Author Topic: Musical Instruments Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के लोक वाद्य यन्त्र  (Read 79413 times)

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
मशकबीन में मुख्य कार्य पाइपो का है, कंधे पर रखे तीन पाइपों में कई छेद होते हैं जो स्पीकर की तरह काम करते हैं, अर्थात आवाज को बाहर निकालते हैं, नीचे को लटका बांसुरीनुमा पाइप अलग-अलग धुन निकालता है और वादक के मुंह से एक पाइप लगातार मशक में हवा भरता रहता है, इस मशक को वादक अपनी बगल में दबाकर रखते हैं।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
इन सब के अतिरिक्त शंख और घंटी को भी उत्तराखण्ड का लोक वाद्य माना जा सकता है। शंख भी तीन तरह के होते हैं, सुर्यमुखी शंख, सामान्य शंख और उर्ध्वमुखी शंख। इनके अलावा खड़ताल, मंजीरा, खंजरी,इकतारा, दोतारा और गोपीचंद का इकतारा भी उत्तराखण्डी लोक वाद्य की श्रेणी में हैं।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
दो तारा भी उत्तराखण्ड में भजन-कीर्तन के समय बजाया जाने वाला वाद्य है, लोक गीतों में भी इसका समावेश है


दो तारी को तार, भगवान भरिया भकार,
गढ़्तिर गजार, घुघुती को त्यारऽऽऽऽऽऽ

Risky Pathak

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,502
  • Karma: +51/-0
Very Good Info... Pankaj Daa...

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
धतिया नगाड़ा


धतिया का अर्थ है, धात लगाना (आवाज देना, किसी खास प्रयोजन के लिये) ऎसी जोर की आवाज लगाना जो दूर-दूर तक सुनाई दे। अपनी भयंकर गर्जना युक्त आवाज से दूर-दूर तक संदेश देने के लिये प्रयुक्त होने के कारण इसे धतिया नगाड़ा कहा जाता था।
     यहां पर "था" का प्रयोग मैंने इसलिये किया क्योंकि एक-दो जगह के अलावा अब यह नगाड़े कहीं पर हों, मेरे संग्यान में तो नहीं है। पूर्वकाल में जब आज की तरह संचार के साधन नहीं थे तो राजा को अपने राज्य में कोई अकस्मात सूचना देनी होती थी या किसी राज्य पर चढ़ाई करनी होती थी या दुश्मन ने अगर राज्य में चढ़ाई कर दी तो जनता को सचेत भी करना होता था, ऎसे में जनता को सतर्क करने और युद्ध के तैयार होने की सूचना भी इसी नगाड़े से दी जाती थी। यह नगाडा़, आजकल के नगाड़ों से कहीं ज्यादा बडा़ होता था और अष्ट धातु का बना होता था।......

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
.......धतिया नगाड़ा बजाने के लिये सामंती काल में स्थान नियत होते थे, जो ऎसे स्थान पर स्थित होते थे, जहां से इसकी आवाज दूर-दुर तक पहुंच जाये। जिस पत्थर पर यह नगाड़ा बजाया जाता था उसे धती ढुंग कहा जाता था। ऎसा एक पत्थर वृद्ध जागेश्वर के पास आज भी स्थित है।
     कुमाऊं की लोक कथाओं में भी इसका वर्णन है, "बाईस भाई बफौल" में कहा जाता है कि बफौली कोट के राजा बफौल भाई जब भी इस नगाड़े को बजाते थे तो चंद राजाओं की राजधानी गढ़ी चंपावत मे, तत्कालीन राजा भारती चंद के परिवार में कुछ अनिष्ट हो जाता था। धतिया नगाड़ा बजाना भी वीरता का प्रतीक था।
      पूरे कुमाऊं में जागेश्वर धाम में चंद राजाओं द्वारा चढ़ाया गया धतिया नगाड़ा आज भी मौजूद है। इसका वजन १६ किलो है और इसके मुंह का व्यास लगभग १८ इंच है।..........

