Author Topic: Folk Stories from Garhwal - गढ़वाल के लोक कहानियां  (Read 46833 times)

Bhishma Kukreti

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   जसपुर छालौ  शिवालाम कुकरेती वंशावली

  सलाणी लोककथौं जणगरु  : भीष्म कुकरेती

कथा सुणाण वळ : स्व.  मोहन लाल कुकरेती

       देवी दिवतौं  रुष्ट हूण , फिर घड्यळ धरण , सीम जात्रा करण जन कथा गढ़वाल , कुमाऊं क्या हिमाचल म बि प्रसिद्ध छन।  दिबता खंड मंड  करदो अर पूजा करिक दिबता शांत ह्वे गे जन कथा महाराष्ट्र म बि प्रसिद्ध छन।  या कथा बि दिबता रुस्याणो कथा च पर म्यार मकसद आस्था या नास्तिकता बिलकुल नी।  या कथा सूद भेद दींदी बल जसपुर छालौ शिवालाम कबि कुकरेती वंशावली अभिलेख थौ।
    जसपुर (ढांगू , पौड़ी गढ़वाल ) कुकरेत्यूं मूल गाँव सब कुकरेती जसपुर से ही इना उना बसिन च अर इन बुले जांद बल यु गाँव तेरवीं चौदवीं सदी म बस छौ।  गुरख्या रिकॉर्डम बि जसपुरौ नाम मिल्दो।  पैल इख केवल कुकरेती अर शिल्पकार इ  छा पर ब्रिटिश राज बाद ग्वील गां  बिगळ , द्वी गाऊं बिटेन कुकरेती बौड़ी वापस ऐन , जखमोला बसिन अर बहुगुणा बि बसिन।    या कथा वे कुकरेती मुंडीतै च जु खमण बिटेन जसपुर बौड़ी ऐन।  घीड़ी (जसपुर से अलग कुकरेती बस्ती ) म या बारदात ह्वे छे बल।  इन बुले जांद बल कुकरेत्यूं क्वी बूड काली कुमाऊं से ग्विल्ल  (गोरिल ) दिबता लै छा अर ग्विल्ल कुकरेत्यूं कुल दिबता मने जांद।  घीड़ीम जु मौ बसीं छन ऊंक कूड़ डिस्ट्रिक्ट बोर्ड सड़क तौळ  च।  एक दैं  सन  42  से पैल क्या ह्वाइ बल घीड़ी जूराराम जी परिवार पर क्वी दिबता रुसे गे बल।  जूराराम जीकी घरवळि श्रीमती दमयंती  कुकरेती कालिंद्रा नचदी छे।  लोक कथ्य म कालिंद्रा ग्विल्ल दिबतौ  पत्नी माने जांद अर  ग्विल्ल -कालिंद्रा ऊर्जावान देव मने जांदन जन कैंतुरा।  इन बुले जांद बल जूरा जी या श्रीमती दमयंती पर कालिंद्रा रुसे गे छे किन्तु यु परिवार कुछ नि करणु छौ।
   त कालिंद्रा देबिन खंड मंड  शुरू कौर दे।  जनि श्रीमती दमयंती दिन म स्यावो तो मथि बिटेन सड़कौ पत्थर छत पर गड़ गड़ शुरू ह्वे जावन।  वा बिचारि जनि भोजन बणाणो  बान  भांड चुल्हम धारो भांड उल्टे जाव।  एक द्वी दिन उपरान्त त खाणम बड़ा बड़ा गोरु हडका बि आण मिसे गेन  श्रीमती दमयंती जनि खाणो खाण  बैठ तो थाळी उल्टे जाव।  बात स्व .  कन्हैयालाल जखमोला जी म गे।  कन्हैयालाल जी जसपुरम चतुरतम  मनुष्यों  म गणे जांद छा अर क्रोध से दूर छा व धीरे धीरे अपण  बात बिंगाण म प्रसिद्ध छा। 
    कन्हैयालाल जी अर एक तगड़ो मणिक द्वी घीड़ी पौंछिन।  श्रीमती दमयंती से ऊंन भोजन बणानो  ब्वाल त भांड उल्टे गेन।  द्वी मनिखोंन कढ़ाई पकड़ तो भी कड़ै उलटे गे।  आग जम बुजि गे।  अब चतुर कन्हैया जीन बोल दे बल तू अछेकि कुछ छे तो कुछ करतब दिखा। कन्हैया जीन ब्वाल  नी कि घण्यसम धरीं गागर चुलम पौंची गे।  कन्हैया जीन  एक द्वी काम हौर बतैन वीं अदृश्य शक्तिन पूर  कौरी देन।
 कन्हैया जी चतुर त छायी तो ऊंन  बोली दे बल तू इथ्गा इ तागतवर छे तो जसपुरौ  क्वी धरोहर ला ज्वा हर्चीं ह्वा।
   कुछ देर बाद सण सण की आवाज आयी अर चौकम एक सिंवळ लगीं बड़ी मोटी पटाळ  ऐ गे।  पटाळम कुकरेती वंशावली खुदीं छे अर शिवाला से संबंधित छे ।  मोटी पटाळ माटु अर पाणी से लतपत   छे। कन्हैया लाल जीन बोली - हाँ तू बड़ी शक्ति छे तेरी  पूजा अवश्य हूण चयेंद।   कन्हैया लाल जीन तत्काल सलाह दे बल पुछेर म जावो।  बस कुछ देर बाद कुकरेती बंशावली अभिलेख पटाळ गायब ह्वे गे।
 बक्कीन बाक बोली बल कालिंद्रौ  घड्यळ नि धौर छौ तो कालिंद्रा रुसे गे ।  तत्काल एकड़ दिनम कालिंद्रौ घड्यळ   धौरे  गे , श्रीमती दमयंती नाच अर फिर सब कुछ ठीक ह्वे गे।
       ग्वील गांवम द्वी  शिवाला छन एक पुट  ग्वीलम च अर एक जसपुर छालम  गाँव तौळ।  जसपुरम लोक कथा प्रसिद्ध छे बल यु शिवाला जसपुरौ पधानन चिणवै छौ।  चूँकि पधान जी ग्वील प्रवासित ह्वे गेन तो शिवाला बि ग्वील कौंक ह्वे गे।
    म्यार मकसद यीं लोक कथा से दिबता हूंदन दर्शाण  नी अपितु एक लिंक दीण  च बल कबि  ना कबि जसपुर छालौ शिवाला म कुकरेती वंशावली छे।  तबि त बात वंशावली की लोक कथा म आयी।  हाँ हर समय जब   बि लोक कथा सुणये गे  , लोक कथा म पधान जीक नाम शिव दत्त पधान आंद जब कि शिव दत्त जी तब ज़िंदा छया या एक पीढ़ी पैला पधान छा । 

संदर्भ , भीष्म कुकरेती , सलाण बटें लोककथाएं (श्रृंखला 2003 , रंत रैबार , देहरादून
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Bhishma Kukreti

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     जसपुर ग्वीलम ज्ञाना , बिजंरा जगौं  नाम कनै पोड़ ?

सलाण बटें  लोककथा जणगरु : भीष्म कुकरेती   घणसाळी

 (कथा सुणाण  वळ - स्व श्री मुरलीधर कुकरेती, जसपुर  )

   उन दिखे जावो त कै बि जगा नाम सुदि नि पड़द।  नाम या तो विशेषता वजै  से पड़द जन चौड़ी , डंगु ल्ड , घ्यार , लवड़ या कुछ ख़ास कार्य /मनिखाक का वजै  से पड़द।  जसपुर ग्वीललम ( ढांगू , पौड़ी ) बतेरा नाम खस नाम छन जन गुडगुड़्यार , भटिंड , गौड़धार  नौगढ़ आदि आदि या व्यक्ति नाम घांड्या  कूड़ ।  या नाथ सम्प्रदायी नाम नाथ , मठ , बुद्धरौळ  आदि।  एक सारी  नाम जसपुर म च ज्ञाना अर  एक ग्वीलम च बिंजरा।  यी  नाम ना तो पुंगड़ौं विशेषता बतांदन ना इ  क्वी पंथ आदि दर्शांदन।  मीन अपण बडा जी (पिता जीक चचेरा भेजी ) स्व श्री मुरलीधर जी से पूछी दे बल यी नाम कै व्यक्ति क नाम प छन तो बडा  जीन या कथा सुणै।
          भौत साल पैलाकि बात होली बल।  जब गुरख्याणी  राज छौ।  घणसा ळी - गटकोट, गुरख्यों  चौकी छे।    गुरख्या महा निर्दयी , क्रूर छा।  दया धरम तो वूं  रागसूं तै पता इ  नि  छौ।  निरज्जी राज छौ।  नराज हूंदा छा त  खड़ी फसलम हौळ  लगै  दींद  था।  कैकि बेटी ब्वारी तैं  उठैक ल्हीजांद  छा , डंड मारी दींदा छा।  डंड  नि भारो तो  गोर बछर , तौल गागर, अनाज  उठैक ली जांद छा पक्का राग्स छा राग्स।  कतल्यो करणम त  यूँ रागसूं तै रौंस आंद छे।  हमर अड्गैं  (क्षेत्र )त्रस्त  छे।  सौब भेमाता से प्रार्थना करदा छा बल अंत हो यीं गुरख्याणी को।  लोग बाग़ दिन म यूं  दुर्जन  हत्यारों डौरन भैर नि  आंदा छा।  रत्यां ही काम काज निपटान्डांदा छा।  गुरख्या आयी ना बल लोग गौं का गौं भाजी जांदा छा।  कति मौ हमर गां बिटेन कुज्याण कख भाजिन धौं।  हज्या म बि इन नि भगदा  छा ये मेरी ब्वे !
 तब भवानन सूणी अर अंग्रेज ऐन।  ऊँन गुरख्याणी खतम कार।  जनि अंग्रेज ऐन तनि गुरख्या भगण मिसे गेन।  लोग त समौ दिखणा इ छा।  जनि लोकुं तै पता चौल बल अंग्रेजूं राज ह्वे गे तनी लोगुंन दुर्जन गुरख्यों तै मरण शुरू कौर दे।  जन कारो तन फल पाओ बल।  घणसाळी म द्वी बड़ा हूंच , दुर्जन निर्दयी   सिपाई छा, ज्यूंरा का भाई ! जौन कथगों की मवासी घाम लगाई छे तौंक  नाम छौ बल ज्ञाना अर बींजरा।  घणसाळी -गटक्वट -मतर गां वळ कुलाड़ी लेक तौं दुयुं  पैथर पोड़ी गेन।  कुलाड़ी लेकि लोक ज्ञाना - बिजंरा पैथर इन पोड़ीन जन अठवाड़ो ब्याला पैथर कच्याणो पड़दन।    ज्ञाना अर बिंजरा  भगद भगद जसपुरै सारी तक अई गेन।  तब ग्वील गां नि बसी छौ।  पाप कब तक भगदो।  ज्ञाना जैखाळ क अगनै पकड़े गे।  लोगुंन ले धळके दे ज्ञाना की मौण।  बिंजरा बचदो बचदो छाना तक पौंची गे पर अगनै पकड़े गे।  लोगुंन उखम इ विकि मौण धळकै दे अर दुर्जन निर्दयुं  मौत ह्वे गे।
 जखम ज्ञाना मरयाई वीं जगा नाम ज्ञाना पोड़ अर जख्म बिंजरा मर्याइ  वीं जगा नाम बिंजरा पोड़। 



संदर्भ , भीष्म कुकरेती , गढ़वाल की लोककथाएं , अलकनंदा प्रकाशन दिल्ली
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 खमण गांवम  एक मौक कूड़ पश्चिमोत्तर किलै  च ?

सलाणी लोककथा बटोळदेर - भीष्म कुकरेती

कथा सुणान्देर :  श्री  शिव चरण कुकरेती (कठूड़ ) व श्री सोहन लाल जखमोला (जसपुर मल्ला ढांगू , पौड़ी गढ़वाल )

    दक्षिण गढ़वाल या कखि बि जु गांव तपड़ा या धारम ह्वावो त अधिकतर कूड़ दक्षिणोत्तर हूंदन या कबि कबि अपवादम पूर्वोत्तर कूड़  ह्वे सकद।  हां जु गाँव पश्चिम मुखां पख्यड़ म ह्वावन त नियम धियम सब बंद ह्वे जांदन।  धार मंगक गांवम पश्चिमोत्तर मुखी कूड़ भौत ही कम मिल्दन।  सामान्यतया , जख दक्षिणोत्तर कूड़  ह्वावन वै गांवम पश्चिमोत्तर कूड़ भल नि मने जांद।  दक्षिणोत्तर या उत्तर मुखी गांवुंम उत्तरमुखी कूड़ असलम जलवायु याने सुबेर से श्याम क धूप मिल्दो रावो सिद्धांतौ कारण हूंदन। 
 खमण (डबरालस्यूं , पौड़ी गढ़वाल ) गांव मंडुळ नगदन मथि उत्तरम  व हिंवल नदी मथि पूर्वम धार म बस्युं च।  तैल गाँव खमणम भौगोलिक स्थिति इन च बल अधिकतर कूड़ दक्षिणोत्तर छन कुछ पूर्वोत्तर कूड़  छन (जगा कमी कारण ) ।पर एक खमणम एक लखेड़ा मौक एक कूड़ पश्चिमोत्तर च।  अर यु कूड़ जगा कमी कारण पश्चिमोत्तर नी अपितु कुछ हैंक वजै से पच्छिमोत्तर च।
   लोक कथा अनुसार खमण डबराळुं गाँव छौ जु दूण दैज म डबराळुंन ग्वीलक  कुकरेत्यूं  तैं  दे दे छौ।  संख्या दृष्टि  से इन बुले सक्यांद बल खमण  कुकरेत्यूं गां  च , पर इख एक द्वी जातिक कुछ हौर जाति मवस बि छन।  यी प्रवासी अघिकतर समिण रिख्यड (उदयपुर पट्टी , पौड़ी गढ़वाल ) से खमण बसीं छन। रिख्यड अर खमण बीच हिंवल नदी च अर खमण रिख्यड क पूर्व म च।
 तो एक लखेड़ा मौक पश्चिमोत्तर कूड़ च जु तैल गांवक हिसाब से अजीब इ बुले जालो।  ए कूड़ो पश्चिमोत्तर हूण  पर मल्ला ढांगू म कथा इन चलदी बल -
 बल भौत पुरण समौ  बात  च बल रिख्यडम एक लखेड़ा युवा तै खमण बसनण आवश्यक ह्वे गे (अधिकित्र घरजवैं बात हूंदी ) पर वे युवा की ब्वे तैयार नि  छे।  एक तो छुट लौड़ से बिंडी प्रेम अर फिर डौर बि बल कुज्याण ब्वारी लौड़ै हिफाजत करदी बि च कि ना।  अबक सि ब्वे थुड़ा छे तब तब क्वा ब्वे चांदि  छे लौड़ निर्वासित ह्वे जावो।  खैर जब युवा तै खमण बसण जरूरी ही ह्वे गे तो युवा लखेड़ा की ब्वन शर्त धर दे बल  " त ठीक च पर त्यार कूड़ इन हूण चयेंद जु मि त्यार रुसड़म हर समौ  आग देख सौकुं , उज्यळ देख सौकूं।  अर  त्यार रुसड़ हर समय खुलु हूण चयेंद। " सब्युंन बुडड़ी शर्त मानी अर युवा लखेड़ा कुण
    खमणम ठेठ पश्चिम म कूड़ चीण अर  रुसड़क मुक रिख्यड  जिना कार।  अब बुडड़ी रोज रुसड़ जिना सुबेर बिटेन रात तक तक लगैक दिखणि रौंदी छे।  कबि दिन म धुंवा नि दिख्यावो या रात उज्यळ नि दिखे त बुडड़ी धै लगान्दी छे बल क्या ह्वाइ।
त या च सामन्य धरड़ौ गां मा  दक्षिणोत्तर कूड़ो कथा।
(नोट - या कथा मल्ला ढांगू वळुंन सुणाइ।  जु कुछ हौर सूचना हो तो कथा म सुधार बि ह्वे जाल )

