Author Topic: Folk Stories from Garhwal - गढ़वाल के लोक कहानियां  (Read 46386 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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   ♦   रचनाकार: महिमानंद ममगाईं 

 
ऊँचि डांड्यू तुम नीसी जावा

घणी कुलायो तुम छाँटि होवा

मैकू लगी छ खुद मैतुड़ा की

बाबाजी को देखण देस देवा

मैत की मेरी तु त पौण प्यारी

सुणौ तु रैवार त मा को मेरी

गडू गदन्य व हिलाँस कप्फू

मैत को मेर तुम गीत गावा


भावार्थ
--'हे ऊँची पहाड़ियो! तुम नीची हो जाओ ।

ओ चीड़ के घने वृक्षो! तुम समने से छँट जाओ ।

मुझे मायके की याद सता रही है,

मुझे पिता जी का देस देखने दो ।

ओ मेरे मायके की हवा !

मेरी माँ का सन्देश सुना ।

ओ नदी-नालो! ओ हिलाँस पक्षी! ओ कप्फू!

तुम सब मिल कर मेरे मायके का गीत गाओ ।'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जा भाग्यानी तू मैत न्है जा

मेरो रैवार बई मूं ली जा

इनु बोल्यान तुम बई मूं मेरी

खुद लगी छ बल बई तेरी

बाबा को बोयान तुमन भलों करे

रुपयों खैक मेरो बुरो करे

बाबा न दिने चौ डाण्डों पोर

भायों न करे रुपयों जोर

भौजी क बोल्यान मैं जागी रौ लो

यूँ की हालात तबो लौलो

ये गौं छ पाणी दूरो

मऊ पूस क छ जाड़ो बूरो


भावार्थ


--'जा भाग्यशालिनी, तू पीहर को चली जा,

मेरा सन्देश माँ के पास ले जा ।

ऎसे कहना : तुम मेरी माँ हो,

तुमसे मिलने की बहुत भूख लगी है, माँ!

पिता से कहना--तुमने अच्छा किया,

रुपए खाकर तुमने मेरा बुरा कर डाला ।

पिता ने मुझे चार पहाड़ों के पार दे दिया

भाइयों ने भी रुपया लेने पर ज़ोर दिया ।

भाई जी से कहना : मैं बाट जोहूंगी

यहाँ की हालत तभी सुन लेना ।

इस गाँव का पानी बहुत दूर है, माँ!

माघ-पूस का जाड़ा भी बहुत बुरा है ।'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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काला डांडा पीछ बाबा जी

काली च कुएड़ी

बाबाजी, एकुली मैं लगड़ी च ड..र

एकुली-एकुली मैं कनु कैकी जौलो


भावार्थ


--' काले पहाड़ के पीछे, पिताजी!

काला कुहरा छा रहा है ।

पिताजी, मुझे अकेले में डर लगता है ।

अकेले-अकेले मैं ससुराल कैसे जाऊंगी?'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालो छ बदरी, झुमैलो

परबत आई, झुमैलो

गढ़वाल आई, झुमैलो

दिनु का दाता, झुमैलो

राजा का सामी, झुमैलो


भावार्थ


--'बदरी बालक है--झुमैलो!

वह पर्वत पर आ गया-- झुमैलो!

वह गढ़वाल में आ गया-- झुमैलो!

वह दीनों का दाता है--झुमैलो!

वह राजा का स्वामी है--झुमैलो!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आई गेन ऋतु बौड़ी दाई जनो फेरो, झुमैलो

ऊबा देसी ऊबा जाला, ऊंदा देसी ऊंदा, झुमैलो

लम्बी-लम्बी पुगड़्यों माँ र..र. शब्द होलो, झुमैलो

गेहूँ की जौ की सारी पिंग्ली होई गैने, झुमैलो

गाला गीत वसन्ती गौं का छोरा ही छोरी, झुमैलो

डांडी काँठी गूँजी ग्येन ग्वैरू को गितूना, झुमैलो

छोटी नौना-नौनी मिलि देल्यूँ फूल चढ़ाला, झुमैलो

जौं का भाई रला देला टालु की अँगूड़ी, झुमैलो

मैतु बैण्युँ कु अप्णी बोलौला चेत मैना, झुमैलो


भावार्थ


--'वसन्त ऋतु लौट आई, फसल माँड़ते समय बैलों के चक्कर के समान, झुमैलो !

ऊपर देश वाले ऊपर जाएंगे, नीचे देश वाले नीचे, झुमैलो !

लम्बी-लम्बी क्यारियों में (किसानों की) र..र. ध्वनि होगी, झुमैलो!

गेहूँ और जौ के सादे खेत पीले हो गए हैं, झुमैलो!

वसन्ती गीत गाएंगे, गाँव के लड़के-लड़कियाँ, झुमैलो!

छोटी-बड़ी पहाड़ियाँ गूँज उठी हैं ग्वालों के गीतों से, झुमैलो!

