Author Topic: प्रसिद्ध उत्तराखंडी महिलाये एवम उनकी उपलब्धिया !!! FAMOUS UTTARAKHANDI WOMEN !!!  (Read 99390 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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देवी की बालवाड़ी
« Reply #70 on: February 15, 2014, 01:17:48 PM »
देवी की बालवाड़ी : संकीर्णता और घृणा से भरी दुनिया को बदलने का एक प्रयास

[justify]नादिना बौलौ द्वारा नार्वेजियन में लिखी और डेनमार्क के रूथ सिलीमानव लोन पालसन द्वारा अंग्रेजी भाषा में लिखी बाउंडलेस किताब उत्तराखंड के पहाड़ों की साधारण कद-काठी वाली एक महिला द्वारा 1970 के दशक में नार्वे जाकर बसने और वहां किए गए उनके असाधारण कार्य, अन्तर्राष्ट्रीय बालवाड़ी (इंटरनेशनल किंडरगार्टेन) के संचालन का सचित्र, सरस विवरण देती है।
देवी उत्तराखंड की पहाडियों में हिमालय की गोद में बसे धुरका गांव में पैदा हुई। पिता द्वितीय विश्वयुद्ध के समय फौज में थे। सबसे बड़ी बहन राधा से प्रेरित होकर देवी और बाकी बहनों ने भी महात्मा गांधी की अंग्रेज शिष्या सरला बहन द्वारा स्थापित ‘लक्ष्मी आश्रम’ में गांधीजी की बुनियादी तालीम पर आधारित शिक्षा हासिल की। वर्धा में उच्च शिक्षा लेने के बाद देवी ने लक्ष्मी आश्रम में शिक्षण भी किया। उनका विवाह पुरस्कारभाई के साथ हुआ जो गांधीवादी कार्यकर्ता और सरला बहन के निकट सहयोगी थे, लेकिन बाद में नार्वे चले गए। वे वहां एक ऑयल बेस में काम कर रहे थे।
देवी जब नार्वे के बर्गेन शहर पहुंचीं तब उनका ध्येय वहां यह सब कुछ करना नहीं था। वे तो अपने पति के साथ रहने वहां गई थीं। नया देश, बिल्कुल नया माहौल और उस पर घर में अकेले खाली रहकर वक्त बिताने की मजबूरी, लेकिन चारों ओर पहाड़ियों से घिरे होने के कारण उन्हें प्राकृतिक वातावरण अपने उत्तराखंड जैसा लगा। खाली वक्त का सदुपयोग करने और नए देश-परिवेश में मन लगाने के लिए उनके मन में कुछ करने का विचार आया, लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं था, सबसे बड़ी मुश्किल थी कि उन्हें नार्वें की भाषा नहीं आती थी। नार्वेजियन सीखने से उनमें आत्मविश्वास आया। गांधीवादी विचारों में पली-बढ़ी देवी के मन में एक अंतर्राष्ट्रीय बालवाड़ी की शुरुआत करने का विचार आया। सोच-विचार के बाद एक ऐसी बालवाड़ी का खाका तैयार हुआ जिसमें आधे बच्चे नार्वे के हों और बाकी अन्य देशों के। किंडरगार्टेन्स नार्वे में पहले से थे, लेकिन एक इंटरनेशनल किंडरगार्टेन खोलने का विचार बिल्कुल नया था और जैसा कि पुस्तक में लिखा है, यह सोच महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित थी। देवी ने महसूस किया कि अगर नार्वे में सब लोगों को प्रेमपूर्वक मिलजुल कर रहना है तो शुरुआत छोटे बच्चों से करनी चाहिए। उन्हें छुटपन से ही सिखाना चाहिए कि दुनिया में अलग-अलग देश और इंसान हैं, जिनका रंग, नस्ल, जाति, धर्म, लिंग, खानपान, पहनावा इत्यादि भी भिन्न-भिन्न हैं। इस भिन्नता को सकारात्मक रूप से कैसे