Author Topic: Songs On Personalities/Movements - विभिन्न आन्दोलनों/व्यक्ति विशेष पर लिखे गीत  (Read 24486 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के विभिन्न आन्दोलनों एव व्यक्ति विशेष पर लिखे गीत एव कविताये:


दोस्तों

जैसे आपको ज्ञात है लोक गीत किसी की साहित्य के बड़े प्रतिबिम्ब रहे है ! उत्तराखंड के जन आन्दोलनों एव राज्य के गठन में लोक गीतों एव कविताओ का बड़ा सहयोग रहा है ! चाहे ये आजादी की लड़ाई हो, कुली बेगार आन्दोलन हो etc  etc. ! यहाँ तक की उत्तराखंड के लोक गीतों ने राजनीती मे भी काफ़ी उथल पुथल मचाई है !

इसके अलावा उत्तराखंड के लोक संगीत एव कविताओं में व्यक्ति विशेष का काफ़ी उल्लेख किया है ! हम यहाँ पर उत्तराखंड के विभिन्न आन्दोलनों एव व्यक्ति विशेष पर लिखे कविताओं को एकत्रित करेंगे !

आशा आप अपना सहयोग देंगे !

एस एस मेहता


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जैसे उत्तराखंड एक लोक गायक ने महेंद्र सिह धोनी के उत्तराखंड से पैत्रिक संभंध पर यह गाना बनाया है:

सालम (जगह का नाम) धोनी कमाल करिगियो
उत्तराखंड नाम रोशन करिगियो

(एल्बम का नाम धोनी धमाल)

I will write full lyrics of this song in this thread later)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ले मशाले चल पडे हैं, लोग मेरे गांव के,

बल्ली सिंह चीमा
 जी एक क्रान्तिकारी कवि के रूप में पूरे भारत में एक जाना पहचाना नाम हैं. वह ऊधमसिंह नगर के बाजपुर कस्बे में रहते हैं. उन्होनें आमजन के सरोकारों से जुङे मुद्दों और अपने अधिकारों की रक्षा के लिये संगठित होकर संघर्ष करने के लिये जोश भरने वाली कई मशहूर कविताएं लिखी हैं. उनकी एक कविता आप लोगों के लिये प्रस्तुत हैं. यह गीत उत्तराखण्ड आनदोलन के दौरान प्रमुख गीत बन कर उभरा. वर्तमान समय मे यह गीत भारत के लगभग सभी आन्दोलनों में मार्च गीत के रूप में व्यापक रूप से प्रयोग में लाया जाता है.

ले मशाले चल पडे हैं, लोग मेरे गांव के,
अब अंधेरा जीत लेंगे, लोग मेरे गांव के,
कह रही है झोपङी और पूछते हैं खेत भी,
कब तलक लुटते रहेंगे, लोग मेरे गांव के,
बिन लङे कुछ भी नहीं मिलता यहां यह जानकर
अब लङाई लङ रह हैं , लोग मेरे गांव के,
कफन बांधे हैं सिरो पर, हाथ में तलवार हैं,
ढूंढने निकले हैं दुश्मन, लोग मेरे गांव के,
एकता से बल मिला है झोपङी की सांस को
आंधियों से लङ रहे हैं, लोग मेरे गांव के,
हर रुकावट चीखती है, ठोकरों की मार से
बेडि़यां खनका रहे हैं, लोग मेरे गांव के,
दे रहे है देख लो अब वो सदा-ए -इंकलाब
हाथ में परचम लिये हैं, लोग मेरे गांव के,
देख बल्ली जो सुबह फीकी है दिखती आजकल,
लाल रंग उसमें भरेंगे, लोग मेरे गांव के। [/b]

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मुट्ट बोटीक रख!
नरेंद्र सिंह नेगी ने 1994 में उत्तरकाशी में जब यह पंक्तियां लिखीं, तब सामने अलग राज्य का संघर्ष था। आज अलग राज्य तो है, लेकिन आम आदमी का संघर्ष वही है। ऐसे में उनका यह गीत आज मुझ जैसे न जाने कितने लोगों को संबल देता है।

