Author Topic: Pandav Nritya: Mythological Dance - पांडव नृत्य उत्तराखंड का पौराणिक नृत्य  (Read 29505 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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[justify]देवता ही नहीं गांव का भी मनोरंजन


रवांई, जौनपूर, जौनसार व बाबर क्षेत्र में आजकल पांडव नृत्य की धूम है। कई गांवों में आजकल पांडव मंडाण (नृत्य) चल रहे हैं। नौ दिन तक चलने वाले इस उत्सव में जहां देवताओं को खुश किया जाता है वहीं ये पांडव नृत्य गांव के मनोरंजन के भी साधन हैं।
पांडवों को मनाने और मन्नतें मांगने आजकल जहां गांव-गांव में पांडव 'नौड़ते' (नवरात्रि) के माध्यम से भीम, नकुल, सहदेव, अर्जुन, द्रोपदी, देवी, ग्राम देवता, काली आदि को प्रसन्न किया जाता है वहीं, अकाल मौत से मरे लोगों को बुलाने को भी घडियालों (जागरों) आयोजन किया जाता है। चीणा, कौणी, अखरोट व पूरी-पकोड़ी आदि पकवानों से पितरों का आह्वाहन और बिदाई दी जाती है। मंगसीर, पूष व कार्तिक महीने में इन आयोजनों का विशेष महत्व है। कई गांवों में पांडव नृत्य के दौरान एक से बढ़कर एक 'स्वांग' (राक्षसों के रूप) भी बनाए जाते हैं। पांडव नृत्य से जहां गांवों का मनोरंजन होता है वहीं अपने ग्राम देवता और अराध्य देव भी खुश रहते हैं। मान्यता यह भी है कि गांव पांडव नृत्य से गांव में खुशहाली रहती है। इससे फसल और गांव की प्रगति और बुरी नजर से ग्रामीणों को बचाया जाता है। इसके लिए नौंवें दिन पूरे रातभर देवता के पश्वा जागरण कर गांव के चारों तरफ 'घाटे' (सुरक्षा कवच) बांधते हैं।
पांडव मंडाण (नृत्य) को लेकर मान्यता है कि जीवन के अन्तिम समय पांडवों ने इसी जगह से स्वर्गारोहिणी में प्राण त्यागे। पहाड़ों में आज भी पांडवों को जीवित माना जाता है तथा गांव-गांव में पश्वा के रूप में महिला, पुरूषों में देवता के रूप में अवतरित होते हैं।   वहीं, छोटी उम्र में अकाल मृत्यु के ग्रास बनने वाले पितरों को देवी, देवताओं के समान श्रेष्ठ स्थान देने को गांव-घरों में तीन व पांच दिन के घडियाले (जागर) लगाये जाते हैं। इस दौरान बाजगी ढ़ोल दमाऊ और पेलई गाथाओं से देवताओं को झूलने के लिए मजबूर कर देते हैं।
इस संबंध में पोरा गांव के 70 वर्षीय खिलानन्द बिजल्वाण कहते हैं कि पांडव नृत्य व पितरों का जागरा रवांई क्षेत्र की आस्था व परम्परा का प्रतीक है। इसके माध्यम से देवताओं व पितरों से मन्नतेमांगी जाती हैं।
   

 

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वीर अभिमन्यु को कौरवों केधोखे से मारने का चित्रण
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अगस्त्यमुनि(रुद्रप्रयाग), निज प्रतिनिधि: ग्राम सभा कमसाल में एक माह से चल रहे पांडव नृत्य के दौरान चक्रव्यूह मंचन का आयोजन भी किया गया। इसमें बालक वीर अभिमन्यु ने कौरवों के साथ युद्ध करते-करते छह द्वार पार कर उसे सातवें द्वार पर धोखे से मार गिराया। इस दृश्य को देखकर वहां मौजूद सैकड़ों लोगों की आंखें आंसुओं से छलक गई।

