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Bhishma Kukreti:
महासू देवता मंदिर, हनोल, चकरोता, जनपद देहरादून
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सरोज शर्मा कु जनप्रिय लेख श्रृंखला
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प्रकृति कि गोद मा मनोरम और सुरम्य वातावरण म उत्तरकाशी का सीमांत क्षेत्र म टौंस नदी क तट पर बसयूं हनोल स्थित महासू देवता मंदिर कला और संसकृति की अनमोल धरोहर च।
लम्बा समय से हुयीं उकताहट और दुर्गम रस्ता से हुंई थकान मंदिर म पौंछदा ही छूमंतर ह्वै जांद। एक नै ऊर्जा क संचार ह्वै जांद।
महासू एक देवता ना बल्कि चार देवताओ क सामूहिक नौ च।
स्थानीय भाषा म महासू महाशिव क अपभ्रंश च।चारों महासू भाईयो क नौ बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू, (बैठा महासू) ,और चालदा महासू च।
जु कि भगवान शिव क हि रूप च।
उत्तराखंड का उत्तरकाशी, संपूर्ण जौनसार-बावर क्षेत्र, रंवाई परगना क साथ साथ हिमाचल प्रदेश क सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर और जुब्बल तक महासू देवता कि पूजा हूंद। यूं क्षेत्र मा महासू न्याय क देवता और मंदिर न्यायालय मनै जांद ।
आज भि महासू देवता क उपासक मंदिर म न्याय कि गुहार और अपणि समस्याओ क समाधान मंगदा देखै जाला।
महासू देवता का उत्तराखंड और हिमाचल मा कई मंदिर छन, जौंमा अलग अलग रूपों और स्थानो म पूजा हूंद।
टौंस नदी क बांय तट पर बावर क्षेत्र म हनोल मंदिर म बूठिया महासू और मैन्द्रथ नौ क स्थान म महासू कि पूजा हूंद। पबासिक महासू कि पूजा टौंस नदी क दैण तट पर बंगाण क्षेत्र म स्थित ठरियार, जनपद उत्तरकाशी नौ का स्थान पर हूंद। मंदिर क पुजरी श्री सूतराम जोशी और मंदिर समिति सदस्य श्री बलिराम शर्मा क अनुसार टौंस नदी क बांय तट पर बावर क्षेत्र क हनोल स्थित मंदिर चारों महासू देवताओ क मुख्य मंदिर च और ऐ मंदिर म मुख्य रूप से बूठिया महासू तथा हनोल से दस किलोमीटर दूर मैन्द्रथ नौ क स्थान पर बासिक महासू कि पूजा हूंद, पबासिक महासू कि पूजा टौंस नदी क दैंण तट पर बंगाण क्षेत्र मा स्थित ठडियार, जनपद उत्तरकाशी नौ क स्थान म हूंद। सूरतराम जोशी और पंडित बलिराम शर्मा पुजारी क अनुसार मंदिर म सुबेर और शाम नौबत बजद। और दिया बत्ती किए जांद। मंदिर क पुजारी खुण कठोर नियम छन जौंकु पुजारी थैं पालन करण पव्ड़द। पुजरी एक समय ही भोजन करद।बूठिया महासू क हनोल मंदिर म निनुस, पुट्टाड़ और चातरा गौं का पुजरी पूजा करदिन जबकि मैन्द्रथ स्थित बासिक महासू मंदिर म निनुस, बागी और मैन्द्रथ गौं क पुजरी पूजा करदिन। द्विया मंदिर म प्रतेक गौं का पुजरी क्रम से एक एक मैना पूजा करदिन। और ऊंथैं सब्या नियमों क पालन करण पव्ड़द। टौंस नदी क दैण तरफ वल तट पर उत्तरकाशी का बंगाण क्षेत्र का ठडियार स्थित पबासिक महासू क मंदिर म केवल डगलू गौं क पुजरी ही पूजा करद। चालदा महासू भ्रमण प्रिय देव छन, इलै यूंकि अलग अलग स्थानो म पूजा हूंद। जैखुण निनुस, पुट्टाड़, चातरा और मैन्द्रथ गौ का पुजरी क्रमानुसार देव डोलि क साथ चलदिन और उपासना स्थलो म विधि विधान से पूजा अर्चना करदिन।
