार अनपढ़ थै खतरा कु आभास करांद छाई, अय्याश शाहजहां का स्मृति ग्रंथो मा दावा कियै ग्या कि इलाहाबाद मा 48- हिन्दू मंदिरो थै नष्ट कियै ग्या,
15 - भद्र काली मंदिर, करणावति- अब जामा मस्जिद अहमदाबाद
जामा मस्जिद क नाम से बुलयै जांण वलि अहमदाबाद कि प्रमुख मस्जिद पुरातन भद्र काली मंदिर छा, वू नगर क अराध्य देवी कु स्थान छाई, यै मंदिर क बढ़ भाग अब कब्रिस्तान का रूप मा उपयोग हुंदिन, संगतराशी का फूल, जंजीर, घंटियां और गवाक्षो जन हिन्दूओ क मंदिर क लक्षण स्पष्ट रूप से दिखै जंदिन, देवालय कि द्वी आयताकार चोटियो मा एक बिल्कुल उडै दयाई, उन्मत्त मुस्लिम विजेताओ का नगर मा प्रविष्ट हूण क दौरान ह्वाई होलू,
16- रूद्र महालय मंदिर, सिध्द पुर, गुजरात- अब जामी मस्जिद
सन 1414 मा गुजरात क सुल्तान अहमद शाह न अपण राज्य मा हिन्दूओ क मंदिर नष्ट कनकु एक अधिकारी नियुक्त कैर, वै न यू कार्य सफलतापूर्वक संपन्न कैर, अगल बर्ष सुल्तान खुद सिध्द पुर गै और सुप्रसिद्ध रूद्र महालय थै तोड़िक मस्जिद मा बदल दयाई, कुख्यात नृशंस अत्याचारी शाह महमूद वर्धरा कु शासन काल अभि हूण शेष छा ( अशोक मजूमदार स्त्रोत)
17- दिल्ली क सबसे बडु मंदिर-अब जामा मस्जिद
पुरणी दिल्ली स्थित जामा मस्जिद भि जबर्दस्ती हथयू हिन्दू मंदिर च, इब्न बतूता, तैमूर लंग आदि मुसलमानो न साफ साफ लिखयूं च कि वू हिन्दू मंदिर छाई,
18- वाग्देवी क मंदिर- धार- अब कमादुदौला मस्जिद
यै मंदिर कि स्थापना परमार क्षत्रियो क महान राजा भोज न 1034 मा करै छै, जू विद्वान, संज्ञीतज्ञ, साहित्यकार, कवि आदि गुणो से सम्पन्न छा, ऊंका लिखयां ग्रन्थ अब उपलब्ध छन, वू मां सरस्वती का परमभक्त छा, ऊन अपण राजधानि धार मा वाग्देवी क मंदिर स्थापित कैर छा, कुछ वर्ष पैल तथाकथित मस्जिद क कुछ अंश उखड़िक ताल गिरिन त वै क प्रसतर फलक मा संस्कृत नाटक उत्कीर्ण छा, अब साबित ह्वै ग्या कि सरस्वति कंठाभरण नामकु स्मारक संस्कृत साहित्य क अनूठा पुस्तकालय क रूप मा छाई, यै मंदिर मा स्थापित वाग्देवी कि मूर्ती ब्रिटिश संग्रहालय मा रखीं च।
19- राजपूती महल- अब अकबर क मकबरा
इतिहासकारो क बोलण च अकबर क यख दफणै जांण से पैल यू सिकंदर लोधी कु राजमहल छाई पर सिकंदर लोधी भि यी नि बणवै छाई, यू भि एक अधिग्रहित राजपूती भवन छा, विसेंट स्मिथ क बोलण च कि अकबर कु अंतिम संस्कार अत्यंत गोपनीय रूप से कियै ग्या जै से सिध्द हूंद कि वै थैं वखी दफनै ग्या जख बिमारी क बाद वै का प्राण निकलीं,
हिन्दूओ कु जागृत हूण जरूरी च।
सोत्र- पी के ओक, इतिहास की भयंकर भूलें

