Author Topic: Folk Songs & Dance Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के लोक नृत्य एवं लोक गीत  (Read 76354 times)

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बसंती और चैती

बसंती और चैती मौसमी गीत हैं और उनका विषय प्रकृति होता है। बसंत का स्वागत करने के लिए युवा लड़कियां बसंती गीत गाती हैं। बसंत का महीना फुलेडी सक्रांत के रूप में मनाया जाता है जिसमें युवा लड़कियां जंगलों से नए खिले फूलों को इकट्ठा करती हैं और उन्हें साथी गांववालों के दरवाजों पर रखती हैं। बसंती गीतों में समुदाय और प्रकृति के बीच सामंजस्य का उत्सव मनाया जाता है।

चैत्र का महीना (14 मार्च से 14 अप्रैल) गढ़वाल में नचदो मैना के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस समय समुदाय खेताबाड़ी के कामकाज से मुक्त हो जाता है और गीत गायन एवं नृत्य द्वारा उत्सव मनाता है। चैती गीत पेशेवर जातियों जैसे बादी और औजी द्वारा गाए जाते हैं जिन्हें अपने संरक्षकों से उपहार विशेषकर कपड़े और पैसे मिलते हैं और ये उपहार छैती पायसारा कहलाते हैं। ये लोग अपने संरक्षकों की विवाहित पुत्रियों के गांवों में भी जाते हैं और उनके समधियों के परिवारों से उपहार प्राप्त करते हैं जो भानतूली कहलाते हैं। इस पूरे महीने में औजी पौराणिक नायकों की महिमा गीत गाते हैं जबकि बादी पारंपरिक गीत गाते हैं।




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Pandava Dance
Pandava Dance is performed by narrating the story of Mahabharata accompanied by dance and
music. This is performed during Dussehra and Deepawali



[youtube]http://www.youtube.com/watch?v=gIjIPMCWYLs&feature=channel_page

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चौफुला

संस्कृत के शब्द चतुरफुला (जिसका शाब्दिक अर्थ एक फूल की तरह खिलना है) से उत्पन्न चौफुला एक जीवंत एवं आकर्षक नृत्य है जो पुरुष एवं महिलाओं दोनों के द्वारा किया जाता है। यह नृत्य गुजरात के गरबा नृत्य के साथ गहरी समानता रखता है। नृत्य के साथ मौजूद गीत स्थानीय देवी-देवताओं के प्रति समर्पण, निजी संबंधों या पहाडों में जीवन बिताने की कठिनाइयों की अभिव्यक्ति करते हैं।


झुमेलो

चक्रधर बहुगुणा, एक प्रतिष्ठित लोक संगीत विशेषज्ञ एवं कवि ने झुमेलो का वर्णन गढ़वाली लोक परंपरा के एक शास्त्रीय नृत्य के रूप में किया है। झुमेलो मौसमी नृत्य हैं जो बसंत पंचमी से लेकर विशुवत सक्रांत या बैशाखी तक किए जाते हैं। इस अवधि के दौरान खेतीबाड़ी का कामकाज सीमित होता है और अनेक महिलाएं अपने मायके जाती हैं। नृत्य के साथ अपने मां के घर से अलग होने अपनी वेदना व्यक्त करने के लिए महिलाएं दुखभरे गीत गाती हैं। अनेक में उस समय के व्यापार का भी जिक्र होता है जब भोटिया या ढकारी कारोबारी सौदों के लिए गढ़वाल आया करते थे।


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चुरा, लामण और छौपाति

चुरा, लमण और छौपाति गीत गढ़वाल के रावैन और जौनसर क्षेत्रों से आते हैं। ये प्रणय प्रेम गीत भी दार्शनिक प्रसन्न भाव के साथ द्विपदी के रूप में गाए जाते हैं। रावैन में ये गीत लामणी कहलाते हैं और आमतौर समूह में नृत्य के साथ गाए जाते हैं। छौपती भी एक सामूहिक गीत है।

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संगीत और नृत्य प्रत्येक गढ़वाली के जीवन का अभिन्न अंग है। नृज्य आंनद की अभिव्यक्ति है, जीवन का उल्लास है और देवी-देवताओं की स्तुति है। सभी महत्वपूर्ण त्योहरों तथा अन्य धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक समारोहों के दौरान गढ़वाल के पारंपरिक नृत्य अत्यधिक जोश एवं धर्मोत्साह के साथ किए जाते हैं। एक साल के प्रत्येक अवसर और समय के लिए नृत्य मौजूद हैं। नृत्य के अनेक पारंपरिक रूपों की उत्पत्ति आदिवासी रिवाजों एवं त्योहारों से हुई है। बहरहाल, समय बीतने के साथ-साथ पारंपरिक लोक नृत्य/संगीत में हिंदी फिल्मों से प्रेरित रचनाओं का अर्थभेद अक्सर देखने को मिल जाता है।






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बरादा नटिः

यह नृत्य देहरादून जिले में चकराता तहसील के जौनसार बाबर क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है। यह लोकनृत्य कुछ धार्मिक त्यौहारों या कुछ सामाजिक कार्यकुलों के अवसर पर प्रस्तुत किया जाता है।
 बालक एवं बालिकाएं दोनों रंग बिरंगी पारम्परिक वेशभूषा में नृत्य में भाग लेते हैं।

 

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