Author Topic: Tribute to Great Poet and Our Beloved Girda आखिर गिरदा चले गये.. श्रद्धांजली  (Read 33358 times)

Parashar Gaur

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मित्र   ( श्रीध्ये  श्रीमान कुकरेतिजी )  न  , मै थै एक इ मेल भेजी  की,   क्या बात च ,,   की,   एक पहाड़ी  साहित्यकार का निधन  पर कोई  टिपणी नि होंदी  त , साब    देखे  --       
                         
 
                                                    ----- फर्क --
 
 
        जब जब  भी   पहाडोम छोटी या बड़ी घटनाएं   हुदन   अर,  उ, घंटना अगर सीधे  सीधे  जनता से जुडी हो त, ,  मेरे गौ  की एक  बोड़ी,  जू,   यु  घटनो  थै सुणी,  हमेशा की तरह  छजम  बैठी  उथै याद काना का बाद  बर-राणु शुरू कै दिद '  /   उनी  एक घटना आज भी हवे ! जनी  उनी  सुणी----  वा ,   शुरू  हवे  .........             
 
             बोडिल जन सुणीक़ि गिर्दा  नि राया  त , वीथै  बहुत दुःख हवे !  सुचूण  लेगी ....क़ि . क्या बात छ  ?  क़ि , म्यारा पहाड़ का बड़ा बड़ा विद्वान लोग  जब जब मुर्दन त म्यारा पहाडियों थै जर भी लेश मात्र दुःख नि हुन्द   !   अर जब  जब कवी नेता मर्द त ये हेली ह्य्ली  दे देकी रूणा बैठीं जदन !     
 
पराशर गौर   दिनाक २३ अगस्त २०१०
रात्ब १०.३० पर       

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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.तो कह दिया अलविदा बबा
« Reply #61 on: August 24, 2010, 09:21:14 AM »
 
.तो कह दिया अलविदा बबा
 
          नैनीताल। शव यात्रा 'गिर्दा' की थी, तो परम्पराएं टूटनी ही थी। महानायक की तरह रंगकर्मी व जनकवि को हर किसी ने अलविदा 'बबा' कहा। हर आंख में आंसू.हर हाथ अर्थी छूने को आतुर थे। महिलाओं ने परम्पराएं तोड़ कर न केवल उनकी अर्थी को कंधा दिया बल्कि घाट पहुंच कर उन्हे अंतिम विदाई भी दी। जनगीतों के साथ निकली उनकी अंतिम यात्रा में हर कोई एक दूसरे के कंधे पर सिर रख जार-जार रो रहा था।
यह गिरीश तिवारी 'गिर्दा' का मानव चुम्बकीय प्रभाव था, वह हमेशा लोगों को कुमाऊंनी शब्द 'बबा' कह कर पुकारते थे। सोमवार को उनकी शव यात्रा में प्रशासनिक अधिकारी, पत्रकार, रंगकर्मी, साहित्यकार, राजनेता, छात्र, न्यायाधीश, विभिन्न संगठनों के लोग, शिक्षक, महिलाएं, मजदूर तबका और सभी धर्मो के लोग शामिल थे। इससे झलक रहा था कि गिर्दा वह हस्ती थे जो कभी मिटेंगे नहीं। लग रहा था मानो उनकी शव यात्रा में नैनीताल ही नहीं, पूरा उत्तराखंड शामिल है। दिल्ली व लखनऊ से आये लोग भी शामिल थे। इस विराट व्यक्तित्व की अर्थी को हर हाथ छू लेना चाहता था। इस दौरान जो भी मार्ग में मिला वह यात्रा में शामिल हो गया और काफिला बढ़ता गया। गिर्दा की अन्तिम इच्छा थी कि उनकी शव यात्रा में उनके गीतों को अवश्य गाया जाय, साथियों ने यही किया भी। फिंजा में उनके लिखे, गाये जन मानस की पसंद बन चुके गीत 'जागो, जागो हो म्यारा लाल, म्यार हिमाल..', 'हम ओड़, बारूड़ी, ल्वार, कुल्ली कबाड़ी, जता एक दिना तो आलो उ दिन य दुनि मां, एक हांग न मांगूलौ, एक पांख न मांगूलौ, सार खसरा खतौनी किताब ल्यूलौ.', 'गिली है लकड़ी कि गिला धुंआ है, मुश्किल से आमा का चूल्हा जला है, साग क्या छौंका है पूरा गौं महका है..' जैसे गीत गूंज रहे थे। जन आंदोलनों के दौरान जब गिर्दा सड़कों में उतर कर अपने लिखे जन गीतों को गाते थे तो हजारों की भीड़ उन्हे घेर लेती थी। मगर आज वह गा नहीं रहे थे, तो भी हजारों लोग उन्हे घेरे हुए थे। हर तबका उनके साथ उसी तरह जुड़ा था जैसे जन आंदोलनों के दौरान उनके साथ लोग जुड़ जाते थे।
 
