Author Topic: Chhuma Bo, Garhwali Folk Music Character- गड्वाली लेख ; छुम्मा -बौ  (Read 3550 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

Our Senior Member Shri Parashar Gaur ji has written this article on Chhuma Bo, a famous Garhwali Folk Character.


Parashar Gaur parashargaur@yahoo.com



गड्वाली  लेख  ;      छुम्मा -बौ   !!!
 
   [   छुम्मा एक गीत ही नहीं - एक महिला का नाम ही नहीं ! वो केवल गड्वाली गीतों की नायका ही नही  अपितु वो हमारी पहिचान बन गई
 है ! छुम्मा  हमारी संस्कति का "आई  कान"  है ! छुमा का नाम व गीत हर पहाडी  ने सुना और गुन- गुनया  होगा ! छोटा /बड़ा / युवा अवम बुजर्ग  सब इस नाम/ सब्द  से परिचित है पहाड़ के संकृति पर जब जब भी बहस होती  या होगी है तो छुमा का नाम अवश्य आयेगा !
 पहाड़ के साहित्य में उसका बिशेष स्थान है और रहेगा ]
 --------   आगे पड़ें'------ , पड़कर,   कृपया  अपनी टिपणी भी दे और सुझवा भी  !
 
  छुम्मा -बौ   एक बहस  !!
 
         मै अपने बड़े भाई  श्री जे पी  के यहाँ पर  अपने एक मित्र के यहाँ रात्री  भोज पर आमत्रित था !  भाई साहब अभी अभी  भारत से
 लौटे थे !  जब मै वह पहुँचा , पहुँचते ही  वे बोले " पारु" ( घरवाले मुझे सब इसी नाम से पुकारते है ) मै तेरे लिए एक तोफा लेकर  आया हूँ
 उसे अभी नहीं बाद में दूंगा  ! मैंने सर हिला कर कहा " ठीक है .." कह कर  अन्य लोगों के साथ मेल मुलाक़ात अवम बहस में सामिल हो गया !
 
 हमारा इसे  गुण कहे या आदत,  जो भी कहें ...,  एसे अब्सरो  पर अक्सर जब दो या चार व्यक्ति जहाँ भी मिलते है रामा रूमी , हाई हेलो  करने के बाद सीधे राजनीती पर उत्तर आते है  यहाँ भी यही  हाल था !  ये सब नार्थ अमेरिका रहे है लेकिन  बात हिदोस्तान  वो भी राजनैतिक  पर  ज्यादा बहस करते थक नहीं रहे थे ! कोई कांग्रेस को दोषी  ठहरा रहा था तो कोई बी जे पी को ! इनके बिचारो को सुनकर एसा लग रहा था क़ि जैसे ये ही सता को ये  ही  चला रहे हो  ! बहस  कुछ  जरूरत से ज्यादा  गर्म  हो चली थी !  मै उन को सुन सुनकर आनंद  ले रहा था  तभी भीई  साहब ने एक गड्वाली कैसिट  लगा दी .. जिसके बोल  इस तरह से थे ...
 
          "  भैरकी निठुर  छो , भित्तर आखोडै ज्यखेली छो
             तनी -मनी  नि छो , छुम्मा  बओ के चेली  छो  "
 
 संगीत के साथ उभरते गीत के बोल को सुनते ही माहौल  थम सा गया था राजनीति के उथल पुथल व गर्माहट जोश-खरोश  थम चुका था  गीत और उसके बोल स्नेह  -स्नेह  सब पर  अपना असर छोड़ने लगे थे !  सारा गीत सुना ! सारा संगीत सुना ! गीत के बोल सुने ! कुल मिलाकर  सारा  का  सारा गीत छुम्मा बौ पर आधारित था !   मुझे इस कैसिट में गाये इस छुम्मा के गीत के  गीतकार का नाम नहीं मालूम है  लेकिन उन्होंने बड़ी सूझ बुझ व चतुराई के साथ शब्दों का चयन  करके छुम्मा  बौ  को एक और नया जामा पहिनाने के साथ उसे जुडी उन तमाम घटनाओ क्रमबद्ध कर  सिल सिलेवार  जिक्र,   जिसका एक एक शब्द मेरे मन मष्तिक अपना गहरा प्रभाव छोड़े जा रहा था !
 सोचने लगा था क़ि ये छुम्मा है !  है तो, लकिन कौन  है ये  ? यही बिचार बार बार कौंधे जा रहे थे !
 
