लिण्ड्र्या छ्वारा
लोक कथा संकलन : दीन दयाल सुंदरियाल , चंडीगढ़
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एक गौ म एक गरीब नोन्याल छौ जु छोटा म ही छ्वरे गे । ब्वे बाबा सिंनक्वालि मरी गेनी, भै बैण क्वी छा ना। सोरा- भारा अर गौं वलों कु हतबुत सरेकि जिनगी बिताणु छौ, याने कि जै दिन, जै बगत, जै मौउ कु काम करी, वखी खाउ अर रात अपण कोठरी म सेणू ऐ जाउ । इनी वैका दिन गुजर्णा छा । वैका ब्वे बाबा न नाम त धरी छौ लीलाधर, पर वैकु असली नाम क्वी नि ल्हेन्दु छौ। सब्बि छोटा –बड़ा, बैख- बिठुला, वैकु लिण्ड्र्या छ्वारा हि बोल्दा छा। लिण्ड्र्या याने लीला र छ्वारा याने जैका ब्वे- बाबा नी। वो भि कैका बोलनों बुरु नि मानदु छौ, बल्कि सब्बूकू काम करी देन्दु अर सबु दगड़ हेन्सी खेली रन्दु छौ। लिण्ड्र्या कभी स्कूल नि गै पर दिमाग वैकु भौत तेज छौ। वन वो सीधु –सादु नौन्याल छौ ।
लिण्ड्र्या छ्वारा जब भि टैम मिल्दु त गौं क तौल बाटा किनर तिमला क डालम बैठी पक्यां तिमला कु मजा लेंदु छौ । क्वी आण जाण वला भि वैमा तिमला मंगदा छा त वो ना नि कर्दू छौ । एकदिन एक बुडीड़ सि ज़नानी ऐ अर वींन लिण्ड्र्या छोरम तिमला मांगिन। वा बुडीड़, जु असल माँ एक डैण छाई, मिट्ठा तिमला खाइक भौत खुश ह्वाइ अर सोच्ण बैठी कि रोज़ यूं तिमला खाण वालु यो छोरा कति मिठठू अर सवादि होलु । पितली गिच्ची करी वींल बोलि ,” हे बुबा, जरा एक तिमला हौरि दे. दे..”। लिण्ड्र्या जनी तिमला चुट्टाण बैठी त बुडीड न बोलि ,” न न न, सिन न चुट्टों, तिमला फुटी गे, जरा तौल औ अर म्यार हथम पकड़ौ - - - -“ । वो सीधु सादु नौन्याल जनी तौल म सि आई त वीं डैण न झट खेंची, अपण थौला म ड़ालि अर चल्दे । डैण मनमाँ खुश हूणी कि आज राति सवदी शिकारि तर्री अर बासमाती भात खौलु ।
बिचारु लिण्ड्र्या क्य जी करु ? बड़ी मुसकल करी वैन बुडड़ी क थौला पर द्वी छेद करीन तब्त सांस ल्हेणु राइ। थोड़ा सी देरम वै नींद ऐगी। गौ कि सरहद बिटी जरा सि अगने जैकि डैण झाड़ा फिरणों चलिगे, अप्णु थौला बिसैकि गुयेर छोरों देखभाल कर्णौ बोलिगे । गुयेरुन, जो लिण्ड्र्या का हि गवां छा, थौला खोलि। देखि त लिण्ड्र्या छोरा बंद छौ । वून वो बिजालि अर लिण्ड्र्या भैर ऐगे । तब सब्बों न थैला पर घनतर -ढुंगा अर माटू भरी दे अर थौला कु मुक उनि बांधिक सब भाजि गेनी । डैण वापस आइ, थौला पीठि पर लगै अर चल पड़ी । वींकी पीठी पर ढुंगा बिणाना अर व बोनि , “ निर्बइ लिण्ड्र्या छ्वारा, पुड्यौ पुड्यौ सि घुंडा, तेरी घुंडीयु कि रशी पीण ब्यखुंदा - - -“। वा डैण जनी अप्ण घौर पौंछी अर थौला खोलि त पट्ट खौलेगे ।