Bhishma Kukreti:
जजिया कर:मुस्लिम आतंकवाद कु एक पक्कू प्रमाण
सरोज शर्मा (मूल शोधार्थी )
भारत मा आतंकवादी मुस्लिम शाशको कु हिन्दू और भारत का आदिवासियों पर कै तरै से आत्याचार कियै ग्या अभि खुलकै कम ही लिखै जाणू च,
जजिया कर भि मुस्लिम शाशको क आतंकवाद कु एक उदाहरण च,
जजिया एक प्रकार कु धार्मिक कर च यै थैं मुस्लिम राज्य मा रैण वल गैर मुस्लिम जनता से वसूलै जांद,
इस्लामी राज्य मा केवल मुस्लिम थैं ही रैण की अनुमति छै, अगर क्वी गैर मुस्लिम वै राज्य मा रैण चा त वै थैं जजिया दीण पव्ड़द छाई,यी दीण क बाद मुस्लिम राज्य मा गैर मुस्लिम अपण धर्म क पालन कैर सकद छा,
भारत मा जजिया कर
भारत मा जजिया कर लगाण कु प्रथम साक्ष्य मुहम्मद बिन कासिम का आक्रमण क बाद देखणा कु मिलद, सबसे पैल वैल ही भारत क सिन्ध प्रान्त का देवल मा जजिया कर लगै,
यैका बाद जजिया कर लगाण वल दिल्ली सल्तनत कु प्रथम सुल्तान फिरोज तुगलक छा, यै न जजिया थैं भू-राजस्व से निकालिक एक अलग कर का रूप मा वसूल, यै से पैल बामणो थैं ये कर से मुक्त रखै ग्या छाई, यू पैल सुल्तान छाई जैन बामणो पर भी कर लगै, यै का विरोध मा बामणो न भूख हड़ताल कैर दयाई, फिर भि फिरोज तुगलक न ध्यान नि दयाई, अन्त मा दिल्ली क जनता न बामणो कु कर खुद दीणकु निर्णय कैर, यै क बाद सिकंदर लोदी न भी जजिया लगै,
दिल्ली सल्तनत क फैलण से जजिया कर कु क्षेत्र भी बड़ ग्या, अलाउद्दीन न कर नी दीण वलो थै गुलाम बणाण कु कानून बणैं, जाहिल हत्यारू खिजली द्वारा गुलाम बणयै जाणकि प्रक्रिया मुस्लिम आतंकवाद क गुणो थैं दर्शान्दू च, वै का इन लोगो थैं गुलाम बणैकि सल्तनत का शहरू मा बेचदा छा, जख गुलाम श्रमिको कि बड़ मांग हूंद छै,
मुस्लिम दरबारी इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी न लिख कि बयानह का काजी मुध्सुदीन न अलाउद्दीन थैं सलाह दै कि जजिया लगाण सुल्तान कु मजहबी फर्ज च,जै से हिन्दुओ थैं अपमानित कियै जा,सल्तनत क भैर भी मुस्लिम शशको न जजिया लगै, कश्मीर मा सर्व प्रथम जजिया कर सिकंदर शाह द्वारा लगयै ग्या, यू धर्मान्ध शाशक छाई, येन हिन्दुओ पर भारी अत्याचार कैन, वै का बाद येकु पुत्र आबदीन (1420-70ई )मा शाशक बण जैन सिकंदर क लगयूं जजिया कर थैं समाप्त कैर दयाई, जजिया कर समाप्त करणवल यू पैल शाशक छाई,
गुजरात मा सबसे पैल जजिया क्रूर हत्यारू जाहिल अहमदशाह (1411-42ई ) का समय लगयै ग्या, वैल इतगा कड़ाई से जजिया वसूल कि हिन्दु मुस्लिम बणन कु मजबूर ह्वै गैं, यै से बड़ प्रमाण क्या होलू मुस्लिम आक्रान्ता जनजातीय आतंकवादी छाई,
