Author Topic: Some Exclusive Kumaoni Folk Songs- कुछ प्रसिद्ध कुमाऊंनी लोकगीतों का संग्रह  (Read 22580 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Prayag Pande यो बाटो कां जान्या  होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा |
 चमकनी गिलास सुवा रमकनी   चाहा छ |
 तेरी - मेरी पिरीत को दुनिये ड़ाहा छ |
 यो बाटो कां जान्या  होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा  |
 जाई फ़ुली , चमेली फुली, देणा फुली खेत |
 तेरो बाटो चानै  -  चानै उमर काटी मेता |
 यो बाटो कां जान्या  होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा  |
 गाडा का गडयार  मारा दैत्या पिसचे ले |
 मैं यो देख दुबली भ्यूं तेरा निसासे लै |
 यो बाटो
कां जान्या  होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा  |
 तेरा गावा मूंगे की माला मेरा गावा जंजीरा |
 तेरी - मेरी भेंट होली देबी का मंदीरा |
 यो बाटो कां जान्या  होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा  |
 अस्यारी को रेट सुवा अस्यारी को रेट |
 यो दिन यो मास आब कब होली भेंट |
 यो बाटो कां जान्या  होला सुरा - सुरा देवी का मंदीरा  |

 भावार्थ :
 
 इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर |
 चमकते गिलास में तेज रंग की चाय रही हुई है |
 तुम्हारे , मेरे प्रेम से सभी लोग ईर्ष्या करने लगे हैं |
 इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर |
 जाई और चमेली के फूल खिले हैं , खेतों में सरसों फूली है |
 तुम्हारी राह देखते - देखते मैंने अपनी सारी उम्र मायके में ही बिता दी है |
 इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर |
 दैत्य- पिचास ने छोटी नदी की मछलियाँ मार डाली हैं |
 देखा , तुम्हारे विरह में कितनी दुर्बल हो गई हूँ |
 इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर |
 तुम्हारे गले में मूंगे की माला है और मेरे गले में जंजीर |
 तुम्हारे और मेरी भेंट होगी देवी के मन्दिर में |
 इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर |
 असेरी (स्थानीय माप का बर्तन )का घेरा |
 आज के दिन , इस माह ,हम मिले , अब कब भेंट होगी ?
 इस राह से किधर जा रही हो तुम ? सीधे देवी के मंदिर की ओर |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Prayag Pande हो नी काटो , नी काटो झुमरयाली बाँज , बंजानी धुरा ठंडो पानी |
 ठंडो पानी , ठंडो पानी , बाँज बंजानी धुरा ठंडा पानी |
 नैपाल की धनपुतली , कमर खुकुरी |
 बरमा जानी धनपतली ,कमर खुकुरी |
 ठंडो पानी , ठंडो पानी , बाँज बंजानी धुरा ठंडो पानी |
 हो नी काटो , नी काटो झुमरयाली बाँज , बंजानी धुरा ठंडो पानी |
 म्हैना आयो चैत को हो कोई न कोई आलो |
 जैको भाई , चाई रौली , गत भिटौली ल्यालो |
 ठंडो पानी , ठंडो पानी , बाँज , बंजानी धुरा ठंडो पानी|
 हो नी काटो , नी काटो झुमरयाली बाँज , बंजानी धुरा ठंडो पानी |
 यो दिन यो बार मेरी ऊमर की बात |
 भुलुलो , भुलुलो कुंछी , बांकी उन्छी याद |
 ठंडो पानी , ठंडो पानी , बाँज बंजानी , धुरा ठंडो पानी |
 हो नी काटो , नी काटो झुमरयाली बाँज , बंजानी धुरा ठंडो पानी |
 (कुमाऊ का लोक साहित्य से साभार )
 
 भावार्थ :
 मत काटो काटो मत , इस नुकीली घनी पत्तियों वाले बाँज को , बाँज के वन का जल बहुत शीतल होता है |
 शीतल , बहुत शीतल जल , बाँज के वन में बहुत शीतल जल होता है |
 नेपाल का धनपुतली नामक व्यक्ति कमर में खुकुरी बांधे है |
 धनपुतली वर्मा जा रहा है , कमर में खुकरी बंधी है |
 शीतल बहुत शीतल जल , बाँज के वन में बहुत शीतल जल है |
 मत काटो काटो मत , इस नुकीली घनी पत्तियों वाले बाँज को , बाँज के वन का जल बहुत शीतल होता है |
 चैत का महीना आ रहा है , कोई न कोई अवश्य आवेगा |
 जिन बहिनों के भाई हैं वे भाई की राह देखती होंगी कि कब भिटौली लेकर भाई आ जावे |
 शीतल , बहुत शीतल जल , बाँज के वन में बहुत शीतल जल है |
 मत काटो काटो मत , इस नुकीली घनी पत्तियों वाले बाँज को , बाँज के वन का जल बहुत शीतल होता है |
 वह दिन , वह वार जीवन भर मेरी स्मृति में रहा |
 जितना इसे भुलाने की चेष्टा की , उतना ही अधिक याद आया यह |
 शीतल , बहुत शीतल जल , बाँज के वन में बहुत शीतल जल है |
 मत काटो काटो मत , इस नुकीली घनी पत्तियों वाले बाँज को , बाँज के वन का जल बहुत शीतल होता है |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Prayer