हैका दिन वो डैण जोगण-माइ बणी लिण्ड्र्या म तिमला मङ्ग्णौ चलिगे। जनी लिण्ड्र्या छोरा तिमला ढोल्ण बैठी, त वींन बोलि, “ हे छोरा, मी चुट्टायीं भीक नि ल्हेन्दु । देणा तिल त म्यार हथम दे - -“। सीधु -सादु लिण्ड्र्या फेर वींका बखयाँ म ऐगे अर जनी वो नजीक आई तिमला देणू, वीं जोगणन (डैण ) झट खेंची वो, थौलम बंद करी अर चल्दे । दूर पाणि वाला रौला म जैकि, थौला पुंगड़ा भीटा पर धरी, वा डैण झाड़ा फिरनौ चलिगे। वै दिन लिण्ड्र्या तै निंद नि आइ छै अर वो थैला भित्र कुणमुण कुणमुण लग्यू छौ। तबरी उथेन एक स्याल एग्याई । स्याल न सोची कि थौला पर बखरू या भेड़ू बंद च। वैन तेज़ दांतू न थौला मुक खोलि दे। जनी लिण्ड्र्या वख बिटि भैर आइ स्याल ड़ौर गे अर भाजिगे। लिण्ड्र्या न थौला उंदी रौलों माटू, किचीड़ भोरि दे अर थौला कु मुक बांधि भाजिगे । जोगण डैण वापस आइ वींन थौला उठाई अर चल पड़ी। कुछ देर म वी पीठि पर कुछ तीन्दु सि लगी त वीं सोचि लिण्ड्र्या ड़ौर न हग-मुते ग्या। वीं बोलि “ हे छोरा ॥खूब हगी-मूती ले ... घौर जैकी दिखुलु तेरी हगणी - मुतणी .... आज त रशी अर बासमती भात खाण मीन - - -“ फेर जनी अप्ण घौर पौंछी अर थौला खोलि त डैण खौलेगे ।
तिसरा दिन जब लिण्ड्र्या छ्वारा तिमला डालम बैठ्यूँ छायु त व डैण भारी खूबसूरत बांद बणी ऐ ग्या । लिण्ड्र्या ब्यो जुगता ह्वे त गे छौ, पर निर्बइ छोरा कि ब्यो-बंद कि बात कैन करणि छै । सुंदर बांद देखी लिण्ड्र्या कु गिच्चा पाणि ऐगे अर वो पक्या-पक्या मिट्ठा तिमला ल्हेकी डालाक तौल ऐ ग्या। जनी वो वीं बांद तिमला देण बैठी, वील झट खेंची वो , थौलम बंद करी अर चल्दे - - -। वै दिन डैण न अपण घौरा पास जंगल से पैलि बिसौण नि करी। लखिपखी जंगल म बाटा क ढीस थौला लुकेइ कि वा झाड़ा फिरणों चलिगे । जरा सी देर म एक रिक्क आइ अर थौला सूंघण बैठी त लिण्ड्र्या छौरा न हाथ जोड़ी बोलि कि “ हे जंगल का राजा जी, मी बचावा ....” हैरान रिक्क न थौला खोलि त लिण्ड्र्या न बोलि , “हे रिक्क दादा, य बांद बोनी मी दगड़ ब्यो कर । मीन ना बोली त जबर्दस्ती थौला पर बंद करी च ल्हिजाणी।“ रिक्क त बिगरेली बान्दु शौकीन होन्दु। रिक्क न बोलि, “ त्यार जगा मी वीं बांद दगड़ी ब्यो कनो तयार छौ। “ इनू बोलि वो थौला उंदु बैठिगे अर लिण्ड्र्या न थौला कसिकी बंद कर दे । डैण थौला उठे घौर पोंछि। अप्ण असली रूपं म ऐकी जनी वींल थौला ख्वाल त रिक्क न डैण द्याख अर वों मारी दे। बस वै दिन बिटि लिण्ड्र्या छ्वारा अप्ण गौ वलों दग्ड़ राजी खुशी दिन बिताण बैठी। कहानी खतम, पैसा हजम ।
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Interpretation Copyright@ दीं दयाल सुंदरियाल चंडी गढ़ , 2018
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