गिर्दा को कवि सम्मेलनों में, टी०वी० पर कई बार देखा था, लेकिन इसी १४ अगस्त को वे देहरादून आये थे, तभी आमने-सामने बात हुई थी। गिर्दा से मैं तब रुबरु हुआ जब उससे पहले घी-त्यार पर एक आर्टिकल बना रहा था, तो इस पर्व को मनाने के कारण मुझे कुछ क्लियर नहीं हो पा रहे थे। कई लोगों से पूछा, उत्तराखण्ड की संस्कृति के स्वयं भू ठेकेदारों से भी पूछा, कोई कुछ खास नहीं बता पाया। फिर अचानक याद आया कि गिर्दा को जरुर मालूम होगा। भाई हेम से फोन नम्बर लेकर बात की और कमल दा का रिफरेंस देकर अपना परिचय दिया। फिर गिर्दा ने इस त्यौहार की पूरी व्याख्या कर दी। इसके बाद आर्टिकल बनाकर पब्लिश भी कर दिया, लेकिन जैसे-जैसे गिर्दा को इस त्यौहार से संबंधित तथ्य याद आते रहे, वे मुझे फोन कर-कर बताते रहे। उस दिन मैने एक आर्टिकल को पांच बार एडिट किया था। इस टेलिफोनिक मुलाका के बाद ही गिर्दा से कई बार बात हुई, फिर एक दिन फोन आया कि मैं १४ तारीख को देहरादून आ रहा हूं, बब्बा मिलना जरुर।
द्रोण होटल का कमरा नम्बर १०६
इसी कमरे में गिर्दा ठहरे हुये थे, हेमन्त बिष्ट जी के साथ, मैं तकरीबन २.३० बजे वहां पहुंचा, फिर हमारी बातों का सिलसिला घी-त्यार से शुरु हुआ और आषाड़ी कौतिक, झुसिया दमाई, ओलगिया, संक्रान्तियों पर पढने वाले त्यौहार, गढ़वाल-कुमाऊं के इतिहास.....पता नहीं कितनी बातों पर चर्चा हुई और ६.३० बज गये। इस दौरान हेमन्त बिष्ट जी से मेरा परिचय कराते हुये उन्होंने कहा कि "ये भी हमारी ही तरह खब्ती हैं, यार" गिर्दा ने कई चीजें बताई, कई ऐतिहासिक, कई प्रमाणिक, कुछ पर तर्क-वितर्क भी हुआ। जब मैने कहा कि हर महीने की संकरात के दिन कोई न कोई त्योहार होता है तो उन्होंने कहा कि ज्येठ और अषौज में नहीं होता, हो सकता है कि किसी अंचल में हो भी, तुम लोग पढ़्ते-लिखते-ढूंढते रहते हो, अगर कहीं भी होता है, तो मुझे भी बताना। फिर बात आई, गैरसैंण की.....ओजस्वी विचार गिर्दा के, एक कविता भी सुना दी गुद्दी उधेड़ने वाली। मैने कहा हमारे साथी गैरसैंण जा रहे हैं, आप भी जाना, आपके आने से सबका उत्साह सौ गुना हो जायेगा। उन्होंने कहा कि अगर स्वास्थ्य ने साथ दिया तो जरुर आऊंगा बब्बा। इस दौरान हमारे ग्रुप और इंटरनेट की भी जानकारी उन्होंने ली, मैने कहा कि हमने अपनी साईट में आपकी कवितायें लिखी हैं, तो वे बड़े खुश भी हुये। जब उनके पास संदेश आया कि डाइरेक्टर सूचना नीचे डायनिंग हाल में उनका इंतजार कर रही हैं तो सब नीचे चले आये और वापसी पर जब मैने उनके पांव छुये तो उन्होंने गले से लगा लिया और कहा, खूब मन लगाकर काम करना, जो काम तुम लोग कर रहे हो, बहुत नेक है और भगवान तुम्हारे साथ रहेंगे, नैनीताल आओगे तो घर पर आना। मैं विदा लेकर घर चला आया, क्या पता था कि यह मेरी उनसे पहली और आखिरी मुलाकात है।
एक-दो दिन बाद गिरदा का फोन आया कि खतडु़आ और सातों-आठों भी आने वाली है, इस पर कुछ लिखोगे? मैने कहा कि सातों-आठों और हिलजात्रा पर तो आर्टिकल बन चुके हैं, खतड़ुवा पर इस बार बनायेंगे। उन्होंने कहा कि इस त्यौहार के बारे में बहुत मिस कन्सप्शन है, इसे आर्टिकल के माध्यम से दूर करने का प्रयास करना। मैने कहा अभी तो टाईम है, जब बनाऊंगा तो आपसे पूछूंगा। लेकिन एक दिन हेम भाई का फोन आया कि गिर्दा sth में भर्ती हैं, मैं मिलने जा रहा हूं। शाम को उसने बताया कि आपरेशन होना है अभी बात करने की स्थिति में नहीं है। फिर हेम का ही मैसेज आया कि गिर्दा इज पास्ड अवे......अभी भी विश्वास नहीं आता।
लेकिन जो नियति को मन्जूर है, उसे हम कैसे बदल सकते हैं, भगवान ने उन्हें हमसे बहुत जल्दी छीन लिया। खैर भगवान उनकी आत्मा को शांति दे और एक नये रुप और अवतार में फिर से हमारे बीच में भेजे, क्योंकि उत्तराखण्ड को गिर्दा की सख्त जरुरत है।