 हाथो में अपना अपना गिलास  लिए वो सब  उस गीत  व  संगीत की लय  के साथ थिरकने लगे  थे ! कहाँ  राज नैतिक गर्म गरमा बहस  जिसने  सब को अलग अलग ग्रुपों  में बांटे था  वही  इस गीत ने सब को एक साथ थिरकने को मजबूर कर दिया  था !   कुल मिला कर सारा गीत छुमा बौ  पर  आधारित था ! उस गीत को सुनकर लगा  रहा था क़ि  छुम्मा बौ यही कही  हामारे आस पास  है !
 
        पार्टी  समाप्त हुई  गीत संगीत  व  भोजन का आनद लेने के बाद मै सीधे  भीई  जी के पास जाकर  बोला .. " ये कैसिट  मुझे दे दे   .." ! उनका उत्तर  था " ये तो  वो तोफा  है  जिसे मै तेरे लिए  लाया हूँ ! " कैसट को बाहर निकालते  हुए उन्होंने  वो मेरे हाथो में  थमा दी ! उस कैसिट को कार में  घर वापस आते समय कई बार सुना . जी नहीं भरा तो घर में फिर सुना और बार बार सुना क्यों के उसके हर पंग्तियो  के हर एक सब्द में छुम्मा का एसा अधभुत बर्णन है ! जितनी बार भी मै सुनता,  छुम्मा उतनी ही  बार अपने नये रूप में आकर मेरे दिमाग में 
 छा जाती !
 
       छुम्मा एक गीत ही नहीं - एक महिला का नाम ही नहीं ! व केवल गड्वाली गीतों की नायका ही नही  अपितु वो हमारी पहिचान बन गई
 है ! छुम्मा  हमारी संस्कति का "आई  कान"  भी बा गई है ! छुमा का नाम व गीत हर पहाडी  ने सुना और गुन- गुनया  होगा ! छोटा /बड़ा / युवा अवम बुजर्ग सब  इस नाम/ सब्द  से परिचित है पहाड़ के संकृति पर जब जब भी बहस होती है तो छुमा का नाम अवश्य आता है ! पहाड़ के साहित्य में उसका बिशेष स्थान है और रहेगा
 
         छुम्मा पर बहस करने से पहले उसके बारे में  जो सवाल बार बार उठते है उन पर गौर करना होगा क़ि क्या छुमा वाक्य में थी ?
 वो कौन थी ?  कैसे  थी ? कहाँ की थी ?  छुम्मा को मैंने नहीं देखा और नाही मेरी पीडी के  किसी   व्यक्ती ने !  ऐसा  भी तो  हो सकता है क़ि वो थी या रही होगी  लेकिन  उसे  असली नाम के जगह छुम्मा  का नाम देकर तब प्रचलित किया  गया  हो , यदपि  गडवाल के और नायकाये
 है जिनमें सरू / रुक्म्मा / गयली/ गैणी/ दौन्थी / सुर्म्मा /  आदि -आदि किसी ना किसी प्रत्यक्ष या परोक्ष  में  रूप में थी ! ठीक इसी तरह छुम्मा भी रही होगी !
 
         छुम्मा  एक काल्पनिक पात्र अधिक लगती बजाए हकीकत के !  या  यूँ  कहे क़ि  ये किसी गीतकार के दिमागी उपज भी तो हो सकती है  काल्पनिक  इसलिए  लगती है क़ि  नहीं मैंने,   नहीं मेरे  पुर्बजो ने, और नहीं उनके पूर्वजो  ने उसे देखा ,  नहीं उससे कोई बात की , लेकिन उसके बारे में सूना जरुर  !  जब तक  उसके बारे मे ठोस  परमाण  नहीं मिलते तन तक वो  एक काल्पनिक पात्र ही रहेगी !  छुम्मा को  जिसे  हम  अक्सर गीतों के माध्यम से जानते और सुनते आये  है   वो छुमा असलमे  उस समय के रचनाकार की दिमागी उपज थी  जिसे उसने अपने  सब्दो के सब्दजाल अवम अलंकारो  पैदा कर उसे आज तक जीवत  रखा  है   ठीक  इंग्लैंड के  मशहूर  लेखक चार्ल्स डिकन के उस काल्पनिक आदमी के तरह जो ना कभी जन्मा था लेकिन वो आज भी ज़िंदा है हकीकत के रूप में  लोगों के  नजरो  में !
 