शेरशाह क समय मा जजिया थैं नगर कर कि संज्ञा दियै ग्या,
जजिया कर समाप्त करणवल पैल मुगल शाशक अनपढ अकबर छाई, अकबर न 1564 ई मा जजिया कर खत्म कैर दयाई, लेकिन फिर 1575 ई मा दुबरा लगै दयाई, यैक बाद 1579ई मा फिर खत्म कैर दयाई, यैका बाद औरंगजेब न 1679 ई मा जजिया कर लगै दयाई, वैका राज्य मा हिन्दुओ न विद्रोह भि कैर, बीच बीच मा कुछ जगहो से जजिया हटयै ग्या, 1712 ई मा दाराशाह न अपण मंत्री जुल्फिकार खां व असद अली खां क बोलण से जजिया विधिवत रूप से समाप्त कैर दयाई, यै क बाद फारूखशियर न 1713 ई मा जजिया हटै दयाई, पर 1717 ई मा पुन:लगै दया, अन्त मा 1720ई मा मुहम्मद शाह रंगीला न जयसिंह क अनुरोध पर जजिया हमेशा खुण समाप्त कियै कैर दयाई।

Bhishma Kukreti:
किरातार्जुनीयम् : उत्तराखंड हेतु गर्व
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- उषा बिजल्वाण
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किरातार्जुनीयम् (अर्थ : किरात और अर्जुन की कथा) महाकवि भारवि द्वारा सातवीं शती ई. मा रचित महाकाव्य छ।जैतै संस्कृत साहित्य का 'वृहत्त्रयी' मा स्थान प्राप्त छ। महाभारत मा वर्णित किरात वेशधारी शिव का साथ अर्जुन का युद्ध की लघुकथा तै आधार बणैक कवि न राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, समाजनीति, युद्धनीति, जनजीवन आदि कू मनोरम वर्णन थेकरी। यह काव्य विभिन्न रसों से ओतप्रोत रचना छ।किन्तु वीर रस प्रधान छ।१] संस्कृत का छः प्रसिद्ध महाकाव्य छन जू– किरातार्जनुयीयम्‌ (भारवि), शिशुपालवधम्‌ (माघ) और नैषधीयचरितम्‌ (श्रीहर्ष)– बृहत्त्रयी से जाणे जांदिन कुमारसम्भवम्‌, रघुवंशम् और मेघदूतम् (तीनों कालिदास द्वारा रचित) - लघुत्रयी कहलौंदन।[2] संस्कृत मा किरातार्जुनीयम्‌ की कम से कम ३७ टीकाएँ छन, जूंमा मल्लिनाथ की टीका घण्टापथ सर्वश्रेष्ठ छन। सन १९१२मा कार्ल कैप्पलर न हारवर्ड ओरियेंटल सीरीज का अंतर्गत किरातार्जुनीयम् का जर्मन अनुवाद करी। अंग्रेजी मा भी येका भिन्न-भिन्न भागों मा छः से अधिक अनुवाद छन। राजनीति और व्यवहार-नीति मा भारवि का विशेष रुझान का चलदा यह युक्तियुक्त ही थौ कि वेवूकिरातार्जुनीयम्‌ का कथानक महाभारत से उठौंदा। वूनवनपर्व के पाँच अध्यायों से पांडवों का वनवास का समय अमोघ अस्त्र तै अर्जुन द्वारा किए गै शिव की घोर तपस्या का फलस्वरूप पाशुपतास्त्र प्राप्त करना का छोटा-सा प्रसंग तै उठैक अठारह सर्गों का ये महाकाव्य कू रूप दीनी। जब युधिष्ठिर कौरवों का साथ संपन्न द्यूतक्रीड़ा मा सब कुछ हारगिन तब वूंतै अपणा भाइयों एवं द्रौपदका साथ १३वर्ष कू वनवास पर जाण पड़ी।