Uttarakhand > Music of Uttarakhand - उत्तराखण्ड का लोक संगीत

Songs On Personalities/Movements - विभिन्न आन्दोलनों/व्यक्ति विशेष पर लिखे गीत

(1/11) > >>

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:



उत्तराखंड के विभिन्न आन्दोलनों एव व्यक्ति विशेष पर लिखे गीत एव कविताये:


दोस्तों

जैसे आपको ज्ञात है लोक गीत किसी की साहित्य के बड़े प्रतिबिम्ब रहे है ! उत्तराखंड के जन आन्दोलनों एव राज्य के गठन में लोक गीतों एव कविताओ का बड़ा सहयोग रहा है ! चाहे ये आजादी की लड़ाई हो, कुली बेगार आन्दोलन हो etc  etc. ! यहाँ तक की उत्तराखंड के लोक गीतों ने राजनीती मे भी काफ़ी उथल पुथल मचाई है !

इसके अलावा उत्तराखंड के लोक संगीत एव कविताओं में व्यक्ति विशेष का काफ़ी उल्लेख किया है ! हम यहाँ पर उत्तराखंड के विभिन्न आन्दोलनों एव व्यक्ति विशेष पर लिखे कविताओं को एकत्रित करेंगे !

आशा आप अपना सहयोग देंगे !

एस एस मेहता

========================================================

जैसे उत्तराखंड एक लोक गायक ने महेंद्र सिह धोनी के उत्तराखंड से पैत्रिक संभंध पर यह गाना बनाया है:

सालम (जगह का नाम) धोनी कमाल करिगियो
उत्तराखंड नाम रोशन करिगियो

(एल्बम का नाम धोनी धमाल)

I will write full lyrics of this song in this thread later)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
ले मशाले चल पडे हैं, लोग मेरे गांव के,

बल्ली सिंह चीमा
 जी एक क्रान्तिकारी कवि के रूप में पूरे भारत में एक जाना पहचाना नाम हैं. वह ऊधमसिंह नगर के बाजपुर कस्बे में रहते हैं. उन्होनें आमजन के सरोकारों से जुङे मुद्दों और अपने अधिकारों की रक्षा के लिये संगठित होकर संघर्ष करने के लिये जोश भरने वाली कई मशहूर कविताएं लिखी हैं. उनकी एक कविता आप लोगों के लिये प्रस्तुत हैं. यह गीत उत्तराखण्ड आनदोलन के दौरान प्रमुख गीत बन कर उभरा. वर्तमान समय मे यह गीत भारत के लगभग सभी आन्दोलनों में मार्च गीत के रूप में व्यापक रूप से प्रयोग में लाया जाता है.

ले मशाले चल पडे हैं, लोग मेरे गांव के,
अब अंधेरा जीत लेंगे, लोग मेरे गांव के,
कह रही है झोपङी और पूछते हैं खेत भी,
कब तलक लुटते रहेंगे, लोग मेरे गांव के,
बिन लङे कुछ भी नहीं मिलता यहां यह जानकर
अब लङाई लङ रह हैं , लोग मेरे गांव के,
कफन बांधे हैं सिरो पर, हाथ में तलवार हैं,
ढूंढने निकले हैं दुश्मन, लोग मेरे गांव के,
एकता से बल मिला है झोपङी की सांस को
आंधियों से लङ रहे हैं, लोग मेरे गांव के,
हर रुकावट चीखती है, ठोकरों की मार से
बेडि़यां खनका रहे हैं, लोग मेरे गांव के,
दे रहे है देख लो अब वो सदा-ए -इंकलाब
हाथ में परचम लिये हैं, लोग मेरे गांव के,
देख बल्ली जो सुबह फीकी है दिखती आजकल,
लाल रंग उसमें भरेंगे, लोग मेरे गांव के। [/b]

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
मुट्ट बोटीक रख!
नरेंद्र सिंह नेगी ने 1994 में उत्तरकाशी में जब यह पंक्तियां लिखीं, तब सामने अलग राज्य का संघर्ष था। आज अलग राज्य तो है, लेकिन आम आदमी का संघर्ष वही है। ऐसे में उनका यह गीत आज मुझ जैसे न जाने कितने लोगों को संबल देता है।

द्वी दिनू की हौरि छ ,
अब खैरि मुट्ट बोटीकि रख
तेरि हिकमत आजमाणू बेरि
मुट्ट बोटीक रख।
घणा डाळों बीच छिर्की आलु ये मुल्क बी
सेक्कि पाळै द्वी घड़ी छि हौरि,
मुट्ट बोटीक रख
सच्चू छै तू सच्चु तेरू ब्रह्म लड़ै सच्ची तेरी
झूठा द्यब्तौकि किलकार्यूंन ना डैरि
मुट्ट बोटीक रख।
हर्चणा छन गौं-मुठ्यार रीत-रिवाज बोलि
भासायू बचाण ही पछ्याण अब तेरि
मुट्ट बोटीक रख।
सन् इक्यावन बिचि ठगौणा
छिन ये त्वे सुपिन्या दिखैकी
ऐंसू भी आला चुनौमा फेरि
मुट्ट बोटीक रख।
गर्जणा बादल चमकणी
चाल बर्खा हवेकि राली
ह्वैकि राली डांड़ि-कांठी हैरि
मुट्टबोटीक रख।