हनोल मंदिर तीन कक्षो म बणयूं च मंदिर म प्रवेश करदा हि पैल कक्ष (मण्डप) एक आयताकार हाॅल च जैमा बैठिक बाजगी और नौबत बजयेजांद, किलैकि मंदिर क मुख्य मण्डप म महिलाओ क प्रवेश वर्जित च इलै महिलाए ऐ कक्ष म बैठिक ही महासू देवता का दर्शन पूजा अर्चन क बाद प्रसाद ग्रहण करदिन। ऐ कक्ष कि आंतरिक दीवार म एक छवट सि द्वार च जैसे पुरुष ही मण्डप म प्रवेश कैर सकदन,
मुख्य मण्डप एक बढ़ वर्गाकार कमरा च, जैका बांया तरफ महासूओ का चारों वीर कफला वीर, (बासिक महासू) गुडारू वीर (पबासिक महासू) कैलू वीर (बूठिया महासू) और शैडकुडिया वीर (चालदा महासू) का छवट छवट मंदिर स्थित छन ऐ कक्ष म मंदिर क पुजरी और अन्य पश्वा ( वु लोग जौं पर महासू देवता आंद और भक्तो कि समस्याओ क समाधान करद) बैठदा छन। मंदिर क ऐ कक्ष म ही गर्भ गृह खुण छवटु सि दरवजा च जैमा केवल पुजरी ही प्रवेश कैर सकद। गर्भ गृह म भगवान शिव क प्रतिरूप महासू देवता की मूर्ती स्थापित च गर्भ गृह म एक स्वच्छ अविरल जलधारा बगणीं रैंद भक्तो थैं ई जल प्रसाद क रूप म दिऐ जांद। ऐका अलावा एक दिव्य ज्योति सदैव जलणी रैंद गर्भ गृह पूर्णतया पौराणिक च। पुरातत्व विभाग क अनुसार ऐकु छत्र नागर शैली क बणयूं च। ऐका अलावा मण्डप और मुख्य मण्डप क निर्माण बाद मा किऐ ग्या ।
ऐ मंदिर कि निर्माण शैली उत्तराखंड क मंदिरो से भिन्न भिन्न और विशिष्ट करद। किलैकि ऐ कि सब्या लकड़ी और धातु न निर्मित अलंकृत छतरियों से युक्त च। वासतुकला कि दृष्टि से मंदिर निर्माण नौवीं शताब्दी म मनै जांद।
मंदिर म प्रसाद क रूप म आटु और गुढ़ चढै जांद, स्थानीय भाषा म कड़ाह
बवलदिन कडाह क दगड़ 24 रूप्या कि भेंट चढ़ै जांद। कई श्रद्धालु मंदिर म बकरा बि अर्पित करदिन, परन्तु बकरा अर्पित कनक द्वी रूप छन पैल पैल ई कि बकरा पर अभिमंत्रित जल छिड़किक सिरहन देकि देवता थैं अर्पित किए जांद। ऐ थैं स्थानीय भाषा म धूण बवलदिन, जैसे मनै जांद कि देवता न भेंट स्वीकार कैर याल वैक बाद वै थैं जीवित छोड़ दिऐ जांद। इन बकरा मंदिर क परिसर और हनोल गौं मा इनै वुनै घुमदा दिखै जंदिन। यूं बकरों थैं घाण्डुआ बवलदिन। और यूं थैं देवता क जीवित भंडार मनै जांद। अब देवता जन भि राख पर यूं थैं हथियार से नि मरै जांद। दुसर रूप म बलि दिऐ जांद ऐका बारा म लोग बवलदिन मंदिर म बलि प्रथा खत्म ह्वै ग्या और कुछ बवलदिन कि बलि मंदिर परिसर क भैर दिऐ जांद। महासू देवता शिव का प्रतिरूप छन और शिव थैं कखि भी बलि नि दिऐ जांद ।

Bhishma Kukreti:
सिंगापुर क लोकप्रिय हिन्दू मंदिर
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सरोज शर्मा  क जनप्रिय लेखन श्रंखला
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सिंगापुर कि लगभग 10 %आबादि म भारतीय छन, इलै ही वख बहुसंख्यक हिन्दू धर्म अनुयाई छन। इलै स्पष्ट च कि हिन्दू हुणक नाता वु हिन्दू मंदिर मा पूजा भि करण चैंदिन, ई कारण च कि ऐ द्वीप मा कई मान्यताप्राप्त हिन्दू मंदिर छन।
भारतीय हिन्दुओं क अलावा नेपाल कि हिन्दू आबादि क बड़ हिस्सा सिंगापुर म रैंद, और वखक मंदिरो मा जंदिन,