        अक्सर हामारे पहाड़  में गीत  घटनाओ बनते आये है   क्या पता ये भी शायद  उसी कड़ी  का एक अंग हो, या हो सकता है और  देखा जाये  तो आज तक हामारे गीत घटना प्रदान ही  हुआ करते थे और है   भी शायद  मेरी  " छुम्मा  बो '  येसी ही कोई घटना के घटित  घटना का प्रतिबिम्ब हो  जिसे किसी रचनाकार ने  जम दिया हो !
 
        लेकिन फिर सवाल उठता है कोई योही क्यों किसे के बारे में लिखेगा ! कुछ ना कुछ तो होता है जिसको आधार मानकर आगे चला जाये !
 जब जब छुमा के गीत सुनते है तो वो  हर एक सुनने वालो के जहन में पैदा हो जाती है  ! तो इसका अर्थ ये हुआ क़ि वो थी ,  लेकिन क्या हकीकत में वो थी  ? ये सवाल फिर बार बार दिमाग में घुमने लगता है ! या समकालीन गाने वाले /गीतार "बादी" ( जो तब भी और अब  भी
 हमारी संस्कति  के बड़े धरोहर थे ) जो गीत के रचना करने में इतने निपुण होते थे क़ि कोई घटना घटी नहीं  क़ि उसी समय  उस पर एक गीत तयार ) ने उसे उपनाम देकर उसकी छ्ब्बी को छुम्मा का रूप में प्रतिष्ठत कर दिया हो ! जो कुछ भी हो , रचनाकार ने अपने शब्दों के द्वारा
 जो उसने उसकी तस्बीर खींची , उस तस्बीर का प्रतिबिम्ब आज भी हमारे मन व मष्तिक  पर अंकित है !
 
 छुम्मा के बारे में जब हम सोचते है तो मन में उसके  आकारों व छबी के बिभिन्न प्रकार के तस्बीरे  रंगने लगती है !   उन तस्बीरो
 के बारे में अगर हम जब किसी से  पूछे तो उसके लिए उकसा चित्रण करना  ठीक उस गूंगे के सामान है  जिसे  गुड खाने के बाद  पूछा जाए क़ि  इसका स्वाद कैसा है  तो वो बेचार क्या जबाब देगा. यही हालत  उसकी  भी होती है क़ि छुम्मा के बारे में क्या कहे?  कैसे कहे क़ि वो,  कैसी  है ? अक्सर  हम सब के ह्रदय में छुमा के छबी एक सुंदर मादकता वाली ,सोला श्रृंगारो से सुसजित चंचल. नटखट गदराई बदना वाली   तरूणी  नव  युवांगना होती है  जिसे  देख देखकर हम  मन हे मन में आनंदीत  है लेकिन उसके बारे में कुछ भी  बयां नही कर पाते ! काश उस ज़माने में कैमरा  होता  तो तब उसकी छ्ब्बी को कैद करके रखा दिया जाता  तो हमें इतनी बहस करने की जरूरत हि नहीं पड़ती !
 
        समय गतिशील अवम चलायमान  है उसके साथ की चीज़े  मिटती , बदलती  और लुप्त होती है  लेकिन छुम्मा ना तो मिटेगी ,ना बदलेगी और नाही लुप्त होगी ! छुमा और नायको  से थोड़ी भिन है ! हमारे सांस्क्रतिक / संस्कृति  में कई नयकाए  आई  और चली गई
 लेकिन छुम्मा अपनी जगह  अभी भी वही है जहा से शुरू हुई थी ! वो कल भी थी  आज भी और कल भी रहेगी !
 