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 जसपुर , ग्वील , ढांगळ अर ख्याड़ाक् कुकरेती  बग्वाळ  किलै नि मनांदन

सलाणी लोककथौं जणगरु  : भीष्म कुकरेती

कथा सुणाण वळि  : स्व.कुकरी देवी  कुकरेती पत्नी स्व . शीशराम कुकरेती , जसपुर

सामन्य तौर पर गढ़वाळम  दिवाळी असलम गौपूजा त्यौहार च।  गौपूजा ही लक्ष्मी पूजा च गढ़वाळम।  गढ़वाळम दिवाळी मतबल चौदसी अर औँसी कुण सन्नी , छन्नी , गौशालाम गोरुं तैं फूल लग्यां पींड खलाण, पींडु  मने झंग्वर , भात , बाड़ी क छुट छुट गोळीं म फूल अर धनतेरस , बग्वाळ अर दिवाळी रात द्यु जगाण।  द्वी दिन स्वाळ पक्वड़ , भूड़ा बि बणदन अर वीं मौक इक बि बंटदन जौंक दिवाळी नि  हो वे साल।  जौंक दिवाळी  हूंद वु बरजाति मौका गोरुं तै पींड बि खलांदन।  अब त पटाखा बि ऐ गेन।  गढ़वाळम बग्वाळ अर औँसी दिवाळी महत्वपूर्ण हूंद।  हौर गांवक कुकरेती बि बग्वाळ अर औंसी दिवाळी इनि मनांदन जन आम गढ़वळि मनांदन पर जसपुर , ग्वील (मल्ला ढांगू );  ढांगळ अर ख्याड़ा (उदयपुर ) का कुकरेती बग्वाळ नि मनांदन।  यी कुकरेती अर जसपूरक जखमोला औंसी दिन गोरुं तै पींड सन्निम ही खलांदन पर बग्वाळि दिन ना त पींड खलांदन ना ही स्वाळ  पक्वड़ बणांदन। यांक अलावा जसपुरौ जखमोला बि  बग्वाळ नि मनांदन बल्कण म द्वी जाति लोक गोधन मनांदन। 
 गोधन मनाणो तरीका बि भिन्न च।  गोधनौ  दिन जसपुर , ग्वील अर ख्याड़ा  का कुकरेती लोग  गाजा बाजा का साथ दुफरा उपरान्त बौणम गोरुं तैं पींड खलांदन।  ढोल दमाऊ का साथ लोग दगड़ी पींड लेक बौण जांदन अर उखी पींड खलांदन।  बड़ा उत्साहजनक व आनंद दायक माहौल हूंद छौ बौण  या खाली सारीम गोरुं तैं पींड खलाण।  ये ही दिन कुकरेती स्वाळ भूड़ा पकांदन। 
     कुकरेत्यूं बग्वाळ नि मनाण  अर गोधन मनाणो पैथर एक लोक कथा च बल भौत साँख्युं पैलि  (दादी जी बुल्दी छे बल गुरख्याणि से बि पैल )  यूं गांवक कुकरेती बि  बग्वाळ इ मनाँद था।  पर एक साल इन भयंकर घटना ह्वे बल कि क्या बुलण तब।  कुकरेत्यूं  बग्वाळ मनाणै तयारी करीं हि  छे बल निराश ह्वै अर एक बुड्या जी सोरग चल गेन।  बस तब बिटेन कुकरेत्यूंन बग्वाळ मनाण  बंद कौर दे।  कई साखी बीत गे छा बग्वाळ छुड्यां कि  एक गोधन क दिन कुटुंब म एक नौनी पैदा ह्वे अर  बस येइ ख़ुशी म कुकरेती  गोधन मनाण लग गेन।
    इनि जसपुर का जखमोलाौं इक बि बग्वाळि दिन क्वी सोरग चल गे पर कुछ साल बाद गोधना  दिन कै जखमोला की गौड़ी बिए गे तो जखमोला लोक बि गोधन मनाण मिसे गेन।
बस या च गोधन मनाणो कथा। 


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रामीसेरा नाम उतपति कथा

सलाणी लोककथौं जणगरु  : भीष्म कुकरेती

कथा सुणाण वळ: श्री जगदीश प्रसाद शुक्ला (रामजीवाला गाँव , उदयपुर पट्टी , गढ़वाल )