द्वी दिनू की हौरि छ ,
अब खैरि मुट्ट बोटीकि रख
तेरि हिकमत आजमाणू बेरि
मुट्ट बोटीक रख।
घणा डाळों बीच छिर्की आलु ये मुल्क बी
सेक्कि पाळै द्वी घड़ी छि हौरि,
मुट्ट बोटीक रख
सच्चू छै तू सच्चु तेरू ब्रह्म लड़ै सच्ची तेरी
झूठा द्यब्तौकि किलकार्यूंन ना डैरि
मुट्ट बोटीक रख।
हर्चणा छन गौं-मुठ्यार रीत-रिवाज बोलि
भासायू बचाण ही पछ्याण अब तेरि
मुट्ट बोटीक रख।
सन् इक्यावन बिचि ठगौणा
छिन ये त्वे सुपिन्या दिखैकी
ऐंसू भी आला चुनौमा फेरि
मुट्ट बोटीक रख।
गर्जणा बादल चमकणी
चाल बर्खा हवेकि राली
ह्वैकि राली डांड़ि-कांठी हैरि
मुट्टबोटीक रख।

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड राज्य निर्माण प्राप्ति के संघर्ष के दौरान लोगों के दिलों में एक आदर्श राज्य का सपना था. राज्य की प्राप्ति के लिये लगभग 40 लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर किये. अन्ततः राज्य तो बन गया, लेकिन 7 साल बीतने पर भी आन्दोलनकारियों के सपनों का राज्य एक सपना ही बना हुआ है.शराब के ठेकेदारों, भू माफियाओं और एन.जी ओ. के नाम पर चल रहे करोड़ों के व्यवसाय के बीच आम उत्तराखण्डी मानस ठगा सा महसूस कर रहा है.
सपना देखा गया था ऐसे राज्य का जिसमें चारों ओर खुशहाली हो. समाज के हर वर्ग की अपनी अपेक्षाएं थीं. नरेन्द्र सिंह नेगी जी की इस कविता के माध्यम से समाज के सभी वर्गों की आक्षांकाएं स्पष्ट होती हैं. भगवान से यही प्रार्थना है कि राज्य के नीतिनिर्धारकों के कानों तक नेगी जी का यह गीत पहुँचे, और वो हमारे सपनों का राज्य बनाने के लिये ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से काम करें.

बोला भै-बन्धू तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
हे उत्तराखण्ड्यूँ तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
जात न पाँत हो, राग न रीस हो,
छोटू न बडू हो, भूख न तीस हो,
मनख्यूंमा हो मनख्यात, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला बेटि-ब्वारयूँ तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला माँ-बैण्यूं तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
घास-लखडा हों बोण अपड़ा हों,
परदेस क्वी ना जौउ सब्बि दगड़ा हों,
जिकुड़ी ना हो उदास, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला बोड़ाजी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला ककाजी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
कूलूमा पाणि हो खेतू हैरयाली हो,
बाग-बग्वान-फल फूलूकी डाली हो,
मेहनति हों सब्बि लोग, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला भुलुऔं तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला नौल्याळू तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
शिक्षा हो दिक्षा हो जख रोजगार हो,
क्वै भैजी भुला न बैठ्यूं बेकार हो,
खाना कमाणा हो लोग यनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला परमुख जी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला परधान जी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
छोटा छोटा उद्योग जख घर-घरूँमा हों,
घूस न रिश्वत जख दफ्तरूंमा हो,
गौ-गौंकू होऊ विकास यनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्!!

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड आन्दोलन का गिर्दा द्वारा लिखित कविता ! (बागस्यरौक गीत)


सरजू-गुमती संगम में गंगजली उठूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'भुलु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
उतरैणिक कौतीक हिटो वै फैसला करुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूंलो 'बैणी' उत्तराखण्ड ल्हयूंलो
बडी महिमा बास्यरै की के दिनूँ सबूतऐलघातै उतरैणि आब यो अलख जगूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'भुलु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो धन -मयेडी छाति उनरी,धन त्यारा उँ लाल, बलिदानै की जोत जगै ढोलि गै जो उज्याल खटीमा,मंसुरि,मुजफ्फर कैं हम के भुली जुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'चेली'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
कस हो लो उत्तराखण्ड,कास हमारा नेता, कास ह्वाला पधान गौं का,कसि होली ब्यस्था
जडि़-कंजडि़ उखेलि भली कैं , पुरि बहस करुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो वि कैं मनकसो बैंणूलोबैंणी फाँसी उमर नि माजैलि दिलिपना कढ़ाई
रम,रैफल, ल्येफ्ट-रैट कसि हुँछौ बतूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'ज्वानो' उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
मैंसन हूँ घर-कुडि़ हौ,भैंसल हूँ खाल, गोरु-बाछन हूँ गोचर ही,चाड़-प्वाथन हूँ डाल
धूर-जगल फूल फलो यस मुलुक बैंणूलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'परु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
पांणिक जागि पांणि एजौ,बल्फ मे उज्याल, दुख बिमारी में मिली जो दवाई-अस्पताल सबनै हूँ बराबरी हौ उसनै है बतूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
सांच न मराल् झुरी-झुरी जाँ झुट नि डौंरी पाला, सि, लाकश़ बजरी चोर जौं नि फाँरी पाला
जैदिन जौल यस नी है जो हम लडते रुंलो उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
लुछालुछ कछेरि मे नि हौ, ब्लौकन में लूट, मरी भैंसा का कान काटि खाँणकि न हौ छूट
कुकरी-गासैकि नियम नि हौ यस पनत कँरुलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
जात-पात नान्-ठुल को नी होलो सवाल, सबै उत्तराखण्डी भया हिमाला का लाल
ये धरती सबै की छू सबै यती रुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
यस मुलूक वणै आपुँणो उनन कैं देखुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो

पंकज सिंह महर

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गैरसैंण के बारे में गिर्दा के छन्द

२४ सितम्बर, २००० को गिर्दा ने गैरसैंण रैली में यह छ्न्द कहे थे, जो सच भी हुये

कस होलो उत्तराखण्ड, कां होली राजधानी,
राग-बागी यों आजि करला आपुणि मनमानी,
यो बतौक खुली-खुलास गैरसैंण करुंलो।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

टेम्पुरेरी-परमानैन्टैकी बात यों करला,
दून-नैनीताल कौला, आपुंण सुख देखला,
गैरसैंण का कौल-करार पैली कर ल्हूयला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

वां बै चुई घुमाल यनरी माफिया-सरताज,
दून बै-नैनताल बै चलौल उनरै राज,
फिरि पैली है बांकि उनरा फन्द में फंस जूंला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

’गैरसैणाक’ नाम पर फूं-फूं करनेर,
हमरै कानि में चडि हमने घुत्ति देखूनेर,
हमलै यनरि गद्दि-गुद्दि रघोड़ि यैं धरुला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

पंकज सिंह महर

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आज हिमाल तुमन के धत्यूंछौ, जागौ-जागौ हो म्यरा लाल,

गिरीश तिवारी "गिर्दा" की मर्मस्पर्शी कविता



आज हिमाल तुमन के धत्यूंछौ, जागौ-जागौ हो म्यरा लाल,
नी करण दियौ हमरी निलामी, नी करण दियौ हमरो हलाल।
विचारनै की छां यां रौजै फ़ानी छौ, घुर घ्वां हुनै रुंछौ यां रात्तै-ब्याल,
दै की जै हानि भै यो हमरो समाज, भलिकै नी फानला भानै फुटि जाल।
बात यो आजै कि न्हेति पुराणि छौ, छांणि ल्हियो इतिहास लै यै बताल,
हमलै जनन कैं कानी में बैठायो, वों हमरै फिरी बणि जानी काल।
अजि जांलै कै के हक दे उनले, खालि छोड़्नी रांडा स्यालै जै टोक्याल,
ओड़, बारुणी हम कुल्ली कभाणिनाका, सांचि बताओ धैं कैले पुछि हाल।
लुप-लुप किड़ पड़ी यो व्यवस्था कैं, ज्यून धरणै की भें यौ सब चाल,
हमारा नामे की तो भेली उखेलौधें, तैका भितर स्यांणक जिबाड़ लै हवाल।
भोट मांगणी च्वाख चुपड़ा जतुक छन, रात-स्यात सबनैकि जेड़िया भै खाल,
उनरै सुकरम यौ पिड़ै रैई आज, आजि जांणि अघिल कां जांलै पिड़ाल।
ढुंग बेच्यो-माट बेच्यो, बेचि खै बज्याणी, लिस खोपि-खोपि मेरी उधेड़ी दी खाल,
न्यौलि, चांचरी, झवाड़, छपेली बेच्या मेरा, बेचि दी अरणो घाणी, ठण्डो पाणि, ठण्डी बयाल।

पंकज सिंह महर

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उत्तराखण्ड के अमर शहीदों को प्रसिद्द जनकवि गिरीश तिवारी "गिर्दा" की श्रद्दांजलि

थातिकै नौ ल्हिन्यू हम बलिदानीन को, धन मयेड़ी त्यरा उं बांका लाल।
धन उनरी छाती, झेलि गै जो गोली, मरी बेर ल्वै कैं जो करी गै निहाल॥
पर यौं बलि नी जाणी चैनिन बिरथा, न्है गयी तो नाति-प्वाथन कैं पिड़ाल।
तर्पण करणी तो भौते हुंनी, पर अर्पण ज्यान करनी कुछै लाल॥
याद धरो अगास बै नी हुलरौ क्वे, थै रण, रणकैंणी अघिल बड़ाल।
भूड़ फानी उंण सितुल नी हुनो, जो जालो भूड़ में वीं फानी पाल।।
आज हिमाल तुमन के धत्यूछौ, जागो-जागो हो म्यरा लाल....!