 छुम्मा  प्रेम  का प्रतीक है !  छुम्मा से हर कोई प्यार करता है ! वह हर पहाडी व्यक्ति के नायका है !   मैने स्वयम  अपनी आंखे  मूंद  कर कई बार उसकी अनवार के कल्पना  की.  क़ि कैसी रही होगी वो ?  सच मानिए मैंने  तो उसे फ़िल्मी हिरोईनों  के साथ जोडा , उन में
 ढुंढा ! उसे दुनिया  के  इतिहास  में चर्चित हसींन  औरतो के समक्ष रखा ! मैंने उसे  आज की मिस वर्ल्ड  के साथ भी खड़ा किया  बाबजूद  इन खूबसुरत महिलाओं के रंग रूप  से उसकी छबी इन सब से अलग ही नजर  आई ! उसका रूप इन सब से परे था . !
 
      छुम्मा इजिप्ट के महारानी कैलीपैट्रा के तरह है ! जो अपने रंग रूप को लेकर अपने आप में एक पहली बनी हुई है  जिसके बारे में लोग और एतिहाकर  अपने अपने अनुसार अपनी  अपनी राय  देते  आये है ! कोई  ये मान कर चलता  है क़ि वो काली -सवाली थी  तो कोई कहता है  नहीं , वो तो एक दम गोरी चिटी थी ! मेरे और मेरी पीडी के सामने  भी छुम्मा का यही हाल है  हम उसके रंग रूप व आकर के बारे में किसी   भी नतीजे में नहीं  पहुच पाते या पहुँच पा रहे है क़ि,   वो किसी थी !   उसका रंग काला था ?   संवाला था  ?  , गोरा था  ?  या गेहुँवा था ? 
 
      अब सवाल उठता है क़ि उसकी उम्र क्या रही होगी ?  जाहाँ  तक उम्र की बात  है तो हम सब यहाँ पर सब सहमत से हो जाते है को वो  १६ से ३० बर्ष के बीच रही होगी  है  ! अक्सर देखा गया है क़ि जब जब भी स्त्री  ३० के उपर अपना पड़ाव  पार करती तो उसके आकर रूप  रंग  में
 बदलाव आने लगता है  जिसके कारण वो अपना आकर्षण  खोने  लगती है  जिसके कारण सामने वाल उसे से अपना ध्यान हटाने लगता है ! छुम्मा की  कल्पना जिसने भी की होगी या उस पर लिखा होगा अपना पहला गीत ,   तो उसने यही उम्र को ध्यान में रख कर की होगी  तभी तो उसके गीतों में उसके  योबन के पूरी मादकता छलकती है !
 
      उम्र का पता चल गया ! एक पहेली हल हो गई ! परन्तु उससे जुड़े और कई सवालों का निदान होना अभी भी बाकी है ! कद , लम्बाई
 नैन -नक्श , कैसा रह होगा - लम्बी रही होगी या छोटी या बीच के कद की ?  बदन कैसा रहा होगा - सुडबुड़ी, छछेरी,  गोल -गोबिंद ,गदराया
 पतली  या मोटी  ! मोटी हो नाही सकती  ?  किस गाऊ, पट्टी , माँ- बाप कौन थे आदि आदि  सवाल अभी भी खड़े है !  काश .... कोई  कही ना कही  पथरो में /पत्तो में / गुफाओ में उसके रंग -रूप, आकर ,के  बारे में कुछ ना कुछ लिखकर छोड़ गया होता ! मेरे गीतकारो ने  केवल शब्दों में बाँध कर  रखा है  मेरी छुम्मा  बौ को !
 
       पहाड़ो में जब जब भी गीत लगते थे  [आज के बात नही करता } ज़याद गीत आपस में प्रेम के संबंधो  के कारण चर्चित प्रसंगों में आये नायक-नाय्काओ के उपर सुनने को मिलते है  या लिखे जाते रहे  है. जिंसमे जीजा  -सयाली , देवर  भाबी { बौ } के अधिक  सुने जाते है ! छुमा
 के पीछे  "बौ"   सब्द का जोड़ना भी अपने आप में एक प्रशन खड़ा करता है ! संसार का एक दस्तूर ये भी  रहा के गरीब का स्त्री को सब बौ  कह कर  पुकारने में तिनिक भी संकोच नही  करते  ! 
 
