इस लोक गीत में पहाड़ के महिला के दुःख का वर्णन है! अपने ससुराल में यह महिला किसी खेत या जंगल में घास काटते हुए अचानक घुघूती पक्षी के गीत (घूरने) सुनती है और फिर भाविक जो जाते है अपने माएके के याद (खुद से) से! गाने के बोल देखिये!
घुगुती घुरोण लागी म्यार मैत की
बौडी बौडी आयी गे ऋतू , ऋतू चेत की
डांडी कांठियों को हूए, गौली गए होलू
म्यारा मेता को बोन , मौली गए होलू
चाकुला घोलू छोडी , उड़ना हवाला -2
बेठुला मेतुदा कु , पेताना हवाला
घुगुती घुरोण लागी हो ......................
घुगुती घुरोण लागी म्यार मैत की
बौडी बौडी आयी गे ऋतू , ऋतू चेत की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की
डान्दियुन खिलना होला , बुरसी का फूल
पथियुं हैसनी होली , फ्योली मोल मोल
कुलारी फुल्पाती लेकी , देल्हियुं देल्हियुं जाला -2
दग्द्या भग्यान थडया, चौपाल लागला
घुगुती घुरोण लागी म्यार मैत की
बौडी बौडी आयी गे ऋतू , ऋतू चेत की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की
तिबरी मा बैठ्या हवाला, बाबाजी उदास
बतु हेनी होली माजी , लागी होली सास
कब म्यारा मैती औजी , देसा भेंटी आला -2
कब म्यारा भाई बहनों की राजी खुशी ल्याला
घुगुती घुरोण लागी म्यार मैत की
बौडी बौडी आयी गे ऋतू , ऋतू चेत की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत