Uttarakhand > Music of Uttarakhand - उत्तराखण्ड का लोक संगीत

Chachari Jhoda on Fair, Love etc- मेलो एव जीजा साली पर बने पारंपरिक झोडे

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

    दोस्तों,

    उत्तराखंड के लोक संगीत में पारंपरिक झोडे, चाचरी, झुमेलो आदि का बहुत   महत्व रहा है! जब लोगो के पास मनोरंजन के साधन नहीं थे स्थानीय मेलो पर   गाये जाने वाले चाचरी झोडे आदि बहुत लोकप्रिय हुवा करते थे ! यहाँ तक लोग   मेले के बाद आपस में पूछा करते थे कि मेले मे कौन सा चाचरी, झोडा सबसे   ज्यादे लोक प्रिय (हिट) था! ये झोडे विभिन्न प्रकार के विषयो पर बनाते थे!   लेकिन आधुनिकता के इस दौर में उत्तराखंड के यह लोक विधा लुफ्त होने की कगार पर   है!    

    जहाँ  पहले ये चाचरी, झोडे धार्मिक, सामाजिक, पारवारिक, प्रेम रस आदि   विषयों पर बनते थे जिनका कि समझ में प्रभाव भी देखा जाता था! कई झोड़ो पर   प्रेम प्रसंग की बाते भी बया होती थी जैसे लोक झोडे के रूप में गाये करते   थे!   

    मेरापहाड़ पोर्टल में हमने सबसे पहले इन्टरनेट पर इन झोड़ो, चाचारो को   लिपिबद्ध रूप एव अन्य संसाधनों के रूप में प्रस्तुत किया है! इस टोपिक से   पहले हमने एक सामान्य टोपिक में सारे झोडे लिखे और एक धार्मिक झोड़ो के   लिए नया टोपिक बनाया है, जिससे कि लोगो को इन झोड़ो और अपने संस्कर्ती को   जानने और समझने में सहजता होगी!   

    इस टोपिक में हम उत्तराखंड के मेलो, जीजा साली नोक झोक, प्रेम प्रसंग से   संभंधित झोड़ो को प्रस्तुत करंगे! आप भी इस टोपिक में अपना योगदान दे सकते   है!   

    एम् एस मेहता        

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

तो सबसे पहले शुरू करते है झोड़ो, चाचरी  का यह क्रम! बागेश्वर जिल्ले में प्रसिद्ध यह एक पुराना झोडा!

(बागेश्वर की रहने वाली हेमा का दानपुर के सूबेदार के लड़के से सम्बन्ध हो गया है! बागेश्वर विकसित स्थान है, दानपुर तब पिछड़ा इलाका हुवा करता था और इस पर भी प्रेमी मोहन वहां नहीं है! वहां से दूर कानपुर में गाडी चलाता है! येसे में बागेश्वर की रहने हेम कैसे यह पायगी दानपुर! देखिये इस झोडे में!

बागेश्वर की रोणी हेमा, कशिके रौछे दानपुर ?
सूबेदार क चेलो मोहना, गाडी चलोछे कानपुर !
रहट की तान, गाडी चलूछे कानपुर ?

तेरो बदन बाना मोहना, कशिके रोछे दानपुर?
लगुली को लेट  मोहन, गाडी चलूछे कानपुर !

कब ह्वोली भेट मोहना, कशिके रोंछे दानपुर?
हाथ बड़ी शीशा घडी, गाडी चलूछे कानपुर !

घडी जहाँ फ़ोडीए मोहना, कैसे रोंछे दानपुर?
राम जी की जैसी सीता, कशिके रोंछे दानपुर !

झोदी झन तोडिये मोहना, गाड़ी चलूछे कानपुर !
झंगोरा की दै च मोहन, गाडी चलून्छे कानपुर?

उम्र की धूमधाम, कशिके रोंछे दानपुर ?
चार दिन रु छ मोहन, गाडी चलोछे कानपुर!

कान्योला की दानी मोहना, गाडी चलूछे कानपुर
आंखियु मा ये जाण मोहन, कश के रो छे दानपुर ?

हिंदी :

बागेश्वर की रहने वाली हेमा, कैसे रहेगी दानपुर में ?
सूबेदार का लड़का मोहन, गाडी चलाता है कानपुर !
रहट की तान, मोहन गाडी चलाता  है कानपुर !
(सिर्फ) तेरे बहाने मोहन (हेम) कैसे रहेगी दानपुर ?
बेल का लपेटा मोहन!
कब होगी भेट मोहन, (बिना तेरे हेमा) कैसे रहेगी दानपुर ?
हाथ पर बंधी शीशे की घडी, गाडी चलाता  है कानपुर!
घडी मत फोड़ना, मोहन कैसे रहेगी दानपुर ?
राम जी की (पत्नी) सीता (की तरह है हेमा) कैसे रहगी दानपुर !
जोड़ी नहीं तोडना, मोहन गाडी चलाता  है कानपुर!
झंगोरा की दाय है, मोहन गाडी चलाता है कानपुर !
उम्र की धूमधाम, चार दिन तक ही रहती है!