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6670169.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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MY MEMORIES - WITH GIRDA - GIRDA IS IMMPORTAL
« Reply #62 on: August 24, 2010, 11:35:38 AM »

Though I could not get a chance to meet this great poet, actor and man of multi-skilled qualities. However, two times I got  opportunity to talk to Girda over phone. First time when I had made to Girda and I introduced myself but he already knew my name through some of my friends who must have told him about me. He asked my “Oh Bhawa” Mahipal kas chhe too Baba”. Then we had a long talk with him and he asked me Baba, you listen “Jasuwa Damai Hunka Beat on TV (in a Cable Channel). Jasuwa Damai was famous Hunka and Drum Player was Uttarakhand and Girda was the person who had given him a recognition by providing him platform during many cultural programmes.

Next time Girda himself called me when I sent a Group Message of Harela Festival (Last month) . He asked his son Pritam to make me call then he gave wishes of Harela to all the Community Members. He told me that his health is not good but life is moving.

In fact, I came to know about Girda through Creative Uttarakhand Myar Pahad when I joined this community. My colleagues told me about Girda and I started reading his poem and literature. I Can say, I have no word express that the pain of pahad I found in Girda’s poem and the work he had for the society.

Girda had devoted his full life for Uttarakhand state and its people. He had been associated in various Public Movements like Uttarakhand State Struggle, Van Bacho etc. Apart from this, Girda had been actively participating in various “Kavi Sammelan” and other cultural programme to promote the culture of UK. Girda composed poem many poem during Uttarakhand State Struggle which played a great role in gathering public rallies and motivating people. One of this poems was “Jaita Ek, Na Ek Din to Aalo, Yo Duni Me” .  Once Girda also performed in America when UANA Group of Uttarkahand had invited him there.

As an actor Girda featured in many plays of Uttarakhand and even he had acted in two Hindi Movies. One Vasiyat and upcoming movie “Daye and Baye” in which Girda has played a role of Head Master. In addition to this, Girda also featured in many documentary films made by Yuv Manch Nainital and other social organizations.

Till the last breath, Girda was worried about Uttarakhand State. Still there are many dreams of Girda which could not come true and one of them was Capital of Uttarakhand to be Gairsain. During the Uttarakhand State Struggle “Gairsain was the proposed Capital of Uttarakhand but after formation of the State, the Capital has not yet been shifted to Gairsain inspite of along struggle.

Though Girda is not amongst us but he has left many things to be followed by next generation. We can get a lot inspiration from the work done by Girda. Though Girda is not physically amongst us but through his work he will always be remembered and will remain live!

Girda is immortal!

M S Mehta

Pawan Pahari/पवन पहाडी

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गिर्दा तुम अब कब आओगे,
  कब अपनी कविताये सजाओगे,
  अब तो कविताये भी सूनी सी लगती है,
  वीरान पड़ा रेगिस्तान सी लगती है,
  इन सूखे रेगिस्तानो में फिर बहार लानी है,
  इसलिए गिर्दा तुम्हे उत्तराखंड कि जनता बुलाती है,
  तुम्हे फिर आना ही पड़ेगा,
  अपना वादा निभाना ही पड़ेगा,
  जो सपने थे तुम्हारे,
  जो राह दिखाई थी तुमने,
  उस राह पे हमें चलना है,
  तुम्हारे सपने को साकार बनाने के लिए,
  एक खुशहाल उत्तराखंड बनाने के लिए,