सिंगापुर क नौ हिन्दू मंदिर
सिंगापुर म अधिकांश भारतीय दक्षिण भारत से छन, इलै यखका पुरणा मंदिर ठेठ द्रविड़ और तमिल वास्तु कला थैं दर्शांदा छन। वु लम्बा गोपुरम, अलंकृत नक्काशि और मंदिर म जीवंत रंगों कि उपस्थित शामिल च।
हालांकि दिलचस्प बात च कि सिंगापुर म जीवंत वास्तुशिल्प रूप से समृद्ध हिन्दू मंदिर पर्यटकों क स्वागत करद, जु हिन्दू नि छन, वु सब्या धर्म क लोगों क स्वागत करदिन,
जु ऐ राष्ट्र क पता लगाणकि कोशिश करदिन,
यख शीर्ष दस मंदिरो कि सूची दिऐ ग्या, जौं थैं आप सिंगापुर यात्रा क दौरान देख सकदो, हिन्दू छवा त पूजा भि कैर सकदौ।
1- श्री मरिअम्मन मंदिर
रायण पिल्लई द्वारा वर्ष 1827 म निर्मित, श्री मरिअम्मन मंदिर सिंगापुर म एक हिन्दू मंदिर क रूप म अपणि प्रतिष्ठा और मान्यता रखद, 244 साउथ ब्रज रोड म स्थित द्रविड शैली म बणयूं च।
2- श्री वीरमकालीमान मंदिर
सिंगापुर क सबसे पुरण मंदिर म एक च, ऐकु निर्माण प्रवासी भारतीयो न करै, जु वख काम करण कु और बाद मा वखी बस गैं, ई मंदिर श्री वीरमकालीमान या काली थैं समर्पित च, जौं थैं बुरै क नाश करणवली मनै जांद,
3- श्री श्रीनिवास पेरूमल मंदिर
1885 मा निर्मित, श्रीनिवास पेरूमल मंदिर सबसे पुरण मंदिरो म आंद, दक्षिण भारतीय वास्तुकला न प्रेरित शैली म निर्मित ई मंदिर क गोपुरम भगवान विष्णु क अवतार मनै जांद।
4 - विनायक मंदिर
सिंगापुर क सिलोन रोड म स्थित, श्री सेनापाग विनायगर मंदिर गणेश भगवान थैं समर्पित च, ऐ मंदिर म धार्मिक विश्वास क चलदा हजारों यात्रीगण अंदिन, ई चोल शैली क सिंगापुर क सबसे पुरण मंदिरो म आंद,
5- शिव मंदिर
1850 कि शुरूआत म एक ठोस संरचना क रूप म निर्मित, श्री शिव मंदिर म शिवलिंग देवता क निवास च,
ई मंदिर सड़क नेटवर्क क माध्यम से सब्या हिस्सो से जुडयूं च,
6- चेट्टियारस मंदिर
ई मंदिर टैंकरोड मंदिर क रूप म लोकप्रिय च, श्री थेंडायुथपानी मंदिर सिंगापुर क डरावना मंदिरो म एक च, जु पर्यटकों क आकर्षक क केन्द्र च,राष्ट्रीय स्मारक क रूप म सूचीबध्द ऐ मंदिर क निर्माण 1859 म भारत का एक नट्टुकोट्टई चेट्टियार समुदाय क एक प्रवासी भारतीय द्वारा किए ग्या।
7- श्री वैराविमदा कालीमन मंदिर
सिंगापुर कु सबसे पुरण हिन्दू मंदिरो म एक, यख हिन्दूओ द्वारा पूरा साल यात्रा कियै जांद, 1860 म ई बंणयै ग्या,
8- श्री रूद्र कालिम्मन मंदिर
सिंगापुर म श्री रूद्र कालिम्मन मंदिर देवी काली थैं समर्पित च।
9- पवित्र वृक्ष श्री बालासुब्रमणर मंदिर भि एक प्रसिद्ध मंदिर च प्रतिदिन भक्त गण यख अंदिन।

Bhishma Kukreti:
लक्ष्मण सिद्ध मंदिर देहरादून
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सरोज शर्मा जनप्रिय लेखन श्रंखला

देहरादून म चार प्रसिद्ध सिद्ध मंदिर छन, और चारों कूणों म स्थापित छन,
देहरादून क चार सिद्ध मंदिरो म लक्ष्मण सिद्ध, कालू सिद्ध, मानक सिद्ध, और मांडु सिद्ध छन।
यूं थैं देहरादून क चार धाम ब्वलदिन, ई चार सिद्ध मंदिर देहरादून क चारो कोणा म स्थित छन,
बाबा कालू सिद्ध कि समाधि देहरादून क कालुवला जंगल म स्थित च,
