मित्र ( श्रीध्ये श्रीमान कुकरेतिजी ) न , मै थै एक इ मेल भेजी की, क्या बात च ,, की, एक पहाड़ी साहित्यकार का निधन पर कोई टिपणी नि होंदी त , साब देखे --
----- फर्क --
जब जब भी पहाडोम छोटी या बड़ी घटनाएं हुदन अर, उ, घंटना अगर सीधे सीधे जनता से जुडी हो त, , मेरे गौ की एक बोड़ी, जू, यु घटनो थै सुणी, हमेशा की तरह छजम बैठी उथै याद काना का बाद बर-राणु शुरू कै दिद ' / उनी एक घटना आज भी हवे ! जनी उनी सुणी---- वा , शुरू हवे .........
बोडिल जन सुणीक़ि गिर्दा नि राया त , वीथै बहुत दुःख हवे ! सुचूण लेगी ....क़ि . क्या बात छ ? क़ि , म्यारा पहाड़ का बड़ा बड़ा विद्वान लोग जब जब मुर्दन त म्यारा पहाडियों थै जर भी लेश मात्र दुःख नि हुन्द ! अर जब जब कवी नेता मर्द त ये हेली ह्य्ली दे देकी रूणा बैठीं जदन !
पराशर गौर दिनाक २३ अगस्त २०१०
रात्ब १०.३० पर