Author Topic: Folk Songs Of Uttarakhand : उत्तराखण्ड के लोक गीत  (Read 76367 times)

हेम पन्त

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Chhapeli, छपेली
कलाकार- गोविन्द सिंह, प्रताप सिंह रावल
Source - www.BeatofIndia.com
www.youtube.com/watch?v=BMKIBwtkzDc&

Devbhoomi,Uttarakhand

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सयनागीत
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दीपावली के अवसर पर जन-जातीय क्षेत्र जौनसार की सभी ध्यानियाँ (दुसरे गांवों ब्याही हुई लडकियां )अपने माईके लोट जाती हैं गाँव मैं आने पर उन्हें बचपन की सहेलियों से मिलने का अवसर मिलता है!इस अवसर पर सयना गीत गाती हैं !

एक धारा द्वि गोरु बाकरी दूजी धार द्वि घोड़ी
तेरी मेरी बाल दोस्तियाँ  कूँ पापिना तोड़ी !!


अर्थात हे प्रियतम तुम्हारी और मेरी मित्रता किस पापी ने तोड़ दी है !

Devbhoomi,Uttarakhand

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             ठुलखेल         
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कुमाऊं में भादों के महीने किर्षण जमाष्टमीके पश्चात जो गीत गए जाते हैं उन्हें ठुलखेल कहा जाता है ,और इन गीतों की बिशेषता ये है की ये गीत केवल पुरुषों के द्वारा गाये जाते है,और मुख्य गायक को बखननिया कहा जाता है ठुलखेल में रामायण की कथा चलती है !

दशरथ राजा त़ा अपूतर्र्यो
हे दसरथ  राजा त़ा बुड़ो बिरत छू

                 हे राणी में जाणू तीरथ फेरनू
                 तीरथ फैरुलो  राणी वर मांगी लैब्लो !

Anil Arya / अनिल आर्य

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    भोते बढ़िया गीत छ . मैसे लै तुअड़ी हुनैल.

Devbhoomi,Uttarakhand

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     थड्यागीत
 
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थड्या गीत विषय के आधार पर लोकगाथाओं से मिलते जुलते हैं,इनमें लोक नायक की गाथा गीत के रूप में गाई जाती है"
बसंत पंचमी से लेकर विषुवत संक्रांति तक के ये गीत गाँवों स्त्रियों द्वारा ही गए जाते हैं इसमें ग्राम बालाएं एक दुसरे के कंधें पर हाथ रखकर एक सूत्र में बन्ध जाते हैं !ये सामूहिक गेय गीत कहलाते हैं !

रणीहाट नि जाणों गजेसिंह,हल जोत का दिन गजेसिंह
तू हौन्सिया बैख गजेसिंह,तेरा बाबु का बैरी गजेसिंह !!


Devbhoomi,Uttarakhand

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छपेलीगीत
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  इसमें एक मुख्य गायक और एक नर्तक होता है ,मुख्य गायक हुडका बादक होता है विवाह मेलों,उत्सवों आदि अवसरों पर छपेली गीतों का आयोजन किया जाता है !

ओ बाना पनुली चकोरा,त्विले धारु बोला
सुपी भरी धाना वे सुपी भरी धाना
एरी दुनिया भाजी तवे बंतुनी भाना
दन्तपाटी भूली जुंली,नि भुन्लूं अन्वारी!!

Devbhoomi,Uttarakhand

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चैती या कुलाचार के गीत
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 चैत के महीने को नाचने वाला महिना कहा जाता है,इस माह वादकों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार के गीत गाये जाते हैं !प्रात काल देवताओं की स्तुति में प्रभाती,संध्या के समय स्यामकल्याणी जबकि दोपहर में एतिहासिक कथानक वाले गीत गाये जाते हैं !

दान्युं मा को दानी होलो राजा हरिच्न्दा
सुरिजा वंशी होलो राजा हरिचंदा .

इस गीत को (देवदास,ओजी यानी वादी ) अपने ठाकुरों के आंगन में चैत के महीने में चैती पसारा के रूप में गाते हैं ,ठाकुर उन्हें अन्न-धन आदि के रूप में दान देते हैं  वादी जाति के पुरुष सारंगी आदि वाध्य बजाते हैं,तथा उनकी स्त्रियाँ निर्टी करती हैं !

Devbhoomi,Uttarakhand

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चाँचरी गीत
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ये गीत कुमाऊं गढ़वाल की सीमा वाले (दुसांद) में बहुत प्रशिध है,यहाँ माघ की उत्तरायणी के अस्व्सर पर चाँचरी गीतों का अधिक प्रचलन है चाँचरी गीत,नायिका के सोंदर्य सामाजिक कुप्रथाओं,सुधारवादी तथा समाजवादी परिवर्तनों आदि के सम्बंदित होते हैं !

कैकी सुवा होली इनी अन्छरी जनि बांद
दिवा जनि जोत,धुंवां जनि धुपेली

Devbhoomi,Uttarakhand

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दुडागीत
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इस प्रकार के गीतों को स्वम्वर प्रथा का स्वरूप माना जाता है पर्वतों के मध्य घास काटती हुई युवती दूर पशु चराते हुए युवक से गीतों के माध्यम से ही परिचय पूछती है !

तिलै धारु बोला झम
बाटा का बटोई गोरा मेरु नौं झम !!

ढाकरी पालाण गोरा दे
छोड़ गंगापार गोरा दे ओऊ मेरा सलान झम!!

Devbhoomi,Uttarakhand

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              ऋतू बसंती,अर्थात विरह लोकगीत        
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इन लोक गीतों में विरहणी स्त्रियों की वेदना की अभिब्य्कती मिलती है,इन गीतों का एक वर्ग बारहमासा के नाम से पुकारा जाता है !बारहमासा गीतों में विरहणी के शरीर पर प्रतेक मॉस में बीतने वाली वेदनाओं का चित्रण होता है !

वर्षा ऋतू को जन-जीवन में चौमासा कहा जाता है पर्वतीय प्रदेश की धरती जितनी कठोर है जनमानस की वेदना भी उतनी ही संवेदनशील है !

आऊ आऊ चोमासा तवे जागी रयो
मेरा स्वामी कु मन निठुर होयो !!

प्रश्तुत गीत में भादों मास की अँधेरी रातों में विरह वेदना की मन को छू देने वाली कसक अपने चरमोत्कर्ष पर है !

आयो मैनो भादों कु मन सम्झांदु भौत !
मी मिली जांदू स्वामी जी,या प्रभु दे दी मौत !!

इसी प्रकार वर्ष के बारह महीनों के अलग अलग गीत हैं हर गीत में उस माह की प्रकिरती का चित्रण मिलता है !

आयो मैनों चैत को,दे दिखो हे राम !
उठिक फुलारी झुसमुस,लागि गैन निज काम !!


M S JAKHI

 

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