मानक सिद्ध मंदिर प्रेम नगर क पास क्वारी गौं म स्थित च,
और मंडु सिद्ध कि समाधि पौधा और आमवला क जंगल म च,
और बाबा लक्ष्मण सिद्ध कि समाधि कुवांवाला गौं क नजदीक जंगल म स्थित च,
मांडुसिदध म बसंत पंचमी क दिन मेला लगद।
देहरादून से 12 किलोमीटर दूर ऋषिकेश मार्ग म लक्ष्मण सिद्ध मंदिर, लक्ष्मण बाबा क भक्तो क आस्था क केन्द्र च,इन मान्यता च कि भगवान दत्तात्रेय न लोककल्याण खुण 84 शिष्य बणै, और ऊंथैं अपणि सब्या शक्ति प्रदान करिन, कालांतर म ई 84 शिष्य ,चौरासी सिद्ध क नाम से जंणै गैन,और यूं का समाधि स्थल सिद्ध पीठ मंदिर बण गैन, यूं सिद्ध पीठ म देहरादून का चार सिद्ध पीठ भि छन।
एक अन्य पौराणिक कथा क अनुसार भगवान राम क अनुज लक्ष्मण न रावण और मेघनाथ कि ब्रह्म हत्या क पाप से मुक्ति खुण यख तपस्या कैर। इन ब्वलेजांद कि यख मंगी मन्नत पूर्ण हुंदिन, हर एत्वार् यख भारी भीड़ हूंद। प्रसाद म गुढ़ चढ़यै जांद, यू मंदिर गुरूपरम्परा पर आधारित च।महंत ही संपूर्ण व्यवस्था द्यखद।
सिद्ध पीठ परिसर म ब्रह्मलीन हुयां सब्या संतों कि समाधि स्थित छन, यख हर साल अप्रैल क अंतिम रविवार मा भव्य म्याला लगद, सिद्ध पीठ म रूद्राक्ष क एक 200 साल पुरण वृक्ष भि च ऐ मा एकमुखी से सोलह मुखी रूद्राक्ष मिल जंदिन।

Bhishma Kukreti:
बिखोत कि विविधता

सरोज शर्मा कु जनप्रिय लेखन श्रंखला

बैशाखी क मतलब वैशाख माह क त्यौहार, ई वैशाख सौर मास क पैल दिन हूंद, बैसाखी वैशाखि कु ही अपभ्रंश च,
ऐ दिन गंगा नदी म स्नान कु भौत महत्व च,हरिद्वार और ऋषिकेश म ऐ दिन भारी मेला लगद,
बैसाखी क दिन सूर्य मेष राशि म संक्रमण करद, इलै ऐ थैं मेष संक्रान्ति भि ब्वलदिन,
ऐ पर्व थैं विषुवत संक्रान्ति भी ब्वलेजांद,
बैसाखी पारंपरिक रूप न 13 या 14 अप्रैल मा मनयै जांद,
यू त्यौहार हिन्दुओ, बौद्ध ,और सिखों खुण महत्वपूर्ण च,
वैशाख क पैला दिन सरया भारत का अनेक क्षेत्रो मा नववर्ष क त्यौहार जन जुड़ शीतल, पोहेला वैशाख, बोहाग बहुत,विशु, पुथ्नडु,मनयै जंदिन।
वैशाखी क पर्व कि शुरुआत भारत क पंजाब प्रांत से ह्वै, और ऐ थैं रबी कि फसल कि कटै शुरू हूणकि सफलता मा मनयै जांद,
पंजाब और हरियाणा क अलावा उत्तर भारत म भि वैशाखी कु भौत महत्व च,
ऐ दिन गेंहूं, तिलहन,,गन्ना आदि कि फसल कि कटै शुरुआत हूंद,
वैशाखी गुरू अमरदास द्वारा चुनै ग्या तीन हिन्दू त्यौहार मा एक च,जैथैं सिख समुदाय द्वारा मनयै जांद,
प्रत्येक सिख वैशाखी त्यौहार, सिख आदेश क जन्म क स्मरण च, जु नौवां गुरू तेगबहादुर क बाद शुरू ह्वै, जब ऊन इस्लाम धर्म परिवर्तन खुण इंकार कैर द्या, तब मुगल सम्राट औरंगजेब न ऊंक शिरच्छेद क आदेश दयाई, और शिरच्छेद करेग्याई,
गुरू कि शहीदी न सिख धर्म क दसवां गुरू या अंतिम गुरू क राज्याभिषेक और खालसा क संत सिपाही क गठन कैर, द्विया वैशाखी का दिन ही शुरू ह्वीं ।
क्षेत्रीय विविधता
केरल मा ई त्यौहार विशु ब्वलेजांद, ऐ दिन नया कपड़ा खरीदै जंदिन, आतिशबाजी हूंद, और 'विशु कानी ,सजयै जांद ऐ मा फल फूल, अनाज ,वस्त्र, सोना, आदि सजयै जांद, और सुबेर जल्दी ऐ का दर्शन कियै जांद, ऐ दर्शन से सुख समृद्धि कि कामना किये जांद।
