श्रध्दा सुमनगिरीश तिवारी ‘गिर्दा’9 सितम्बर 1945 - 22 अगस्त 2010 दुनिया से जानेवाले जाने चले जाते हैं कहाँ.. कैसे ढूंढें कोई उनको...नहीं क़दमों के भी निशाँ ..यूँ तो प्रत्येक उत्तराखंड प्रेमी की ' गिर्दा' से जूडी कुछ यादें होंगी परन्तु हर व्यक्ति विशेष की स्वयं से जूडी यादें सर्वदा विक्षिप्त होती हैं..
गिर्दा से पहली मुलाकात का मौका मुझे वर्ष 2003 में दिल्ली में मिला, जब श्री नरेन्द्र सिंह नेगी के साथ उनकी जुगलबंदी के कार्यक्रम के बाद मैं उन्हें उनके घर छोड़ने गया। उसके बाद उत्तराखंड से जुड़े और भी कई सांस्कृतिक कार्यकर्मों में उनसे मुलाकात हुई। उत्तराखंड और उत्तराखंड के विकास के प्रति उनका जोश देखते ही बनता था। मुझे आज भी याद है 25 नवम्बर 2006 का दिन जब क्रियेटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़ की टीम नैनीताल, उत्तराखंड पहुंची और वहां उपस्थित महानुभावो में ' गिर्दा भी थे। पहाड़ और हिमालय के प्रति हमारे जुड़ाव को देखकर ' गिर्दा' गुनगुनाये थे...
दिल लगाने में वक्त लगता है…डूब जाने में वक्त लगता है…वक्त जाने में कुछ नहीं लगता…वक्त आने में वक्त लगता है… 28 जुलाई 2007 में उत्तराखंड असोसिऐशन ऑफ़ नोर्थ अमेरिका (UANA) के नवे वार्षिक समारोह के अवसर पर एक बार फिर अमेरिका में उनसे साक्षात मुलाकात हुई। यह मेरा सौभाग्य
था की उनके साथ एक ही मंच पर खड़ा रहकर मुझे हुडुक बजाने का अवसर मिला।

पर शायद मैं इतना खुशनसीब नहीं हूँ की उनके इस धरती से हमेशा के लिए चले जाने से पहले उनसे आखिरी बार बात कर पाता.. उनके अस्वस्थ होने की खबर मुझे 20 अगस्त 2010 को मिल गयी थी..परन्तु किसी कारणवश उनसे उस दिन बात न हो सकी.. 21 अगस्त 2010 की रात भी ये सोचकर सोया, की कल सुबह सबसे पहले गिर्दा के हाल समाचार पूछुंगा... पर वो कहावत की ' कल कभी नहीं आता' सच हो गयी... अगली सुबह का सूर्य अपने साथ उनके देवांगत होने की खबर लाया... और उनसे एक बार बात करने की इच्छा केवल इच्छा बन कर रह गयी।
गिर्दा के जाने से उत्तराखंड ने ना केवल एक निष्पक्ष और निस्वार्थी नागरिक खोया है, बल्कि आज की युवा पीढ़ी जो अपने पहाड़ के लिए कुछ करना चाहती है, उसने एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक भी खोया है। गिर्दा के यकायक चले जाने से उत्तराखंड नव-चेतना में जो शुन्य बन गया है.. उसे शायद ही कभी पूरा किया जा सकेगा. पर गिर्दा की निम्नलिखित पंक्तियों के साथ मैं यही आशा करता हूँ की एक दिन, वो दिन जरूर आएगा जिसकी चाह और राह में चलते हुए हमारे गिर्दा हमसे इतनी दूर चले गए की अब उनकी केवल यादें ही शेष हैं....
जेंता एक दिन त आलो ये दुनी में..चाहे हम न ल्या सकूं, चाहे तुम नि ल्या सको..जेंता क्वे ने क्वे तो ल्यालौ.. ये दुनी में..जेंता एक दिन त आलो ये दुनी में..कितना अच्छा हो...अगर हम और आप उनकी याद में केवल वक्त न बिताएं...बल्कि उन यादों में बसे उनके अधूरे सपनो को सच करने के लिए एक जुट होकर प्रयास करें... वही हमारी उनके प्रति सबसे बड़ी श्रधांजलि होगी।
गिर्दा आप कभी जा नहीं सकते क्यूंकि आप हमारी यादों और हमारे पहाड़ की बुनियादों में हमेशा जीवित रहेंगे...
म्यर पहाड़ और अमेरिका में बसे सभी पहाड़ प्रेमियों की ' गिर्दा' को भावभीनी श्रधांजलि..आपको संजुपहाडी और बिंदिया का शत शत नमन..