Author Topic: Feedback On Negi Jee - नमस्कार मी नरेन्द्र नेगी अपना श्रोताओ से अनुरोध करनुछो  (Read 20460 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

i had the honor to meet with Narender Singh Negi Ji today in my office. He had come to Delhi in connection with recording and other work.

धनेश कोठारी

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 232
  • Karma: +5/-0
मिन जु सम्झि -: सलाण्या स्यळी का मार्फत लड़ै जारी रालि.................।

   अप्रतिम लोककवि, गीतकार व गायक नरेन्द्र सिंह नेगी का लेटेस्ट म्यूजिक एलबम ‘सलाण्या स्यळी’ मंनोरंजन के साथ ही उत्तराखण्ड राज्य के अनुत्तरित सवालों और सांस्कृतिक चिंताओं को सामने रखते हुए एक संस्कृतिकर्मी के उद्‍देश्यों सहित जिम्मेदारियों को तय करने में अपनी भूमिका को निभाने में कामयाब दिखता है। सलाण्या स्यळी में नेगी ने जहां नई प्रतिभाशाली गायिकाओं गीतिका असवाल व मंजु सुन्दरियाल को मौका दिया है, वहीं कुछ प्रयोगों से भी वे नहीं चुके हैं। हां, पमपम सोनी का संगीत संयोजन अब निश्चित ही ऊबाउ सा होने लगा है। दूसरी ओर हालिया दौर में नेगी द्वारा युवाओं को फांसने के फेर में ‘डी टोन’ यूज करना उनकी स्वाभाविक आवाज पर प्रश्नचिह्न उभारता है।
   ‘बाँद’ यानि कि एक खुबसूरत महिला। लेकिन राज्य निर्माण के बाद पहाड़ के सांस्कृतिक धरातल पर गीत-संगीत के कई ‘ठेकेदारों’ ने अब तक पहाड़ी ‘बाँद’ को ऑडियो-विजुअल माध्यमों में बदशक्ल, बदमिजाज, बदनीयत सा कर डाला है। नरेन्द्र सिंह नेगी ‘सलाण्या स्यळी’ के पहले ही गीत ‘तैं ज्वनि को राजपाट’ में चुनौती के साथ ऐसे करतबों को न सिर्फ हतोत्साहित करते हैं। बल्कि प्रतिद्वन्दियों को भरपूर मात भी देते हैं। हालांकि मतलब से इतर गीत के बोलों को सपाट अंदाज में समझें तो ‘खुबसूरती के गुमान में इतराती लड़की’ का चुहलपूर्ण जिक्र इसमें है। जोकि अंदाजे-बयां काबिलेगौर भी है।
   पहाड़ में जीजा-साली के बीच हमेशा ही आत्मीय रिश्ता रहा है। तो, सलाण और गंगाड़ के बीच भी पारस्परिक संबन्धों के साथ ही स्यळी-भिना के रिश्तों में भी स्वस्थ प्रगाढ़ता और हाजिर जवाबी उन्मुक्त रही है। ऐसे में नेह के रिश्तों का जीवंत होना आर्श्‍चय भी नहीं। एलबम का शीर्षक गीत ‘सलाण्या स्यळी’ पुराने विषय को पारम्परिकता के साथ परोसता है। सलाण-गंगाड़ के परिप्रेक्ष्य में रचा यह गीत भले ही औसत लगे। फिर भी नेगी ने गीत की अंतराओं को कोरस के जरिये उठाकर अच्छा प्रयोग किया है, और यह कुछ हद तक सुन्दर भी बन पड़ा है, साथ ही गीत में नई गायिका की आवाज से ‘स्यळी की कच्ची उम्र जैसा स्वाद’ मिलता है। यह गीत युवाओं से ज्यादा पुरानी पीढ़ी को निश्चित ही पसंद आयेगा।
   हास्य-व्यंग्य के पैनेपन के साथ रचा तीसरा गीत ‘चल मेरा थौला’ मनोरंजन से अधिक गुत्थियों को बुनता है। सूत्रधार थैले के जरिये कहीं अति महत्वाकांक्षी वर्ग चरित्र तो कहीं सहज रास्तों पर ‘लक्क’ आजमाने की ख्वाहिशें, तो तीसरी तरफ अकर्म के बाद भी मौज की उम्मीदों जैसे भावों से गीत कई खांचों में बंटा लगता है। सुनने वालों की जमात में यह गीत किसी ‘आम’ की अपेक्षा कुछ ‘खास’ को ही तजुर्बा दे पायेगा। बाकी भरने की उम्मीद में जहां-तहां चल चुका ‘थौला’ कितना भरेगा, कितना खाली होगा, यह वक्त बेहतर बता सकेगा। इस गीत में नेगी का जवांपन कुछ अच्छा लगता है।