प्रखंड अगस्त्यमुनि के दूरस्थ गांव कमसाल में पांडव नृत्य होने से क्षेत्र भक्तिमय बना हुआ है। इस मौके पर मुख्य अतिथि संसदीय सचिव व केदारनाथ विधायक आशा नौटियाल ने कहा कि पौराणिक सांस्कृतिक धरोहर को बचाने में ऐसे आयोजन किए जाने चाहिए।

 इससे क्षेत्र के विकास के साथ भाईचारा व सौहार्द बना रहे। विशिष्ट अतिथि मीडिया सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष अजेन्द्र अजय ने कहा कि विलुप्त हो रही पौराणिक धरोहरों को बचाने के लिए सभी को आगे आना होगा।

 ऐसे आयोजनों से मानसिक विकास होने के साथ-साथ सद्बुद्धि भी प्राप्त होती है। ग्राम प्रधान कमसाल मातबर राणा ने समारोह में पहुंचे लोगों को धन्यवाद दिया। वहीं चक्रव्यूह मंचन के दौरान वीर अभिमन्यु के छह द्वारों को तोड़कर कौरव सेना में खलबली मचा दी। तथा सातवें द्वार पर जाते ही जब दुर्योधन को पता चलता है कि वीर अभिमन्यु ने उनके दोनों पुत्रों को मार दिया है।

तो वे धोखे से अभिमन्यु को अपनी गोद में बैठाते हैं, बैठते ही कौरव सेना वहां पहुंच कर वीर अभिमन्यु को धोखे से मार देते हैं। इस मौके पर पादप बोर्ड के सदस्य अशोक खत्री, विक्रम नेगी, केशव तिवारी, राजीव भंडारी, रामचन्द्र गोस्वामी, धीर सिंह, पृथ्वी पाल, हर्षबर्धन बेंजवाल समेत सैकड़ों संख्या में लोग उपस्थित थे। मंच का संचालन कुलदीप भंडारी व शिशुपाल कंडारी ने संयुक्त रूप से किया।

Dainik jagran

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बड़कोट गांव में पांडव नृत्य में दिखी उत्तरखंड की संस्कृति की झलक

बड़कोट(उत्तरकाशी)। बड़कोट गांव में नौ दिनों तक चले धार्मिक आयोजन में पांडव नृत्य के दौरान क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति की झलक देखने को मिली। देर रात तक ग्रामीण पांडव नृत्य पर झूमते रहे।
हर तीसरे साल स्थानीय बग्वाल के अगले दिन शुरू होकर नौ दिनों तक बड़कोट गांव में चलने वाले धार्मिक आयोजन में ग्रामीणों की भारी भीड़ उमड़ी। इस दौरान पांडवों में अर्जुन(खाती) व नागराजा के पश्वा ने ग्रामीणों द्वारा तैयार हाथी की सवारी कर प्राचीन परंपरा को जीवंत किया। इस मौके पर स्थानीय भगवती मां अष्टासैण की डोली और बाबा बौखनाग के ढोल भी मौजूद थे। पांडव नृत्य सहित अन्य कार्यक्रमों पर ग्रामीण देर रात तक झूमते रहे। मेले में शामिल हुए बुजुर्गाें ने बताया कि लाक्षागृह में मारे गए लोगों के प्रति संवेदना जताते हुए पांडवों ने इस देवभूमि में लोगाें पर अवतरित होकर उनके कष्टों को हरने का आश्वासन दिया था तभी से इस धार्मिक आयोजन के दौरान पांडव ग्रामीणों पर अवतरित होकर उनके अनिष्ट हरते हैं। इस धार्मिक आयोजन में क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति देखने के लिए आसपास के गांवों से भी बड़ी संख्या में ग्रामीण पहुंचे।

http://ghughutiuttarakhand.blogspot.com/2010/12/blog-post.html

lpsemwal

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हमारे गाँव भटगांव भिलंग में १९९५ में आयोजित पांडव निर्त्य में तत्कालीन पर्मुख सचिव संस्कृति गए थे मैं भी उपस्थित था कृपया देखें:

