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क्या उत्तराखंडी गानों का स्तर गिर रहा है ?

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Author Topic: Decreasing Standard Of Uttarakhand Music - उत्तराखंडी गानों का गिरता स्तर  (Read 22374 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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ढोल सागर ढोल की थाप, दमाउ का साथ

बदलते सामाजिक परिवेश एवं पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के चलते पहाड़ की लोकसंस्कृति को भी बडे पैमाने पर नुकसान पहुंचा है।

कभी लोक परंपरा के संवाहक रहे वाद्यों ढोल दमाऊ पर अब डीजे सिस्टम भारी पड़ने लगे है। पहाड़ के नगरीय इलाके तो दूर, अब अधिकतर गांवों में भी ढोल दमाउ की चमक फीकी पड़ती नजर आ रही है, लेकिन पौड़ी की गगवाड़स्यूं पट्टी आज भी ढोल दमाउ को जीवित रखे हुए है। यहां ढोल सागर की तमाम विधाओ पर ढोल दमाउ वादन की प्रतियोगिता ने न सिर्फ इन वाद्यों को संरक्षण प्रदान किया है, बल्कि इसे राष्ट्रीय पहचान भी दिलाई है। इसी की बदौलत यह प्रतियोगिता आज इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली तक भी पहुंच चुकी है।

ढोल सागर एवं इसके वादन के विशेषज्ञों की बेजोड़ कला को संजोए हुए पौड़ी मुख्यालय के करीब तीस किलोमीटर दूर स्थित पौड़ी ब्लाक के तहत गगवाडस्यूं पट्टी का घुसगली कौथीग अपने आप में अनोखा मेला है।

 यह मेला पारंपरिक लोकवाद्यों ढोल- दमाउ के वादन की शैली आज जीवित रखे हुए है। हर साल जनवरी माह में मकरैण त्योहार के अवसर पर आयोजित होने वाले इस मेले में ढोल दमाउ के वादन की प्रतियोगिता की जाती है, जिसमें क्षेत्र के दर्जनों दास (ढोल-दमाउ वादन के विशेषज्ञ) प्रतिभाग करते है। मेले का आयोजन दो दिवसीय होता है।

पहले दिन देवी के मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है और भक्त मनौतियां पूर्ण होने एवं मनौतियां मांगने के लिए मंदिर में माथा टेकते है। हालांकि, मेला मनाने की परंपरा वर्षाे से चली आ रही है, लेकिन वर्ष 2000 में यहां ढोल दमाउ की प्रतियोगिता शुरू की गई।

 इसके तहत मेले के दूसरे दिन ढोल दमाउ वादन की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। प्रतियोगिता में ढोल सागर की धुने गूंजती है। इसके लिए ढोल सागर के विशेषज्ञों की टीम गठित की जाती है, और फिर बारी-बारी से प्रतिभागियों से तमाम वार्ताओं के तहत ढोल-दमाउ वादन कराया जाता है। पूरे दिन भर यहां ढोल सागर की धुनों पर देवी-देवताओं का भाव लिए हुए भक्त भी नाचते है। अंत में निर्णायक मंडल द्वारा विजेता प्रतिभागियों का चयन किया जाता है।

 पहले, दूसरे एवं तीसरे स्थान पर रहने वाले प्रतिभागियों को मेला आयोजन समिति की ओर ने साम‌र्थ्य के अनुसार नगद धनराशि पारितोषिक स्वरूप प्रदान की जाती है। प्रतियोगिता को देखने के लिए आस-पास के सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है। वर्ष 2007 में संस्कृतिकर्मी अरविंद मुदगिल ने ढोल दमाउ की प्रतियोगिता को कैमरे में कैद कर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली को भी भेजा। जहां इस प्रतियोगिता को गढ़वाल की धरोहर के रूप में संजोकर रखा गया है।