देखें और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की सोच कैसे साकार हो, इसी पर देवी और उनकी टीम के प्रयास केंद्रित रहे। नार्वे में रह रहे विभिन्न देशों के बच्चों की अपनी संस्कृति और पहचान को समझने के साथ ही उनको नार्वे की संस्कृति और समाज से कैसे जोड़ा जाए, इस पर अंतर्राष्ट्रीय बालवाड़ी ने सफलता से काम किया जहां अब 70 के करीब देशों के बच्चे आत्मीयता और प्रेम से परिपूर्ण वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैैं। वे सब साथ मिलकर प्रार्थना करते हैं, खाना खाते हैं, गाते हैं, चित्रकारी करते हैं, खेलते-कूदते हैं। वे सब एक-दूसरे की संस्कृति, इतिहास, परंपराओं के बारे में सीखते हैं, त्यौहारों को मनाते हैं, व्यंजनों का स्वाद चखते हैं। स्वाभाविक ही है कि इस तरह के परिवेश में शिक्षित बच्चे बड़े होकर विविधता या भिन्नता से बैर या परहेज करने के बजाय इसे सहजता और आनंदपूर्वक स्वीकार करना, इससे आनंदित होना बचपन से ही सीखते हैं। 1970 के दशक के अंत में की गई एक छोटी सी शुरुआत ने 30 साल से ज्यादा का रोचक सफर तय कर लिया है।
नार्वे में बच्चों के लालन-पालन और शिक्षा की गुणवत्ता पर सरकार बहुत ज्यादा ध्यान देती है ताकि वे कुंठाओं से मुक्त रहें और बड़े होकर अच्छे शांतिप्रिय नागरिक बनें। देवी ने जब तीस साल पहले अंतर्राष्ट्रीय बालवाड़ी का प्रस्ताव बर्गेन शहर के नगर निकाय के सम्मुख विचार के लिए रखा तो वहां की सरकार और प्रशासनिक मशीनरी के साथ-साथ समाज का रवैया भी सकारात्मक और सहयोगपूर्ण था। पुस्तक में देवी को ’माउंटेन गोट’ कहा गया है जो दुर्गम पहाड़ों में आसानी से चढ़ जाती है। देवी ने भी तीस सालों के अथक प्रयास के दौरान बाधाओं और चुनौतियों के अनेक पहाड़ों को पार किया है। भारत में प्राय: ऐसी सहयोग भावना सरकार या समाज के स्तर पर कम देखने को मिलती है। भारत में लालफीताशाही, स्वार्थ और परस्पर सहयोग की जगह एक-दूसरे की टांग खींचने की आदत के चलते नवाचारी प्रयासों को आगे बढ़ाने में कठिनाई आती है। नार्वे की अंतर्राष्ट्रीय बालवाड़ियां गांधीवादी और सरला बहन के विचारों से प्रभावित हैं। सरला बहन की कहानी सुनाने की अद्भुत कला का जिक्र देवी ने सरला बहन स्मृति ग्रन्थ में किया है ‘शिक्षा व जिन मूल्यों की दृष्टि से मुझे कहानी का आश्रम के बच्चों पर प्रभाव भी दिखने लगा। आज भी मैं सुदूर उत्तरी ध्रुव के निकट बसे देश में जब श्वेत और अश्वेत बच्चों के अंतर्राष्ट्रीय बाल मन्दिर में की बाल मंडली में बैठकर कहानी कहने लगती हूं तो मुझे कहानी कहती बहनजी का चित्र याद हो आता है।’
देवी अब करीब 67 साल की हैं, लेकिन उनके प्रयत्न निरंतर जारी हैं। वे अपने ताजा ईमेल में लिखती हैं, ‘बच्चों का प्यार अपने को ताकत देता है’। भारत जैसे विविधताओं वाले देश को यदि कट्टरता, असष्णिुता, हिंसा और वैमनस्य से बचाना है तो बच्चों से शुरुआत करनी होगी और ऐसी शिक्षा देनी होगी कि वे भविष्य में अच्छे, खुले विचारों वाले नागरिक बनें।