Hemant Bisht

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गिर्दा  जब भी आप कोई विचार रखते थे ,कोई तर्क रखते थे ,पहले ही विनम्रता से कहते थे "सुनी जाय ,चाहे मानी न जाय "और हम लोग बहुत ही सम्मान और प्रेम से कहते ,"जब मानी न जाय .   तो फिर कही क्यों जाए ?"और आप फिर  मुस्कराते हुए अपनी राय रखते ,जो हमेशा सर्व मान्य होती .आज अपनी आखों के सामने आपको जाते देखा ,जाते सुना ,मन है की मान नहीं रहा है कि गिर्दा चले गए , मन कह रहा है कि
   गिर्दा आयेंगे .कहेंगे ,"सुनी जाय पर मानी न जाय ". गिर्दा ,आप जिस जहां मे भी जाए ,जहा  भी जाए ,रूप आपका वही हो जो हमने देखा   , हमारे मनो में तो आप हमेशा बने ही रहेंगे 



पंकज सिंह महर

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गिर्दा जैसे लोग कभी नहीं मरते, क्योंकि वह सिर्फ व्यक्ति मात्र नहीं होते, एक व्यक्तित्व होते हैं, एक विचार होते हैं और विचार कभी मरते नहीं। वह हमेशा जनमानस पर अंकित रहते हैं, लोगों के दिलो-दिमाग में जीवित रहते हैं।

गिर्दा ने अपने लिये जो राह तय की, उससे कई प्रेरणायें हमें मिलती हैं, उनके दिखाये गये रास्तों पर चलने का हम सभी संकल्प लें, वही गिर्दा को सच्ची श्रद्धांजली होगी। गिर्दा तो चले गये, लेकिन उनके विचार अभी जिन्दा हैं और हमेशा जिन्दा रहेंगे।

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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                     "दो शब्द तनहा इंसान की ओर से"

कोंन कहता है की कलाकार मरता है,
वह मरता नही वह हमेसा जिन्दा रहता है.

हम सबके बीच वह गाते रहता है, गुन-गुनाते रहता है,
हसते, हसाते रहता है, नाचते, और नचाते रहता है,

एक कलाकार जब मरता है, तो वह अमर हो जाता है.
अपनी यादो से, अपने कर्मो से, अपने गुण ज्ञान से.

गिरीश चन्द्र तीवारी जी भगवान आपकी रंगमयी अंतरआत्मा को
फुलो से सुसोभित कर नव जीवन प्रदान करे.

सुन्दर सिंह नेगी/तनहां इंसान
25-08-2010

पंकज सिंह महर

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फेसबुक पर हमारे अग्रज और वरिष्ठ पत्रकार श्री दिनेश जुयाल जी ने गिर्दा को श्रद्धांजलि देते हुये एक कविता के माध्यम से अपने दिल के भावों को उकेरा है। जिसमें गिर्दा के विचारों का अनुसरण करने और गिर्दा बन जाने की बात कही गई है, दिल छू लेने वाली कविता है--------