ए संज्या झुकि गेछ भगवान , नीलकंठ हिवाला |
 ए संज्या झुकि गेछ हो रामा, अगास रे पताला|
 ए संज्या झुकि गेछ भगवाना ,नौ खंडा धरति मांझा|
 नौ खंडा धरति हो रामा , तीन हो रे लोका |
 के संज्या झुकि गेछ भगवाना ,के संज्या झुकि गेछ |
 के संज्या झुकि गेछ रामा ,कृष्ण ज्यु की द्वारिका |
 हो के संज्या झुकि गेछ हो रामा , यो रंगीली वेराटा|
 के संज्या झुकि गेछ भगवाना , यो पंचवटी मांझा |
 के संज्या झुकि गेछ हो रामा ,रामाज्यु की अजुध्या |
 के संज्या झुकि गेछ भगवाना , कौरवुं को बंगला |
 के संज्या झुकि गेछ हो रामा ,यो गेली समुन्दरा|
 के संज्या झुकि गेछ भगवाना ,पंचचुली का धुरा |
 के संज्या झुकि गेछ हो रामा ,हारीहरा हरिद्वारा|
 के संज्या झुकि गेछ भगवाना ,सप्ता रे सिन्धु ,पंचा रे नंदा |
 ए संज्या झुकि गेछ हो रामा ,सुनै की लंका धामा ||

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बेटी की विदाई के समय गिदारों द्वारा गए जाने वाला कुमांऊनी संस्कार गीत -------
 
 हरियाली खड़ो मेरे द्वार , इजा मेरी पैलागी ,इजा मेरी पैलागी |
 छोडो -छोडो ईजा मेरी अंचली,छोडो -छोडो काखी मेरी अंचली ,
 मेरी बबज्यु लै दियो कन्यादान , मेरा ककज्यु लै दियो सत्यबोल ,
 इजा मेरी पैलागी |
 इजा मेरी पैलागी |
 छोडो -छोडो बोजी मेरी अंचली , छोडो -छोडो बहिना ,मेरी अंचली ,
 मेरे भाई लै दियो कन्यादान , मेरे भिना लै दियो सत्यबोल,
 इजा मेरी पैलागी |
 इजा मेरी पैलागी |
 छोडो -छोडो मामी मेरी अंचली , मेरे मामा लै दियो कन्यादान ,
 इजा मेरी पैलागी ,इजा मेरी पैलागी

Courtesy  - Prayag Pande

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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लीजिये आज पेश है-   उत्तराखंड में पलायन के चलते वीरान होती बाखलियों की तस्वीरों के साथ उत्तराखंड और यहाँ के निवासियों की नियति को व्यक्त करता बहुत पुराना कुमांऊनी बाल - गीत -----------
 
 छक - छक छुपरी मोत्यूं का दाणा |
 पार बटी अइन  कुमइया राणा |
 कुमइये ल मैं कै धान दिं |
 धान मैं लै ऊखव दिं |
 ऊखलै ल मैं कै चावल दिं |
 तौलिल मैं कै भात दिं |
 भात मैं लै ल्वारी दी |
 ल्वारी लै  मैं कै दात्ती दी |
 दात्ती मैं कै घस्यारी दी |
 घस्यारिल मैं कै घास दी |
 घास मैं लै गोरु दी |
 गोरुल मैं कै दूद दी |
 दूद मैं लै राजा दी |
 राजा लै मैं कै घोड़ी दी |
 मैं ग्यूँ माव |
 घोड़ी लागि डाव |
 मैं बैठयूँ स्योव |
 घोड़ी पड़ी भ्योव ||
 
 भावार्थ -
 टोकरी भरी है मोतियों से |
 सामने से आया दुष्ट कुमइया |
 कुमइया ने मुझे धान दिए |
 धान मैंने ओखली में डाले |
 ओखली ने मुझे चावल दिए |
 चावल मैंने पतीली में डाले |
 पतीली ने मुझे भात दिया |
 भात मैंने लोहारिन को दिया |
 लोहारिन ने मुझे दराती ला दी |
 दराती दी मैंने घसियारी को |
  घसियारी ने मुझे घास दी |
 घास दी मैंने गाय को |
 गाय ने मुझे दूध दिया |
 दूध मैं राजा को दे आई |
 राजा ने मुझे घोड़ी दी |
 घोड़ी लेकर मैं चली मैदानों को |
 घोड़ी मुड़ी पहाड़ों  को |
 मैं बैठी थी छाया में|
 घोड़ी गिरी पहाड़ से ||
 (कुमाऊं का लोक साहित्य से )

