Author Topic: Religious Chants & Facts -धार्मिक तथ्य एव मंत्र आदि  (Read 98536 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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By प्रयाग पाण्डे

ऊँ नंदा भगवता नाम या भविष्यति नंद्जा |
स्तुता सा पूजिता भक्त्या वशीकुर्याज्जगत्त्र्यम ||

हिमायल पर्वत अनन्तकाल से शिव और पार्वती जी के निवास स्थान माने गए हैं | पार्वती जी को हिमालय पुत्री कहा गया है |गिरिजा ,गिरिराज किशोरी , शेलेश्वरी और नंदा आदि पार्वती जी के ही नाम बताए गए हैं |हिमालय के अनेक शिखरों के नाम नंदा से ही हैं |जिनमें - नंदादेवी , नंदा भनार ,नंदा खानी ,नंदा कोट और नंदा घुघटी आदि प्रमुख है |प्राचीन पौराणिक ग्रन्थों में नंदा देवी को हिमान्द्री, मेरु ,सुमेरु आदि नाम से सम्बोधित किया गया है | आधुनिक पौराणिक ग्रन्थों - मानसखंड और केदारखंड में इसे नंदा देवी के नाम से पुकारा गया है |
मानसखंड में नंदा पर्वत को नंदा देवी का निवास स्थान बताया गया है |हिमालय की सबसे ऊँची चोटी को नंदा , गौरी और पार्वती का रूप माना जाता है |नंदा को शक्ति रूप माना गया है | शक्ति की पूजा नंदा ,उमा ,अम्बिका ,काली ,चंडिका ,चंडी ,दुर्गा ,गौरी ,पार्वती ,ज्वाला ,हेमवती ,जयंती ,मंगला ,काली और भद्रकाली के नाम से भी होती है |
नंदा देवी के प्रति पहाड़ वासियों में एक भावनात्मक आत्मीयता है | नंदा देवी सम्पूर्ण उत्तराखंड में प्रतिष्ठित और पूज्य हैं |नंदा देवी हिमालयी समाज के पर्यावरण प्रेमी संस्कृति का मूलाधार हैं |यह भगवान शिव जी की पत्नी पार्वती हैं | जीवनदायी जल देने वाली हिमालय की पुत्री हैं |उत्तराखंड के राजवंशों की कुलदेवी हैं |पहाड़ के लोगों को अदम्य साहस ,सरक्षण ,विजय और धन -धान्य प्रदान करने वाली शक्तिरूपा हैं |उत्तराखंड की सामाजिक और सांस्कृतिक एकता की प्रतीक हैं |

पश्चिमाभिमुख:साक्षात् हिमान्द्री कथ्यते बुधे:
तस्य दक्षिण भागे वै नाम्नां नन्द गिरी स्मृत:
यत्र नंदा महादेवी पूज्यते त्रिद्शे ऋषि ||

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दैणा हुयां,खोली का गणेशा...दैणा हुयां, मोरी का नरैणा.
दैणा हुयां,भूमि का भुम्याला ...दैणा हुयां,पंचनाम देवा .

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे
ऊँ नंदा भगवता नाम या भविष्यति नंद्जा |
स्तुता सा पूजिता भक्त्या वशीकुर्याज्जगत्त्र्यम ||

हिमायल पर्वत अनन्तकाल से शिव और पार्वती जी के निवास स्थान माने गए हैं | पार्वती जी को हिमालय पुत्री कहा गया है |गिरिजा ,गिरिराज किशोरी , शेलेश्वरी और नंदा आदि पार्वती जी के ही नाम बताए गए हैं |हिमालय के अनेक शिखरों के नाम नंदा से ही हैं |जिनमें - नंदादेवी , नंदा भनार ,नंदा खानी ,नंदा कोट और नंदा घुघटी आदि प्रमुख है |प्राचीन पौराणिक ग्रन्थों में नंदा देवी को हिमान्द्री, मेरु ,सुमेरु आदि नाम से सम्बोधित किया गया है | आधुनिक पौराणिक ग्रन्थों - मानसखंड और केदारखंड में इसे नंदा देवी के नाम से पुकारा गया है |
मानसखंड में नंदा पर्वत को नंदा देवी का निवास स्थान बताया गया है |हिमालय की सबसे ऊँची चोटी को नंदा , गौरी और पार्वती का रूप माना जाता है |नंदा को शक्ति रूप माना गया है | शक्ति की पूजा नंदा ,उमा ,अम्बिका ,काली ,चंडिका ,चंडी ,दुर्गा ,गौरी ,पार्वती ,ज्वाला ,हेमवती ,जयंती ,मंगला ,काली और भद्रकाली के नाम से भी होती है |
नंदा देवी के प्रति पहाड़ वासियों में एक भावनात्मक आत्मीयता है | नंदा देवी सम्पूर्ण उत्तराखंड में प्रतिष्ठित और पूज्य हैं |नंदा देवी हिमालयी समाज के पर्यावरण प्रेमी संस्कृति का मूलाधार हैं |यह भगवान शिव जी की पत्नी पार्वती हैं | जीवनदायी जल देने वाली हिमालय की पुत्री हैं |उत्तराखंड के राजवंशों की कुलदेवी हैं |पहाड़ के लोगों को अदम्य साहस ,सरक्षण ,विजय और धन -धान्य प्रदान करने वाली शक्तिरूपा हैं |उत्तराखंड की सामाजिक और सांस्कृतिक एकता की प्रतीक हैं |