वूंका अधिकांश समय द्वैतवन मा बीती। वनवास का कष्टों से खिन्न ह्वैतै और कौरवों द्वारा करी गै साजिश तै याद करीक द्रौपदी युधिष्ठिर तै अक्सर प्रेरित करदी छै कि वूज्ञयुद्ध की तैयारी करों और युद्ध का माध्यम से कौरवों से अपणा राजपाठ वापस ल्यों। भीम भी द्रौपदी की बातों कू पक्ष लेंदा छा। गुप्तचर का रूप मा हस्तिनापुर भेजे गए एक वनेचर (वनवासी) से सूचना मिली कि दुर्योधन अपणा सम्मिलित राज्य का सर्वांगीण विकास और सुदृढ़ीकरण ममा दत्तचित्त छ, कीक की कपट-द्यूत से हस्तगत किए गए आधा राज्य की पांडवों से आशंका छ। पांडवों तै भी लगदू छौ कि वनवास की अवधि समाप्त होणा पर वूंकू आधा राज्य बिना युद्ध का वापस नी मिल सकदू। द्रौपदी और भीम युधिष्ठर तै वनवास की अवधि समाप्त होणा की प्रतीक्षा न कर दुर्योधन पर तुरंत आक्रमण तै उकसौंदा छा, लेकिन आदर्शवादी, क्षमाशील युधिष्ठिर व्यवहार की मर्यादा लाँघणक तैयार नी छा। दुसरी तरफ व्यास सलाह देंदा छा कि भविष्य का युद्ध पांडवों तै अभी बिटिन शक्ति-संवर्धन कर्यूं चैंदू। वूंका द्वारा बताए गए उपाय सेअर्जुन शस्त्रास्त्र तै इन्द्र (अपने औरस पिता) तै तप से प्रसन्न करना तै एक यक्ष का मार्गदर्शन मा हिमालय-स्थित इन्द्रकील पर्वत की ओर गैन वख एक आश्रम बणैक तपस्या का फलस्वरूप अप्सराओं आदि तै भेजीक परीक्षा लेणा का बाद इंद्र एक वृद्ध मुनि का वेष मा उपस्थित हौंदनऔर तपस्या तै नाशवान लौकिक लक्ष्य तै निःसार बतैक परमार्थ की महत्ता का निदर्शन करदन। अर्जुन येकी काट मा कौरवों द्वारा किए गै छल एवं अन्याय का लेखा-जोखा प्रस्तुतकर शत्रु से प्रतिशोध लेणा की अनिवार्यता, सामाजिक कर्तव्य-पालन तथा अन्याय का प्रतिकार का तर्क देकर इंद्र तै संतुष्ट करदन। फलस्वरूप इंद्र अपणा वास्तविक रूप मा प्रकट ह्वैक अर्जुन तै मनोरथ-पूर्ति का खातिर शिव की तपस्या करना की सलाह देंदन।त अर्जुन फिर से घोर, निराहार तपस्या मा लीन ह्वै जांदन। अर्जुन इंद्रकील तै एक अजनबी तपस्वी छन,जटा ,वल्कल और मृगचर्म त वूंका पास छन पर साथ ही शरीर मा कवच भी छा, यज्ञोपवीत की जगह प्रत्यंचा-समेत गांडीव धनुष छा, द्वी विशाल तरकस छन और एक उत्तम खड्ग भी। वैतै मुनिधर्म-विरोधी समझीक वख का अन्य तपस्वी आतंकित छा और शंकर का पास निवेदन तै पौंछ गिन ये क्रम मा शिव जी किरातों की स्थानीय जनजाति के सेनापति कू वेश बणैककिरातवेशधारी अपणी गणों की सेना लीकअर्जुन का पास पहुँच जांदन। तभी 'मूक' नाम कू एक दानव अर्जुन की तपस्या