छोटे बालक-बालिकाएँ मिलकर दहलीजों पर फूल चढ़ाएंगे, झुमैलो!

जिसके भाई होगा, अंगिया और ओढ़नी का उपहार देगा, झुमैला!

और मायके बुलाएगा बहिन को चैत्र माह में, झुमैलो!'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कैसो च भंडारी तेरा मलेथ ?

देखी भलौ ऎन सैवो मेरा मलेथ

लकदी गूल मेरा मलेथ

गाँऊँ मूड़ को घर मेरा मलेथ

पालंगा की बाड़ी मेरा मलेथ

लासणा की क्यारी मेरा मलेथ

गाइयों की गोठ्यार मेरा मलेथ

भैंसी को खुरीक मेरा मलेथ

बांदू का लड़क मेरा मलेथ

बैखू का ढसक मेरा मलेथ


भावार्थ


--'ओ भंडारी राजपूत, कैसा है तेरा 'मलेथ' गाँव?

देखने में भला लगता है, साहबो, मेरा मलेथ ।

ढलकती नहीं है वहाँ, मेरा मलेथ ।

गाँव की निचान में घर है मेरा, मेरा मलेथ ।

पालक की बाड़ी है, मेरा मलेथ ।

लहसुन की क्यारी है, मेरा मलेथ ।

गौओं की गोठ है, मेरा मलेथ ।

भैंसों की भीड़ है, मेरा मलेथ ।

कुमारियों की टोली है, मेरा मलेथ ।

वीरों का धक्कम-धक्का है, मेरा मलेथ ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नरेन्द्र सिंह नेगी
 

गंगा जी की औत
तराजू मां तोली लेणा, कैकी माया भौत

तराजू मां तोली लेणा, कैकी माया भौत

झंगोरा की घांण, झंगोरा की घांण

जैकी माया घनाघोरा, आंख्यूं मा पछ्याण

जैकी माया घनाघोरा, आंख्यूं मा पछ्याण

जैकी माया घनाघोरा हो.....


सड़का की घूमा, सड़का की घूमा

सड़का की घूमा, सड़का की घूमा

सदानि नि रैंदी सुवा, जवानी की धूमा

सदानि नि रैंदी सुवा, जवानी की धूमा

सदानि नि रैंदी सुवा हो......


भिरा लीगे भिराक, भिरा लीगे भिराक

भिरा लीगे भिराक, भिरा लीगे भिराक

तरुणी उमर सुवा, बथौं सी हराक

तरुणी उमर सुवा, बथौं सी हराक

तरुणी उमर सुवा हो.........


घुघुती को घोल,घुघुती को घोल

घुघुती को घोल,घुघुती को घोल

मनखि माटू ह्वे जांद, रई जांदा बोल

मनखि माटू ह्वे जांद, रई जांदा बोल

मनखि माटू ह्वे.......


गौड़ी कू मखन, गौड़ी कू मखन

गौड़ी कू मखन, गौड़ी कू मखन

दुनिया न मरि जाण, क्या ल्हिजाण यखन

दुनिया न मरि जाण, क्या ल्हिजाण यखन

दुनिया न मरि जाण.....

CrazyUK_Films

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Guyz,
Mera apna ek youtube channel he: CRAZYUK FILMS https://www.youtube.com/channel/UC4KkiHy6UmUUdN6V1G3Qt7g           
Me apne channel pe bohot mehnat kar rha hun. Please have a look at this some of the best Garhwali Songs produced by my channel CrazyUK Films

SURBHI -  https://www.youtube.com/watch?v=WO-51r6-E54
Nakhryali soni - https://www.youtube.com/watch?v=Hanp8vjE2nU

Please share genuine comments about the video.
If you like it, please subscribe and Like the songs which made you enjoy. Thank you
Also, share your views to make my channel better.

Bhishma Kukreti

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 घमंडी को सर नीचा
  (रवाईं क्षेत्रै  लोककथा )
( कथा  बटोळण  वळ : भग्यान  डा जगदीश नौडियाल )
  अनुवाद : भीष्म कुकरेती
एक हाथी छौ।  एक कव्वा थौ।  कव्वान बीच बाटम घोल बणै दे।  घोलम बच्चा था।   हाथी  वे बाठम आंद  जांद थौ।  एक दिन कव्वान बोले बल - हाथी भाई तुम ये बाट नि  आया जावा कारो दुसर रस्ता पकड़ ल्यावो। हाथी नि  सूणी अर एक दिन घोल टूटी गे।  बिचर कव्वा कुछ नि कार साको।  कख हाथी अर कख कव्वा।
 इनम कव्वान अपड़  दगड़्या मूस अर  बाज बुलाइ अर अपण बिपदा सुणाइ। 
मूसन  बोली बल मि रस्ता खौण द्योलु त हाथी खड्डा उन्द गिर जालु।
बाजन बोली बल मि ततकाम हाथी आँख फोड़ी देलू। 
फिर मूसन खड्डा ख्वाद अर  हाथी घमंड म ऊनि रोजाना तरां घमंडम हिटद गे अर  बाजन वैक आँख फोड़ी देन।  कै  तैं  बि घमंड नि करण  चयेंद। निथर वैका कुहाल हाथी तरां ह्वे जांद।

