Author Topic: Kabootri Devi: First Woman Folk Singer Of Uttarakhand - कबूतरी देवी  (Read 29600 times)

पंकज सिंह महर

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आए दिन प्रेस कांफ्रेंस व सीडी रिलीज करने वालों के लिए कबूतरी देवी अटपटा नाम हो सकता है, लेकिन असल में यह वह नाम है जिसने पर्वतीय लोक गीतों को उस समय पहचान दिलाई जब उसे जानने वाला कोई नहीं था। कबूतरी किसी स्कूल कालेज में नहीं पढ़ी, न ही किसी संगीत घराने से ही उसका ताल्लुक रहा बल्कि उसने पहाड़ी गांव के कठोर जीवन के बीच कला को देखा ,अपनाया, उसे अपनी खनकती आवाज से आगे बढ़ाया। पिथौरागढ़ के क्वीतड़ गांव की कबूतरी देवी की आवाज के लिए एक समय आकाशवाणी लखनऊ व नजीबाबाद तरसते थे। वह पिछले 20 वर्षों से गुमनामी के अंधेरे में हैं। कुछ लोगों के व्य्क्तिगत प्रयासों से उन्हें संस्कृति विभाग की मासिक 1000 रूपया पेंशन तो मिलने लगी है, लेकिन जीवन की कठिनाइयां उन्हें जीवन में घेरे हुए है। दुबली पतली काया तराशे हुए नैन-नक्श, सुघड़ वेश-भूषा, मीठी सुसंस्कृत भाषा यही कबूतरी देवी का परिचय है। मेरे दिल की दुनिया में हलचल मचा दी, मुहब्बत जता कर मुहब्बत जगा दी। बीते जमाने का यह भूला बिसरा गीत जब उनकी जुबां पर चढ़ता है तो आज भी हलचल मचाने के लिए पर्याप्त होता है। संगीत की औपचारिक तालीम न लेने पर भी उनका अनुभव सुर व ताल को अपनी उंगली पर नचाना है वह गाने के साथ खुद हारमोनियम बजाती हैं तो साथी तबला वादक को सही निर्देश भी देती हैं। दरअसल कबूतरी देवी का संबंध पहाड़ की उस परंपरागत गायकी से रहा है जिसे यहां की मूल कला भी कहा जा सकता है। दलित समाज की कबूतरी देवी के माता पिता का खानदानी पेशा गायकी ही रहा। 14 साल की उम्र में काली कुमांऊ(चंपावत जिले) से सोर(पिथौरागढ़ जिले) ब्याह कर लाई गई कबूतरी के माता-पिता दोनों उस्ताद थे। पिता गांव-गांव जाकर हारमोनियम, तबला, सारंगी बजाते मां गाती। इसी से रोजी रोटी भी चलती। कला की बुलंदी थी कि ससुराल आकर कबूतरी देवी को अपनी गायकी आजमाने का मौका मिला। पति दीवानी राम उन्हें कई आकाशवाणी केन्द्रों में ले गए। बताती हैं तब नजीबाबाद में एक गाना रिकार्ड करने का 25 रूपया दिया जाता था, लेकिन मुझे 50 रूपये दिए जाते थे। पति को मरे अब 25 वर्ष होने वाले हैं खुद कबूतरी भी 70 में पहुंच गई है लेकिन बीच-बीच में कला का सम्मान करने वाले कुछ लोग उन तक पहुंचते रहे हैं यही उनके जीवन का सबसे बड़ा संतोष है। कबूतरी देवी का जीवन संघर्ष यह समझने में मदद कर सकता है कि वास्तविक कला क्या होती है, वह कहां से उपजती है तथा उसका विज्ञान क्या है। वेदों के मूल रचयिता ग्वाले थे यह बात प्रमाणित हो चुकी है। इन ग्वालों ने जीवन को सहज रूप में जैसा देखा उसे बयंा कर दिया। उसको उत्सवधर्मिता का रूप देने के लिए श्रृचाओं का जन्म हुआ, धुनें आई, धुनों में जीवन के तमाम रूप प्रकट हुए लोक की खासियत है खुलापन। उसका कोई पेटेंट नहीं हो सकता, न ही वहां लिखने-गाने, संगीत व धुन देने वालों के खांचे बने हैं। लोक कलाकार सच्चे अर्थों में ऑलराउंडर होता है। कबूतरी पर्वतीय समाज के एक आदिम हिस्से की विरासत है। मशहूर साहित्यिक आलोचक क्रिस्टोफर कॉडवेल अपनी रचना विभ्रम और यथार्थ में यह तथ्य उद्घाटित करते हैं कविता एक व्यक्ति के रूप में नहीं बल्कि साझे आवेग की एक पूरी दुनिया के भागीदार के रूप में मनुष्य की उदीयमान आत्म चेतना है। लोककला पर लंबे समय से शोधरत डा. कपिलेश भोज कहते हैं लोक कलाकार हमारे समाज का साझा आवेग है। अधिक मायने रखता है घुघुती नी बासा को गोपाल बाबू गोस्वामी गाएं या कबूतरी देवी दोनों का स्वर लोकोन्मुखी है। उदासी है तो वह भी सामूहिक। खुशी है तो वह भी सामूहिक। लोक कला के हमारे जो भी बड़े कलाकार हैं गौर्दा, गिर्दा, जीत सिंह नेगी, गोपाल बाबू गोस्वामी या नरेन्द्र नेगी इनके वही गीत अधिक लोकप्रिय हुए जिनको आम लोग अपना सके। कबूतरी देवी कुमांऊ के परस्पर पूरक तीन समाजों की कला की वाहक हैं। कुमांउनी, नेपाली व फाग(संस्कार गीत)। इसके अलावा वह समकालीन लोकप्रिय हिंदी गीतों को भी सजाएं हैं। टीवी या टेप तब नहीं था रेडियो में जो गीत प्रसारित होते थे कबूतरी उन्हें सुनकर याद करती। सुना, आत्मसात किया, फिर जंगल में घास काटते समय उसे सुर में साधा। यही थी रिहर्सल। भूमिहीन दीवानी राम(जिन्हें कबूतरी देवी नेताजी कहती है) के परिवार के लिए धीरे-धीरे कबूतरी की आवाज ही आजीविका बन गई। नेता जी आकाशवाणी केन्द्रों के चक्कर काटते, कागजों को घुमाते बारी आने पर कबूतरी को वहां ले जाते। तब आज की तरह परिवहन व संचार की व्यवस्था नहीं थी। पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर स्थित गांव से देश देशांतर की यात्रा कर आना सचमुच रोमांचक अनुभव रहा होगा। बंबई आकाशवाणी में रिर्काडिंग के लिए जाते हुए कबूतरी देवी अपने अनुभव सुनाते हुए कहती हैं मैं रास्ते में ही गाना याद करती बहुत घबराहट होती। पति मेरा हौसला बढ़ाते। बंबई चर्च गेट व एक दूसरी जगह हम दोनों रियाज करते रहते। गीत संगीत व क्लासिकी को कबूतरी शब्दों में नहीं बता पाती तो कहती हंै हारमोनियम की भाषा में बता देती हूं। आकाशवाणी के अलावा वह पहाड़ में जब-तब लगने वाले मेलों में भी खूब गाती। बताती हैं तब मेले, मेले जैसे थे उनमें भीड़ जुटती थी और लोग सुनते थे। उनके पास द्वाराहाट, गंगोलीहाट, थल, जौलजीवी व देवीधुरा मेलों की सजीव यादें हैं। 'भात पकायो बासमती को भूख लागी खै कबूतरी देवी की कही इन पंक्तियों से हम उनके व्यक्तित्व का अंदाज लगा सकते हैं कि बिना किसी से कोई उम्मीद व अपेक्षा किए कैसे उन्होंने अपना जीवन सादे तरीके से जिया।
 