तै देवताओं कू कार्य समझीक, विशाल शूकर कू शरीर धारण करीक, वैतै मारनक झपटदान। शिव और अर्जुन दुयों द्वारा एक साथ चलाए गए एक-जना बाण से सूअर की जीवनलीला समाप्त ह्वै जांदी। शिव कू बाण वैका शरीर तै बेधीक धरती मा धँस जांदू और अर्जुन जब अपणा बाण वैका शरीर से निकालदन त शिव अपणा एक गण तै भेजीक विवाद खड़ू करदेंदान। परिणामतः दुयौंका बीच युद्ध आरम्भ ह्वै जांदू। अर्जुन गणों की सेना तै बाण-वर्षा से भगौंणम मजबूर कर देंदान। पर शिव का साथ युद्ध मा परास्त ह्वै जांदन। पराजय से हताश अर्जुन किरात-सेनापति का वेश मा शिव तै पछाणिक समर्पण कर देंदन, जैसे प्रसन्न ह्वैक शिव प्रकट होंदन और पाशुपतास्त्र प्रदानकर वैतै प्रशिक्षण देंदन । ये तरह अर्जुन कू मंतव्य पूरा होणा का साथ महाकाव्य-विधा का भी सारा मंतव्य सिद्ध ह्वै जांदन। काव्य सौन्दर्य भारवि अपणा अर्थ-गौरव (गहन भाव-सम्पदा) तै जानण जांदन—‘उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्‌’। ये अर्थ-गौरव से मेल खांदू एक विदग्ध भाषा और अभिव्यक्ति-कौशल वूंकी सम्पदा छ। राजनीति और व्यवहार-नीति सहित जीवन का विविध आयामों मा वूंकी असाधारण पैठ छ। आदर्श और व्यवहार का द्वंद्व तथा यथार्थ जीवन का अतिरेकों का समाहार से अर्जित संतुलन वूंकी लेखन तै ‘समस्तलोकरंजक’ बणौदू। लेकिन भारवि मूलत: जीवन की विडंबनाओं और विसंगतियों का कवि छन, वूंका सामना करदन और वूंक खुरदुरा यथार्थ का बीच संगति बिठौणाकू प्रयास करदन । किरातार्जुनीयम्‌ का पहला सर्ग मा द्रौपदी और दूसरा में भीम द्वारा युधिष्ठिर तै दुर्योधन का विरुद्ध युद्ध की घोषणा तै उकसौणू और युधिष्ठिर द्वारा वैते अनीतिपूर्ण बतैक अस्वीकार कर देणा का क्रम मा भारवि न राजनीति का दुइ छोरों का बीच का द्वंद्व पर भौत सार्थक विमर्श प्रस्तुत करी। ये तरह ग्यारहवां सर्ग मा

Bhishma Kukreti:
शिक्षा क विषय-प्राचीन भारतीय शिक्षा
3- भाग
सरोज शर्मा (मूल शोधार्थी)
प्राचीन भारतीय शिक्षा कु इतिहास सहस्त्रो वर्ष कि लम्बी अवधि मा लिखै ग्या। इलै यू भौत विशाल च याद संस्कृत साहित्य मा परिवर्तनशील एक विशिष्ट काल कि ओर संकेत करदन, वै का माध्यम से वैदिक काल से लेकि अपण समय तक कि सरया साहित्यिक रचनाओं कि श्रिंखला कु पूर्वाभ्यास करै,स्मृति कालीन विद्यार्थियो क पणण कु वेदों, बामणो, उपनिषदो और सूत्रो काल कि सरया मुख्य रचनायें छै ,