Copyright@ Bhishma Kukreti
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Bhishma Kukreti

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जसपुर गौं  का शिल्पकार कुकरेती इ छा
 
 सलाणी लोककथा बटोळदेर - भीष्म कुकरेती

कथा सुणान्देर : श्री महिपाल शाह (जसपुर , ढांगू , मई 2018 ) , देशराज शाह , अर श्री सुदामा राम आर्य

(मीन अपण 'सलाण बटें लोककथा ' कथाघळ (संग्रह ) मा स्व अबोध बंधु बहुगुणा  , स्व मोहन बाबुलकर इख तक  कि अफु  पर अभियोग लगै थौ 'बल  लोककथा इकबटोळणम ब्राह्मणवाद' . अभियोग अबि बि  प्रासांगिक च बल गद्य लोक कथाउं संग्रहम शिल्पकार संबंधित  गढ़वाली लोककथा गायब छन।  तब बिटेन मीन कोशिश कार बल कुछ शिल्पकार सबंधी लोक कथा बटोळे जयान।  या लोककथा ये इ क्रमम च। )
-
ढांगू , पौड़ी गढ़वाळौ , जसपुर भौत पुरण गाँव च।  इन बुले जांद बल तेरहवीं चौदवीं  सदी म इख कुकरेती बस  छा अर सब कुकरेती यखाक ही छन।  जसपुरै एक खासियत या च बल सदियों से ये गांमा   शिल्पकारूं संख्या अर गैरशिल्पकारूं संख्या तकरीबन बरोबर ही राई।  कुकरेत्यूं  बीच या कथा प्रसिद्ध च बल ल्वार परिवार भग्यान भाना जी अर  स्यमुड़  जीका बूड बि प्रथम कुकरेती क दगड़ इ ऐ  छा।   या च गैर शिल्पकारूं कथा पण शिल्पकारुं बीच एक हैंक बृतान्त मिल्दो।
   जसपुरम छै शिल्पकार मुंडीत  छन - एक सुनार व टमटा मुंडीत  अर एक ल्वार मुंडीत अर यि  द्वी मुंडीत भैर बिटेन अयां शिल्पकार छन अर ब्रिटिश काल म इ यूंक आण ह्वे।  बकै चार शिल्पकार मुंडीत जसपुर का मूल मुंडीत छन।  श्री महिपाल शाह (सुनार मुंडीत ) अर श्री सुदामा राम पुत्र स्व स्यमुड़ जी न या कथा सुणाइ
    भौत साखी पैला छ्वीं छन।  तब क्या खेती हूंद  छे बल।  खूब अनाजुं  दबल भौर्यां रौंद छा।  तब जसपुरम  पांच भै कुकरेती छा।  क्या सुन्दर मेल थौ भै पंच भय्योंम।  पंची भै बामणगिरी  करदा था।  पूजा पाठ संध्या बंदन सब दगड़ी करदा छा।  जख बि जांदा छा सब इकदगड़ी जांद छा , इकु थाळीम खाणो खांद छा।  मेल बड़ो छौ इकु लुट्याम पाणी पींद छा।  सब सुखी छा।  पण हूणी तैं कु टाळि सकुद । तब ढांगू उदेफर , डबरालस्यूं म बामण नौन्युं अकाळ थौ बल भारी अकाळ।  पंची भै  ढाँट ह्वे गे छा पर कैक बि ब्यो नि  ह्वे छौ।  ब्वे बाब नौनी खुज्यांद खुज्यांद थकी गे  छा बल।  इन माँ यी क्या करदा बल ! हूंद करदा करदा एक भाईन ल्वारण  छोरी दगड़ ब्यौ कौर दे।  हैंकन जकतागतीम टमट्याणी दगड़ पलाबन्द कौर दे अर द्वी हौर  कुकरेती भायुंन मजदूरी करदार शिल्पकारणी दगड़  ब्यौ कौर दे। 
 अर  एक भाईन ब्यौ देर से कार पर बामणी दगड़ ही ब्यौ कार। 
    जै भाइन बामणी दगड़ ब्यौ कार उ त कुकरेती ही बण्युं   राई अर   जैक सब संतान अब कुकरेती छन पर बकै शिल्पकार बण गेन।  स्व भाना जी अर स्यमुड़ जी को बूड खूड  परिवार तो ल्वार ह्वेन , स्व गैणु , मूर्ती , हिरदै जी वे भाइक संतान छन जैन टमट्याण से ब्यौ कार बकै स्व कैरा या स्व बनवारी जीक  बूड खूडन मजदूर शिल्पकारण  दगड़ ब्यौ कार तो सी  मजदूर शिल्पकार छन ।   
        या च जसपुरा  मूल शिल्पकारुं कथा।  अब कैन मनण सच ! 
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