प्रसिद्ध जनकवि (अब दिवंगत) पूज्यनीय स्व० श्री गिरीश चन्द्र तिवारी "गिर्दा" को मेरी और मेरी कलम की ओर से एक छोटी सी भावपूर्ण श्रंधांजलि........
कुछ अनकहे कुछ अनसुने,
कुछ लिखे और कुछ दिखे,
अपनी स्वछन्द लेख्ननी से आपने,
कितने अमूल्य शब्द लिखे...
पहाड़ को पहाड़ के लिए,
पहाड़ की तरह खड़ा होकर,
कभी प्यार से, कभी जोर से,
कभी हँसकर, कभी रोकर,
आपने हमें चलना सिखाया,
उठ दिल खोल अपनी बात कही,
किसी ने सुना, किसी ने किया अनसुना,
कही चुप रहे लोग "गिर्दा" कही आपकी बात सुनी,
आपकी ओ बातें ओ कवितायेँ,
ओ बच्चों की तरह पुचकारना,
सदा याद रहेगा हमें,
ओ जीतकर भी हारना.......
क्योंकि ख़ुशी हमारी मर न जाए,
दिल इस पहाड़ से भर ना जाये,
फिर कोई फिरंगी इस भारत की देवभूमि को,
आपने बल से गुलाम कर ना जाये,
मेरा आखिरी सलाम आपको,
फूल बनकर रहोगे नज़रों में,
आपकी अमूल्य बाणी, और सोच,
जिन्दा रखेगी चर्चाओ और ख़बरों में,
अहसास हमें होने लगा है...
अमूल्य हीरा हमने खो दिया.....
कुछ न कर पाया "दिल ये नादाँ"
बस ये सुनकर रो दिया.........
गिर्दा भगवन आपकी आत्मा को शांति प्रदान करे......
रचना दीपक पनेरू
दिनाक २३-०८-२०१०