ईसा पूर्व पन्द्रह सौ शताब्दि तक अधिकांश वैदिक मंत्रो क सम्पादन कु कार्य पूर्ण ह्वै गै छा, वैक बाद वेदो क अर्थ बोध का खुण जौं टीकात्मक और चर्चात्मक ग्रन्थो क विकास ह्वाई, जु ब्राह्मण ग्रन्थो क नाम से प्रतिष्ठित हुयीं, ये काल मा बिद्वानो कि प्रतिभा कु उपयोग वेदों क स्वरूप कि रक्षा और अर्थो का स्पष्टीकरण मा कियै ग्या, ना कि नै रचनाओ क निरूपण मा, फलत: वैदिक यज्ञो से सम्बंधित अनेक सिधांतो मतवादो, रीतियों कु विवेचन बामणो म हूण लगी, विद्वानो न विषेश रूप से अपण साधना केन्द्र यज्ञो क कर्मकांड थैं बणै, परिणामस्वरूप कर्मकांडो मा जटिलता ऐ गै, दूसर ओर वेदों क दार्शनिक प्रवृति कु विकास ह्वै और वैन उपनिषद क रूप मा पूर्णता प्राप्त कैर।
कालांनुक्र्म से वेदारिक्त साहित्य मा भि बृधि ह्वै। यै वर्धमान साहित्य मा पारंगत हूण भि एक आदिम क सामर्थ्य से भैर कि बात छै। वै काल मा मुद्रण की कला कु विकास नि ह्वै छै, इलै वैदिक साहित्य क लोप ह्वै जाण कु भय रैंद छा, साहित्य-सुरक्षा क दृष्टिकोण कि वजा से अध्ययन क्षेत्र द्वी भागो मा विभाजित करै ग्या।
वैदिक पंडितो मा से कुछ थैं कंठस्थ करण कु काम सौंप दयाई, जनकै कि साहित्य क स्वरूप अक्षुण्ण बणयू रा, अन्य विद्वानो थैं टीकाओं निरूत्तों और शब्दकोश आदि क अध्ययन कैरिक यूंकि व्याख्या करण मा अपणी प्रतिभा क प्रदर्शन कु मौका दियै ग्या, यै काल मा हिन्दु मेघा कि सबसे अधिक निर्णयात्मक एवं रचनात्मक प्रतिभा कु उदय ह्वाई, फलस्वरूप शिक्षा, दर्शन, न्याय, महाकाव्य, भाषाविज्ञान, व्याकरण, ज्योतिष, निरूक्त, कल्प, अनेक कलाओ, व्यवहारिक विद्या, आदि का क्षेत्रो मा महत्वपूर्ण सफलताये प्राप्त हूंई, यूं ग्रन्थों का विद्वानो न अपण विद्यार्थियो कि सुगमता खुण विषयो क नवीनीकरण कैरिक संक्षेप मा एकत्रित कैर दयाई,उपनिषदो और सूत्रो क काल मा (ई पूर्व प्रथम सहस्त्राब्दि) लेखन कला कु ज्ञान हूणक बाद भि यूं थैं लिपिबद्ध नि कियै ग्या किलै कि वैदिक मंत्रो थैं लिपिबद्ध करण अधार्मिक मनै जांद छा, यै काल मा ही वैदिक चरणो क आधार पर विद्वानो न धर्म सूत्रो मा एक नै साहित्य कि रचना भि कैर दयाई, उपर्युक्त संस्कृत-वाम्डय का परिवर्तनशील इतिहास मा नजर मरदा हुयां हम वैकि विविधता और विशालता कु सरलता से अनुमान लगै सकदां,
स्मृतियों मा यी सरया वांग्मय मा वर्णित सामाजिक रीतियों, धार्मिक कर्मकांडो, और संस्कारो कु सर्वेक्षण कियै ग्या,
वस्तुत:स्मृतियां एक विशाल समाज थैं लक्ष्य कैरिक बणयै गैं, स्मृति ग्रन्थो मा हम यै साहित्य कि ही उल्लेख कि आशा रखदौ, यूं मा गृहसूत्रो, धर्मसूत्रो, उपनिषदो और मीमांसाओ मा पैल से विधमान श्रेष्ठ प्रथाओं,रीतियों, मान्यताओं और संस्कारो कू संकलन कियै ग्या, यै काम मा मनुस्मृति न सबसे ज्यादा सफलता हासिल कैर,