मेला आयोजन समिति से जुडे़ उमाचरण बड़थ्वाल एवं संस्कृतिकर्मी अरविंद मुद्गिल बताते है कि इस प्रतियोगिता से लोगों को ढोल सागर की जानकारी तो मिल रही है, वहीं इसके वादन के जानकार भी प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर ढोल दमाउ की धुनों पर ढोल सागर को प्रचारित कर रहे है।

Rajen

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इस बार छुट्टी में पहाड में ज्यादा दिन बिताने का मौका मिला जाहिर है ज्यादा लोगों से भी मुलाकात हुई.  मैंने लोगों से अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज और अन्य मुद्दों पर बातचीत की.  जहां तक पहाडीगानों की बात है, नई पीढी में पुराने लोकगीतों के प्रति उदासीनता ही दिखाई दी.  वो लोग या तो नये चट-पटे गाने पसंद कर रहे हैं और या हिंदी फिल्मी गाने.  मेरा अनुभव यह रहा कि पहाड से दूर रहने वाले लोग जितना पहाडी संगीत से लगाव रखते हैं उतना पहाड में रहने वाले नहीं.  क्या कहते हो मेह्ता जी ?


Folk Songs standards needs improvement...

Thul Nantin

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यह बिलकुल सही observation है | गाने/विडियो  ही नहीं सम्पूर्ण पहाड़ी संस्कृति, पहाड़ी शहरों में ही खतरे में है |
जैसे famous saying है की "  पहाड़ की जवानी और पानी पहाड़ के काम नहीं आते   " उसी तरह पहाड़ी संस्कृति का गला पहाड़ी शहरों में ही घोंटा जा रहा है |
इस बार छुट्टी में पहाड में ज्यादा दिन बिताने का मौका मिला जाहिर है ज्यादा लोगों से भी मुलाकात हुई.  मैंने लोगों से अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज और अन्य मुद्दों पर बातचीत की.  जहां तक पहाडीगानों की बात है, नई पीढी में पुराने लोकगीतों के प्रति उदासीनता ही दिखाई दी.  वो लोग या तो नये चट-पटे गाने पसंद कर रहे हैं और या हिंदी फिल्मी गाने.  मेरा अनुभव यह रहा कि पहाड से दूर रहने वाले लोग जितना पहाडी संगीत से लगाव रखते हैं उतना पहाड में रहने वाले नहीं.  क्या कहते हो मेह्ता जी ?

Hisalu

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Really the standard of uttarakhandi songs has gone down.
Bhaskar Joshi shared his status.
मुझे हंसी आती है कि कुछ हमारे पहाड़ (उत्तराखंड) के कुछ घटिया गायक / ड्रामा कम्पनी वाले / छिछोरे नाचने वाले और छोटे मोटे सामाजिक कार्यकर्ता और कांग्रेस / बीजेपी से असफल और असंतुष्ट छुटभैये नेता लोग आजकल तेजी से आप पार्टी को ज्वाइन कर रहे हैं...; जिसके सर में देखो सफ़ेद टोपी है.. curiously इनमे महिलाएं ज्यादा एक्टिव हैं ...! शायद उनको उम्मीद है कि उनकी राजनीती में पैर ज़माने की और विधायक / सांसद बनने की महत्वकांशा आप को ज्वाइन करने से पूर्ण हो जायेगी .. !! ये लोग न केवल अवसरवादी होते हैं बल्कि इनका कोई चरित्र भी नहीं होता ...!! मैं ऐसे चरित्र वाले लोगों को बहुत समय से अवलोकन कर रहा हूँ... और दावे से कह सकता हूँ कि ये लोग शोहरत और धन के भूखे हैं, और इनका भ्रस्टाचार आदि से कोई वास्ता नहीं, बल्कि में तो यह कहूंगा कि ये जहाँ भी जायेंगे भ्रस्टाचार (सभी प्रकार का) को और भी बढ़ावा मिलेगा .. !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand Folk Songs are on verse of losing its popularity ?

 

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