-कमल कुमार जोशी, अल्मोड़ा

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के प‌िथौरागढ़ ज‌िले के इस महिला के मुरीद हुए मोदी

उत्तराखंड के प‌िथौरागढ़ ज‌िले की ग्राम पंचायत सतगढ़ को मानकों के मुताबिक समुचित संचालन करने पर राष्ट्रीय गौरव ग्रामसभा पुरस्कार के लिए चुना गया है। यह पुरस्कार शुक्रवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रदान करेंगे। पुरस्कार प्राप्त करने के लिए ग्राम प्रधान सावित्री कापड़ी दिल्ली रवाना हो गई हैं। जिले से यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली एकमात्र ग्राम प्रधान हैं।

पिथौरागढ़-धारचूला नेशनल हाईवे के किनारे स्थित सतगढ़ गांव की पहचान सब्जी और दुग्ध उत्पादन के लिए है। गांव में खेतीबाड़ी भी अच्छी होती है। इस बार राष्ट्रीय गौरव ग्रामसभा पुरस्कार के लिए जिला पंचायत राज अधिकारी के स्तर से सभी ग्राम पंचायतों से प्रविष्टियां मांगी गईं।

प्रविष्टियों में किए गए दावों की बाद में जिला प्रशासन के स्तर से पुष्टि कराई गई। जिला प्रशासन ने रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी। वहां से केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय के पास अंतिम फैसले के लिए यह प्रस्ताव जाता है। सावित्री कापड़ी पुरस्कार प्राप्त करने के लिए दिल्ली रवाना हो गई हैं। उन्होंने कहा कि यह पूरे गांव और जिले के लिए सम्मान का विषय है।

जिला पंचायत राज अधिकारी बीएस दुग्ताल ने बताया कि राष्ट्रीय गौरव ग्रामसभा पुरस्कार के लिए जो कुछ मापदंड तय किए गए हैं। यह देखा जाता है कि ग्राम पंचायत की बैठक नियमित होती है या नहीं, उसमें गांव के लोगों की भागीदारी कितनी होती है।

राष्ट्रीय कार्यक्रमों में ग्राम पंचायत की सहभागिता कितनी है, भ्रूण हत्या, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान में गांव के लोगों की भागीदारी, विकास कार्यों का सही तरीके से संचालन, रिकार्ड का सही रखरखाव आदि। उन्होंने कहा कि सतगढ़ में यह सभी मानक पूरे मिले।

सावित्री चौथी बार बनीं ग्राम प्रधान
सावित्री कापड़ी लगातार चौथी बार सतगढ़ की प्रधान चुनी गई हैं। त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू होने के बाद किसी व्यक्ति को ऐसे मौके बहुत कम मिलते हैं कि वह लगातार प्रधान चुने जाने का मौका पा सके।

वह इस बार निर्विरोध प्रधान बनी हैं। सावित्री ने बताया कि गांव में शत-प्रतिशत शौचालय बने हैं। गांव में पेयजल की उचित व्यवस्था है। विकास के काम आम जनता की राय पर होते हैं। (amar ujala)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चुनौतियों से पार पा उत्तराखंड की बेटी ने विदेश में रचा इतिहास

उत्तराखंड की कमला की जिद ही थी, जिसने उन्हें अमेरिका में इतिहास रचने का मौका दिया। वर्ल्ड पुलिस एवं फायर गेम्स में मुक्केबाजी का स्वर्ण पदक जीतकर कमला ने उत्तराखंड पुलिस और उत्तराखंड की पहली महिला मुक्केबाज बनने का गौरव हासिल किया है। चैंपियन बनकर कमला भी खुश हैं और उनके कोच एवं दोस्त भी।

करीब तीन माह पहले वर्ल्ड पुलिस एवं फायर गेम्स के लिए भारतीय पुलिस टीम की सूची बनने लगी थी। तब बढ़ती उम्र के कारण कमला बिष्ट (33 साल) को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया गया था और ऑल इंडिया पुलिस गेम्स में उनसे हारी खिलाड़ी को चुना गया। यह बात खुलते ही कमला ने विरोध किया।

यही नहीं कमला को प्रैक्टिस छोड़कर देहरादून आकर उच्च अधिकारियों से मिलकर अपनी बात रखनी पड़ी। पुलिस अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद आखिर में तमाम विरोध के बाद चयनकर्ताओं को सूची बदलनी पड़ी और कमला को वर्ल्ड पुलिस एवं फायर गेम्स का टिकट मिला।

कमला के कोच किशन सिंह महर के अनुसार शुरू से ही कमला में खेल के प्रति जुनून था। वर्ष 2003 में पहली बार कमला ने गलब्ज पहने और कुछ समय बाद ही नेशनल चैंपियनशिप में पहला स्वर्ण जीता।