बिखोरी उत्सव
उत्तराखंड म बिखोति महोत्सव मा पवित्र नदियों मा डुबकि लगाण कि प्रथा च,
ऐ लोक
प्रथा म प्रतीकात्मक राक्षसो थैं पत्थर मरणा कि परंपरा च,
ऐ दिन एक मैना से देली मा फूल डलण क समापन हूंद, और वसंत पंचमी सानि वरात क गीत, नाटक नृत्य रस्म भि समापन हुंदिन,
विशु
विशु वैशाखी क ही दिन केरल म हिन्दू नववर्ष मनयै जांद, और मलयाली महीना मेदाम क पैल दिन मनयै जांद ।
बोहाग बिहू
बोहाग बिहू या रंगली बिहू 13 अप्रैल म असमिया नववर्ष कि शुरुआत क रूप म मनयै जांद,
ऐथैं सात दिन खुण विशुव संक्रांति (मेष संक्रांति)वैशाख मैना या बोहग क रूप म मनयै जांद।
महा विषुव संक्रांति
ओडिशा मा ई नै साल क प्रतीक च,समारोह म विभिन्न लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य शामिल हूंदिन,जनकि शिव संबंधित छाऊ नृत्य,
पाहेला वैशाख
बंगाली नै साल 14 अप्रैल म पाहेला वैशाख क रूप म मनंदिन, ऐ दिन पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, और बंग्लादेश मा मंगल शोभायात्रा क आयोजन किऐ जांद, ई उत्सव 2016 म यूनेस्को द्वारा मानवता संस्कृतिक विरासत क रूप मा सूचीबध्द किऐ ग्या।
पुत्थानडु
पुत्थानडु जैथैं पुथुवरूषम या तमिल नै वर्ष भि ब्वलेजांद, तमिल कलैंडर चिथिराई मास क पैल दिन च,
बिहार म जुरशीतल
बिहार और नेपाल क मिथिल क्षेत्र म नै साल जुरशीतल क रूप मा मनये जांद ई मैथली क पंचांग क पैल दिन च, परिवार म लाल चाणा सत्तू और जौ और अन्य अनाज से प्राप्त आटू से भोजन करयै जांद ।

Bhishma Kukreti:
देहरादून क मानक सिद्ध मंदिर
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सरोज शर्मा क जनप्रिय लेखन श्रंखला
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मानक सिद्ध बाबा सहसपुर ब्लाक क शिमला बायपास रोड म कारबारी ग्रांट म स्थित च,
कारबारी ग्रांट कभि ठाकुर दास क जमींदारा छा,जौंल ई जमींदारा डुमराव स्टेट का रामारण विजय सिंह थैं बेच द्या, स्थानीय निवासी अमर बहादुर शाही बतदंन कि राणा जय-विजय सिंह थैं साथ लेकि बढ़ आन्दोलन चल जैमा ग्राम वासियों कि जीत ह्वै, अमर बहादुर शाही अगनै बतंदीन कि मानक सिद्ध मंदिर जख आज स्थित च यख ऐकि स्थापना 1930 क लगभग ह्वै, ऐ से पैल मानक सिद्ध क स्थान ऐ मंदिर से लगभग द्वी ढाई किलोमीटर दूर जंगल मा छाई, सहूलियत क हिसाब से और मंदिर क विस्तार खुण जंगल बटेन कुछ शिलाओं थैं यख लैकि स्थापना किऐ ग्या।
ई काफी रमणीक स्थान च, यख ईंटो क एक चबूतरा म एक शिला पीतल कु नाग, व शिवलिंग रखयां छन। जंजीरो क साथ त्रिशूल भि च, साल का घैणा जंगल क बीच यख बड़ा बड़ा आमुका डाला भि छन। जु निश्चित तौर म कै आदिम न हि लगै ह्वाला, एक आमु क डाला कि तना कि मोटैय साढ़े चार मीटर छै ऐ से ई जगा कि प्राचीनता क पता चलद। यखी से कुछ पाषाण शिला और मूर्ति नया मानक सिद्ध मंदिर का गर्भ गृह म रखीं छन। ऐ मंदिर म साधु रैंदिन, आज भि ई स्थान ग्रामीणो कि आस्था क केन्द्र च। हर साल द्विया मंदिरो मा भंडारा हुंदिन, बड़ी संख्या मा स्थानीय लोग शामिल हूंदिन।

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