साभार : Book Chachari Jhamoko (compiled by Nand Kishore Hatwal)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

मानंद  बिसवासी
 
(प्रेम जाति और धर्म बन्धनों से ऊँचा होता है क्या! लोक गीत में प्रचलित मानंद और बिसवासी का प्रेमगीत भी ये प्रमाणित कर रहा है!

मानंद, लो तामा की पीटण
मानंद, दुरे वे पछ्यांदी,
मानंद, तेरी झोमर हिटण!

बिसवासी, देवी को तगत!
बिसवासी, वे तो मेरो जोगयाण   
बिसवासी, मै च तेरु भगत!
मानंद, लो कडू बोयु रेक !
मानंद, बामणो को खौला!
मानंद, भल छो बिगरो बैख!
हे, चखुली, बबूला की कुंछी!
हे, चखुली, माला खौला दिख्यांदी!
बिसवासी, सबी बानो मा ऊँची!
मानंद, काटी जालो प्याज!
मानंद, व्याखुनी हवे गे !
मानंद, यखी रै जा आज !
बिसवासी, चौलू भरी सेर!
बिसवासी, रात रैण का बाना!
बिसवासी, आयु मै व्यखानी देर !
बिसवासी, हे तिमली को पात!
बिसवासी, मैंन अजो नि खायो!
बिसवासी, तेरु पकायो भात!
मानंद, हिरन को गात!
मानंद, कन कने खालो टीपाऊ!
मानंद, तेरो बामन की जात !
बिसवासी, तेरी माया को खातिर,
बिसवासी, तोड़ी मैंन जनेऊ की कोली !
मानंद, लपलप कोई!
मानंद, लोग राम जपदा
मानंद, मै जपदू तोई!

हिंदी :
मानंद, तावे को पीटना
मानद, दूर से पहचानती है
मानंद, तेरा झूमते हुए चलना!
बिसवासी, देवी का तखत
बिसवासी, तू मेरी जोगिन
बिसवासी, मै तेरा भगत
मानद, मडुवा बोया
मानंद, ब्राह्मणों के खौले!

नरेन्द्र सिंह भंडारी के पुस्तक "Snow Balls of Garwal" में यह गीत एक और रूप में अंग्रेजी में संग्रहीत है ! द्रष्टव्य

Manand

Bisshwashi ! my Girl
Do not ask me where i am for,
Bisshwashi, my girl;s
I am off to bring Brahmini home
Mahanand, my boy
where to, with umbrella in your hand?
Mananand, my boy
And with medicine bag hanging from your shoulder ?
Bisshwashi! my girl;s
Do not ask me where i am for.
Bisshwashi! my girl's
For your sake and your love,
Bisshwashi ! my girl's
I have left doing my Sandhya
Mananad my boy;s
Have you any scruples to take?
Manand, my boy;s
Rice cooked by me your love
Bisshwashi! my Girl's
How shall i each a Brahmin Boy?
Bisswashi! my girl's
Rice prepared by you, a Dom's daughter!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

देवानी लौडा द्वाराहाट को
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देवानी लौडा द्वाराहाट क, तीले धारु बोला
जेतुली बौरेरो की जैता, तू छे भली बाना!

तामा को अरध जैता, तामा का अरध!
औना रैये जाना रैये, दयो कसी बरखा
दयो कसी बरखा लौडा, दयो कसी बरखा !
दीवानी लौडा, द्वाराहाट को, दयो कसी बरखा !

हिंदी :

द्वाराहाट का देवान लौडा, तीले धारु बोला
जेतुली बोरेरी की, तू भली (सुंदर) बान है!
ताबे का अर्ध्य जैता, ताबे का अर्ध्य!
बारिश की तरह आती, जाती रहना
देवान लौडा द्वाराहाट, बारिश की तरह !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
मासी का प्रताप लौड़ा
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(नायक वही मासी का प्रताप और गायिका भी वही चौकोट की पारवती!, लेकिन इस गीत पारवती विवाहित है! संभवतया उनके जबरदस्ती अन्यत्र विवाह कर दिया गया है और वह प्रताप के प्यार में दीवानी ससुराल ही जा रही है !)

मासी का प्रताप लौड़ा, कॉलेज नै जाना बली,
कॉलेज नि जान चौकोट की पारवती,
सौरास नि जानी बली, सौरास नि जानी !
पारवती हरिया दाबा छन्को मेरी आंसी बली छन्को मेरी आंसी
में धोको छाड़न्या,छूने है येले फसी बली. हेजो थेली फ़ासी !
घो धुरी को धो निडालू, बल्धुरी को छ्युली बली, बल्धुरी को छ्युली!
चिट्टी टी डाखाना धयुली माया कै थे, घूल बली माया कैथे घूल !


हिंदी :


मासी का प्रताप लौड़ा, कॉलेज नहीं जाता है चौकोट की पारवती ससुराल नहीं जाती !पार से हरी कोमल घास काटी मेरी डराती (ने) मै तेरा पीछा नहीं छोडूंगा, चाहे अभी फ़ासी हो जाय घो 'धुरे' का देव रिघाल, बल्धुरे का छिल्ला !चिट्टी को डाकखाने में दूंगा, प्रेम किसे ! (नन्द किशोर हटवाल किताब चाचरी झोमको किताब से) 

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