 या कथा आज को रामीसेरा गाँव, बदलपुर पट्टी की लोक कथा च।  रामीसेरा , जहरीखाल ब्लॉक म जमीरा , धकसुन  का नजिकौ  गाँव च जु जहरीखाल ब्लॉक म च।
इन बुल्दन बल बदलपुर क एक गाँव (शुक्ला जी अनुसार मठियाळी ) म एक बिगरैली जवान रामी नामै विधवा रौंदी छे। रामी एक तीन मैना की नौनी छे अर वींक मालिक  कुछ दिन पैलि सोरग चल गे थौ।  बिचारि बड़ी मुश्किल से बच्ची पालन पोषण करदी छे।  दुर्जन थोकदारक बुरी नजर रामी पर छे अर वीं तै धरण चाणु  छौ। दुर्जन थोकदारन अपणी  इच्छा रामी बताई पर  मना कर दे।  थोकदार अब रामी तै बेवजै तंग करण  लग गे।  रामी तब बि झुक नी।  थोकदार रामी तै परेशान करणो क्वी कसर नि करदो  थौ।
   एक दैं अंग्रेज लाट साब मठियाळी दौंरा पार आयी।  अर जन कि रिवाज थौ थोकदार तै लाट साब व वेका कारिंदों बान  कुली,  रौण -खाण , दूध घी को इंतजाम करण छौ।  हरेक मौ से डड्वार मंगे  जांद छे याने बेगार।
    दुर्जन थोकदार तै रामी तैं तंग करणो   गे।  थोकदारन रामी से एक लुट्या  दूध दीणो आदेश, बदलपुर  दे दे।  थोकदार जणदु थौ   बल रामी क लैंद  पाणी  कुछ नी अर वैक डौरन कैन रामी तै दूध नि दीण।  रामी तै थोकदारन धमकी दे बल नि पौंछ त वींक कूड़ पुंगड़ी नीलाम करे जाल।
 अब बड़ी समस्या छे।  रामी जणदी छे बल लाट साब अर कारिंदा लोग बि कम जल्लाद नि हूंदन।  कत्युं  गौड़ी भैंसी नीलाम करि दींदा था यी जल्लाद अर थोकदार लोक।  रामीन बि कसम खायीं छे बल ये थोकदार समिण त नि झुकण।  रामीन अपण दूध एक लुट्या म निकाळ अर उख तम्बू म लाट साबक भंडारी तै दे दे।
     जब लाट साबन दूध पे त  चट्ट वैक समज म आई गे  बल यु गौड़ी भैंसक ना बल्कण मनिखौ दूध च।  वैन तहकीकात कार तो पता चौल बल दूध रामी क ड्यारन ऐ थौ।  लाट साबन रामी भट्याई।  रामी डरदी डरदी  लाट  साबक समिण आयी।  लाट  साबन रामी तै सल्यूट कार अर ब्वाल  चूँकि मीन त्यार दूध पे तो तू मेरी ब्वे जन छे।
    लाट साबन रामी से जब असलियत जाण त तुरंत थोकदार की थोकदारी जब्त कौर दे।
 लाट साबन रामी से कुछ मांगणो प्रार्थना कार।  रामी म क्वी स्यार (धान का पणचर खेत ) नि छा तो रामीन स्यार /ज़रा की मांग कार।  लाट  साबन तुरंत गाँव का स्यारा रामी क नाम कर देन अर आदेश दे बल यूँ  स्यारुं  पर क्वी क़िस्त टैक्स नि  लिए जाल।  बस रामी वूं स्यारुं मालकिण  बणगे अर वीं जगा नाम रामीसेरा पौड़ गे।   


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   एकेश्वर मंदिर थरपणै लोक कथा
Folk Story about emerging Ekeshwar Temple



सलाणी  लोककथाजणगरु : आचार्य भीष्म कुकरेती



 कथा सुणाण  वळ : श्री मदन मोलासी  , पयासू , कफोळस्यूं , पौड़ी गढ़वाल।

-

  या कथा प्रसिद्ध पट्टी चौंदकोट पट्टी क  च।  कफोळस्यूं म एक पहाड़ी मुंडेश्वर /मुन्डेशर  म  एक मंदिर च मुंडेश्वर मादेव मंदिर या खैरलिंग मादेव मंदिर । खैर लिंग पशु बलि कुण  प्रसिद्ध मंदिर छौ।  चौंदकोटम बि एक प्रसिद्ध देवस्थल च एकेश्वर मादेव।  मुंडेश्वर पर्वत  अर एकेश्वर पर्वत श्रेणी अमिण समिण छन अर  बीचम एक बड़ो गदन च।  मुंडेश्वर व एकेश्वर मध्य दूरी होली २० -२५ किलोमीटर। 



  एक दिनै छ्वीं छन बल एक ग्वेर मुंडेश्वर पहाड़ी म गौर चराणु छौ  , मजा से बल तमाखू चिलम पर सोड़ बि लगाणु छौ।  अचाणचक तै ग्वेराक नजर समिणा पहाड़ी पर पोड़ अर ग्वेर क सांस जख्या तक्खी रै गे।  तै समिणा पहाड़ी (अब एकेश्वर डांड ) म गोर एक भेळम इन पौंछि  गे  छा जु गोर  नि बौड़ये जांद त  गोरुन भेळ लमडण  छौ  अर तड़ तड़ाक तड़म लग जाण छौ। ऊना कै  ग्वेर क सूद भेद बि नि  छौ।   मुंडेश्वर पहाड़ी से समिणा  पहाड़ी म धै  सुणयाणौ क्वी मतबल इ नि छौ  पर ग्वेर इथगा आतंकित ह्वे  गे  छौ बल वैन धै  लगाण शुरू कर दे बल , " हे (गौड़ी ) बौड़ जा रे , हे (गौड़ी ) बौड़ी जा रे , बौड़ जा रे ! " पर आवाज उख कनै  पौंछण  छे , ग्वेर मुंडेश्वर डांड बिटेन किराणु  राई बल  " हे (गौड़ी ) बौड़ जा रे , हे (गौड़ी ) बौड़ी जा रे , बौड़ जा रे ! "  पर कैन सुण  छौ।

  ग्वेर निराश ह्वे गे अर दुखी ह्वे गे , निरस्यूं ग्वेरन एक गोळ पत्थर (लोड़ी ) उठायी अर मुंडेश्वर  मादेव क सुमिरण कार बल हे मुंडेश्वर मादेव जु मि  त्यार सच्चो भगत होलु तो ये पत्थर तै समिणो  डांड  पंहुचे दे।  अर ग्वेरन ु  पत्थर (लोड़ी )समिणा डांडा तरफ घुर्रै दे  घुर्र।  ग्वेरन  खौंळेण इ  छौ  उ  पत्थर पुट गोरु समिण  पोड़ अर  गोर  वापस भेळ  से दूर चलि  गेन। गोर भेळुंद लमडण से बच गेन।

   जब एकेश्वर वळुं  तै पता चौल कि क्या क्या ह्वे तो ऊन  वे पत्थर तै उखम खडा पुटुक धार याने लोड़ि   थरप दे (स्थापित )  अर मथि छुटि सि द्वी पथरै कूड़ी चिण दे अर लिंग (लोड़ी ) तै इगासर नाम देकि पुजण  शुरू कर दे।   धीरे धीरे  इगासुर मादेव की मानता बढ़दी गे , इना उना क लोग बि चढ़ावा   चढ़ाणो आण मिसे गेन।  इन माँ लोगुंन उखम बड़ो उच्चो मंदिर निर्माण कार।  आज एकेश्वर, इगासर ,   इगासुर मंदिर एकेश्वर तहसील को भौत बड़ु प्रसिद्ध मंदर च।

 त  या च इगासर मादेब क कथा।           

 

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जसपुर बिटेन कुकरेती परिवार गंगा पार देहरादून किलै भागिन ?

(250  साल से बि पुराणी लोक कथा )

सलाणी लोककथौं जणगरु  : आचार्य भीष्म कुकरेती

कथा सुणाण वळ : स्व बलदेव प्रसाद 'कुकरेती ,मास्टर जी , 'स्व.  मोहन लाल कुकरेती , स्व कुकरी देवी शीशराम कुकरेती (जसपुर ढांगू ), सन 1960 करीब
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   हमर एक सारी च मुड़ि चौड़ी।  मथि चौड़ी भद्वाड़ै सारी छे तो मुड़ि चौड़ी आम पुंगड़।  चौड़ी हमर गां से एक डेढ़ किलोमीटर दूर च।  खौंळेणे बात या च बल इख हमर पुंगड़म एक दळिमौ डाळ बि च।  ए दळिम पर मीठा मीठा फल लगद छा।  हम तैं पता छौ बल कब पकदन त हम दळिम  खाणो इख पौंछि जांद छा।  दूर हूणो उपरांत बि क्वी चोरी नि हूंदी छे पता नि किलै धौं जब कि गां मा घनश्याम ददा जीक   दळिम पर लोग  हाथ मारी दींदा छा।
 एक दें हळेणो बाद  म्यार बडा  मास्टर जी अर मि खौड़ साफ़ करणा छा त मीन पूछ बल बडा जी इख जंगळम दळिम कन जामि।  बडा जीन बताई बल तबैक बात होली बल जब ग्वील गाँव बि नि बस छौ बल।  हमर गाँव जसपुरम हज्या प्रकोप फैली गे बल।  लोग सुबेर त ठीक रौंदा था पण   दुफरा हूंद हूंद उलटी दस्त कौरि कौरि मोर जांद छा बल।  बैदुं दवाई बि काम नि करणी छे अर म्वार पर कांड , कंडाळी से बि बल कुछ फरक  नि पोड़ बल। बल यि राम दा इन नौबत आयी गे बल जवान नौनु भितर मर्यूं हो तो बि ब्वे बाब वे पर हथ लगाण त जाणी द्यावो भितर खुट बि नि धरदा छा.   हज्या प्रकोप जब बिंडी ह्वे गे त  जसपुर बिटेन लोग भाजी गेन।  गाँव खाली ह्वे गे छौ।  हमर परिवार अर हौर  परिवार बि  गाँव छोड़ि भाजि गेन।  हमर परिवारन  मुड़ि चौड़ीम पल्ल लगाइ अर उखम रौण लग गेन।  क्वी हौर दूर पल्ल  लगैक रौण  लग गेन। भौत सा परिवार त बल गंगापार (टिहरी ) जिना  भाजी गे  छा बल।   हमर बूड बुल्दा छा बल तब हज्या आसरा दिनों म हमर बूडन इखम दळिम  खै छा बल अर यु दळिमौ डाळ जमी गे बल।  बड़ो पवित्र डाळ च बल यु।
मीन बडा जी से पूछ बल हौर कख गेन तो बडा जीन कुछ नि बताई।
मीन घौर ऐक दादि (पिताजी की बोडी ) अर चचा जी ( स्व मोहन लाल ) से पूछ तो हज्या कथा बारा म पूछ।
तब ददिन बताई बल एक परिवार भगद भगद माळा बिजनी जिना  गे बल उख गुलर गाड म नाव या ठुपरी से गंगा पार कौरिक थानों भोगपुर भाजी गेन  (ददि देहरादून ना देहरादून  कुण थानो भोगपुर ही बुल्दी छे जब मि देहरादून से घौर आंद छौ त ददि बुल्दी छे 'ऐ गे थनो भोगपुर बिटेन ).
   तब चचा जीन बताई बल यु परिवार देहरादून भाजी गे छौ (शायद बिधौली ) . दादि जी  अर चचा जीन बताई बल एक दैं  ये परिवारौ वर्तमान पीढ़ी मदे एक सदस्य जसपुर ऐ छौ बल।  यूंक परिवार कै  भयंकर दुःख म फंसी  गे छौ त पुछेरन बताइ बल अपण पैतृक पितर्वड़म नारायण बळी कारो।  तो वै सदस्यन जसपुरम कुकरेत्यूं मूल पितर्वड़म नारायण बळी कर्मकांड करवाई छौ।  मि पुछद भूली गे छौ बल कै बहुगुणा गुरु जीन नारायण बळी कर्मकांड सम्पन कार।