मनु न तीन वेदों थैं श्रुति बवाल ,यी तीन वेद ही संस्कृत साहित्य कि पैल कड़ी छन, वैदिक मंत्रो कु विकास चरणों क रूप मा ह्वाई, जौं थैं वांछित शाखाओ क ज्ञान पुरोहित वर्ग अवश्य प्राप्त करदु छा, मंत्र, ब्राह्मण, शाखा थैं पढ़यू ऋग्वेदी, वेदो का पारगामी, सरया शाखाओ कु ज्ञाता ऋत्विज और वेद पैढ़िक पारंगत हुयूं विद्वान ब्राह्मण थैं विशिष्ट सम्मान प्राप्त छा, तीन वेदो कु ज्ञाता त्रिवेदी बोलै जांद छाई,
मनुस्मृति मा अध्ययन खुण वेदो का कुछ अंश प्रमुख रूप से पारित किए गैं, ऐ काल मा धार्मिक क्रियाओं और प्रायश्चितो से शुद्धीकरण कि प्रक्रिया कु विस्तार ह्वै गै छाई, विशिष्ट मौको मा वेदो कि कुछ ऋचाओं कु उच्चारण क महत्व बड़ ग्या, मनुस्मृति मा यूं ऋचाओ क उल्लेख मिलद, यूंका उच्चारण संतुलन नियमानुसार हूण चैंद जै से पापों से मुक्ति पयै जा, ब्राह्मण अथर्ववेद कि अंगरिस श्रुति क प्रयोग शत्रु नाश खुण करदा छाई, स्नातको थैं रोज स्वाध्याय पाठ मा ब्राह्मण ग्रन्थों कु अध्ययन खुण प्रोत्साहित किये ग्या, मनु न ऐतरेय ब्राह्मण (6,2)का सुब्रह्मण्यम नौ क मंत्रो और ऐतरेय ब्राह्मण (8, 13-16)और बह्वृच ब्राह्मण मा वर्णित शुन:शेप गाथा कु भि उल्लेख मिलद।

Bhishma Kukreti:
नीलकण्ठ मंदिर पौड़ि गढ़वाल

बड़ मान्यता च यैकि
सरोज शर्मा गढ़वाली पाॅप लिटरेचर संख्या -196
सरोज शर्मा

गढ़वाल उत्तरांचल मा हिमालय पर्वतो क तल मा बसयूं ऋषिकेश मा नीलकण्ठ महादेव मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थल च ।
नीलकण्ठ महादेव मंदिर ऋषिकेश का सबसे पूज्य मंदिरो मा से एक च ।बोलै जांद कि भगवान शिव न यखमा हि समुंद्र मन्थन से निकलयूं विष कु पान कैर छा, यै से ऊंक कंन्ठ नीलू पोड़ ग्या यै कारण ऊंथै नीलकण्ठ ब्वलै ग्या।
अत्यन्त प्रभावशाली यी मंदिर भगवान शिव थैं समर्पित च।
मंदिर परिसर मा एक झरना च जैमा भक्त गण दर्शन से पैल स्नान करदिन।
नीलकण्ठ महादेव मंदिर ऋषिकेश से लगभग 3500 फीट क ऊंचै मा स्वर्गआश्रम (उदयपुर पट्टी) कि पहाड़ी कि चोटि मा च।
मुनि कि रेती से नीलकण्ठ महादेव मंदिर सड़क मार्ग से 30-35 किलोमीटर, और नाव न 25 किलोमीटर कि दूरी मा च।
विशेषता
मंदिर क नक्काशी भौत सुंदर च, मनोहारी मंदिर शिखर क तल मा समुद्र मंथन कु दृष्य चित्रित कियै ग्या और गर्भ गृह का प्रवेश द्वार मा एक विशाल चित्र भगवान शिव थैं विष पींद दिखयूं च।समणी पहाड़ि मा पार्वती जी कु मंदिर च इति

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