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
.......उक्त धतिया नगाड़े को राजा दीपचंद ने जागेश्वर मंदिर में चढ़ाया था। इसे वृद्ध जागेश्वर के धती ढुंग से बजाया जाता था, इस स्थान से रीठागाड़ी, गंगोलीहाट, चौकोड़ी और बेरीनाग तक साफ दिखाई देता है, उस समय गंगोलीहाट में मणकोटी राजाओं का राज था। किवदंतियों के अनुसार जब यह नगाड़ा बजता था तो गंगोल में गर्भवती महिलाओं के गर्भ गिर जाते थे और जब भी यह बजता तो मणकोटी राजा के राज्य में कुछ न कुछ अनिष्ट हो जाता था।
      इस नगाड़े के सहायक वाद्य के रुप में दो बिजयसार के ढोल, दो तांबे के दमुवे, दो तुरही, दो नागफणी, दो रणसिंग, दो भोंकर और दो कंसेरी बजाई जाती थी। इसे बजाने से पहले इसकी पूजा विधिवत पंडित द्वारा कराई जाती थी।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
जोशीमठ (चमोली)। स्थानीय वाद्य यंत्रों के समाप्त हो रहे अस्तित्व को बचाने के लिए संस्कृति विभाग की ओर से जोशीमठ में वाद्य यंत्रों पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है। राष्ट्रीय लोक नृत्य महोत्सव में शिरकत कर चुके सांस्कृतिक सम्मान से सम्मानित युवाओं को प्रशिक्षण की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

गढ़वाल की सांस्कृतिक धरोहरों को समय के साथ विलुप्त होने से बचाने को यह कदम उठाया गया है। संस्कृति विभाग गुरू-शिष्य परंपरा को जीवंत रखने के लिए भी प्रयासरत है। इस प्रशिक्षण में ढोल, दमाऊं, हुड़का, डौंर, भूंकर, भाणू, बांसुरी का गुर स्थानीय युवाओं को भी सिखाया जा रहा है। संस्कृति विभाग उत्तराखंड के उप निदेशक डा.लालता प्रसाद ने बताया कि गढ़वाल हिमालयी क्षेत्रों के लुप्त होते वाद्य यंत्रों को बचाने व प्रोत्साहित करने का इससे अच्छा तरीका नहीं हो सकता है। प्रशिक्षक सांस्कृतिक सम्मान प्राप्त कर चुके प्रेम लाल हिंदवाल ने बताया कि विलुप्त हो रहे वाद्य यंत्रों को पुन: प्रचलन में लाने के लिए इन्हें बजाने वाले कलाकारों को विशेष प्रोत्साहन देना जरूरी है। साथ ही समय-समय पर ऊर्जावान लोगों को इन वाद्य यंत्रों को बजाने का प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए। उन्होंने जानकारी दी कि सभी अभ्यर्थियों का मानदेय उत्तरी मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक विभाग पटियाला एवं संस्कृति विभाग उत्तराखंड द्वारा दिया जाएगा।



यह प्रयास बहुत ही सराहनीय है, संस्कृति विभाग की यह पहल अच्छी है, क्योंकि जिस प्रकार से आज हमारे लोक वाद्य विलुप्ति की कगार पर हैं, यदि यही क्रम चलता रहा तो ५० साल बाद जागर भी बैंड पर ही लगवानी पड़ेगी। यह जरुरी है कि समय रह्ते इनका संरक्षण किया जाय।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
एक हजार वर्ष तक जो सभ्यता कायम रहती है, उसके क्रियाकलाप धीरे-धीरे लोकप्रिय होकर एक छोटी-सी संस्कृति को जन्म देते हैं और फिर यही छोटी-सी संस्कृति हमारा आचरण बन जाती है। ढोल भी हमारे आचरण का ऐसा ही अंग है, जो पहाड़ के सोलह संस्कारों में शामिल है। यह दुनिया का एकमात्र वेद प्रतिष्ठित वाद्ययंत्र है। ढोल का अपना शास्त्र है, जिसे ढोलसागर नाम से जाना गया है। लेकिन, अफसोस! हमें ढोल के संरक्षण की चिंता नहीं है। क्या यह उत्तराखंड का राजकीय वाद्ययंत्र बनने का हकदार नहीं है? यह उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक प्रीतम भरतवाण की चिंता है, जिसे उन्होंने शनिवार को प्रेस क्लब की ओर से आयोजित प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में पत्रकारों के साथ शेयर किया। प्रीतम कहते हैं कि ढोल ने हजारों वर्षो के सफर के बाद संपूर्णता पाई है, इसलिए इसके स्वरूप में छेड़छाड़ उचित नहीं। ढोल का स्वरूप बदलने की बात वही करते हैं, जिन्होंने इसे जिया नहीं। यह शास्त्रीय मानकों पर खरा वाद्य है, अलबत्ता इसका आकार छोटा जरूर किया जा सकता है।
 

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22