साभार- सुनीता भट्ट, http://darkhash.blogspot.com/

Devbhoomi,Uttarakhand

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विनोद सिंह गढ़िया

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लोककला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए इस वर्ष का केशवदास अनुरागी स्मृति सम्मान लोकगायिका कबूतरी देवी को संस्कृति मंत्री विजया बड़थ्वाल के हाथों दिया गया।

पंकज सिंह महर

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कबूतरी देवी जी आजकल अस्वस्थ हैं और सुशीला तिवारी हास्पिटल, हल्द्वानी में उपचाराधीन हैं। उनकी पित्त की थैली का आपरेशन होना है। मेरा पहाड़ उनके अच्छी शल्य चिकित्सा और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता है।

Hisalu

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Hisalu

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Bahot acha bhajan hai

kabootri devi ji ek mahaan Harmoni baadak bhi hain,devbhoomi main aise bhi klaakaar hain hain jinki kalaon ko aajkal log najar andaaj karten hain

Quitter Jagar 2008, Pithoragarh, Uttarakhand

विनोद सिंह गढ़िया

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Thul Nantin

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is the video of Kabootri Devi, first Folk Singer of Uttarakhand.singing "Aaj Paani jau'-2" a folk song. Mangla Rawat, one of the reputed folk Singer of Uttarakhand is also leading tough life due to financial problem. However, some Social groups are helping these Legendry singers but Govt should is required to rehabilite their life. Wake-up H S Rawat Sab..


https://www.youtube.com/watch?v=moRQRDf5hvE

 

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