the rich man who dose not utilise his wealth for noble deeds or dose not offer it for the use of his fellow-beings, but looks aftar his won needs, is selfis and has earned the wages of sin it is
undeniably true that the wealth of a person become meanigaless, if it is not distributed and utilised, that hoarded wealth eventually proves to be cause of his ruin.
वह धनाढ्य ब्यक्ति जो धन का नेक कार्यो में अथवा अपनों के हित में उपयोग नहीं करता है बल्कि केवल स्वयं पर ब्यय करता है, एक स्वार्थी ब्यक्ति होता है तथा पाप का भागीदार बनता है यह अकाट्य सत्य है जिस का सर्वहित में उपयोग नहीं किया जाता है वह धन निर्थक है एकत्रित कर धरा हुआ धन ब्यक्ति के पतन का कारण बनता है