इसके बाद फेडरेशन कप, ऑल इंडिया पुलिस गेम्स में भी नाम कमाया। हालांकि, कमला को अपनी उम्र और स्पीड के हिसाब से स्पाइरिंग (ट्रेनिंग फाइट) महिला पार्टनर नहीं मिल सके। इस वजह से कमला की लड़कों से फाइट करानी शुरू की।

शुरू में कमला झिझकी, लेकिन जब मोटिवेट किया तो दम लगाकर खेली और लड़कों को मात दी। अपने खेल के लिए वह बारिश के मौसम में भी पिथौरागढ़ से करीब 8 किलोमीटर दूर कुसौली गांव से दौड़कर मैदान पहुंचतीं।

देश में तीन बच्चों की मां मैरी कॉम को युवा मुक्केबाजों के लिए प्रेरणास्रोत माना जाता है। लेकिन उत्तराखंड में कमला बिष्ट युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं। करीब 33 साल की कमला बिष्ट ने बढ़ती उम्र को मात देकर वर्ल्ड पुलिस एवं फायर गेम्स में स्वर्ण जीता है। (amar ujala)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मिस यूनिवर्स 2015: फाइनल राउंड में पहुंची कोटद्वार की उर्वशी रौतेला
‪#‎पौड़ी‬ गढ़वाल ‪#‎उत्तराखंड‬ आखिरकार देश में मिस यूनिवर्स के ताज को लेकर बीते 15 साल का इंतजार खत्म होने का वक्त करीब आ गया है.
अमेरिका के लॉस वेगास में चल रही मिस यूनिवर्स 2015 प्रतियोगिता में इंडिया को रिप्रजेंट कर रहीं बॉलीवुड अभिनेत्री उर्वशी रौतेला ने फाइनल राउंड में जगह बना ली है.
कोटद्वार की रहने वाली उर्वशी ने 80 देशों की सुंदरियों को पछाड़ते हुए फाइनल राउंड में दस्तक दी है.
प्रतियोगिता में उर्वशी की जीत की दावेदारी मजबूत करने के लिए www.missuniverse.com पर वोटिंग की जा सकती है, मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता का फाइनल 20 दिसंबर को होगा.
गौरतलब है कि उर्वशी रौतेला ने 2012 में भी मिस यूनिवर्स के लिए भारत से दावेदारी की थी, लेकिन कम उम्र के कारण मिस इंडिया यूनिवर्स का खिताब जीतने के बावजूद वे मिस यूनिवर्स में शामिल नहीं हो सकी थीं.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड की बेटी सबसे आगे, दुनिया की सबसे लंबी उड़ान की कमान
17 घंटे में 14 हजार पांच सौ किलोमीटर का सफर तय कर नया रिकॉर्ड कायम किया। कमांडर क्षमता वाजपेयी मूलत पिथौरागढ़ जिले के चंडाक गांव की हैं। उनके नाना अपने समय में टिहरी के जाने-माने वकील थे। क्षमता को भारत की तीसरी और उत्तराखंड की पहली महिला कमांडर होने का गौरव भी हासिल है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एयर इंडिया की ओर से चलाई गई दुनिया की सबसे लंबी आल वूमेन फ्लाइट का नेतृत्व उत्तराखंड की बेटी ने किया। उनके निर्देशन में ही टीम ने 17 घंटे में 14 हजार पांच सौ किलोमीटर का सफर तय कर नया रिकॉर्ड कायम किया। बेटी की इस उपलब्धि पर प्रत्येक प्रदेशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
उत्तराखंड मूल की क्षमता ने किया कमांड
नई दिल्ली से सैन फ्रांसिस्को तक विमान को कमांड करने वाली कमांडर क्षमता वाजपेयी मूलत पिथौरागढ़ जिले के चंडाक गांव की हैं। उनके नाना वीरेंद्र दत्त सकलानी अपने समय में टिहरी के जाने-माने वकील थे। 1968 में दिल्ली में जन्मी क्षमता की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा लेडी इरविन स्कूल से हुई। इसके बाद उन्होंने रायबरेली की इंदिरा गांधी उड़ान एकेड़मी से फ्लाइंग का कोर्स किया। 1996 में वह बतौर पायलट एयर इंडिया में शामिल हुई।
क्षमता को भारत की तीसरी और उत्तराखंड की पहली महिला कमांडर होने का गौरव भी हासिल है। उनका विवाह लखनऊ के कैप्टन सुशील वाजपेयी से हुआ। (amar ujala)

 

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