Author Topic: Songs On Bird Ghughuti - घुघुती पक्षी पर रचित उत्तराखंड के सबसे ज्यादे गाने  (Read 33751 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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SEE THE LINES OF THIS "LAURI" WHERE THERE IS SPECIAL MENTION ABOUT GHUGHUTI BIRD
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घुघूती बासूती
को कर लौ
बाबु कर ला
जागूती जागूती
को कर लौ
ईज करली
मेरी ईज कर ली !

घुघूती बासूती
को कर लौ
बाबु कर ला

बाबु करला / ईज करली
भुत भुतौ पाको लौ,
दुद भात पाकौ लौ,
दूध भाति / कौ खालौ
म्यार भौ खालौ !
दूध भात / म्यर नौनु भौ खालौ
म्यर भौ खालो !
घुघूती बासूती / जुगूती जागूती
आ नीनी / जा भूकी
को से लौ
भौ से लौ
म्यर नानू भौ से लौ !
घुघूती बासूती
 जुगूती जागूती
जा भूकी /आ नीनी
भौ से लौ / भौ ले से लौ
म्यर भौ से लौ !

by : रतन सिह किरमोलिया (प्रवक्ता हिंदी रा० इ० का ० कमलेश्वर (अल्मोडा)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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See this song no

    Chadi Ghughuti we
    Too Kile Ghurache
     Ghur Ghur Teri
     Meeke Rulanche


You can also listen this Song  from the under mentioned link

http://ishare.rediff.com/music/folk/chadi-ghughuti-ve/10060890

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एक महिला किस प्रकार घुघूती को कहती है कि वह उसके मायके मे जाए और माँ की कुशल ले लाये !
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  उड़ घुघूती तू जा ... रे.. जा.
  इजु का देश मा
 म्यार जिया ना जला ..
  जा. तो इजु का देश मा

इस गाने को आप इस लिंक से सुन सकते है

http://ishare.rediff.com/music/romantic/ghughuti-udi-ja/10061716

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is the Song by Kalpana Chauhan (Album Shera Ghat k Bazar)

घुघूती जा . जा.. उडी जा..
मेरी इजु भेटी आ
ओह आशी लागी हनली
ओह बाटी चाई होली

घुघूती जा . जा.. उडी जा..
मेरी इजु भेटी आ ...

रगीली फूल गी
डाई बोटी सब झूली गी.

घुघूती जा . जा.. उडी जा..
मेरी इजु भेटी आ

You can also this Song from this link

http://ishare.rediff.com/music/kumaoni-others-sad/ghughuti-ja-ja-ja/10061054

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नैन नाथ रावल का यह गाना घुघूती पर (एल्बम  : हेरी आ गे )
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उड़ घुघूती उडी जा
काकडी झील में
उदासी ना लगा तू
तू म्यार दिल हो.. हो..

कण कण पैलि जान छ
चौमास का बान वो..
रुकी  जाछो बगन पानी
ना रुकींन मन..

उड़ घुघूती उडी जा
काकडी झील में
उदासी ना लगा तू
तू म्यार दिल हो.. हो..

पूरा गाना इस लिंक से सुनिए ..

http://ishare.rediff.com/music/kumaoni-folk/udh-ghughuti-udhi-ja/10060789

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is also one of the oldest song on Ghughuti.

घूर घूघती घूर - घूर - घूरा तेरे घूरनेे से मेरे प्राण है दुःखी

घूर घूघूती घूर घूर - पंक्षी का चहकना
घूघूती - पंक्षी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is the Lori. from Megha Aa Film.

Ghughuti, Basooti.
Bhawa, Khaal doti Baat. 

[youtube]http://www.youtube.com/watch?v=8ZjKcJbCspk

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र.
घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र......२

        मैत की नराई नराई लागी
        मैत मेरो दूर
       मैत की नराई नराई लागी
        मैत मेरो दूर

घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र.
घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र......२

      रूणा भूणा दिन आया उदेखिया रात
      स्वामी मेरा परदेश, कौ सुनल   बात
      मौली गयी चूड़ा सबे, बगी गे सिन्दूर
      मौली गयी चूड़ा सबे, बगी गे सिन्दूर

घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र.
घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र......२

    ऋतू आयी, ऋतू गयी, गयी दिन बार
    होली के बगर, रीत (खाली) सब तयार
    याद एगे स्वामी मैल झुर  जिकुड़ी झुर ...र.
    याद एगे स्वामी मैल झुर  जिकुड़ी झुर ...र.

घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र.
घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र......२

बेडू पाको चौमासा, काफल पाको चैत
कब आला स्वामी घर, कब जून मैता
उदासिया चडी (पक्षी) बासी, फुर पुतई फुर....र..
उदासिया चडी (पक्षी) बासी, फुर पुतई फुर....र..

घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र.
घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र......२
घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र.
घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र......२

      मैत की नराई नराई लागी
       मैत मेरो दूर
       मैत की नराई नराई लागी
        मैत मेरो दूर

घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र.
घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र......२
घुर  घुघूती घुर ...र...र. घुर ..र.

भावार्थ :  उत्तराखंड देवभूमि घुघूती एक बहुत ही सुंदर पक्षी है, जिसका घुरना (गाना) बहुत ही सुंदर होता है! लेकिन इस पक्षी का घुरना आमतौर से उदासी का प्रतीक माना गया है! खासतौर से उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रो में जब संचार के पर्याप्त साधन नहीं थे और महिलाये को जब अपने ससुराल और एव स्वामी की नराई (याद)आती थी वो घुघूत पक्षी के घुरने से और ज्यादे भाविक हो जाती थी! और गीतों में घुघूती के घुरने के साथ अपने दुःख और नराई को भी व्यक्त करती थी!

इस गाने में भी एक महिला जो कही पहाड़ो में काम करते वकत जब घुघती चिड़िया किसी पेड़ के डाली पर गाती है तो उसे अपना दुःख इस प्रकार से व्यक्त करती है!

   घुघूती तू घूरते रह, मुझे अपनी मायके की याद आ रही है
   लेकिन मेरा मायका बहुत दूर है!

   दिन आते दिन बीत जाते है और यादो भरी राते
   मेरे स्वामी प्रदेश में है, मेरा यह दुःख कौन सुनेगा
    उसकी हाथ पहनी चूडिया अब गन्दी हो चुकी है
    उसका पहना हुवा सिन्दूर धुल चूका है .. स्वामी के याद में.

   घुघूती तू घूरते रह, मुझे अपनी मायके की याद आ रही है
   लेकिन मेरा मायका बहुत दूर है!

    कितने ऋतू आये और चले गयी
    होली भी आयी चली गयी , बिना स्वामी के
    स्वामी के याद में जुकुदी (हिर्दय) झुर ..२.दुखी है / व्याकुल है

   घुघूती तू घूरते रह, मुझे अपनी मायके की याद आ रही है
   लेकिन मेरा मायका बहुत दूर है!

    चैत के महीने में काफल पकता है, चौमास में बेडू फल
    कब मेरे स्वामी घर आयेंगे, कब मै उनके साथ मायके जावुँगी
   सब चिड़िया भी उदासी हो गए है, फुतली तू भी उड़ जा

   घुघूती तू घूरते रह, मुझे अपनी मायके की याद आ रही है
   लेकिन मेरा मायका बहुत दूर है!
 

This song was provided by Mr Yunus Khan Ji. RJ Vividh Bharteey Mumbai..

हेम पन्त

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फौजी ललित मोहन जोशी का एक प्रसिद्ध गाना है-

दूर बड़ि दूर बर्फिलो डांणा, ले-लद्दाख लड़ैं लागि, मेरा दाज्यु बचि रया..

इसी गाने का एक अन्तरा है-

घुघुती की घूर-घूर, कोयल की बोलि दाज्यु
दुश्मन लड़ैं में आलो, मारि दिया गोलि दाज्यु.

दूर बड़ि दुर, बर्फीलो डांना, ले-लद्दाख लड़ैं लागि, मेरा दाज्यु बचि रया 

jagmohan singh jayara

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"बास हे घुग्ति"

बास हे घुग्ति, डाळ्यौं मा बैठि,
मैनि लगिं छ चैत की,
ऐगि  मौळ्यार, सजि धजिं छन,
डांडी मेरा मैत की.......

पाख्यौं  मा फ्यौंलि, मुल-मुल हैंसणि,
सारी मेरा मैत की,
तेरु बासणु, कनु भलु लगणु,
फूल्यारि मैनि चैत की......

अबरि अयुं छौं, मैत मैं अपणा,
खुद नि लगणि मैत की,
बास बास तू, प्यारी हे घुग्ति,
रौंत्याळि  मैनि चैत की......

स्वाळि पकोड़ी,  खाणु छौं घुग्ति,
थगोलि दाळ भात की,
कथगा सवादि, लग्दि छन 
लगड़ी ब्वै  का हात की.....

मैत मा अपणा, दगड़्यौं दगड़ि,
सुण हे  घुग्ति मैत की,
कथगा ऊलार, रीत रसाण,
ऊलारया मैनि मैत की.....
 
"बास हे घुग्ति", डाळ्यौं मा बैठि,
बोन्नि  बैठिं पास,
कवि "जिज्ञासु", दूर प्रदेश,
होयुं छ ऊदास.........

कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित-"बास हे घुग्ति" प्रकाशित यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़ पर १३.४.२०१०)

 

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