हिन्दी भावार्थ-

नाम यहीं पर लेते हैं उन अमर शहीदों का साथी, कर प्राण निछावर हुये धन्य जो मां के रण-बांकुरे लाल।
हैं धन्य जो कि सीना ताने हंस-हंस कर झेल गये गोली, हैं धन्य चढ़ाकर बलि कर गये लहू को जो निहाल॥
इसलिए ध्यान यह रहे कि बलि बेकार ना जाये उन सबकी, यदि चला गया बलिदान व्यर्थ युगों-युगों पड़ेगा पहचान।
तर्पण करने वाले तो अपने मिल जायेंगे बहुत, मगर अर्पित कर दें जो प्राण, कठिन हैं ऎसे अपने मिल पाना॥
ये याद रहे आकाश नहीं टपकता है रणवीर कभी, ये याद रहे पाताल फोड़ नहीं प्रकट हुआ रणधीर कभी।
ये धरती है, धरती में रण ही रण को राह दिखाता है, जो समर भूमि में उतरेगा, वही रणवीर कहाता है॥
इसलिए, हिमालय जगा रहा है तुम्हें कि जागो-जागो मेरे लाल........!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड राज्य के विकास पर नरेन्द्र सिह नेगी जी यह गाना जो की तत्कालीन कांग्रेस सरकार बार बना था !


हे.. हे..
जम्बू द्वीप भारत खंडे
भारत खंड में उत्तराखंडे
उत्तराखंड राज्य की कथा सुनांदु
प्रथमे वू शहीदों को प्रणाम करदू
जौन उत्तराखंड राज्य का बार मा
अपना प्राण दे दीनी

हे..

Hey... हो हो...हा ..............

उत्तराखण्ड मी  पहलु  रज्जा  tharpey gei,
 भा जा पा  सा  बंशी  स्वामी
स्वामी  अरियुन  का दरवारियुं  द्वि  साल   तक राज   
राज क्या करे, ठाठ  करे
पूजा पाठ  करे, चार को आठ  करे
उत्तराखंड  के उतन्दंड करे 
उत्तरांचल नाम  धरे
आपुन गालों पर फूल माला पैरेनी   
और निचिंत हो के सो जानी   
हे हे.. हो हो...हा ..............

द्वि हजार द्वि मा  पैलो  चुनाव को संख बजे,  रणसिघा गरजे
प्रजा  ने  स्वामी सा  और भगत  सिह और भगत सा  तै सिउन  रों  दी
और भा0 रा0 का0 (भारतीय राष्टीय कांग्रेस) का  चंद्रवंशियो  ते , राजगद्दी   सौप  देई
बाहर का  चंद्रवंशियो  ते , राजगद्दी   सौप  देई
जनता  स्वप्नु देखनी  छ
होनी  हुन्तियाली  का  स्वप्ना ,
भली भाल्यार  का स्वप्न्या
रोज़गार  का सुप्न्या
आज विकास  का सुप्न्या
रंगीला  सुप्न्या
पिंगला  सुप्न्या,
सुपन्या ही सुप्न्या
हे हे.. हो हो...हा ..............

हां तो  भाई बहिनों 
भारकान  चंद्रवंश  को पहिलो  रजा  banein  - नौछमी नारायणा
नौछमी नारायणा द्वारिकाधीश  कृषण  की अनवार  हवे  परे  ,
नौछमी नारायणा राजनीती की  पैनी  धार  हवे  परे ,
नौछमी नारायणा चार बीसी  बसंत  की  बहार  हवे  परे ,
नौछमी नारायणा जवानी  को  हुलार  हवे  परे ,
उद्मातो , धन्मातो , जोबंमातो , रूप  को  रसिया , फूलों  को  हौसिया
नौछमी नारायणा

कोरस

कलजुगी  औतारी  रे , नौछमी नारैना, उत्तराखंड  मुरारी  रे ,नौछमी नारैना-2
छल  बलि  नारैना  रे  , नौछमी नारैना, तीले  धारू  बोला  रे, नौछमी नारैना -2

