धन्यबाद मेहता जी,
अब मैं हिंदी में भी लिख सकता हूँ.
मैं आपके के माध्यम से एक बात समाज के सामने रखना चाहता हूँ की समाज आज जितना आर्थिक दृष्टि ऊपर उठा है लोगों की भावनाएँ उतनी ही नीचे की ओर जाने लगी है हम अपने समाज से दूर होते जा रहे हैं और खासकर हम उत्तराखंडी जिनका आधा परिवार शहरों में है और आधा गाँव में, हम अपने ही माँ बाप भाई बहिनों से दूर होकर उनसे अपने मुहँ मोड़ना चाहते हैं, जिन माँ बाप ने अपनी जिंदगी भर के खून पसीने से हमारा पेट भरा और हमें इस लायक बनाया की आज हम काफी ऊँचे ऊँचे पदों पर बैठे हुए है, लेकिन आज हम उन्ही बूडे चेहरों को ठोकर मार रहे हैं, मेरे ब्याक्तिगत अनुभव से ज्यादातर लोगों का लोगों का यही रवैहा यही है,
लेकिन हमें बात को कुछ गहराही से सोचना होगा की आज हम जो उनके साथ कर रहे हैं कल हम भी उसी जगह हम होंगे और हमारे साथ उससे भी भूरा हो सकता है, इसलिए अपने माँ बाप से कभी भी इस तरह का बर्ताव न करें और उनको भगवान् से भी ज्यादा प्यार दें और उनकी पूजा करें, इसके ऊपर मैं एक लाइन लिखना चाहता हूँ.
" ज्युन्दा जगदा पुछदा भी नि, द्य्बता रूप माँ क्या मैनैला
आज पानी भी नि छिड़की भोल तों हरिद्वार नालैला "