पंकज सिंह महर:
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण प्राप्ति के संघर्ष के दौरान लोगों के दिलों में एक आदर्श राज्य का सपना था. राज्य की प्राप्ति के लिये लगभग 40 लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर किये. अन्ततः राज्य तो बन गया, लेकिन 7 साल बीतने पर भी आन्दोलनकारियों के सपनों का राज्य एक सपना ही बना हुआ है.शराब के ठेकेदारों, भू माफियाओं और एन.जी ओ. के नाम पर चल रहे करोड़ों के व्यवसाय के बीच आम उत्तराखण्डी मानस ठगा सा महसूस कर रहा है.
सपना देखा गया था ऐसे राज्य का जिसमें चारों ओर खुशहाली हो. समाज के हर वर्ग की अपनी अपेक्षाएं थीं. नरेन्द्र सिंह नेगी जी की इस कविता के माध्यम से समाज के सभी वर्गों की आक्षांकाएं स्पष्ट होती हैं. भगवान से यही प्रार्थना है कि राज्य के नीतिनिर्धारकों के कानों तक नेगी जी का यह गीत पहुँचे, और वो हमारे सपनों का राज्य बनाने के लिये ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से काम करें.

बोला भै-बन्धू तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
हे उत्तराखण्ड्यूँ तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
जात न पाँत हो, राग न रीस हो,
छोटू न बडू हो, भूख न तीस हो,
मनख्यूंमा हो मनख्यात, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला बेटि-ब्वारयूँ तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला माँ-बैण्यूं तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
घास-लखडा हों बोण अपड़ा हों,
परदेस क्वी ना जौउ सब्बि दगड़ा हों,
जिकुड़ी ना हो उदास, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला बोड़ाजी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला ककाजी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
कूलूमा पाणि हो खेतू हैरयाली हो,
बाग-बग्वान-फल फूलूकी डाली हो,
मेहनति हों सब्बि लोग, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला भुलुऔं तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला नौल्याळू तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
शिक्षा हो दिक्षा हो जख रोजगार हो,
क्वै भैजी भुला न बैठ्यूं बेकार हो,
खाना कमाणा हो लोग यनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला परमुख जी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
बोला परधान जी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्,
छोटा छोटा उद्योग जख घर-घरूँमा हों,
घूस न रिश्वत जख दफ्तरूंमा हो,
गौ-गौंकू होऊ विकास यनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्!!

पंकज सिंह महर:
उत्तराखण्ड आन्दोलन का गिर्दा द्वारा लिखित कविता ! (बागस्यरौक गीत)


सरजू-गुमती संगम में गंगजली उठूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'भुलु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
उतरैणिक कौतीक हिटो वै फैसला करुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूंलो 'बैणी' उत्तराखण्ड ल्हयूंलो
बडी महिमा बास्यरै की के दिनूँ सबूतऐलघातै उतरैणि आब यो अलख जगूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'भुलु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो धन -मयेडी छाति उनरी,धन त्यारा उँ लाल, बलिदानै की जोत जगै ढोलि गै जो उज्याल खटीमा,मंसुरि,मुजफ्फर कैं हम के भुली जुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'चेली'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
कस हो लो उत्तराखण्ड,कास हमारा नेता, कास ह्वाला पधान गौं का,कसि होली ब्यस्था
जडि़-कंजडि़ उखेलि भली कैं , पुरि बहस करुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो वि कैं मनकसो बैंणूलोबैंणी फाँसी उमर नि माजैलि दिलिपना कढ़ाई
रम,रैफल, ल्येफ्ट-रैट कसि हुँछौ बतूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'ज्वानो' उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
मैंसन हूँ घर-कुडि़ हौ,भैंसल हूँ खाल, गोरु-बाछन हूँ गोचर ही,चाड़-प्वाथन हूँ डाल
धूर-जगल फूल फलो यस मुलुक बैंणूलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो 'परु'उत्तराखण्ड ल्हयूँलो
पांणिक जागि पांणि एजौ,बल्फ मे उज्याल, दुख बिमारी में मिली जो दवाई-अस्पताल सबनै हूँ बराबरी हौ उसनै है बतूँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
सांच न मराल् झुरी-झुरी जाँ झुट नि डौंरी पाला, सि, लाकश़ बजरी चोर जौं नि फाँरी पाला
जैदिन जौल यस नी है जो हम लडते रुंलो उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
लुछालुछ कछेरि मे नि हौ, ब्लौकन में लूट, मरी भैंसा का कान काटि खाँणकि न हौ छूट
कुकरी-गासैकि नियम नि हौ यस पनत कँरुलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
जात-पात नान्-ठुल को नी होलो सवाल, सबै उत्तराखण्डी भया हिमाला का लाल
ये धरती सबै की छू सबै यती रुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो
यस मुलूक वणै आपुँणो उनन कैं देखुँलो-उत्तराखण्ड ल्हयूँलो विकैं मनकस बणलो

Navigation

[0] Message Index

[#] Next page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version