गुलेरा  की गारी  नरैना, गुलेरा की गारी -3
राज विरोधी  रे  सदा  नि, पर  राज  गद्दी  प्यारी
राज गद्दी प्यारी रे, नौछमी नारैना -२

[CHORUS]

सुन तोलैयी तोल  नरैना, सुन तोलैयी तोल-3
खाजा  बुखाना  सी  बातिनी  तिन , लाल बातियुं  का डोला
लाल बातियुं  का डोला, नौछमी नारैना -2


भुजी   काटी  तरकारी  नरैना , भुजी  काटी  तरकारी  -3
द्वि हातून  लुतौन्दी  नारैना, खाजानु  सरकारी
खाजानु  सरकारी रे , नौछमी नैरैना . 2
[CHORUS]

 हिसारा की गौन्दी  नारैना, हिसारा की गौन्दी -3
बियोग्राफी लिक्वारू  नारैना  तू  बैतरण  तारोंदी
बैतरण  तारोंदी , नौछमी नैरैना -2
[CHORUS]
गोर्खियों  की गोरख्यानी  नारैना, गोर्खियों  की गोरख्यानी-3
कख  लमदाली  स्य  उत्तराखंड, स्य बुधियाँ की  सयानी
बुधियाँ की  सयानी , नौछमी नारैना  -2
[CHORUS]

छम  छम छाम्म , चम्म्लेई
विरोध्युं  लडोनी ,चम्म्लेई
दरवारियो  हसोन्दी , चम्म्लेई
अफ्सरू  पुल्योंदी , चम्म्लेई
प्रजा बैल्मोडी , चम्म्लेई
राजनीती  की बासुरी   नारैना पड़ पड़ी बजौन्दी
नारैना पड़ पड़ी बजौन्दी , नौछमी नारैना  -2
[CHORUS]

छम  छम छाम्म , चम्म्लेई
देनी  देहरादून ,  चम्म्लेई
दरवार  लग्यु  छा ,  चम्म्लेई
नकली राजधानी ,  चम्म्लेई
अरवारयु  की मौज ,  चम्म्लेई
अरवारयु  की मौज,  नरैना, चक्डेतु  की फौज
चक्डेतु  की फौज रे नौछमी नरैना  [/b]
[/size]

पंकज सिंह महर

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के दगडियों सी गोछा? क्यूं दोस्तो सो गये?

1994 के उत्तराखण्ड आन्दोलन में अचानक विराम लगने से उत्पन्न व्यथा को कुमाऊनी कवि शेरदा "अनपढ" ने इन शब्दों में व्यक्त किया.इस दौर में भी इस कविता की प्रासंगिकता कम नही हुई है, जब राज्य बने 7 साल बीत चुके हैं और आम जनता नेताओं और पूंजीपतियों के द्वारा राज्य को असहाय होकर लुटता देख रहे हैं. कहीं भी विरोध की चिंगारी सुलगती नही दिख रही है. उम्मीद है कि शेरदा "अनपढ" की यह कविता युवा उत्तराखण्डियों को उद्वेलित जरूर करेगी.

चार कदम लै नि हिटा, हाय तुम पटै गो छा? के दगडियों से गोछा?
डान कान धात मनानेई, धात छ ऊ धात को?
सार गौ त बटि रौ, तुम जै भै गो छा?
भुलि गो छा बन्दूक गोई, दाद भुलि कि छाति भुलि गिछा इज्जत लुटि,
तुमरै मैं बैणि मरि हिमालाक शेर छो तुम, दु भीतर फै गो छा? के दगडियों से गोछा?
काहू गो परण तुमर, मरणै कसमा खै छी उत्तराखण्ड औं उत्तराखण्ड,
पहाडक ढुंग लै बोलाछि कस छिया बेलि तुम, आज कस है गो छा के दगडियों से गोछा?
एकलो नि हुन दगडियो, मिल बेर कमाल होल किरमोई तराणै लै,
हाथि लै पैमाल होल ठाड उठो बाट लागो, छिया के के है गो छा? के दगडियों से गोछा?
तुम पुजला मज्याव में, तो दुनिया लै पुजि जालि तुमरि कमर खुजलि तो,
सबूं कमरि खुजि जालि निमाई जै जगूना, जगाई जै निमुंछा के दगडियों से गोछा?
जांठि खाओ, जैल जाओ, गिर जाओ उठने र वो गर्दन लै काटि जौ तो,
धड हिटनै र वो के ल्यूंल कोछि कायेडि थै, ल्यै गो छा? के दगडियों से गोछा?

 

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