पश्चिमाभिमुख:साक्षात् हिमान्द्री कथ्यते बुधे:
तस्य दक्षिण भागे वै नाम्नां नन्द गिरी स्मृत:
यत्र नंदा महादेवी पूज्यते त्रिद्शे ऋषि ||

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देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी |
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रही यत्रत:||
............................
............................
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके |
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते ||

शरणागतदीनार्तपरित्राणपराणे |
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तुते ||

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते |
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तुते |

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मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम |
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरण प्रपद्ये ||
आंजनेयमतिपाटलाननं कंजनाद्रिकमनीयविग्रहम |
पारिजाततरुमूलवासिनं भावयामि पवमाननन्दनम ||
यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकान्जलिम |
वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं नमत राक्षसांतकम् |

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देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी |
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रही यत्रत:||
............................
............................
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके |
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते ||

शरणागतदीनार्तपरित्राणपराणे |
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तुते ||

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते |
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तुते

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'पशिचमाभिमुख: साक्षात हिमाद्री कथ्यते बुधै:।
तस्य दक्षिण भागे वै नाम्नां नंद गिरी स्मृत:।।
यत्र नंदा महादेवी पूज्यते त्रिदशेऋषि।
तं दृष्टवां मानवै: सम्यक ऐश्वर्य मिलभ्यते।
नासित नंदा समा देवी भूतले वरदां शुभा।''

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नमामीशमीशाननिर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरुपम |
अजं निर्गुण निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम ||१||
निराकारओमकारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम |
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम ||२ ||
तुषाराद्रीसंकाशगौरं गभीरं
मनोभूतकोटिप्रभा श्री शरीरम |
स्फुरन्मौलीकल्लोलिनी चारूगंगा
लसदभालबालेन्दु कंठे भुजंगा ||३||
चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नानन् नीलकंठं दयालम|
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ||४||
प्रचण्डं प्रकृषटं प्रगल्भं परेशं
अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशम |
त्रय:शूलनिर्मूलनं शूलपाणी
भजेहम भवानीपति भावगम्यम ||५||
कलातीतकल्याणकल्पान्तकारी
सदा सज्जानानंददाता पुरारि:|
चिदानन्दसन्दोहमोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी:||६ ||
न यावद उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम |
न तावत्सुखं शान्तिसंतापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ||७||
न जानामि योगं जपं नैव पूजा
नतोहम सदा सर्वदा शंभु तुभ्यम |
जराजन्म दुखौघतातप्यमान
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ||८||

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये |
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शंभु: प्रसीदति ||९||

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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" शकुना दे ,शकुना दे |
काज ए अती नीको |
सुभ रंगीले पातेले अंचली कमली को फूल |
सोही फूल मोलावान्त गनेस ,रामीचंद्र ,लछिमन |
जीवाजनम आद्या अमरु होई|
सोही पाटु पैरी रैना सिद्धि बुद्धि ,
सीता देहि , बहुरानी आइवान्ती पुत्रवान्ती होई ||"

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥१॥

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत्क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥२॥

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥३॥

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥४॥

परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया
मया पच्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ॥५॥

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः ।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥६॥

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥७॥

न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः ॥८॥

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥९॥

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥१०॥

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि ।
अपराधपरम्परावृतं न हि माता समुपेक्षते सुतम् ॥११॥

मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ॥१२॥
इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्

 

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