Courtesy - Prayag Pande

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From :Prayag Pande


बरसात का मौसम पुरे यौवन में है | गरजते काले बादल और कभी तेज तो कभी रिमझिम वर्षा के बीच रोजी - रोटी की तलाश में परदेश गए अपने प्रियतम की याद आना स्वाभाविक है | सो , लीजिये पेश है - बरसात के मौसम में अपने निष्ठुर प्रियतम से विछोह में व्यथित पहाड़ की वीरांगना के दर्द को व्यक्त करता बहुत पुराना कुमांऊनी ऋतु लोकगीत -
 
 सण सण सण मण सौंणाक ,
 रिमा झिमा दयो लागो दणाक |
 
 घनघोर बादली घमकी |
 गोरी बांकी बिजुली चमकी |
 
 तलि सारी मलि सारी हरिया |
 नदी नौला चुपटौला भरिया|
 
 कां देखीनो यो ऋतु यो मास ?
 चारै दिन रंगीलो चौमास |
 
 डीना काना झुरि गेछ हौली |
 साँस पड़ी सासु नि ऐ कौली |
 
 कसी काटूं पालुरी को घास |
 नी थामिनी हियै को निसास |
 
 जै कारण रंग छियो राज |
 कैंथैं कूं मैं ऊ घरै नै आज |
 
 कां छै भागी , आगरा कि दिल्ली ?
 आजि तक कुसलै नि मिली |
 
 घन तेरी बैरूंण पराणी|
 जोग्यानी सूं चीठी लै हराणी |
 
 बजी जाली माया को लपोड़ |
 झुरी खांछ जोड़ी  को बिछोड |
 
 भगवान कै  आला उ दिना |
 बिछुडिया मिलुंला जै दिना ||
 
 भावार्थ :
 जल धाराओं की कल - कल , छल -छल ध्वनि में सावन का संगीत सुनाई देता है |
 कभी रिमझिम वर्षा हो रही है तो कभी मूसलाधार |
 घने बादल उमड़ - घुमड़ कर चले आ रहे हैं |
 गोरी , बांकी , चपला चमक रही है |
 नीचे - ऊपर के सब खेतों में हरियाली छाई है |
 नदी - नाले और तलैया भरे हुए हैं |
 वर्षा ऋतु के समान ऋतु और सावन के समान माह और कहाँ दिखता है |
 यह रंगीला चार्तुमास चार दिन का है |
 पर्वत और वनों में कोहरा छाया है |
 संध्या हो आई है | अब सास कहेंगी कि बहु इतनी देर तक वन से नहीं लौटी |
 कैसे काटूं मैं अब यह घास ?
 मन की आकुलता तो थामे नहीं थमती |
 जिसकी बदौलत सारा सुख - चैन था ,
 किससे कहूँ मैं कि आज तो वह घर से दूर है |
 कहाँ , किस सुदूर प्रदेश में जा बसे हो , प्रिय ?
 तुम जाने आगरा हो या दिल्ली |
 आज तक तुम्हारा कुशल - समाचार तक न मिला |
 तुम्हारा निष्ठुर मन भी धन्य है |
 मुझ  जोगन के लिए तुम्हारा एक पत्र भी दुर्लभ हो गया |
 प्रेम के इस जंजाल को भी क्या कहें |
 प्रिय से बिछोह किस तरह मन - प्राण कचोट देता है |
 हे भगवान , क्या कभी वह दिन भी आएगा ,
 जिस दिन दो बिछुड़े हुए प्राणी फिर मिलेंगे ||
 
                       (कुमांऊँ का लोक - साहित्य )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे


हो सरग तारा , जुन्याली रात|
 को सुनलो यो मेरी बात ?
 पाणी को मसिक सुवा पाणी को मसिक |
 तू न्है गये परदेस मैं रूंली कसीक ?
 हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?
 विरहा कि रात भागी , विरहा की रात |
 आखन वै आंशु झड़ी लागी वरसात |
 हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?
 तेल त निमडी गोछ ,बुझरोंछ बाती |
 तेरी माया लै मेडी दियो सरपे कि भांति |
 हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?
 अस्यारी को रेट सुवा, अस्यारी को रेट |
 आज का जईयां बटी कब होली भेंट |
 हो सरग तारा ,जुन्याली रात ,को सुनलो यो मेरी बात ?
 
