जाखी जी,
यह विषय उठाने के लिये धन्यवाद। चूंकि उत्तराखण्ड में बसावट जंगल के साथ-साथ ही है, इसलिये हमें इस समस्या से अक्सर ही दो-चार होना पड़ता है। उत्तराखण्ड में बाघ का ही आतंक नही है, बल्कि अन्य कई जंगली जानवरों के गुस्से का भी सामना हमें करना पड़ता है। जैसे भालू, सुअर, हाथी, बन्दर, शेही आदि। उक्त जानवर पहाड़ी गांवों की आबादी में घुसकर फसलों को भी क्षति पहुंचाते हैं और मानव जीवन को भी। आज उत्तराखण्ड के गावों की ६०-७०% जनता जंगली जानवरों के हमलों से परेशान है।
हरिद्वार, ऋषिकेश, कोटद्वार और हल्द्वानी-कालाढूंगी के जो इलाके राजाजी और कार्बेट नेशनल पार्क से जुड़े हैं, वहां पर जंगली हाथी अक्सर उत्पात मचाते हैं। न जाने कितनी की फसलों और जिन्दगियों को यह नुकसान पहुंचा चुके हैं। वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में बंदरों का उत्पात आम बात है, साथ ही झुण्ड के झूण्ड सुअर आकर खड़ी फसल को चौपट कर जाते हैं। बाघ तो पता नहीं क्यों इतनी संख्या में आदमखोर होते जा रहे हैं?
हमें यह भी पता लगाना चाहिये कि जंगली जानवरों का रुख आबादी की ओर क्यों हो रहा है? क्या कारण है कि वह अपने प्राकृतिक आवास को छोड़कर यहां आ रहा है। मेरे मतानुसार जंगलों में बढती मानवीय गतिविधि इसका मुख्य कारक है। आज जंगल खाले हो रहे हैं, जंगलों में चौड़ी पत्ती वाले मिश्रित जंगलों की बजाय चीड़ पनप रहा है, जहां बंदर, भालू जैसे जानवर निगालू के पत्ते और जंगली फलों पर ज्यादा निर्भर रहते थे, उन्हें अब वह चीजें जंगल में उपलब्ध नहीं हो रही हैं, या तो हमने उसे खत्म कर दिया है या हमारी गतिविधियों से उनके खाने-पीने के संसाधन समाप्त हो रहे हैं। इसलिये उनका झुकाव मानव आबादी की ओर हो रहा है। यह विषय बहुत गंभीर है, इस पर सभी को पहल करनी चाहिए और अपनी-अपनी ओर से पर्यावरण संरक्षण के लिये जो हो सके करना चाहिये।
रही बात बाघ के हमले की, तो मानव जीवन सबसे अमूल्य है...जैसे ही कोई बाघ किसी मानव पर हमला करता है या किसी मानव को अपना शिकार बनाता है तो उसे चिन्हित कर मारने की जो प्रक्रिया है, उसका सरलीकरण किया जाना बहुत जरुरी है। होता यह है कि कोई बाघ आदमखोर हो गया, तो उसे वन विभाग से आदमखोर घोषित कराना पड़ता है, फिर ही उसे मारा जा सकता है और तब तक वह २-४ और लोगों को शिकार बना चुका होता है। इसके लिये होना यह चाहिये कि संबंधित और संक्रमित क्षेत्र में यह अधिकार वहां की पंचायत और वन पंचायत को होना चाहिये। जो तत्काल निर्णय करे और उसे जितनी जल्दी मारा जा सके, उसका प्रयास कर सके। शिकारी को हायर करने के लिये भी ग्राम सभा के बजट में अलग से मद बनाई जानी चाहिये। ताकि जनहानि कम से कम हो।