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 चखुलुं अंडा फुड़णो पाप

सलाणी लोककथौं जणगरु  :  आचार्य भीष्म कुकरेती

कथा सुणाण वळि  : श्रीमती दमयंती कलीराम कुकरेती (जसपुर ढांगू  ) .
-
  एक दैं मि अर मेरी मां धाणी जाणा था त एक छुटु  बेडु डाळम चखुलो घोल देखि मीन नील आकर्षक अंडों पर हाथ लगै दे।  आसपास चखुल चूं  चूं  करणा  छा तो मांन  जोर की आवाजम ब्वाल   - ना ना अण्डों पर हाथ नि लगा त्यार हथ लगाणो बाद चखुलूंन घोल म आण बंद कौर दीण।  मि   झसकेक भ्युं ऐ ग्यों।
    तब मांन या कथा लगै छे -
भौत साल पैल कै गां म  एक मनिख छौ  सुल्तानु।  बड़ो भलो मनिख छा।  संत स्वभाव को सुलतान पवित्तर  आत्मा छे बल।  लोगुं भौत काम आंद छौ।  कैक बि मौ मदद करणम पैथर नि रौंद  थौ सुलतानू।  गाँव वळ  सुलतानु भौत बड़ैं करदा था। कुज्याण क्या कांड  लगिन  धौं बल बुड्या हूण से पैल इ  सुल्तानु  कुचर काणु  ह्वे गे निरपट  अन्धो।  कथगा इलाज कराई  कथगा घड्याळ  धरिन धौं पर सुल्तानक आँख ठीक नि  ह्वेन  कुचरकाणो कुच्यर काण ही राई अर अन्धो ही भग्यान ह्वे। 
    मरणो  बाद बल ज्यूंरा सुलतान तैं भेमाता  दरबार म ली गेन।  भेमाता  (ब्रह्मा ) न निर्णय दे बल  सुल्तानन  सब पुण्य काम करिन त ये तैं सोरग  भयाजो।  यु नर्क लैक नी। जु बि एन पाप कौरी छ वांक सजा भूलोक म इ भुक्तिक ऐ गे।  बिचारो कथगा साल अंधा राई धौं।
 सुल्तानन  पूछ - तो भेंटा जी मीन क्वी पाप कार जु मि  अंधा हूं ?
भीमाता क जबाब थौ  - हाँ तीन पाप कार छौ तो तू अँधा ह्वे।
"मीन क्या पाप कौर जु मि अँधा हूं ?"  सुल्तानन पूछ
भीमाता क उत्तर छौ -  एक ना तीन पांच छै  दैं  निरीह चखुलों  अंडा फोड़िन जु एक जघन्य पाप च।
 या छे पर्यावरण बचाणै  कथा। 

संदर्भ , भीष्म कुकरेती , सलाण बटें लोककथाएं (श्रृंखला 2003 , रंत रैबार , देहरादून
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  आज खायी कखड़ी  भ्वाळ  खायी बखरी (सुल्ताना डाकू की  कथा )


 कथा  संकलन - आचार्य भीष्म कुकरेती


 कथा सुणाण  वळि  : स्व. श्रीमती श्रीमती सदानंद डबराल (डवोली , डबराल स्यूं )

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  दक्षिण गढ़वाळम इन गौं सैत क्वी नि ह्वालु जख सुल्ताना डाकू कथा प्रचलित नि रै होली।  बुल्दा त इन छन बल अंग्रेजूं अत्याचार से सुलतान बल सुल्ताना डाकू बौणअर बिजनौर को रोबिन हुड

छौ  बल जी सरकारी खजाना लूटि गरीब गुरबों म बंटदो छौ।  पर हमर जिना  याने  डवोली डबराल स्यूं या जसपुर ढांगू म सुल्ताना डाकू की कथा कुछ हौरि इ च।  यांकुणि बुल्दन बल लोक कथाओं स्थानीय भेद।  आज खायी कखड़ी भोळ खायी बखरी सुल्ताना डाकू पर फिट बैठदी। मेरी नानी स्व श्रीमती श्रीमती सदानंद डबराल न या कथा कुज्याण कथगा दै सुणै होली धैं।

     भौत वरसों ना सि यार ददा जी बगतो की इ छ्वीं  होली बल ऊना भाभर जिना  गुज्जर अडगैं (क्षेत्र )म एक निर्दयी क्रूर डाकू ह्वे बल सुल्ताना डाकू।  बल लाट साब अर ग्वारा सिपै बि  तै डाकू नाम सुणि  डरण बिसे जांद छा बल।  सौकार बिचारा त बल तैक डौरन सींद ई नि  छा बल।  हुस्यार इथगा  छौ बल कथगा लाट साब ऐन अर कथगा सिपै लैन पर क्वी वै  गुज्जर डाकू नि पकक्ड़ सकिन भै।  दुर्जन कथगा बि हुस्यार ह्वावो पकड़म आयी जान्दो बल।