   ‘स्य कनि ड्यूटी तुमारी’ के भावों को जानने से पहले ही कहूं कि, यह गीत विषय, शैली, भाषा व धुन हर दृष्टि से एलबम की मार्मिक किंतु सबसे उल्लेखनीय रचना है। नरेन्द्र सिंह नेगी का नैसर्गिक मिजाज भी यही है। इसी के लिए वे श्रोताओं के बीच ख्यात भी हैं। पहाड़ और फौजी दोनों स्वयं में पर्याय हैं। ऐसे में जहां सीमाओं पर सैनिक अपने कर्तव्यों की मिसाल है तो, घर में उसका परिवार भी ‘जिन्दगी के युद्ध’ में मोर्चा लिए हुए जीवन पर्यन्त रहता है। दरोल्या-नचाड़ों के लिए ‘बेमाफिक’ यह कृति बाकी हर वर्ग को स्पंदित करने का माद्‍दा रखती है।
   नरेन्द्र सिंह नेगी के कैनवास पर एक और शब्दचित्र ‘बिनसिरि की बेला’ के रूप में बेहतर स्ट्रोक, रंगों व आकृतियों में उभरता है। इसमें पहाड़ का जीवंत परिवेश, जीवन की एक मधुर लय और कौतुहल के विभिन्न दृश्य स्वाभाविकता के साथ पेंट हुए हैं। यह गीत कुछ-कुछ ‘राज्य निर्माण के बाद अभिकल्पित ‘उदंकार’ की संभावना तलाशता भी लगता है। जहां गांव की आने वाली भोर शायद इस शब्दचित्र जैसी ही हो।
   ‘प्रेम न देखे जात और पांत......’। प्रेम के रिश्तों में बंदिशें सदियों से रही हैं। सामाजिक जकड़नों ने अपनी ‘गेड़ाख’ को आज भी ढीला नहीं किया है, तब भी प्यार प्लवित हुआ है। अन्तरजातीय रिश्तों की विवशताओं को रेखांकित करता गीत ‘झगुली कंठयाली’ इस संकलन की एक और कर्णप्रिय रचना है। इसमें लोकतत्व के साथ ही नेगी की लगभग डेढ़ दशक पुरानी छवि ताजा हो उठती है। जब उनके गीत अन्तर को झंकृत कर देते थे। नेगी के कला कौशल को समझने वालों के लिए यह गीत भी ‘संग्रह’ की काबलियत रखता है।
   लाटा-काला शायद ही समझें, क्योंकि ‘मिन त सम्झि’ को कई रिपीट के बाद मैं अनुमान तक भी नहीं पहुंच पाया हूं। गीतकार नेगी जिस भ्रम को खोलते हैं, वह एक चंचल स्त्री की हकीकत है या फिर ‘चंचल स्त्री’ के माध्यम से कुछ और.........ह्रास होने की पीड़ा का बयान। अपनी उलझनों के बावजूद मेरा मानना है कि, इस गीत में भी स्वस्थ सुनने वालों के लिए पर्याप्त स्पेस है।
   रिलीज से पहले ही मीडिया अटेंशन पा चुका ‘तुम बि सुणा’ सरकारों की मंशाओं को ही सरेआम नहीं करता, बल्कि जनादोलनों से थक चुके लोगों को भी कहता है ‘लड़ै जारी राली’। राजधानी के साथ ही पहाड़ के अनेक मसलों पर भाजपा-कांग्रेस के दो चेहरों को तो ‘मधुमक्खियों’ के अलावा सब जानते और मानते हैं। लेकिन यूकेडी की प्रतिबद्धताओं में घुल चुकी ‘जक-बक’ को नरेन्द्र सिंह नेगी ने देर से सही बखुबी पहचाना है। यों भी कलाकार ‘बिरादर’ न हो यह अच्छा है। यह गीत सुनने-सुनाने से ज्यादा गैरसैंण के पक्ष में मजबूत जमीन तैयार करता है। कर्णप्रियता और संगीत के लिहाज से यह खास प्रभावी नहीं लगता। तब भी यह नेगी के बौद्धिक चेहरे को जनप्रियता दिलाने में सक्षम है।
   सलाण्या स्यळी को सिर्फ राजधानी के मसले पर नरेन्द्र सिंह नेगी की तय सोच के रहस्योद्‍घाटन करने वाला संकलन मात्र मान लेना काफी नहीं होगा। बल्कि सलाण्या स्यळी को बेहतर गीतों, धुनों, शैली और रणनीतिक संरचना के लिए भी जानना उचित होगा। क्योंकि मसालों के साथ ही सलाण्या स्यळी में हर वर्ग, क्षेत्र तक पहुंचने और ‘कुछ’ को मात देने की रणनीतिक क्षमता भरपूर है। हां ‘बाजार’ में जवां होने के फेर में नेगी निश्चित ही खुद को खुरचते हैं और इसमें उन्हें ज्यादा अटेंशन मिल पायेगा, कम से कम मैं तो नहीं मानता। एलबम के शुरूआती तीन व आखिरी गीत औसत के आसपास ही हैं। वहीं चार से सात तक के गीतों को मैं सर्वाधिक अंक देना चाहूंगा, साथ ही यह कि, माया कू मुण्डारु की अपेक्षा सलाण्या स्यळी रेटिंग में अव्वल साबित होगी।
और आखिरी मा..................नेगी जी! पळन्थरौं मा धार लगदी रौ। मेरा सलाम!!!!!

सर्वाधिकार : धनेश कोठारी
kotharidhanesh@gmail.com

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22