  कुमांऊँ का लोक साहित्य से )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे यो सेरी  का मोत्यूं तुम भोग लागला हो |
 स्योव दिया विद हो |
 यों  भूमि  को  भूमियाँ बरदैन  हया हो |
 रोपारों   तोपारों  बरोबरी दिया  हो |
 हालिया  बलदा  बरोबरी  दिया हो |
 हात दिया छावा हो , बियों दिया फ़ारो हो |
 पंचनाम देवो हो !!
 
 भावार्थ -
 इस खेत मे पैदा होने वाले धानों के मोती के समान चावल आपको भोग लगायेंगे |
 हे देव ,आप छाया प्रदान कीजिये , वर्षा रोक लीजिये |
 हे इस भूमि के अधिपति देव , आप अनुकूल रहिये ,कृपालु रहिये |
 रोपाई के इन पौधों से टोकरी भर - भर कर धान दीजिये |
 हलवाहा और बैल समान रूप से परिश्रमी दीजिये |
 रोपाई करने वाले श्रमिकों को दक्षता दीजिये , उनके हाथ तेज चलें और
 पौधे सारे खेत के लिए पर्याप्त हों |
 हे पंचनाम देव , आप कृपा कीजिये !!
 
 (कुमाऊँ का लोक साहित्य )

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे

कुमाऊनी लोक गीत और लोक संगीताक प्रेमियों लिजी आज भौत पुराण बाल गीत चै लै रयों | तो लियो आज य बाल गीतक आनन्द लीजियो _
 
 झुलील्ये झुली  भावा झुली लै |
 पुरवी को पिंगढ्यों लो |
 पछिम को हावा |
 झुली लै भावा |
 तेरी ईजू पलुरिया घास जाई रैछ |
 तेरा लिजिया भावा
 चुचि भरि ल्याली , चड़ी मारि ल्याली |
 चुचि खाप लैलै भावा |
 चड़ी खेल लगाले होलि लै होलि |
 चुंगरी तोड़लै भावा |
 खातडी फाड़लै |
 तेरि छत्तर राजगद्दी , बड़ी - बड़ी हौली लै |
 कुमवी को जौल खाले , अजुवा को पानी |
 गुदडी में सोई रौले .होलि लै होलि लै ||
 
 भावार्थ :
 ओ मेरे नन्हे , सो जा मेरे बच्चे |
 पूर्व की ओर से आयेगी पीली गेंद (सूर्य )|
 पश्चिम से आ रही होगी हवा |
 सो जा मेरे मुन्ने , सो जा |
 माँ तेरि गई है पुरलिया घास लाने |
 तेरे लिए ओ बच्चे
 वह स्तन पर दूध लायेगी , चिड़िया मार लायेगी |
 तू माँ का स्तन पान करेगा ओ नन्हे |
 तू चिड़िया से खेलेगा , सो जा मुन्ने सो जा |
 तू फिर चुगरा तोड़ेगा |
 और अपने गद्दे फाडेगा |
 तेरा छत्र होगा , बड़ी राजगद्दी होगी |
 तू कुमई की खिचड़ी खायेगा और सोते का पानी पीएगा |
 गुदड़ी में सोया रहेगा , सो जा मुन्ने सो जा ||
                           - कुमाऊ का लोक साहित्य

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प्रयाग पाण्डे


बेटी की विदाई के समय का कुमांऊनी संस्कार गीत _
 
 काहे कि छोडूँ मैं एजनी पैजनी काहे कि लम्बी कोख ए ?
 बाबु कि छोडूँ मैं एजली पैजली माई कि लम्बी कोख ए |
 काहे कि छोडूँ मैं हिल मिल चादर , काहे कि रामरसोई ए ,
 भाई कि छोडूँ मैं हिल मिल चादर , भाभि कि रामरसोई ए |
 छोटे - छोटे भाईन पकड़ी पलकिया हमरी बहिन कांहाँ जाई ए ,
 छोडो - छोडो भाई हमरी पलकिया , हम परदेसिन लोक ए |
 जैसे जंगल की चिड़ियाँ बोलै , रात बसे दिन उडि चलै ,
 वैसे बाबुल का घर हम धिय सोहें , रात बसे दिन उडि चलै |
 बाबुल घर छाडी ससुर का देस , छाड़ो तुम्हारो देस ए ,
 भाईन घर छाडी जेठ का देस , छाड़ो तुम्हारो देस ए |
 माई कहे बेटी नित उठि अइयो, बाबु काहे छट मास मे,
 भाई कहे बैना काज परोसन ,भाभि कहे क्या काज ए ||
 
 ( कुमांऊँ का लोक साहित्य )

 

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