     एक दिन बल एक लाट साबन  सुल्ताना डाकू पकड़ इ द्याई अर  काळों डांड अदालत म खड़ कर दे।  ये ब्वे कन  अदालत हूंदी रै होली तब झट झटाक काजीन फाँसीक सजा सुणाइ दे वे डाकू तैं।  डाकू हाकिम से दरख्वास्त कार बल मि  तैं  ना बल्कणम  मेरी ब्वे तै फांसी सजा सुणाओ।

  इन मा  हाकिमन सुल्तानाक  ब्वै भट्याई।  सुल्तानान अपण ब्वै कुण ब्वाल बल इखम आ मि  कुछ बथ सुणाण चाणु छौं।  वै सुल्तानान ब्वेक कंदूड़ म  ब्वाल, " बल ये ब्वे जैदिन मीन कखड़ी चोरी छे त तू म्यार कंदूड़ पकड़िक पीटी दींदी त आज मीन फांसी नि चढ़न छौ अर तीन निपूतो नि हूण छौ "

   बल ह्वे क्या छौ बल छुट मा एक दिन सुल्ताना न कैकि कखड़ी चोरी अर अपण  माम ल्है  गे।    ब्वै रंडोळन अड़ानो जगा सुल्ताना की बड़ी बड़ैं कार।  अब दुसर दिन बिटेन सुलतानू कबि कैक गुदड़ी चुरावो , कबि मूळा चुरावो अर ब्वे रंडोळ  रूणो जगा पुळेक सुल्ताना क बड़ैं करदी छे।

    हूंद करदो करदो सुल्ताना बड़ो चोर ह्वे गे अर एक दिन वैन बड़ो पधान जीक बखरी चोरी दे  . पधान इ ठैर वू  हौरुुं  तरां चुप नि  राई।  पधान न पटवारी भटे दे. पटवारी सुल्ताना तैं पकड़ नो ग्यायी  सुल्ताना जंगळ  भाजी गे. अर उख भौत बड़ो डाकू बण गे।

  तबि त बुल्दन बल आज खायी कखड़ी भोळ खायी बखरी।  बूबा कबि चोरी नि करण बल। 


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आशा-हरखू....भविष्यवाणी संबंधी गढवाली लोककथा

लोककथा संकलन - कमल जखमोला,ग्राम-गढ़कोट  लैंसडाउन तहसील , हाल निवास-मानपुर कोटद्वार

*^*^*^*^*^*^*^*^*^*^
      पौड़ी गढ़वाल की लैन्सडाउन तहसील का अन्तर्गत मल्ला ढाँगू पट्टी मा स्थित च् गढ़कोट गौं,गढ़कोट को सामान्य तौर पर लोग गटकोट या गडकोट भी बोल दींदन।यख पुराणा समय मा जखमोलाओं मध्ये दुई बड़ा विद्वान भाई राँदा छ्याई, नाम छ्या आशा और हरखू।पूरी तिकड़ी मा वूँकू नाम प्रसिद्ध छ्या।वू तंत्र मंत्र का जानकार तो छ्या ही,दग्ड़ी पशु पक्षियों की बोली का ज्ञाता भी छ्या।
         एक बार नयार पार कैइ गौं बटि कुई आदिम़ गढ़कोट आई।आशा गौं का पधान छ्या,सो वू आदिम़ वूँका ध्वार पौंची गै।रामाकृष्णि का बाद  हुक्का भरे गै।आशा और हरखू दुई भाई तिबारी मा बैठीं छ्या,दग्ड़ी वू आदिम़ भी छ्या।अब तक वू जाणी गै छो कि वू आशा हरखू भाईयों का दग्ड़ी बैठ्यूं च्।
            अभी वू लोग हुक्का की सोड़ भर्णू ही छ्या कि एक करैंई उड़ी की समिणी का डाल़ मा बैठीगे।थुड़ा देर बाद करैंई किर्रकिर्र कैरीकी बास़ि गे।वे आदिम़ तै स्मरण होई कि यी भाई तो पशु पक्षी की बोली भी जणदन।वैन पूछी,पंड़ाजी बतावत धैं कि या करैंई क्या बोलिगे।
           हरखू जी न् ब्वाल़ अरे चखुल छन बुन्नि लगीं रंदन।लेकिन वू आदिम़ भी जिद्दी रै।वैन ब्वाल़,पंडाजी आपतै बताण ही प्वड़ल़......।आशा हरखून् वै टल़णा की पूरी कोशिश करी लेकिन वू अड़िग बण्यूँ राई।
         अब दुई भाइयों बटि एकन् ब्वाल़,तो सुणौ करैंई बोलिगे कि समणी पर जू परासूल लगीं वा फुक्याण वल़ि च्।आदिम़ हैरान कखि आग नी दिखैणी।हुक्का भी ठण्डु ह्वैगे छै।रूड़्यों को बग़त भी नी छ्या....दिखुद छौं क्या हूँद...।
           अचानक एक चिण्गरी जखन ऐई होल़ी और दिख्दा दिख़द़ परासूल रंगुंणु बण गै।अब वै आदिम़ न् हथ जोड़ी की ब्वाल़,पंड़ाजी नाम ही सुण्यूँ छ्याई आज सैंदृष्टि देखी भी याल़....इन छ्या आशा-हरखू
        यूँ दुई भय्यों का आणा पुराणा लोग खूब दींद छ्या.......
प्रस्तुति-कमल जखमोला,ग्राम-गढ़कोट हाल निवास-मानपुर कोटद्वार
(गाँव के बुजुर्गों से सुनी कथा आधारित)

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