      छुम्मा के पीछे  "बौ " सब्द आने का अर्थ ये हुआ क़ि  वो शादी सुदा थी  ! जैसा के गीतों के माध्यम से बार बार ये शब्द सुनने को मिलता
 है !  गीतकार ने "  स्याली"  क्यों  नही चुना , बौ को ही क्यों चुना  ? क्यूंकि  उसे लगा होगा  गीत के बोल के साथ साथ ताल में बौ सब्द सटीक लगत है बजया स्याली के ! एक बात तो ये हो सकती है !   दूसरी क़ि वो उसे मान के साथ देखना चाहता  है  एक आद ऐसे  किस्सों को छोड़कर  देवर भाबी के रिसते हमेशा आदर के रहे है !  छुम्मा और बौ अब वो एक दुसरे के पूरक है ! बौ को अगेर छुम्मा से अलग करे और छुम्मा को बौ से  तो वे दोनों निरर्थक लगेंगे ! वे अस्थित्वा हीन हो जायेंगे ! वे पानी और मछी  जैसे है  जिन्हें हम चाहते हुये भी अलग नहीं कर सकते !
 
       बौ (भाबी ) भारतीय संस्कृति  में ऐसे दो रूपों में देखा जा सकता है ! एक मर्याद का जिसमे  भाबी  माँ के रूप में प्रतिष्टित है ! दुसरा प्रेम का प्रतीक भी है  जिसमे देवर और भाबी के नाजुक रिश्तो का ताल मेल बनता है ! रिश्तो के प्रपेक्ष  में देखते  हुये लगता है क़ि छुमा बिबाहिता थी जिसका देवर के साथ प्रेम सम्बन्ध बन गए थे  जिसे समाज ने नाजायज  करार दीया होगा ! समय या परस्थितियो  के मार ने उसे समाज में बदनाम कर दिया हो या मनचलों ने उसे हालातो से समझोता करने पर मजबूर किया हो,  कुछ एसी ही स्थितयो ने बौ जैसे शब्दों के
 साथ छुमा को  गीतों में चिपका दिया हो !  उसी के फलस्वरूप वो गीतकारो के नजरो में आई  और वो उनके गीतों की नायका बन बैठी !  आलम ये है क़ि आज सुनेवालो को भी छुमा के साथ बौ शब्द अच्हे लगते है ! !
 
     छुम्मा ने पहले २ समझोते किये होंगे लेकिन जब कोई चीज़ हद से उपे गूजे जाती है तब उसमे  उसके लिए क्या बुरा क्या भला तब हो सकता है उसने भे समाज से बदला लेना शुरू कर दिया हो वो तब माया के मशीन बन गई होगी  ! कितनो के दिलो को तोड़ा होगा ! जहां वो एक ओर प्रेम की प्रतीक बनी वहीं वो निष्ठुर भी बन  गई ! वो एक नारी भी जिसके पास कोमल ह्रदय होता है परन्तु जब नारी के समान पर चोट लगती है तो नागीन भी बनने में  जरा भी देर नहीं करती ! हमारे  गीतकारो ने उसके के  पक्ष छुआ !  उसकी सुंदर को निखारा . तो साथ में उसे निष्ठुर /कठेर /निर्दई  जैसे शब्दों से भे नवाजा !
 
     इसमें दो राय नहीं उसका अकश अंकित तो है परन्तु  सम्पूर्ण आकृति साफ़  नहीं  ! लोग इसे अपने अपने अनुरूप देखते है किसी भी आदमी को उसकी छब्बी/रंग /रूप /आकर के बारे में पुछो तो वो पल भर के लिए ठूँठ  बनकर रह जाता है  वो थोड़ी देर  के लिए कहीं खो कर  छुम्मा की तस्बीर को अपने मन में खोजने का प्रयास करने लगता है !  यूँ तो की की नायाकाए आई  औए चली गई जिन्होंने  पहाडी  गीतों में अपने अपने अनरूप चाप छोडी लेकिन छुम्मा का स्थान सर्बोपरी रहेगा  छुमा,   छुमा है बस ....! वो आज भी ज़िंदा है  कल भी रहेगी  औए आने वाले कल में भी !
 
