गिर्दा का जाना हम सबके लिये असहनीय है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने उत्तराखंड की आंदोलन की परंपरा को नये आयाम दिये। आंदोलनों को स्वर देने वाले गिर्दा की आवाज उनके लिये थी जो बोल नहीं सकते। उनकी आवाज हमेशा आम जन के हकों को पाने के लिये प्रतिकार के रूप में हमेशा मेहनतकश और आंदोलनरत जनता के साथ रही। यह आवाज उनकी खामोशी के बाद और सुनी-समझी जायेगी। वर्षों तक, सदियों तक। गिर्दा को अश्रुपूर्ण श्रद्वांजलि। आज दिल्ली में विभिन्न संगठनों ने गढ़वाल भवन में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद किया। बहुत ही गमगीन माहौल में लोगों ने लोगों ने उन गीतों और कविताओं का जिकz किया जिसमें वे नई चेतना का रास्ता दिखाते रहे हैं। गिर्दा आपका अपनत्व, प्यार, स्नेह, हमें तब-तब आपकी याद दिलायेगा जब-जब हम आपके उन बिताये पड़ावों से गुजरेंगे, जिसने हम सबकों चेतना का बड़ा पफलक दिया। आपके स्वर वैसे ही रहेंगे-
हम ओड, बारूड़ी, कुलि, कबाड़ी,
जब य दुनि हं हिसाब ल्यूलो,
एक हांग निं मांगू, पफांग नि मांगू,
खाता-खतौनी क हिसाब ल्यूलो।
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मेरी हाड~नकि बनि छू य कुर्सी,
जेमज भैबैर कर छां तुम राज,
कैकि बाबूकि निहुनि य कुर्सी,
तुमरि मैवाद छु पांचे साल
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कस होलो उत्तराखंड, कस हमार नेता,
कस होलो पधान गौंक, कसि हलि व्यवस्था,
जड़ि-कंजड़ि उखेलि सबुकि, पिफर पफैसाल करूल,
उत्तराखंड ल्यल, उकड़ि मन कस बनूलो।