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Pandav Dance is now getting Popular world-wide.
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  दिल्ली में होगा सरनौल का पांडव नृत्य           
 
 
 
 
 
 
 
 
नौगांव जागरण कार्यालय : सरनौल गांव के कलाकारों को दिल्ली में अपनी लोकविधा पांडव नृत्य की प्रस्तुति देने का मौका मिला है। आगामी 11 से 16 फरवरी तक आईजीएनसीए (इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फार आर्ट) की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों के लोक कलाकार जुटेंगे। इसमें सरनौल के कलाकार भी प्रतिभाग करेंगे।
महाभारतकाल की विभिन्न कथाओं का लोकमंचों के जरिये प्रस्तुतिकरण पर आधारित इस कार्यक्रम में सरनौल गांव के पांडव नृत्य की भी प्रस्तुति होगी। इसमें कलाकार पांडव नृत्य के विभिन्न पहलुओं की लोकविधा के रूप में प्रस्तुति देंगे। गौरतलब है कि उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में पांडव नृत्य की परंपरा है इसमें अनुष्ठान व रंगमंच के तत्वों का अनूठा मिश्रण है। वहीं सरनौल गांव का पांडव नृत्य अपनी खासियतों के कारण काफी प्रसिद्ध है। सुप्रसिद्ध पांडव नृत्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों सहित इन लोग केरल तथा भोपाल में भी प्रदर्शित कर चुके हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली से आये डॉ.सुवर्ण रावत ने बताया कि सरनौल के कलाकार प्रत्येक दिन महाभारत पर आधारित प्रस्तुति देंगे। इनमें पांडव वनवास, जोगटानृत्य, गेडा नृत्य तथा गुप्तवास का मंचन किया जायेगा। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड से प्रसिद्ध रंगकर्मी डॉ.डीआर पुरोहित के निर्देशन में चक्रव्यूह मंचन व श्रीष डोभाल के निर्देशन में गरुड़ व्यूह की भी प्रस्तुति दी जाएगी।
 
(Source - Dainik Jagran)

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पांडव नृत्य ने किया श्रद्धालुओं को अभीभूत


 
  उत्तरकाशी : शिव महापुराण एवं महारुद्र यज्ञ के दसवें दिन श्रीकृष्ण की बाललीलाओं के प्रसंग ने श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया। कथावाचक हरि प्रसाद भट्ट ने कहा कि श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के पीछे जनकल्याण का दर्शन रहा है।
 लक्षेश्वर महादेव मंदिर परिसर में चल रहे शिव महापुराण एवं महारुद्र यज्ञ की शुरुआत पांडव नृत्य से हुई। गंगा भागीरथी में स्नान के बाद मंदिर परिसर में पांडवों के पश्वा को देख उपस्थित जनसमुदाय अभीभूत हो गया। इसके बाद कथा वाचक हरि प्रसाद भट्ट ने श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान विष्णु ने जब कृष्ण रूप लेकर मृत्युलोक में अवतार लिया, तो भगवान शिव खुद उनकी बाल लीलाओं को देखने साधू वेश में पहु्रंचे। कहा कि श्रीकृष्ण की लीलाएं मात्र बाल्यकाल की घटनाएं ही नहीं थी, बल्कि जनकल्याण की लीलाएं थीं !
 आयोजन समिति के अध्यक्ष बद्री प्रसाद सेमवाल ने बताया कि बुधवार को महापुराण की पूर्णाहुति होगी। इस अवसर पर हर्षव‌र्द्धन राणा, अनिल भट्ट, मंगल सिंह चौहान, शिवराम डंगवाल, भगत गिरी, केशव पुरी आदि मौजूद रहे

 

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