 पाराशर गौर
 सितम्बर ५  स्याम ७.३० बजे  २०१२.

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From - Bhishma Kukreti.

श्री पाराशर जी ने उचित ही कहा है कि छुमा बौ एक  प्रतीकात्मक नाम है प्रसिद्ध इतिहासकार डा. शिव प्रसाद नैथाणी ने 'उत्तराखंड लोक संस्कृति और साहित्य ' लेख में छुमा बौ पर अपनी  राय दी उत्तराखंड के लोक गीतों कि नायिकाओं के नाम बहुत कुछ उनकी सामयिकता तत्कालीन युग का परिचय भी दे देते हैं कत्य्री गाथा में वह उदा है, जोत्रमाला है, मोती माला है , इजुला, बिजुला और राणी जिया है .  उधर  उत्तर मध्य काल में उसके नाम हैं सुरु कुमैण, मोतिया, जसी , मलारी और  राजुला, किन्तु राजुला से पहले सुरजी हुए थी रमकणि, छमकणि, बीरू कसी वूंग, कहती मीठी साली होली दाख दाड़िम जसी ....  और इधर पिछली सदी में पहले दौंथा थी, पुरुष 'मेरी दौंथा कथैं   गे ' कहकर ढूंढते थेइस बीच मधुलि भी तो आ गयी थी 'खोली जाली होली , मदौली मदुली सबि बुल्दन कन मदुली होली' 
दौंथा के बाद तो छुमा प्रसिद्ध हुयी किन्तु वा तो छुमा बौ के नाम से प्रसिद्ध हो गयी , छुमा बौ कद में कुछ छोटी है , नारंगी सी दाणीसी, गोल मटोल सी, और रंग नारंगी जैसा  है, छुमा बौ को पहाड़ी टोपी और मगजी बहुत प्रभावित करती है . भाभी है तो प्रगल्भ भी है इशारा भी करती है छोटी छोटी छुमा बौ टु नारंगी सी दाणी रूप कि आन्छरी छुमा, जन   ऐना  चमलांद गुड़ खायो माख्योंन , सरा संसार गिच्चन खांदो तू खांदी आंख्योंनपीतल कि छनी, पीतल कि छनी मुलमुल हंसदी छुमा दै खतेणि जन  रोटी क कतर,  रोटी क कतर, नथुली को कस लगे तेरी गल्वाड़ी पर     झंगोरा कि बाल, झंगोरा कि बाल छुमा परसिद ह्व़े गे सरा गढ़वाल सरा गढ़वाल                         छुमा ने प्रसिद्ध तो होंना ही था जिस नथुली के कस कि बात गितांग कर रहा है उस नथुली को हल्का सा हिलाकर छुमा ने अपने प्यार कि स्वीकृति भी दे दी थी पर बुद्धू बहुत देर बाद समझ पाया टोपी कि मगजी टोपी कि मगजी नथुली न सान करे तिन णि समझी सुनने में आया कि बाद में छुमा बौ लछमा के नाम से प्रसिद्ध हुयी आजकल तो छुमा बौ हिंदी फिल्मो से निकल कर गढ़वाल में बसने लगी है  और छुमा बौ का गुलबन्द गुम हो ग्या है नथुली हर्च गयी है  और छुमा बौ मोबाइल में समाने को आतुर है