अगर तुमने गिर्दा को देखा है
तो देखो अपनी आँख में
गिर्दा आंसू के साथ नहीं गिरा
वैसे भी वो कभी नहीं गिरा
वहीँ हैं तुम्हारी आँख में हैं...
...महसूस की गिर्दा की तड़प अगर
हर चेहरे की ख़ुशी के लिए
सुलगता हुआ गिर्दा
मिलेगा तुम्हारे ही दिल में हैं...
अगर नाटक नहीं कर रहे हो
और देखा है गिर्दा को तुमने
कई नाटक जीते हुए
तो जो कुछ भी करोगे
गिर्दा के निर्देशन में
वह नाटक नहीं जीना होगा...
बीडी और दारू से डामता था
जिस शरीर को गिर्दा
वह बहुत दुखता था रे !
उसमें से निकल गया गिर्दा.....
अगर गिर्दा अच्छा था तो
पकड़ लो उसका भूत
गिर्दा का भूत यहीं है
गीतों में गूंजता
हुडके की धौं धौं में
लाल लाल लौ में
गुदड़ी में मिलेगा
चालाकों को गरियाते हुए
खेत में मिलेगा
माटी से खेलता
तुम से कहता भी था
मैं तो नहीं मरूंगा
वह तुम्हारे जैसा आदमी
बनने के लिए या
तुह्मारे जैसे जीने की लिए
कभी नहीं तडपा
वो तो मरने से पहले भी
गा रहा था गीत तुम्हारे लिए
भूत ही तो था गिर्दा
ऐसा भला आदमी होता है कोई !
मत रो भुलि
आएगा वो फिर खाली हाथ
माथा चूम कर देगा भिटौली
अब तो कोई शरीर नहीं गिर्दा
भर ले उसे अपने अन्दर
तू ही बन जा गिर्दा!

हेम पन्त

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जुयाल जी की इस कविता के बाद गिरदा के व्यक्तित्व और समाज के प्रति उनके समर्पण के बारे में बोलने के लिये कुछ शेष नहीं रह जाता... इस सार्थक कविता के माध्यम से गिरदा को भावपूर्ण श्रद्धांजली देकर दिनेश जुयाल जी ने गिरदा की स्मृति और उनके संकल्पों को अमर कर दिया है..

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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"गिर्दा" को श्रृधांजली....
« Reply #69 on: August 27, 2010, 01:00:18 PM »

जनकवि गिरिश तिवारी "गिर्दा" की मृत्यु पर मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति के नैनीताल कार्यालय में दिनांक २६ अगस्त २०१० को शोक सभा का आयोजन हुआ।

समिति के सदस्यों ने गिर्दा के चले जाने पर आयी रिक्तता पर चिन्ता जतायी। संस्था द्वारा २००२ में "गिर्दा" को अल्मोडा मे रचना दिवस पर सम्मानित किया गया था। संस्था के अध्यक्ष हेमन्त जोशी ने कहा कि उर्म की सीमांओ को तोडकर सभी का समान "गिर्दा" एक लेखक, कवि, आंदोलनकारी, निर्देशक सभी कुछ था लेकिन उसका एक पक्ष जो सबसे ज्यादा महत्वपुर्ण है वह था उसकी जौहरी नज़र जिसने लोक कलाकारों की भीड से २ ऐसे रत्नों झुसिया दमाई और हरदा सुरदास को समाज के सामनें प्रस्तुत किया, जिनकी कला का लोहा सम्पुर्ण उत्तराखंड ने माना। संस्था के संरक्षक प्रो० डा० कमल पांडेय ने "गिर्दा" के जनवादी पक्ष पर प्रकाश डालते हुऎ उत्तराखंड आंदोलन में "गिर्दा" की भुमिका को अहम बताया उन्होंने कहा कि "गिर्दा" विचारधारा में अंदर तक डुबा हुआ व्यक्ति था।

"सृजन से" पत्रिका के सदस्य कैलाश पांडेय ने उन्हें उत्तराखंड का नायक बताया। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार को पद्मश्री के लिये उनका नाम भेजना चहिये।

गीत एवम नाट्य प्रभाग की दीपा जोशी ने कहा कि "गिर्दा" उत्तराखंड की नाट्य मंडलियों व संस्कृतिकृमियों के दिलों में लम्बे समय तक अपनी रचनाओं के साथ जिंदा रहेंगे उन्हें समय की सीमाओं में बाधकर नही रखा जा सकता है।

संस्था ने एक प्रस्ताव सरकार के पास सीघ्र भेजने का निर्णय लिया है, जिसमें जनसरोकारों से जुडे "गिर्दा" के हवालबाग में पेत्रिक को जाने वाली सडक या फ़िर वहां के सरकारी विधालय का "गिर्दा" के नाम से रखे जाने की कही जायेगी। 



अध्यक्ष-हेमन्त जोशी [/b]
मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति [/b]
०७८३०६५६९७४[/b][/font]

 

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