गोपाल बाबु गोस्वामी का यह गाना.
" वीर विरंगानोओ का, देवी देवताओ का, नर गन धरव, किनारों का, कलाकारों का, वैज्ञानिको का, संत महान्तो, यह देवांचल कितना महान है भारत का यह देवांचल, इसकी छटा ही निराला है, जब प्रातःकाल सूर्य निकलता है , मन को प्रफुलित कर देता है !
उत्तराखंड का प्रातःकालीन समय का वर्णन
हे घुर -२ उजाव हे गियों
डान कानो में सुर -२
बाजी मुरूली तुर -२
हाव चली रे फुर -२
ओह घुर -२ उजाव हे गियों
जागन भेगिये धरती कोख
देवी देवता हिमाली काठा ओह.. २
शिव का डमरू बाजो
म्यार हिमाला डम-२
घणी बाजी रे टन -२
घुर -२ उजाव हे गियों
ओह घुर -२ उजाव हे गियों
डान कानो में सुर -२
बाजी मुरूली तुर -२
हाव चली रे फुर -२
हाथ -२ ताम गागरी
पाणी हु नेगिये सुगड़ी नारी
ये खूटियों का झावर बाट घाटी में छम -२ -
बाजी मुरूली तुर-२
ओह घुर -२ उजाव हे गियों
डान कानो में सुर -२
बाजी मुरूली तुर -२
हाव चली रे फुर -२
गेल पातळ नियोल काफुआ -२
रंग बिरागा चढ़ पथील .. ओह ओ.-२
हे घुघूती बासन भेगिये.
उड़ घिनोदी फुर -फुर
डाई बोटी में तुर -२
हे घुर -२ उजाव हे गियों
डान कानो में सुर -२
बाजी मुरूली तुर -२
हाव चली रे फुर -२
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