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छुमा बौ पर कुछ और प्रतिक्रिया
मेरी भग्यानी बौपोस्तु का छुमा , मेरी भग्यानी बौ - आज कि छोपती मेरी भग्यानी बौ
रै तुमारा जुमा मेरी भग्यानी बौ, अखोड़ू का डोका मेरी भग्यानी बौ
रै तुमारा जुमा मेरी भग्यानी बौ, हम अजाण लोका मेरी भग्यानी बौ
बाजि त छुड़ीका मेरी भग्यानी बौ, इन देण दुआ मेरी भग्यानी बौ
हींग सि तुडका मेरी भग्यानी बौ, काखड़ कि सींगी मेरी भग्यानी बौ
रातू का सुपिना देखी मेरी भग्यानी बौ, दिन आंख्यों रींगी मेरी भग्यानी बौ
बांज को हरील मेरी भग्यानी बौ, रिन्गदो रिन्गदो मेरी भग्यानी बौ
त्वे मुंगे सरील मेरी भग्यानी बौ, बदल को रूम मेरी भग्यानी बौ
यनु मन को कुरोध मेरी भग्यानी बौ, जनु रेल घुम मेरी भग्यानी बौ
बान कि बराणी मेरी भग्यानी बौ, हंसी रौण खेल मेरी भग्यानी बौ
द्वी दिन पराणी मेरी भग्यानी बौ, पैरी त सुलार मेरी भग्यानी बौ
द्वी दिन कि जवानी मेरी भग्यानी बौ, जवानी का उलार मेरी भग्यानी बौ
दाळी ध्वे तैं छीलो मेरी भग्यानी बौ, तेरा बाना ह्वेगे मेरी भग्यानी बौ
सरील को क्वीलो मेरी भग्यानी बौ, काटी जालो घास मेरी भग्यानी बौ
काम करी काज मेरी भग्यानी बौ, ज्यू तुमारा पास मेरी भग्यानी बौ
खग्वाड़ी का तोड़ा मेरी भग्यानी बौ, हंसी रौंण खेली मेरी भग्यानी बौ
ज्वानी रै गे थोड़ा मेरी भग्यानी बौ, बुलबुली कौंळ मेरी भग्यानी बौ
हैंसुणू खेलण मेरी भग्यानी बौ, त्वे जीवन जौंळ मेरी भग्यानी बौ
बाखुरी दनकी मेरी भग्यानी बौ, भरपुर्या जवानी मेरी भग्यानी बौ
नी होणी मन की मेरी भग्यानी बौ, ग्युं जौ का कीस मेरी भग्यानी बौ
तेरी मेरी माया मेरी भग्यानी बौ, जनु ठनडु पाणी तीस मेरी भग्यानी बौ
काळी गौ को चौंर मेरी भग्यानी बौ, त्वेसरी गुलाबी फूल मेरी भग्यानी बौ
मैं मसीको भौंर मेरी भग्यानी बौ, तमाखू को गूल मेरी भग्यानी बौ
तू स्वीण को धागों मेरी भग्यानी बौ, मु गुलाबो फूल मेरी भग्यानी बौ
ढोल की लाकुड़ी मेरी भग्यानी बौ, तू यनि दखेंदी मेरी भग्यानी बौ
ह्व़ाण सि काखड़ी मेरी भग्यानी बौ, आणि बूणी माणि मेरी भग्यानी बौ
एक मन का बोद मेरी भग्यानी बौ, तोड़ी खाणी मेरी भग्यानी बौ
कोरी त कुनाली मेरी भग्यानी बौ, भौज तू दिखेंदी मेरी भग्यानी बौ
डांडू सि मुनाली मेरी भग्यानी बौ, अतर की डब्बी मेरी भग्यानी बौ
आज की छोपती मेरी भग्यानी बौ, सौन्ति गाळी मेरी भग्यानी बौ
सौडू पके बेर मेरी भग्यानी बौ, आज की छोपती , मेरी भग्यानी बौ
बरसूँ का फेर मेरी भग्यानी बौ

मूल स्रोत्र डा. गोविन्द चातक , गढवाली लोकगीत (पृष्ठ १०० )

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु commented on Parashar Gaur's post in उत्तराखंडी लेखन प्रतिभाएं !
क्या बोन्न तब? भौत सुन्दर.... " भैरकी निठुर छो...    
जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु    11:26pm Oct 7
क्या बोन्न तब? भौत सुन्दर....


" भैरकी निठुर छो , भित्तर आखोडै ज्यखेली छो
तनी -मनी नि छो , छुम्मा बओ के चेली छो "


छुम्मा बौ, मधुलि, कमला,

जौं फर प्यारा गीत,

रच्यां छन गीतकारू का,

अब अंदाज बद्लिगी,

रौ रिवाज हर्चिगी,

पहाड़ की संस्कृति की झलक,

कायम यु मा.....................

 

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